यह लेख मुझे कल रात ही 'राष्ट्रीय महानगर' के संपादक श्री प्रकाश चण्डालिया द्वारा प्राप्त हुआ, जिसे मैं इस वेव पत्रिका के माध्यम से पाठकों के लिये जारी कर रहा हूँ। लेख के लेखक श्री कुन्दन शर्मा "दाधीच" (मोबाइल फोन न. 09829998494) जो कि स्वयं भी राजस्थान के एक वरिष्ठ पत्रकार हैं ने राजस्थान की स्थापत्यकला और भित्ति चित्रों के जो दर्दनाक दृश्य हमें भेजे हैं उससे हम आपको भी परिचय कराते हैं। कहने को बात कुछ भी हो पर श्री कुन्दन जी के दर्द को कोई देख पाये तो जबाब लिखना न भुलें। - शम्भु चौधरी |
स्थापत्यकला और भित्ति चित्रों के लिये विख्यात थली अंचल के चूरू जिले के राजलदेसर कस्बे की हवेलियां सार संभाल के अभाव में पहचान खोती जा रही है। कस्बे में एक दर्जन से अधिक हवेलियां है। जो लोककला और संस्कृति से रू - ब- रू करवाती है। लकड़ी के बड़े-2 कलात्मक कपाटौं से सुसज्जित, गवाक्ष, दरवाजे तथा सामने की दीवारों पर राजपूत व 'फ्रेस्को बुआनो' शैली में उकेरित चित्र वास्तुकला का बैजोड़ नमूने देखने को मिलते हैं। शीशों की जड़ाई, चित्रशाला, वस्तुकला आन, बान और शान के प्रतीक भित्ति चित्र इन हवेलियों में देखे जा सकते हैं। चित्रशाला बनी सेठ सचियालाल की हवेली अपनी अन्तिम सांसे गिन रही है। इस हवेली के कमरों की दीवार में शीशों की जड़ाई का मनमोहक काम शीशमहल की यादगार को ताजा कर देती है। चौबारे के मुँह बोलते भित्ति चित्र एक से एक बढ़कर है। इसी प्रकार सेठ मोहनलाल बैद की हवेली का कमरा स्थापत्यकला का उत्त्कृष्ट नमूना है। दीवारों पर शीशे की जड़ाई, सोने की हिल का उपयोग व विभिन्न रंगों की बेल-बूटों के चित्र मनोहारी है।
सेठ हीरालाल नथमल बैद, मानिकचन्द भँवरलाल दूगड़, मोहनलाल बोथरा, मोटाराम बालचन्द लाडसरिया, संतोकचंद बैद की हवेलियों के बाहर व छज्जे के नीचे टोडों के बीच शिकारी, नायक-नायिका, मल्लयुद्ध, पशु-पक्षियों, देवी-देवताओं, लोककथाओं, ऊँट-घौडो़ पर चढ़े राजपूत, राजस्थानी पौशाक, गठीला शरीर, दाढ़ी-मूँछें तथा आभूषणों से श्रृगांरित कलात्मक भित्ति चित्र चित्रित है। सेठ जेसराज जयचन्दलाला बैद की हवेली की पोंली व टोडों के नीचे उकेरे गये चित्र बरबस ही लोगों को आकर्षित कर लेते हैं। सेठ शिद्धकरण बैद की हवेली की खिड़्कियों व शानदार मुख्यद्वार स्थापत्यकला में बेमिशाल है। परन्तु दुर्भाग्य है, कि आज अधिकांश इन हवेलियों की कोई सुध लेने वाला नहीं है।
हवेलियों के मालिक अन्य राज्यों में प्रवास करने लगे हैं जिन्हे भारत के अन्य हिस्सों में मारवाड़ी के रूप में जाना और पहचाना जाता है। चार-पांच हवेलियां तो गिरने के कगार पर है। हवेलियों के भित्तिचित्र इनके मालिकों की उपेक्षा का शिकार हो रहे हैं। इस सांस्कृतिक विरासत को धीरे-धीर हमारी आधुनिक सभ्यता ने अपना ग्रास बनाना आरम्भ कर दिया है। गत अर्द्ध शताब्दी से हवेलियां अतीत की चिजें बनकर रह गई है। चौबोर सूने-2 और उपेक्षित पड़े हैं,
तो भित्ति चित्र धूल-धसरित होकर धूमिल पड़ने लगे हैं। वर्तमान पीढी़ को इस कलात्मक सृजनता से कोई सरोकार है, दिखाई नही पड़ता। हवेलियों के वर्तमान मालिकों की अदासीनता साफ झलक रही है। न तो कोई सांरक्षण देने वाला दिखाई पड़ता है न ही कोई रुचि लेने वाला ही है। - कुन्दन शर्मा "दाधीच" ( मोबाइल फोन न. 09829998494 )
5 विचार मंच:
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यथार्थ और सटीक चित्रण एवं मनन।
बहुत सुंदर चित्रण और बढ़िया जानकारी देने के लिए धन्यवाद. सभी को मिलकर सरंक्षण हेतु प्रयास करना चाहिए. यह कला की अमूल्य धरोहर है .
शम्भू जी !
यह अवस्था सिर्फ़ हवेलियों की ही नही है बल्कि राष्ट्रीय मह्त्व के किले, बावडी, देवालय, आदि ,जो की ASI की देखरेख में है, और भी दुर्दिन झेल रहे हैं ! इन राष्ट्रीय धरोहरों को बचाने के लिए पर्याप्त धन व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए , मगर योजना आयोग की शायद और मजबूरियां और प्राथमिकतायें होने का कारण यह क्षेत्र उपेक्षित ही है , आगा खान ट्रस्ट जैसे प्राइवेट परियोजनाओं तथा आप जैसे जागरूक लोगो की आवश्यकता है इसे सुरक्षित बनाने के लिए, ताकि हमारी भावी पीढी हमें धन्यवाद कह सके !
मेरे विचार में उपरोक्त हवेलियाँ प्राइवेट संपत्ति हैं, अतः उनपर पब्लिक का प्रत्यक्ष संरक्षण सम्भव नही है ! प्राइवेट या पब्लिक ट्रस्ट, इन मालिकों को विश्वास में लेकर यह कार्य कर सकते हैं !
परन्तु यह कार्य नीरस है,कौन आएगा इन्हे बचाने ?
सतीश
कुछ ई-मेल से भी मुझे टिप्पणियां प्राप्त हुई है, जिसे यहाँ पठकों के लिये जारी कर रहा हुँ-शम्भु चौधरी
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शुक्रिया दाधीच जी इस जानकारी के लिए और आभार शम्भु जी आपका इसे हम तक
पहुंचाने के लिए ।
निश्चित तौर पर इन हवेलियों के स्वामियों ने ही इन्हें बिना सार संभाल के छोड़
दिया है तो इनके संरक्षण का दायित्व समाज का ही बनता है। सबसे बड़ा कर्तव्य
स्थानीय नागरिकों का बनता है कि वे किसी न किसी तरह का नैतिक दबाव उन प्रवासी
सेठों पर बनाएं जो इन्हें छोड़कर दूर जा बसे हैं।
शुभकामनाओं सहित
अजित
http://shabdavali.blogspot.com/
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शम्भू जी !
यह अवस्था सिर्फ़ हवेलियों की ही नही है बल्कि राष्ट्रीय मह्त्व के किले, बावडी, देवालय, आदि ,जो की ASI की देखरेख में है, और भी दुर्दिन झेल रहे हैं ! इन राष्ट्रीय धरोहरों को बचाने के लिए पर्याप्त धन व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए , मगर योजना आयोग की शायद और मजबूरियां और प्राथमिकतायें होने का कारण यह क्षेत्र उपेक्षित ही है , आगा खान ट्रस्ट जैसे प्राइवेट परियोजनाओं तथा आप जैसे जागरूक लोगो की आवश्यकता है इसे सुरक्षित बनाने के लिए, ताकि हमारी भावी पीढी हमें धन्यवाद कह सके !
मेरे विचार में उपरोक्त हवेलियाँ प्राइवेट संपत्ति हैं, अतः उनपर पब्लिक का प्रत्यक्ष संरक्षण सम्भव नही है ! प्राइवेट या पब्लिक ट्रस्ट, इन मालिकों को विश्वास में लेकर यह कार्य कर सकते हैं !
परन्तु यह कार्य नीरस है, रंजना जी ! कौन आएगा इन्हे बचाने ?
सतीश सक्सेना
http://satish-saxena.blogspot.com/
http://lightmood.blogspot.com/
9811076451
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Aapkaa yah vishay vaastav mey hi atyant sochniya hai kyaa rajasthaan sarkar athwaa bhartiya aitihaasik vibhaag kaa
dhyan is or nehi jaa saktaa? itihaas or aitihaasik kalaa wa sthalon se mujhe bahut lagaaw hai par aise maamlo mey mai kuchh nehi kar sakti mujhe koi jaankaari nehi hai. achchha yahi hogaa ki is prakaar ki jaankaari hum aaj k students jo INDIAN HISTORY ko lekar study kar rahe hain unhen bhejen aisaa mai prayaas karungi.mujhe jaankaari dene ke lie dhanyavaad.
Maitrayee Banergee
mitragreat57@gmail.com
सभी भाई बहनों को सदर प्रणाम, हालाँकि ये सच है की मई श्री शम्भू जी से परिचित नहीं हु और न ही मई 'राष्ट्रीय महानगर' के संपादक श्री प्रकाश चण्डालिया जी से परिचय अपनी सठियाती यादो में ही ढूंढ प् रहा हु और पता नहीं पर यकीनन मई उम्र में इनसे बड़ा हु फिर भी सदर चरण स्पर्श करता हूँ कारण की मेरी जन्म भूमि से ये जो परिचय करवाया गया है ये तो मुझे पता ही नहीं था ... सच तो ये है की ये रोमांचकारी है मै आभारी हूँ आप सब का भी की ये अनोखा क्षण मेरी जिन्दगी में आया .... ह्रदय से आभार ...