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शुक्रवार, 29 अगस्त 2008

बिहार: जीने का अधिकार छीन रही है कोशी


डा. मान्धाता सिंह, कोलकाता, भारत
Email to: Dr. Mandhata Singh


कोलकाता शहर के जाने माने पत्रकार डॉ.मान्धता सिंह ने बिहार के दर्दभरी कथा को एक पत्रकार के रूप में हमें भेजा, भले ही ये एक साहित्यिक मंच हो, परन्तु आज हमें सहित्य की नहीं बिहार के लोगों के दर्द के साथ खड़ा होना होगा। इसलिये इनके इस लेख को हम सहित्य मंच पर विशेष स्थान देने जा रहें हैं। - ई हिन्दी साहित्य सभा



मैं मुरलीगंज का रहने वाला हूं। मेरी बूढ़ी मां, मेरी बहन जिसकी गोंद में नवजात शिशु है, दो दिन से बिना कुछ खाए मेरे घर के छत पर पड़े हैं। नाववाले गांव के पास आकर भी उन्हें वहां से निकालने को राजी नहीं हुए। मैं यहां दूसरी नाव की तलाश में आया हूं ताकि अपने परिवार को बचा सकूं।....... इतना कहते-कहते एक नौजवान फफक कर रो पड़ता है। तभी माइक थमा दी जाती है एक महिला को जो अपने तीन छोटे-छोटे बच्चों को लेकर यत्र-तत्र भटक रही है। जिस जगह पर ये सभी लोग जुटे हैं वह एक उंची जगह है और सुदूर इलाके से यहां पहुंचकर लोग बेचैन हैं कि उनके परिजन कैसे होंगे। इन्हीं में एक शख्स पतरहा के थे। इन्होंने बताया कि उनके गांव में एक छत पर चार सौ के करीब लोग हैं। वहां चार लोगों की मौत हो चुकी है और उनके शव वहीं पड़े हुए हैं। अब उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा है। किसी हाजी की छत पर जमा इन लोगों को भी बचाने की गुहार माइक थामकर इस मौलाना ने भी लगाई।..........



ये सभी हिंदी समाचार चैनल स्टार न्यूज के संवाददाता के इर्दगिर्द जमा हैं। संवाददाता इनकी बात सीधे रेलमंत्री लालू प्रसाद यादव और बिहार के आपदा प्रबंधन मंत्री नीतिश मिश्र से करवा रहा है। लोग यह सोचकर कि, सीधे मंत्री से गुहार लगाने पर शायद मौत के मुंह में खड़े उनके परिजनों को जीवन मिल जाए, वहां जमा हैं। एक बूढ़ा शख्स लपक कर संवाददाता के पैर पकड़ लेता है और अपने उन परिजनों को बचाने की मिन्नतें करता है जिन्होंने फोन करके इस शख्स से कहा कि ये आखिरी बातचीत है। अब हम लोगों की बिदाई होने वाली है। यानी अगर उन्हें बचाया नहीं गया तो किसी भी क्षण मौत के मुंह में जा सकते हैं। इन सबकी गुहार के बाद जब संवाददाता बोलने को मुखातिब हुआ तो वह भी कुछ बोलने की स्थिति में नहीं रहा। शायद आप भी यह देख रहे होते तो आपकी भी जुबां पर दर्द के ताले लग जाते। यह कोशी के प्रलय का छोटा सा दृश्य था। पूरी तस्वार कितनी भयावह है इसका अंदाजा आप खुद लगा सकते हैं।


यहां पूछा गया कि आपको खाने के पैकेट तो मिल पा रहे हैं तो लगभग गुस्से में तमतमाते हुए एक नौजवान ने कहा कि हम दस दिन बिना खाए रह सकते हैं मगर हमें अभी ज्यादा से ज्यादा नावें चाहिए जिससे पानी में फंसे लोगों को निकाला जा सके। दरअसल इन कई लोगों ने शिकायत की कि नाववाले उनसे तीन हजार से लेकर पांच हजार रुपये तक मांग रहे है जबकि उनके पास कुछ नहीं बचा। वे सिर्फ जान बचाना चाहते हैं। आपदा प्रबंधन मंत्री ने भी माना कि नाववालों की बदमाशी की शिकायतें उन तक भी पहुंच रही हैं। ये नावें प्राइवेट नावें हैं।


इनकी त्रासदी यह भी है कि मौत सामने मुंह बाए खड़ी है फिर भी घर छोड़कर नहीं जा पा रहे हैं क्यों कि एक तो नावें उपलब्ध नहीं हैं और दूसरे लोग लूटपाट भी कर रहे हैं। खाली घरों के सामान व सामान के साथ जा रहे लोगों के सामान वगैरह लूट ले रहे हैं। यह शिकायत यहां पहुंचे कई लोगों ने की। इनकी मुसीबत तो देखिए कि कोशी इनसे जीने का अधिकार छीन रही है और जान बचाकर किसी तरह भागे भी तो बदमाशों व उचक्कों से भी नहीं बच पा रहे हैं। फिलहाल तो कोशी का यही प्रलय झेल रहा है बिहार। खौफ में गुजर रही हैं रातें और दिन भर अपने परिजनें को तलाशने के लिए दर -दर भटक रहे हैं उत्तर बिहार के २५ लाख लोग। कहा जा रहा है कि बाढ़ घट भी जाए तो इन लोगों को कम से कम दो साल तक कैंप में ही गुजारने होंगे। क्यों कि इस तबाही के बाद पुनर्वास में इतने समय तो लग ही जाएंगे।

साठ साल से चली आ रही है तबाही :


बाढ की यह तबाही तो बिहार साठ साल से झेल रहा है मगर तीस वर्षो के दौरान 1978, 1987, 1998, 2004 और 2007 नदियों से होने वाली व्यापक विनाशलीला वाले साल रहे। पिछले दस साल के आंकड़े बताते हैं कि 2005-06 को छोड़ दिया जाए तो लगभग हर साल इन इलाकों ने बाढ़ की तबाही झेली है और बर्बादी को जीया है। 1998 में बाढ़ की तबाही जुलाई के पहले हफ्ते ही शुरू हो गई थी। भारी बारिश से उत्तर बिहार से होकर गुजरने वाली लगभग सभी नदियों बूढ़ी गंडक, बागमती, अधवारा व कोसी ने जगह-जगह बांधों को तोड़ दिया था और भारी तबाही मचाई थी। इस प्रलय में 318 लोग काल-कवलित हो गए। नदियों का कहर अगले साल 1999 में भी जारी रहा।इस वर्ष अक्टूबर में अप्रत्याशित तौर पर भारी बारिश ने नदियों का मिजाज कुछ ऐसा बिगाड़ा कि उनके जलस्तर ने 1987 के रिकार्ड को भी तोड़ दिया। कमला बलान तो झंझारपुर [मधुबनी] रेलवे ब्रिज को पार कर गई थी। वर्ष 2000 के जुलाई में दो दफे भारी बारिश के बाद कमला बलान और भुतही बलान बौखलाई तो अगस्त में कोसी ने तबाही मचाई। इस बाढ़ में करीब 13 हजार गांव डूबे। साल 2001 में नेपाल जलग्रहण क्षेत्र में भारी बारिश के बाद कोसी ने जहां अपना पश्चिमी तटबंध तोड़ दिया, वहीं भुतही बलान ने दायां तटबंध तोड़ा। बागमती और बूढ़ी गंडक के बाएं तटबंध में कई जगह दरारें पड़ गई। 2002 भी बाढ़ की भीषण तबाही का ही गवाह बना। इस साल कमला बलान का बायां तथा खिरोई का दायां तटबंध टूटने से करीब 500 लोग मारे गए। 2003 में भागलपुर में 1978 की बाढ़ का रिकार्ड टूटा। इसी साल पटना के गांधीघाट के पास गंगा ने 1994 का रिकार्ड तोड़ा। 2004 की जुलाई में उत्तर बिहार में हुई भारी बारिश ने न केवल पिछले तीन साल का रिकार्ड तोड़ा, बल्कि इससे उफनाई नदियों की बाढ़ 1987 की तबाही से भी आगे निकल गई। 2005 और 2006 में स्थिति सामान्य रही। पर, 2007 में उत्तर बिहार में लगभग सभी नदियां लाल निशान को पार कर गई। विभिन्य स्थानों पर 28 तटबंध टूटे। बूढ़ी गंडक और बागमती के जल ग्रहण क्षेत्र में जुलाई और अगस्त महीने के दौरान लगातार बारिश होती रही। इससे लगातार जलस्तर बढ़ता रहा। पूरा उत्तर बिहार बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हुआ। करीब 800 लोग मारे गए, जिनमें सर्वाधिक 140 लोग दरभंगा में मरे। साठ साल से चली आ रही तबाही का यह खेल इस साल भी कुछ ऐसी ही दास्तां छोड़ जाएगा।

बिहार का शोक कोसी और नेपाल :


नेपाल से निकलकर उत्तर बिहार होते हुए गंगा में मिलकर बंगाल की खाड़ी में समाने वाली कोसी को बिहार का शोक यूं ही नहीं कहा जाता। जानकारों की मानें तो कोसी के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र [हिमालय] में प्राकृतिक और अन्य कारणों के चलते जमीन की ऊपरी परत अपनी जगह से हटती है और भूस्खलन के कारण मैदानी इलाके को हर साल बाढ़ से रूबरू होना पड़ता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि हिमालय की ऊपरी पहाड़ी इलाके से निकलने के कारण बारिश के मौसम में इस नदी का बहाव सामान्य से अठारह गुना तेज हो जाता है। ऐसे में यह सामान्य है कि नदी अपने साथ मिंट्टी की ऊपरी परत गाद के रूप में लेकर आए। मैदानी इलाके में बहाव की गति कम होने पर यह नदी की सतह पर जमा होने लगती है और उथला होने के कारण नदी का जलस्तर स्वाभाविक रूप से बढ़ने लगता है। नदी के मार्ग बदलने का बड़ा कारण यह गाद ही है। पिछले सौ साल में ही नदी 200 किलोमीटर की लंबाई में अपना रास्ता बदल चुकी है।


नेपाल के सहयोग के बिना कोसी के कहर को कम करना संभव नहीं, इसलिए दोनों देशों के बीच 25 अप्रैल 1954 को एक समझौता हुआ, जिसके तहत दोनों देशों ने नेपाली क्षेत्र में हनुमाननगर के पास नदी पर बांध बनाने की योजना बनाई थी। इस समझौते पर भारत की ओर से प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और नेपाल की ओर से तत्कालीन नरेश के प्रतिनिधि मात्रिका प्रसाद कोइराला [गिरिजा प्रसाद कोइराला के बड़े भाई] ने हस्ताक्षर किए थे। समझौते का उद्देश्य प्रतिवर्ष आने वाली बाढ़ को रोकना, जगह-जगह छोटे-छोटे बांधों का निर्माण करना और पनबिजली उत्पादित करने के साथ-साथ इलाके में कृषि को बढ़ावा देना था। इस समझौते के तहत कोसी बैराज बना। इसके बाद भी दोनों देशों ने संयुक्त प्रयास से कई बांधों का निर्माण किया। लेकिन यह भी एक तथ्य है कि इन बांधों के निर्माण से भी बाढ़ से होने वाली तबाही नहीं रुकी।


नेपाल में बाढ़ के लिए वहां अब भारत को जिम्मेदार ठहराया जाता है तो इस इलाके में बाढ़ के लिए दोषारोपण नेपाल पर होता है। नेपाल का कहना है कि भारत ने नेपाल सीमा पर जिन ग्यारह बांधों का निर्माण कराया है उसमें आठ में नेपाल की सलाह नहीं ली गई। साथ ही अंतरराष्ट्रीय मानकों का भी ख्याल नहीं रखा गया। दूसरी ओर भारत का कहना है कि नेपाल हमेशा समझौैते का उल्लंघन कर बैराज के जरिए अतिरिक्त पानी छोड़ देता है जिससे यहां तबाही बढ़ जाती है। इन सबके इतर दोनों देशों में बांधों का विरोध पर्यावरणविद से लेकर आम लोग तक करते हैं। उनके मुताबिक उत्तरी बिहार और नेपाल का दक्षिणी हिस्सा भूकंप जोन में हैं। बाढ़ रोकने के लिए अगर यहां बांध बनाए गए तो भूकंप आने की स्थिति में बांधों को संभाले रखना असंभव है और तब जो तबाही होगी उसका आकलन सामान्य परिस्थितियों में नहीं किया जा सकता। भूकंप की स्थिति में संपूर्ण उत्तरी बिहार और खासतौर पर मधुबनी, दरभंगा, पूर्णिया और सहरसा जिले जलमग्न हो सकते हैं। बांधों के खिलाफ एक तर्क और है कि चाहे ये जितने मजबूत बनाए जाएं, इनका टूटना या क्षतिग्रस्त होना तयशुदा है। पर्यावरणविद बांधों का इसी आधार पर विरोध करते हैं, लेकिन राजनीतिक दल अपने हित में विशेषज्ञों की अनदेखी कर मनमर्जी वाले स्थान पर बांधों का निर्माण करा देते हैं और जिससे इनकी सुरक्षा को लेकर हरदम संशय बना रहता है। इस बार कहा जा रहा है कि नेपाल में माओवादियों ने तटबंध की मरम्मत में अड़ंगा लगाया अन्यथा बांध को बचाया जा सकता था।

राष्ट्रीय आपदा घोषित:

कोसी नदी के तटबंध टूटने से इस बाढ़ से कोई 25 लाख लोग प्रभावित हुए हैं। बाढ़ से कुल 15 ज़िले प्रभावित हुए हैं। 900 गांवों में बाढ़ का कहर है। नेपाल में तेज बारिश ने कोसी में उफान ला दी है, जिस वजह से उत्तरी बिहार के मधेपुरा, सुपौल, अररिया और पूर्णिया के नए इलाकों में पानी भर गया है। कोसी में नेपाल से एक लाख क्यूसेक पानी छोड़ा गया है और बिहार सरकार को आशंका है कि आने वाले दिनों में नौ लाख क्यूसेक पानी छोड़ा जा सकता है। नेपाल में तटबंध टूटने के बाद कोसी नदी ने 1922 की धारा पर दोबारा बहना शुरू कर दिया है, जिस वजह से इतने बड़े स्तर पर नुकसान हो रहा है। राहत और बचाव कार्य के लिए सेना को बुला लिया गया है।

बिहार में आई बाढ़ को राष्ट्रीय आपदा करार देते हुए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने २८ अगस्त को बचाव और राहत कार्य के लिए 1,000 करोड़ रुपये और मौजूदा स्थितियों से निपटने के लिए 1.25 लाख टन अनाज की फौरी सहायता देने की घोषणा की। संप्रग अध्यक्ष सोनिया गांधी के साथ राज्य के सबसे अधिक प्रभावित चार जिलों (सुपौल, सहरसा, अररिया और मधेपुरा ) के हवाई सर्वेक्षण के बाद प्रधानमंत्री ने बिहार को इस स्थिति से निपटने के लिए हरसंभव मदद करने का आश्वासन दिया। मनमोहन सिंह और सोनिया के साथ गृहमंत्री शिवराज पाटिल और लालू प्रसाद यादव, राम विलास पासवान और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी मौजूद थे।

गुरुवार, 28 अगस्त 2008

शम्भु चौधरी नई कविता 'शांति' विश्व की छः भाषाओं में



By: Shambhu Choudhary, FD-453, Salt Lake City,
Kolkataa-700106. India



हिन्दी में 'शांति'



धमाके से फैली
अशांति,
फिर हर तरफ
शांति ही शांति



English: Peace
 

From the blast spread
Unrest,
Yet all around
The peace & peace



French: Paix
 

L'explosion de propagation
Les troubles,
Pourtant, tout autour de
La paix la paix



Russian: Мир
 

От взрыва распространения
Беспорядки,
Тем не менее все вокруг
Миру мир



Japanese: 平和
 

からの送風に広がる
不安、
すべての周りはまだありません
平和平和



Chinese: 和平
 

从爆炸蔓延
动乱,
然而,所有靠近
和平和平

बुधवार, 27 अगस्त 2008

प्रभाष जोशी की पाँच पुस्तकों का लोकार्पण



वरिष्ठ पत्रकार प्रभाष जोशी की पाँच पुस्तकों का लोकार्पण 30 जुलाई को दिल्ली के त्रिवेणी सभागार में किया गया। लोकार्पण क्रमशः प्रभात खबर के संपादक हरिवंश, हिन्दुस्तान टाइम्स भोपाल के संपादक एन.के.सिंह, दैनिक भास्कर के समुह संपादक श्रवण कुमार गर्ग, अमर उजाला के समूह संपादक शशि शेखर और गांधी मार्ग के संपदक अनुपम मिश्र ने किया । लोकार्पण कार्यक्रम में श्री प्रभाष जोशी ने कहा कि हमें उसी भाषा में लिखना चाहिये जिससे हम प्रेम करते हैं। उसी भाषा में विचार आते हैं और आत्मीयता झलकती है। कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ.नामवर सिह ने की और मंच संचालान सुधीश पचौरी ने।


पाँच पुस्तकें:

'जीने के बहाने' , 'धन्न नरबदा मैया हो' , 'लुटियन के टीले का भूगोल' , खेल सिर्फ खेल नहीं है' , 'जब तोप मुकाबिल हो....' इन पाँचों पुस्तकों में उनके आलेख संकलित हैं जो उन्होंने पिछले 16 साल से जनसत्ता में नियमित चले आ रहे अपने कॉलम 'कागद कारे' में लिखा है। इस कॉलम में उन्होंने राजनीति, समाज, लोक-संस्कृति,खेल और अपनी जीवन-यात्रा इन तमाम विषयों पर कलम चलाई है।


शलाका सम्मान से सम्मानित:

अभी हाल ही में दिल्ली के एक समारोह में वयोवृद्ध कवि कुवंर नारायण ने मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की उपस्थिति में वरिष्ठ अप्त्रकार श्री प्रभाष जोशी को हिन्दी अकादमी का सर्वोच्च सम्मान 'शलाका सम्मान' से भी सम्मानित किया गया है।


:- ई-हिन्दी साहित्य सभा

डॉ० श्यामसखा'श्याम' मौदगल्य का संक्षिप्त

आत्म-विश्लेषण
भला लगता है
आंगन में बैठना
धूप सेंकना

पर इसके लिये
वक़्त कहां ?
वक़्त तो बिक गया
सहूलियतों की तलाश में
और अधिक-और अधिक
संचय की आस में

बीत गये बचपन जवानी
जीवन के अन्तिम दिनों में
हमने वक़्त की कीमत जानी
तब तक तो खत्म हो चुकी थी
नीलामी

हम जैसों ने खरीदे
जमीन के टुकड़े
इक्ट्ठा किया धन
देख सके न
जरा आँख उठा
विस्तरित नभ
लपकती तड़ित
घनघोर गरजते घन
रहे पीते धुएं से भरी हवा
कभी देखा नहीं
बाजू मे बसा
हरित वन

पत्नी ने लगाए
गमलों में कैक्टस
उन पर भी
डाली उचटती सी नज़र

खा गया
हमें तो यारो
दावानल सा बढ़ता
अपना नगर

नगर का
भी, क्या दोष
उसे भी तो हमने गढ़ा
देखते रहे औरों के हाथ
बताते रहे भविष्य
पर अपनी
हथेली को
कभी नहीं पढ़ा
कवि मंच द्वारा प्रकाशित


जन्म-अगस्त २८,१९४८[अप्रैल १,१९४८विद्यालयी रिकार्ड में]
जन्म स्थान-बेरी वालों का पेच रोहतक
जननी-जनक: श्रीमति जयन्ती देवी,श्री रतिराम शास्त्री
शिक्षा -एम.बी; बी.एस ; एफ़.सी.जी.पी.
सम्प्रति- निजी नर्सिंग होम
लेखन-
भाषा- हिन्दी,पंजाबी,हरयाणवी व अंग्रेजी में
प्रकाशित पुस्तकें- ३ उपन्यास[नवीनतम-कहां से कहां तक-प्रकाशक-हिन्द पाकेट बुक्स]
२ उपन्यास ,कोई फ़ायदा नहीं हिन्दी,समझणिये की मर-
हरयाण्वी में साहित्य अकादमी हरयाणा द्वारा पुरस्कृत
३ कथा संग्रह-हिन्दी-अकथ ह.सा.अकादमी द्वारा-पुरस्कृत
१ कथा संग्रह इक सी बेला-पं.सा अका.द्वारा पु.
५ कविता संग्रह प्रकाशित-एक ह,सा.अ.द्वारा अनुदानित
१ग़ज़ल संग्रह-दुनिया भर के गम थे
१दोहा-सतसई-औरत वे पांचमां[हरियाण्वी भाषा की पहली दोहा सतसई]
१ लोक-कथा संग्रह-घणी गई-थोड़ी रही-ह.सा.अका.[अनुदानित]
१लघु कथा संग्रह-नावक के तीर-ह.सा.अका[अनुदानित]
चार कहानियां ह.सा अका.२ तीन-पंजाबी सा.अका द्वारा पुरस्कृत
एक उपन्यास-समझणिये की मर'-एम.ए फ़ाइनल पाठ्यक्रम[कुरुक्षेत्र वि.विद्यालय मे]
मेरे साहित्य पर एक शोध-पी एच डी हेतु,तीन एम.फिल हेतु सम्पन्न।
सम्पादन-संस्थापक संपादक-मसि-कागद[प्रयास ट्रस्ट की साहित्यिक पत्रिका]-दस वर्ष से
कन्सलटिंग एडीटर-एशिया ऑफ़-अमेरिकन बिबिलोग्राफ़ीक मैगज़ीन-२००५ से
सह-संपादक-प्रथम एडिशन-रोह-मेडिकल मैगज़ीन मेडिकल कालेज रोहतक-१९६७-६८
सम्मान -पुरुस्कार
१ चिकित्सा- रत्न पुरस्कार-इन्डियन मेडिकल एसोशिएशन का सर्वोच्च पुरुस्कार-२००७
२ पं लखमी चंद पुरस्कार[ लोक-साहित्य हेतु]-२००७
३ छ्त्तीस गढ़ सृजन सम्मान[मुख्यमंत्री डॉ० रमन सिंह द्वारा]-२००७
४ अम्बिका प्रसाद दिव्य रजत अलंकरण-२००७
५-कथा बिम्ब-कथापुरस्कार मुम्बई,
६ राधेश्याम चितलांगिया-कथा पुरस्कार- लखनऊ
६ संपादक शिरोमिणि पु.श्रीनाथद्वारा-राजस्थान
सहित-लगभग २५ अन्य सम्मान पुरस्कार
अध्यक्ष[प्रेजिडेन्ट]=इन्डियन मेडिकल एसोशियेशन हरियाणा प्रदेश;२साल१९९४-९६
संरक्षक- इंडियन,मेडि.एसो.हरियाणा-आजीवन
सदस्य-रोटरी इन्टरनेशनल व पदाधिकारी
सदस्य कार्यकारणी-गौड़ब्राह्मण विद्याप्रचारणी सभा
सम्पर्क- मसि-कागद १२ विकास नगर रोह्तक १२४००१
घुमन्तू भाष-०९४१६३५९०१९ .
E-Mail:shyamskha@yahoo.com

रविवार, 24 अगस्त 2008

भूख

भूख

कविताओं को लिख-लिख रखता जाता
कोई पढ़ता या नहीं पढ़ता,
खुद ही पढ़ता जाता हूँ ।
कुछ तकिये के नीचे,
कुछ बिस्तर से दबी पड़ी,
कुछ डाकों में खो जाती...तो कुछ
सम्पादक के घर सो जाती थी।
एक कविता जब बिकती बाजार में,
तब कुछ भूख मिटाती थी।

शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता- 700106

शुक्रवार, 22 अगस्त 2008

ई-हिन्दी साहित्य प्रकाशन

ई-हिन्दी साहित्य प्रकाशन का दूसरा प्रकाशन भी नेट पर उपलब्ध। पुस्तका नाम है

1. आडी तानें सीधी तानें - हरीश भादानी

2. सन्नाटे के शिलाखंड पर - हरीश भादानी


कृपया अवलोकन कर त्रुटि की ओर ध्यान दिलायें। - शम्भु चौधरी

कथा-व्यथा

'कथा-व्यथा' नये अंक के लिए आप कविता/कहानी या सामाजिक विषयों पर आधारित लेख इत्यादि हमें 30 अगस्त तक भेज सकतें हैं। आप स्वयं टाइप न कर सकते हों तो, पोस्ट द्वारा भी भेज सकते हैं।

Address:

Shambhu Choudhray, Editor "katha-Vyatha",
FD-453/2, Salt lake City,Kolkataa-700106


kathavyatha@gmail.com

गुरुवार, 21 अगस्त 2008

Book Information Number

भारत में पुस्तक की जानकारी उपलब्ध कराने वाली कोई ऐसी एक संस्था काम नहीं कर रही जो, ISBN का विकल्प बन सके। कवि गुरू रवीन्द्रनाथ ठाकुर की उस पंक्ती "एकला चलो रे" से मेरी बात को शुरू करता हूँ।
'BiN' अर्थात एक सूचना केन्द्र जिस जगह, प्रकाशक का पता, इमेल पता. वेव साइट की जानकारी और फोन नम्बर की पूरी जानकारी के साथ-साथ पुस्तक का विवरण, लेखक नाम, पता, इमेल, वेवसाइट और फोन नम्बर के साथ ही प्रकाशित होने वाली, या हो चुकी पुस्तक के बारे में 100 शब्दों के अंदर संक्षिप्त जानकारी उपलब्ध कराई जायेगी। हमारा प्रयास भले ही छोटा हो, पर जो भी होगा वह अंतर्राष्ट्रीय मापदण्डों के अनुकूल ही नहीं उससे कहीं बेहतर होगा। भले ही अभी हम इसे ब्लॉग को माध्यम बनाकर शुरू कर रहें हैं, आगे चलकर इसके लिये ऑनलाइन वे तमाम सुविधा देने का प्रयास करेंगें जो इसके लिये जरूरी होगा। हमारा यह भी प्रयास रहेगा कि कि हम प्रत्येक पुस्तक का अलग से 'बार कोड' भी जारी करें। जिसका अलग से शुल्क लिया जायेगा। फिलहाल हम बार कोड के बारे में कोई अनुबंध नहीं कर पा रहें हैं, जैसे ही हम इस सुविधा को उपलब्ध कराने में सक्षम होंगे, इसकी सूचना आप तक पहुँचा दी जायेगी।


BiN जारी करने के लिये निम्न बातों की सूचना देनी जरूरी होगी।

बुधवार, 20 अगस्त 2008

ई-हिन्दी साहित्य प्रकाशन

ई-हिन्दी साहित्य प्रकाशन का पहला प्रकाशन नेट पर आ गया है। पुस्तका नाम है

आडी तानें सीधी तानें

कृपया अवलोकन कर त्रुटि की ओर ध्यान दिलायें। - शम्भु चौधरी

संस्कार के ताने

आओ बच्चों !
हम सब मिल एक कविता बनायें,
जिसे देश भर के बच्चे,
मिल एक साथ में गायें।
चंदामामा को ले गोदी
उसको खूब खिलायें
दूध-पतासा चम्मच भर-भर
उसको खूब पिलायें।
बहुत हो गया
"टिंकल-टिंकल"
अपने गीत बनाये।
मम्मी-पापा को भी,
आगे बढ़ ऐसी बात बतायें।
रोज-रोज जब सुनना पड़ता है,
संस्कार के ताने,
उनसे पूछो
किसने दिये किताबों में,
छिपा-छिपा के दाने।


शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता- 700106

मंगलवार, 19 अगस्त 2008

शम्भु चौधरी की चार झणिका- 4

1.
भारत की गुप्तचर एजेंसियाँ
है इतनी चुस्त,
हर धमाके की सूचना
देती हमेशा मुफ्त-दुरुस्त।

2.
धर्म के इन पहरेदारों को
जब तक न हटाया जाएगा,
ये दीवार जो बनी है-
दो दिलों में,
इसे कैसे ढहाया जायेगा।

3.
संसद में जो बनते हैं,
बड़े 'तीसमारखाँ'
रेत पर ही खोजते हैं
पावों के निशान।

4.
'अल्पसंख्यक'
शब्द का जन्म ही करता है,
एक 'भारतीय' को
एक 'भारतीय' से अलग।


- shambhu choudhary FD-453, Salt Lake City, Kolkata-700106

रविवार, 17 अगस्त 2008

शम्भु चौधरी की चार झणिका- 3

1.
कन्या ने जैसे ही विज्ञान से
अपने हक की गुहार लगाई,
जन्म से पहले ही
ज्ञान ने उसकी हत्या करवाई।

2.
कन्या भ्रूण के खिलाफ
सासुओं ने नया रास्ता अपनाया
घर की बहू को,
नर्सिंगहोम में ले जा,
उसका गर्भपात करवाया।

3.
अजन्मी कन्या मांग रही थी
मां का दुलार, पिता का प्यार
समाज से सुरक्षा,
हर तरफ मिला
आश्वासन ही आश्वासन
व्यंग्यात्मक मुस्कान,
जो उसके मौत का
पैगाम सुना रही थी।
और वह उन्हीं लोगों के बीच
तड़फ-तड़फ
अपने प्राण बचाने के लिये
झटपटा रही थी।

4.
माँ की मानवता
उस वक्त दहल जाती है जब
कोख में पल रही अपनी ही
बच्ची को जहर पिलाती है।

शनिवार, 16 अगस्त 2008

ई-हिन्दी साहित्य सभा की योजना

1. ई- पुस्तकालय का संचालन
2. ई- साहित्य प्रकाशन करना
3. ई- साहित्यिक पत्रिका 'कथा-व्यथा' का नियमित प्रकाशन
4. ई- साहित्य पुरस्कार की घोषणा
5. ई- पुस्तक कोड जारी करना।


ई-साहित्य प्रकाशन में अभी तक 5 पुस्तकों का "Unicode Hindi" में टंकन का कार्य मिल चुका है।
इस पर कार्य चल रहा है। अगले कुछ ही दिनों में यह कार्य आपके सामने आ जायेगा। यदि आपको भी अपनी पुस्तक का ई-प्रकाशन करवाना हो तो हमसे संपर्क कर सकते हैं। हमारा इमेल: ehindisahitya@gmail.com


- ई हिन्दी साहित्य सभा

गुरुवार, 14 अगस्त 2008

चक्रधरा माँ करते...हम सभी नमन

1.वतन की नाव


मारो मुझे एक ऐसी कलम से,
जिससे फड़कती हो मेरी नब्जें;
लड़ते रहें, हम लेकर नाम मज़हब का,
मुझको भी जरा ऐसा लहू तो पिलावो,
बरसों से भटकता रहा हुं,
कहीं एक दरिया मुझे भी दिखाओ;
बना के वतन की नाव यहाँ पे;
मेरे मन को भी थोड़ा तो बहलाओ।
मरने चला जब वतन कारवाँ बन,
कब तक बचेगा जरा ये भी बताएं?


2. श्रद्धांजलि


नमन तुम्हें, नमन तुम्हें, नमन तुम्हें,
वतन की राह पे खडे़ तुम वीर हो,
वतन पे जो मिटे वो तन,
नमन तुम्हें! नमन तुम्हें!
नमन तुम्हें! नमन तुम्हें!
ये शहीदों की चित्ता नहीं,
भारत नूर है,
चरणों पे चढ़ते 'हिन्द'! ये तिरंगे फूल हैं।
मिटे जो मन, मिटे जो धन,
वतन पे जो मिटे वो तन,
वतन की राह पे खडे़ तुम वीर हो,
नमन तुम्हें! नमन तुम्हें! नमन तुम्हें! नमन तुम्हें!


3. मेरा भारत महान


मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २
हम वतन के हैं सिपाही... वतन के पहरेदार!
मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २
डर नहीं तन-मन-धन का...मन मेरा बलवान!
वतन की रक्षा के खातिर... दे देगें हम अपने प्राण
मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २
सात स्वरों का संगम भारत... जन-गण की आवाज,
मिल-जुल कर गाते हैं सब... मेरा भारत महान्


4.ध्वजः प्रणाम्


हिन्द-हिमालय, हिम-शिखर केशरिया मेरा देश।
उज्ज्वल शीतल गंगा बहती,
हरियाली मेरा खेत,
पूर्व-पश्चिम,
उत्तर-दक्षिण...लोकतंत्र यह देश
चक्रधरा माँ करते...हम सभी नमन,
'जय-हिन्द' - 'जय-हिन्द'।


संपर्क: शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453, सल्टलेक सिटी,कोलकाता - 700106

बुधवार, 13 अगस्त 2008

माँ तूझे सलाम!












भा





मा

ता

 

!








भारतमाता ग्रामवासिनी -सुमित्रानंदन पंत

भारतमाता भारतमाता!

शत्-शत् है नमन तुझे भारतमाता!

भारत माता का जयगान

भारत माता के प्रति

भारतमाता के हम वीर

हे भारतमाता!




भारतमाता ग्रामवासिनी -- सुमित्रानंदन पंत

 



खेतों में फैला है श्यामल, धूल भरा मैला-सा आँचल
गंगा जमुना में आंसू जल, मिट्टी कि प्रतिमा उदासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
दैन्य जड़ित अपलक नत चितवन / अधरों में चिर नीरव रोदन
युग-युग के तम से विषण्ण मन / वह अपने घर में प्रवासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी

 
तीस कोटी संतान नग्न तन / अर्द्ध-क्षुभित, शोषित निरस्त्र जन
मूढ़, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन / नतमस्तक तरुतल निवासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
स्वर्ण शस्य पर पद-तल-लुंठित / धरती-सा सहिष्णु मन कुंठित
क्रन्दन कम्पित अधर मौन स्मित / राहु ग्रसित शरदिंदु हासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
 
चिंतित भृकुटी क्षितिज तिमिरान्कित / नमित नयन नभ वाष्पाच्छादित
आनन श्री छाया शशि उपमित / ज्ञानमूढ़ गीता-प्रकाशिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी
सफ़ल आज उसका तप संयम / पिला अहिंसा स्तन्य सुधोपम
हरती जन-मन भय, भव तन भ्रम / जग जननी जीवन विकासिनी,
भारतमाता ग्रामवासिनी


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भारतमाता भारतमाता !


भारतमाता भारतमाता !
चिर-निर्गुण के गुण गाएँ सब,
मै तो तेरा ही रँग-राता !!
तू कंचन की खान मान-धन,
तेरा दूध सपूतों का प्रण,
और-और होंगे उदरम्मरी,
मानवता से तेरा नाता !
भारतमाता भारतमाता !

नाम अनेक, एक मौलिक स्वर,
जाए कितने धर्म धुरन्धर !
जग जीवन के तम पर ताने -

प्राण-वितान सर्व-सुख-दाता !
भारतमाता भारतमाता !

समय समर पर अमर अवतरे,
पीत पात पर हरे ज्यों झरे !
धीर-धुरीण उदार विचारक

एक तत्त्व के सब व्याख्याता
भारतमाता भारतमाता !

धरे थके बिदके आक्रमक
तेरा शील निशित, संक्रामक
संस्कृतियोमं के सहज समन्वय-

का हर एक हुआ उदगाता
भारतमाता भारतमाता !

शत सहस्त्र वर्षों का जकड़ा
काट पाश दासता का कड़ा
प्राण दिए तेरे बेटों ने,

कौन तौड़ प्रण पीठ दिखाता
भारतमाता भारतमाता !

अब तो है स्वतंत्र तू माता
जन गण्तंत्र सुयश फहराता
हुआ स्वराज्य, सुराज शेष है-

तेरा देश विचित्र विधाता !
भारतमाता भारतमाता !

तेरे भूले - भटके लड़के
चुकते आपस में लड़-लड़ के;
'नव निर्माण, अभ्युदय क्या हो?'

अब अनेकता ही अनेकता,
कहां गई एकता ? क्या पता !
मिट्टी में मिल रही प्रतिष्ठा

कोई मां का वेश बचाता
भारतमाता भारतमाता !




-निराला निकेतन पत्रिका 'बेला' से साभार, संपादक - जानकी वल्लभ शास्त्री, अंक -1 वर्ष:1989 , मुजफ्फरपुर- 842001


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शत्-शत् है नमन तुझे भारतमाता!


जया झा


शत्-शत् है नमन तुझे, / तन-मन है अर्पण तुझे।
भारतमाता!
खुद को ज्ञानी कहने से डरती हूँ,
पर फिर भी सोचने की कोशिश करती हूँ,
जब देखा होगा तूने सभ्यता का पहला उजियाला,
पहनी होगी पहली बार, महिमा-गीतों की माला।
कभी जन्मे होंगे कंस-रावण करने को संहार तेरा,
उतरे होंगे राम-कृष्ण भी करने को उद्धार तेरा।
वशिष्ठ, सांदीपनी देते होंगे / माता-सा ही मान तुझे,
करते होंगे तेरी वंदना, / "तूने ही दिया है ज्ञान मुझे।"
बढ़े होंगे फिर आर्य-पुत्र / संस्कृति के पुनीत पथ पर।
होती होगी तू आनंदित / संतानों की प्रगति लखकर।
क्योंकि तू ही वो होगी जिसने / प्राण से प्रिय बच्चों को अपने
तड़प-तड़प कर, बिलख-बिलख कर, / प्रकृति के कष्टों से लड़कर,
किसी-किसी तरह से जीकर, / मरते हुए देखा होगा।
जना होगा तूने जनक को, / स्वर्ण-युग भोगा होगा।
लिच्छवी गणतंत्र देखकर / अशोक-राज देखा होगा।
आए होंगे शक-कुषाण, / फिर ग्रीक-हूण आए होंगे।
थामकर तलवार हाथ में / तेरे बेटों ने देश-गीत गाए होंगे।
सबको समाती गई होगी तू, / सबको अपनाती गई होगी तू।
'वसुधैव कुटुम्बकम' का प्यारा / गीत गाती गई होगी तू।
बुद्ध-जीन ने भी उसी वक़्त / प्रेम-पाठ गाया होगा।
त्रिरत्न और अष्टांग का / मार्ग भी बताया होगा।
आया होगा बाबर भी फिर, / अकबर ने सिर झुकाया होगा।
हाकिंस के तुझपर क़दम पड़े, / भविष्य सोच दिल तो तेरा रोया होगा।
औरंगजेब ने क्रूरता से / तेरा दिल दुखाया होगा,
लड़ते देख बच्चों को अपने, / जी तो भर ही आया होगा।
बंगाल बना होगा कहीं, / कहीं मैसूर बनाया होगा,
तेरे ही बच्चों ने तेरे अंग-अंग को / बाँट-बाँट कर नाम अलग बताया होगा।
दरारें पड़ गई होंगी / होगी तू अपनों की मारी।
बीच में घुसी होंगी बेड़ियाँ / होगी असहाय तू उनसे हारी।
रोती होगी क़िस्मत पर तू, / "गया कहाँ अब मान मेरा?"
चिल्लाती होगी बच्चों को, / "बहुत हुआ अब जाग ज़रा।"
टकराकर पत्थर से आवाज़ें / तुझ तक ही वापस आती होंगी,
रोकर बच्चों की दुर्दशा पर कोई / शोक-गीत तू गाती होगी।
ढूँढ़ती होंगी तेरी आँखें,
किसी आर्य को, किसी गुप्त को, / जगाना चाहती होगी तू
भारतीयों के हृदय सुप्त को।
जन्मा होगा कोई तिलक फिर / उतरा होगा कोई गाँधी,
झेली होगी भगत सिंह ने / अपने ऊपर तेरी आंधी।
उपजा होगा उत्साह नया / रंग वही लाया होगा,
गुम हुई स्वाधीनता को / तूने फिर पाया होगा।
अब तक के इतिहास में तूने / मानव की मानवता देखी होगी,
दानवता भी भोगी होगी / देवत्व की गोद में तू लेटी होगी।
आर्यपुत्रों का पतन देखा होगा तूने,
मानव को दानव में बदलते देखा होगा,
डरकर इन परिवर्तनों से संभवतः तेरा कोई
पुत्र तेरी गोद में आकर भी लेटा होगा।
ख़ैर! अंत मे एक दिन तूने / मंज़िल एक पाई होगी,
होकर प्रफुल्लित एक बार फिर / तू प्रेम-गीत गाई होगी।
पाकर स्वीधीनता तूने / सपने नए सँजोए होंगे,
सपनों को पूरा करने को / आशा-बीज बोए होंगे।
भारतमाता!
किन्तु सच-सच बतलाना मुझको
क्या स्वप्न-लोक वह चूर हो गया? / आशाओं का रूप वो तेरा
क्या काल्पनिक एक हूर हो गया? / शायद सच!
झटका लगा था ना तुझको / जब अंग तेरा एक भंग हुआ था?
रोई थी न तू बहुत ही / जब मिट्टी का लाल रंग हुआ था?
रोती है न आज भी बहुत / सुनकर तू खेल उनके?
धिक्कारती है न ख़ुद को ही तू / देख कपूतों के मेल अपने?
'इंडिया, नथिंग बट रबिश' जब सुनती है तू
टीस तेरे दिल में उठती है न?
जब अखबार होते हैं काले, काले कारनामों से
तब शर्म से नज़रें तेरी झुकती हैं न?
जब मुकुट पर तेरे चलती है गोलियाँ
तो नसें दिमाग़ की फटती हैं न?
लाता है सागर जब कुसंसकृति का ज़हर
तो पहचान तेरी मिटती है न?
भारतमाता!
दे-दे बस अपना आशीर्वाद। / दे-दे अपनी कृपा का प्रसाद।
शक्ति दे तू इतनी मुझको, / ढूँढ़ पाऊँ मैं चन्द्रगुप्त,
सिकंदर को हराने को उठा सकूँ मैं / उन हृदयों को जो पड़े हैं सुप्त।
या फिर ख़ुद ही बन जाऊँ मैं / विवेकानंद या बुद्ध महान्।
जयचंद का भूत भगाकर / बन जाऊँ खुद ही चौहान।
हो एक बार फिर विश्व में / तेरे ही ज्ञान की विजय।
ताकि हम फिर पुकार पाएँ / "भारतमाता! तेरी हो जय!"
http://jayajha-poetry.blogspot.com/


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भारत माता का जयगान

ऋषभदेव शर्मा




दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
यहाँ सृष्टि के आदि काल में, समता का सूरज चमका,
करुणा की किरणों से खिलकर, धरती का मुखड़ा दमका!
सुनो! मनुजता को हमने ही, आत्म त्याग सिखलाया है,
लालच और लोभ को तजकर, पाठ पढ़ाया संयम का!!
जो जग के कण-कण में रहता, सब प्राणी उसकी संतान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
रहें कहीं हम लेकिन शीतल, मंद सुगंधें खींच रहीं
यह धरती अपनी बाहों में, परम प्रेम से भींच रही!
सारे धर्मों, सभी जातियों, सब रंगों, सब नस्लों को,
ब्रह्मपुत्र, कावेरी, गंगा, कृष्णा, झेलम सींच रहीं!!
ऊँच नीच का भेद नहीं कुछ, सद्गुण का होता सम्मान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
हमने सदा न्याय के हक़ में, ही आवाज़ उठाई है,
अपनी जान हथेली पर ले, अपनी बात निभाई है!
पुरजा-पुरजा कट मरने की, सदा रखी तैयारी भी,
वंचित-पीड़ित-दीन-हीन की, अस्मत सदा बचाई है!
जन-गण के कल्याण हेतु हम, सत्पथ पर होते बलिदान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जिसके भी मन में स्वतंत्रता, अपनी जोत जगाती है,
जो भी चिड़िया कहीं सींखचों, से सिर को टकराती है!
वहाँ-वहाँ भारत रहता है, वहाँ-वहाँ भारत माता,
जहाँ कहीं भी संगीनों पर, कोई निर्भय छाती है!
आज़ादी के परवानों का, सदा सुना हमने आह्वान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
सब स्वतंत्र हैं, सब समान हैं, सब में भाईचारा है,
सब वसुधा अपना कुटुंब है, विश्व-नीड़ यह प्यारा है!
पंछी भरें उड़ान प्रेम से, दिग-दिगंत नभ को नापें,
कहीं शिकारी बचे न कोई, यह संकल्प हमारा है!
युद्ध और हिंसा मिट जाएँ, ऐसा चले शांति अभियान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
जल में, थल में और गगन में मूर्तिमान भारतमाता,
अधिकारों में, कर्तव्यों में, संविधान भारतमाता !
हिंसासुर के उन्मूलन में, सावधान भारतमाता,
'विजयी-विश्व तिरंगा प्यारा', प्रगतिमान भारतमाता!!
मनुष्यता की जय-यात्रा में, नित्य विजय, नूतन उत्थान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
दिशा-दिशा में गूँज रहा है, भारत माता का जयगान!
भारत का संदेश विश्व को, मानव-मानव एक समान!!
Through: http://www.anubhuti-hindi.org


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भारत माता के प्रति

विवेकरंजन श्रीवास्तवा


तेरे विजय घोष से माँ!
गूँजता था विश्व सारा
आज क्यों असहाय है माँ!
क्यों शिथिल तेरी भुजाएँ
वीर सारे सो गए क्या?
सोये से उनको जगा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
तेरे मस्तक की शान थे जो
सत्यवादी हरिश्चंद्र सरीखे
आज उपेक्षित से पड़े हैं
अपने हाथों से उठाकर
थोड़ा-सा मैं प्यार दे दूँ
और ज़रा सम्मान दे दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
सारे जहाँ से तू निराली
तू मेरी सुंदर है माता
सुंदर से सुंदरतम बना दूँ
तेरी चरण रज को हे माता
विश्व मस्तक पर सजा दूँ
चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
तेरे आँचल की छाँव में माँ!
राम रहीम नानक खेलते थे
अब कहाँ वो छुप गए हैं
आवाज़ दे उनको बुला लूँ
सारी धरा के फूल हे माता
तेरे श्री चरणों में चढ़ा दूँ
माँ चाहूँ तुझे वो ही बना दूँ
vivekranjan.vinamra@gmail.com


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भारतमाता के हम वीर

महेश कुमार वर्मा, पटना


भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
दुश्मन चाहे लाख आए
अपने कर्तव्य को नहीं भूलेंगे
अपना धर्म नहीं छोड़ेंगे
अन्याय को नहीं स्वीकारेंगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे

आगे बढ़ते रहे हैं
आगे ही बढ़ते रहेंगे
अन्याय व भ्रष्टाचार को
इस देश से निकाल फेकेंगे
सच्चाई व ईमानदारिता के समाज हम बनाएँगे
भारतमाता के हम वीर सपूत
नहीं झुकेंगे, नहीं हारेंगे
vermamahesh7@gmail.com


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हे भारतमाता।

मृदुला जैन

जन्म स्थान: मेरठ उ.प्र. , शिक्षा- एम.ए. अंग्रेज़ी, हिंदी में।

रुचि- अध्ययन, लेखन, संगीत, चित्रकला। , कृतियाँ - घरेलू पत्रिकाओं में स्थायी स्तंभ।

ashok_jain_78@yahoo.com


हे भारतमाता।
अजर, अमर, अटल देश हो, हे भाग्यविधाता
खिले हर कोख में एक दूर दृष्टिदाता
प्रेम, माधुर्य, भाईचारे बनी रहे ये अविरल गाथा
हे भारत माता हे भारत माता।
बनी पड़ी मिसाल है, अखंड कथा निहाल है।
धरा पर बिखरा तेज है, ये संस्कृति की सेज है।
नदी की धार सार है, यहां भूमि आधार है।
हर नजर में स्वप्न है, कर्म यहां धर्म है।
हर बात में दर्शन है, हर साथ में समर्पण है।
हर ओर छाया उजाला है, हर पंथ यहां निराला है।
आशाओं के विस्तार में व्यक्ति की पहचान है।
इस देश की बात में हर अर्थ बस महान है।
जन मन गण, भारत भाग्य विधाता
हे भारत माता, हे भारत माता।
एक राह का सफर, चल रहे कई डगर।
एक चाह का नगर, खोज रहे सभी मगर।
एक धर्म का चौराहा, हर किसी के लिए दोराहा।
एक जीवन का सत्य, न मिले तो लगे सूर्य अस्त।
एक सच का रहे भान, देश के साथ मिलें है प्राण।
एक भूमिका रहे हमेशा, छोड़ जाएं कुछ अनोखा।
दो इस बात का वरदान, रहे हमें देशभक्ति का भान।
हे भारत माता। हे भारत माता। हे भारत माता।


Bhavya Producer, Star News
A-37, Sector-60, NOIDA
bhavyas@starnews.co.in


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