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शुक्रवार, 18 जुलाई 2008

बहस में हिस्सा लें: कन्या भ्रूण हत्या

कन्या भ्रूण हत्या: हमें बेटी को पराया धन और बेटे को कुल दीपक की मानसिकता से ऊपर उठने की जरूरत है। यह सोचा जाना भी आवश्यक है कि भ्रूण हत्या करके हम किसी को अस्तित्व में आने से पहले ही खत्म कर देते हैं। आज के दौर में बेटीयां बेटे से कमतर नहीं है। इस गलत परम्परा को रोकने के लिये हम सभी को मिलकर तेजी से अभियान चलाना होगा। सरकारी सहयोग की अपेक्षा हमें नही करनी चाहिये। इस मामले में कानून भी लाचार सा ही दिखता है। जाँच सेन्टरों के बाहर बोर्ड पर लिख देने से कि "भ्रूण जाँच किया जाना कानूनी अपराध है।" उन्हें इसका भी लाभ मिला है। जाँच की रकम कई गुणा बढ़ गई। रोजना गर्भपात के आंकड़े चौकाने वाले बनते जा रहे हैं, चुकिं भारत में गर्भपात को तो कानूनी मान्यता है, परन्तु गर्भाधारण के बाद गर्भ के लिंक जाँच को कानूनी अपराध माना गया है। यह एक बड़ी विडम्बना ही मानी जायेगी कि इस कानून ने प्रचार का ही काम किया। जो लोग नहीं जानते थे, वे भी अब गर्भधारण करते वक्त इस बात की जानकारी कर लेते हैं कि किस स्थान पर उन्हें इस बात की जानकारी मिल जायेगी कि होने वाली संतान नर है या मादा। धीरे-धीरे लिंगानुपात का आंकड़ा बिगड़ता जा रहा है। यदि समय रहते ही हम नहीं चेते तो इस बेटे की चाहत में हर इंसान जानवर बन जायेगा। भले ही हम सभ्य समाज के पहरेदार कहलाते हों, पर हमारी सोच में भी बदलाव लाने की जरूरत है। इस बहस का प्रयास सिर्फ इतना ही है कि हम एक साथ और एक जगह् बहुत सारी सामग्री देश की पत्र-पत्रिकाओं को उपलब्ध करा दें , ताकि वे इस बात में वक्त न खपाकर सीधे तौर पर यहाँ हुई बहस से अपने उपयोग की सामग्री उठाकर अपने-अपने पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित कर सके। हाँ ! हम इतना जरूर चाहेंगे कि जब आप यहाँ प्रकाशित सामग्री लें तो इस वेवपेज का उल्लेख जरूर कर देंवे, ताकि दूसरे भी इसका लाभ लें सकें। आप यदि किसी पत्र-पत्रिका में इस बात की चर्चा कर रहें हों तो यह हमार सौभाग्य होगा। कृपया उसकी एक प्रति हमें जरूर भेंजे। अब तक हमें जो मेल प्राप्त हुए हैं उसे हम यहाँ पाठकों के समक्ष प्रस्तुत कर रहें हैं। यदि आप भी आपने विचार व्यक्त करना चाह्ते हों तो, हमें अपने विचार/लेख, कविता मेल कर इस बहस में हिस्सा लें सकते हैं सभी मेल हमें 30 जुलाई रात तक मिल जाने चाहिए| हमारा पता है: ई-हिन्दी साहित्य सभा, शम्भु चौधरी, एफ.डी.453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता- 700106 email:ehindisahitya@gmail.com













दिल को छूने वाले पोस्टर एवं नारे

क्रियाक्रम एवं पिण्डदान

उत्सव/जलवा

जघन्य अपराध

लिंग भेद एवं कन्या भ्रूण हत्या

लैंगिक असमानता के बड़े विरोधी

माँ तेरी ममता की परीक्षा

भ्रूण हत्या जघन्य अपराध

अपनी निर्मम हत्या की प्रतीक्षा में

जनम से पहले

नन्हा फूल मुरझाया

समाधन समाज को ही ढूढ़ना होगा

शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी

कलियों को मुसकाने दो

चिंतित जैन समाज

भ्रुणहत्या को मैं कई तरीकों से देख रही हुँ।

मुझे भी जन्म लेने दो

बेटी पैदा होने से, सन्नाटा छा जाता है।

औरतों की कम होती हुई आबादी

माँ मेरी आर्त पुकार सुन....



ई-मेल द्वारा प्राप्त पत्र


औरतों की कम होती हुई आबादी
आँकड़ों की निरस और बेजान भाषा के पीछे जो अन्तर-कथा छिपी रहती है उस अन्तर-कथा की व्यथा का मैं आप सबको सहभागी बनाना चाहती हूँ । यह अन्तर-कथा वैसे तो सिर्फ मेरी है, मेरी जाति की है, लेकिन इसके लिये मैं कहाँ तक दोषी हूँ ? जो जन्म लेने के साथ ही परिवार में विषाद का कारण बन जाती हूँ। मेरा जन्म, मुझे जन्म देने वाली माँ के चेहरे पर खुशी या गर्व के बजाय निराशा और भय समाज भर देता है। वो माँ जो प्रसव की असहनीय पीड़ा से जूझते हुए एक नये जीवन का सृजन करती है, लेकिन उस सृजन के प्रति उसके परिवार की बेरुखी उसे अपराधबोध से भर देती है, मुझे जन्म देकर किसी पाप-बोध से भर जाती है। वो मुझे चाहकर भी चाह नहीं पाती और जाने -अनजाने 'मैं' उस पाप-बोध की वेदी पर बलि चढ़ने लगती हूँ, जो पाप मैंने नहीं किया, मेरी माँ ने नहीं किया ।
मुझे और मेरी माँ को इस पाप-बोध में भरने वाला कौन है ? इस पाप की वेदी पर बलि चढ़ाकर नारी जाति की हत्या करने वाला कौन है ? इस सवाल का जबाब पाने का प्रायः करती रही। हमारा समाज अभी भी औरतों के प्रति अपने दकियानुसी विचारों की केंचुली उतार नहीं पाया है। आज भी समाज के सर्वोच्च शिखर पर बैठे हुए, न्याय के उच्चतम आसन पर बैठे हुए लोग तक औरतों को मात्र घर की चार-दीवारी में बैठी रहने का आदेश देते हुए झिझकते नहीं हैं। सती के नाम पर पति के साथ औरत के जिन्दा जलकर मरने की पैरवी करने वाले पैरोकारों की आज भी हमारे समाज में कमी नही है। कन्याओं को 'आक का दूध' जहर के रूप में पिलाकर, तो कहिं खाट के पाये के नीचे दबा कर मार दिया जाता था। आज इस आधुनिक काल में एमियोसिंटेसिस के जरिये भ्रूणवस्था में ही कन्या की हत्या करवा दी जाती है।
सवाल यह है कि आखिर हमने यह कौन-सा समाज बनाया है ? जहाँ एक कन्या भ्रूण को, एक अबोध बच्ची को, एक औरत को, मजबूरन मौत के घाट सुला दिया जाता है।
इस प्रकार, जन्म से लेकर जिंदगी के तमाम चरणों में सिर्फ लिंग के आधार पर महिलाओं के साथ जो भेदभाव बरता जा रहा है, क्या यह समानता की हमारी तमाम संवैधानिक घोषणाओं को कोरी औपचारिकता नहीं घोषित कर देता?
हमारी अर्थव्यवस्था, परिवार, समाज और राजनीतिक जीवन में क्रमशः नारी जाति को जिस प्रकार हाशिये पर डाला जा रहा है, वही नारी जाति का एक बड़ा हिस्सा भी इस शोचनीय दशा के लिए जिम्मेदार है ।

श्रीमती सरला माहेश्वरी, पूर्व राज्यसभा सांसद, email: saralam@sansad.nic.in

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माँ मेरी आर्त पुकार सुन.......
कातर नयनो से निहार रही, दृग भरे अश्रु भयभीत खड़ी।
किस हेतु हृदय पाषाण किया, क्यों मुझको मृत्यु दान दिया।
मैं भी तेरी संतान हूँ माँ, तेरी शक्ति पहचान हूँ माँ।
ममता का न अपमान यूँ कर, स्त्रीत्व को न बलिदान तू कर।
मेरा जीवन अभिशाप नही, बेटी होना कोई पाप नही।
न कर मेरा तू तिरस्कार, अस्तित्व को न कर तार तार।
मुझको माँ तू स्वीकार कर, श्रृष्टि को न निस्सार कर।
अपने ममत्व का प्रमाण दे, मुझको तू जीवन दान दे।
क्या है मेरा तू दोष बता , कैसे कर लूँ संतोष बता।
माना भाई तुझे प्यारा है, कुलदीपक तेरा सहारा है।
तेरा वह वंश बढ़ाएगा, तुझको सम्मान दिलाएगा।
पर ज्यों मैं तुझको सुन सकती हूँ,
तेरे हर सुख-दुख गुन सकती हूँ ।
क्या नर वह सब सुन पायेगा,
अनकही तेरी गुन पायेगा।

मुझपर माता विश्वास तो कर, मुझमे हिम्मत उत्साह तो भर।
मैं इस जग पर छा जाउंगी, मैं भी तेरा मान बढाऊंगी।
ऐ जननी नारीत्व का मोल तोल, शंसय के सारे बाँध खोल।
तू कर मेरा उद्धार ऐ माँ, न ठहरा जग का भार ऐ माँ।
माँ मेरी आर्त पुकार सुन, मुझको अपना सौभाग्य चुन।
अब हर्ष से मुझको अपना ले, उर में भर स्नेह तू बिखरा दे।
भर जाए यह मन मोद से, जन्मू तेरी जब कोख से ।
जीवन सब का मैं संवारूंगी, तेरे घर को स्वर्ग बनाऊँगी ।
तेरे पथ के सब कांटे चुनु, तेरे सारे सपनो को बुनू ।
मुझे शिक्षा दे संस्कार दे, मुझे ममता और दुलार दे।
ऐ माँ मुझको आने दे, और इस जग पर छाने दे।।

रंजना सिंह, जमशेदपुर, (झारखण्ड )


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मुझे भी जन्म लेने दो
तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो
मैं बेटी बनकर जन्म ले रही हूँ इसीलिए
मेरे बेटी होना से तुम क्यों घबराते हो
दहेज़ के कारण
या बेटी को पराया धन समझते हो
पर तुम्हारा सोचना व्यर्थ है
बेटी पराया धन नहीं है
तुम मुझे उचित शिक्षा देना
मेरे साथ पराये का व्यव्हार न करना
तब तुम देखोगे कि
बेटी बेटा से कहीं अधिक आगे व शुखदायक है
और तब दहेज़ की समस्या भी ख़त्म हो जाएगी
क्या सोचते हो
मेरे जन्म से तुम्हें मोक्ष या परमात्मा-प्राप्ति में संदेह है
पर तुम्हें यह समझाना चाहिए कि
मोक्ष या परमात्मा-प्राप्ति
संतान के बेटा या बेटी होने पर निर्भर नहीं करता है
यह निर्भर करता है तुम्हारे ध्यान-साधना व तुम्हारे किए कर्म पर
फिर क्या मुझे जन्म से पहले ही मार देने पर
तुम्हें मोक्ष या परमात्मा की प्राप्ति हो जाएगी
कभी नहीं, कभी नही, कभी नहीं
तब फिर तुम मुझे क्यों मारना चाहते हो
तुम्हारी सारी सोच निराधार है
तुमने ही मुझे जन्म लेने के लिए प्रयोजन किया
फिर तुम ही मुझे जन्म से पहले ही मारने का प्रयोजन कर रहे हो
सिर्फ इसीलिए कि मैं नारी जाति का हूँ
पर तुम यह मत भूलो कि
मैं जिसके कोख से जन्म लेने वाली हूँ
वह भी नारी ही है
मुझे जन्म देने वाली माँ भी नारी के कोख से ही जन्म ली है
तुम भी नारी के ही कोख से जन्म लिए हो
इतना ही नहीं
सभी नर व नारी नारी के ही कोख से जन्म लिए हैं
तब फिर तुम मुझे जन्म लेने से क्यों रोकते हो
शायद अब तुम समझ गए होगे कि
नारी बिना यह सृष्टि नहीं चल सकती है
व बेटी पराया नहीं अपना है
मेरे जन्म के प्रयोजन करने वाले मेरे माता-पिता
तुमसे मेरी यही आग्रह है कि
मुझे मारने का प्रयोजन मत करो
व मुझे मत मारो
मुझे भी जन्म लेने दो
मुझे भी जन्म लेने दो

रचनाकार : महेश कुमार वर्मा

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बेटी पैदा होने से, सन्नाटा छा जाता है।
नारी शक्ति

घर की चार दिवारी में भी,
नही सुरक्षित है नारी।
घर के बाहर तो फ़ैली है,
भारी भरकम महामारी।।
घर की चार------

घर में आने से पहले,
विज्ञान का है अभिशाप ।
कोख में कन्या होने पर,
गर्भपात कराते माँ-बाप ।।
आने से पहले हो जाती,
जाने की तैयारी ।
घर की चार------

बेटा की चाह,
यह नोबत लाती है ।
पत्नी के होते,
शादी रचाई जाती है ।।
रूढिवादिता के चलते,
जनसंख्या में वृध्दी है जारी ।
घर की चार------

बेटी पैदा होने से,
सन्नाटा छा जाता है ।
माँ-बाप कुटुम्ब कबीले में
भूचाल सा आ जाता है ।।
नन्ही जान ने,
नही देखी दुनियाँदारी ।
घर की चार-----------------

बेटा-बेटी का अन्तर,
स्पष्ट नजर जब आता है ।
बेटा को कुल का "दीपक"
बेटी को पराया जाना जाता है ।।
शिक्षा, रहन-सहन में,
नारी का शोषण है भारी ।
घर की चार-----------------

अभी समय है सावधान !
1-2 बच्चे परिवार में शान ।
बेटा हो या बेटी,
मानो ईश्वर का "वरदान" ।।
आने बाला भबिष्य,
है प्रलयकारी ।
घर की चार-----

नारी शक्ति है, अबला नही,
करो इस का सम्मान ।
सुनीता, इंदिरा जी,पर
देश को है अभिमान ।।
नर-नारी के अनुपात में,
गिरावट से लाचारी ।
घर की चार-------


देवेन्द्र कुमार मिश्रा, अमानगंज मोहल्ला नेहरु बार्ड न0 13, छतरपुर (म0प्र0)
07682242676 , devchp@gmail.com


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दिल को छूने वाले पोस्टर एवं नारे
कन्या भ्रूण हत्या के विरोध में हृदय विदारक और दिल को छू देने वाले नारे एवं पोस्टर सोनोग्राफी केन्द्रों पर लाये जाने चाहिये। ताकि गर्भवती महिला ऎसा कदम उठाते समय स्वयं को अपराधई समझे। - सरला अग्रवाल, बलांगीर।


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क्रियाक्रम एवं पिण्डदान
अंतिम क्रियाक्रम एवं पिण्डदान के लिये बेटियों को भी समाज बराबर का दर्जा प्रदान करे। - डॉ.पूर्णिमा केडिया , राँची।


उत्सव/जलवा
लड़के के जन्म के अवसर पर मनाये जाने वाले उत्सव/जलवा आदि को या तो बन्द कर दिया जाना चाहिये या फिर इस तरह का उत्सव लड़का-लड़की दोनों के जन्म पर मनाया जाना चाहिये। - सुनिता सिंह, दिल्ली।


ब्लॉग से संग्रहित किये गये लेख/विचार


जघन्य अपराध
वर्तमान में समाज में कन्या भ्रूण हत्या जैसा जघन्य अपराध लगातार हो रहा है. सरकार, समाजसेवी संस्थाएं आदि अपने-अपने स्तर पर इस बुराई को दूर करने का प्रयास कर रहे है. इसके बाद भी भ्रूण लिंग की जाँच हो रही है, लड़की के होने पर उसकी गर्भ में ह्त्या हो रही है। बचाव के इन प्रयासों के बीच कुछ नारियों ने एक नया सवाल खड़ा कर पूरे मुद्दे को अलग दिशा में ले जाने का काम किया.
इन महिलाओं का सवाल है की वे लड़की नहीं चाहतीं क्योंकि उनके परिवार में पहले से दो या तीन लड़कियां हैं। ऐसे में या तो सरकार उनको लिंग परीक्षण एवं चयन की आजादी दे. यदि सरकार चाहती है कि भ्रूण में कन्या की हत्या न हो तो वो उस लड़की के पैदा होने के बाद उस बच्ची की देखभाल की जिम्मेवारी ले.
इन महिलाओं का तर्क है कि कितने और किन बच्चों को जन्मना है इस बात की आज़ादी महिलाओं को होनी चाहिए। आख़िर वे ही गर्भ में बच्चे को पालती हैं।

डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर


लिंग भेद एवं कन्या भ्रूण हत्या
लिंगभेद (जेण्डर इन इक्वेलिटी) एक बहुत बड़ी समस्या है । लड़का-लड़की भेद इस सीमा तक है कि इतनी राष्ट्रीय स्तर की जागरूकता के बाद भी नर-नारी अनुपात में विसंगति बढ़ती जा रही है । कन्या भ्रूण हत्या के कारण यह समस्या पैदा हुई है । लड़का ही वंश चलाएगा, यह एक मूल भ्रांति है और इस संबंध में एक व्यापक अभियान गायत्री परिवार द्वारा चलाया जा रहा है । यदि अन्य आध्यात्मिक शीर्ष वक्ता, सामाजिक संगठन और अधिक जागरूक होकर इस क्षेत्र में अपनी शक्ति झोंक दें, तो हम इस कलंक से मुक्ति पा सकते हैं । बड़े आधुनिक शहर यथा चण्डीगढ़ में भी यह अनुपात जब हम 1000/750 का देखते हैं, तो लगता है कि पढ़े-लिखे भी उतने ही पिछड़े व नासमझ हैं । इस संबंध में रैलियाँ निकलें, इन्टरनेट से लेकर प्रिण्ट मीडिया, प्रदर्शनी के सभी साधन प्रयुक्त हों एवं दोषियों को कड़े दण्ड दिये जायँ, तभी कुछ हो सकता है ।

अखिल विश्व गायत्री परिवार


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लैंगिक असमानता के बड़े विरोधी
'कन्या भ्रूण हत्या और लैंगिक असमानता के बड़े विरोधी हमारे एक तथाकथित क्रांतिकारी साथी हैं। समाज में काफी सम्मान पाते हैं। बिरादरी की नाक हैं। सम्पर्क बढ़ा तो पता चला कि इनके दो बेटे हैं। बेटी एक भी नहीं। पत्नी और विधवा मां घर के अलावा खेत खलिहान भी देखती हैं और इन महाशय ने समाज सुधारने का बीड़ा उठाया हुआ है। गुड़गांव के सोहणा प्रखण्ड के एक गांव में ग्राम प्रधान और स्थानीय राजनेता ने अपनी ही स्त्री का बलात्कार अपने दामाद व दो अन्य मित्रें के साथ संयुक्त रूप से किया। इसकी न कोई प्राथमिकी दर्ज होनी थी और न ही हुई। पंचायत भी क्यूं बैठती। दबे जुबान पूरा गांव हकीकत जानता है। मगर कोई कुछ नहीं कहता। यह कोई अजूबा नहीं क्योंकि सभी छलनियों में छेद हैं। यह स्त्री जिसके साथ यह सब हुआ वह कोई पारो नहीं बल्कि स्थानीय महिला है। आप कल्पना कर सकते हैं कि जब इनका यह हाल है तो 'पारो' जैसी स्त्रियों का क्या हाल होगा। हमारे आंदोलन के साथी के एक चचेरे भाई हैं। उनकी आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। बातों-बातों में खुल गए, कहने लगे दिल्ली आना चाहते हैं उनको नौकरी पाने में मैं कुछ मदद करूं। उम्र 40 के करीब हो चुकी है। विवाह नहीं हो पाया। सोचते हैं पारो ले आएं। इसके लिये कमाना पडेग़ा। इसलिए दिल्ली आएंगे। फिर वहीं से पारो ले आएंगे। उन्होंने बात भी कर रखी है। करीब 15 हजार का खर्च है। वो कहते हैं, कि आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने पर विवाह होना कठिन है। वैसे भी लड़कों का विवाह उनके भाग्य पर निर्भर करता है। विडम्बना है कि यहां एक तरफ लड़कों को विवाह के लाले पडे हैं वहीं दहेज के आंकड़े आसमान छू रहे हैं। सामान्यत: यह माना जाता है कि कन्या भ्रूण हत्या एक नगरीय समस्या है। मगर यह कहते हुए हम भूल जाते हैं कि जमीन से जुड़े मध्यवर्गीय (व्यापक अर्थों में) तबके में आरम्भ से ही नवजात कन्याओं को मारने के अनेकों तरीके प्रचलित हैं। नाक दबा कर, नमक चटाकर, अफीम चटाकर, दूध में डुबाकर, और मर्दों के साथ सुलाकर जिनसे दब कर वे दम तोड़ देती थीं। ऐसी कई तकनीकों का भरपूर इस्तेमाल किया जाता रहा है। परिणाम सामने है। हम लोगों को कन्या भ्रूण हत्याओं का परिणाम भुगतते देख रहे है। ऐसा ही चलता रहा तो वह दिन दूर नहीं जब पारो भी अनुपलब्ध होगी। तब बचेगा बस थोथा पुरुषार्थ, मर्यादा, सम्मान, सम्पत्ति और कुछ भी नहीं।

भारतीय पक्ष


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माँ तेरी ममता की परीक्षा
माँ तेरी ममता की परीक्षा
आज ये बेटी लेती है,
कोख में हूँ, मजबूर हूँ मै
पर आज ये तुमसे कहती हूँ,
तेरे जिगर का टुकडा हूँ मै
मुझे तुछ पर विश्वास है
तू समझेगी मेरी व्यथा बस
मुझको पुरी आस है,
चाहे कोई तुझको समझाए
या मेरे विरोध में भड़काए
पर अपना बंधन मजबूत हो इतना
की कोई हमको जुदा न कर पाए
माँ तू माँ है, अपनी
अपनी ममता पर वार न होने देना
इस बेटी को दुनिया में न लाकर,
बेटी को बादनाम न होने देना
दुनिया को दिखा देना की
माँ बेटी का रिश्ता कितना प्यारा है
संदेश मिले हर माँ को ये की
"बेटी सबका सहारा है"

अरुण कुमार वर्मा


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भ्रूण हत्या जघन्य अपराध
कन्या भ्रूण हत्या जघन्य अपराध है हमने अपनी संस्था के माध्यम से एक विचार गोष्ठी आयोजित की थी महिलायों को जागरूक करने के लिए ! अजन्मी कन्या शिशु की हत्या करना आने वाले समय में स्त्री की संख्या को कम कर रहा है मात्रभूमि फ़िल्म में यह समस्या प्रभावी रूप से दिखाई गई है सभी नारियों से अपील है .....अपने अपने तरीके से इस समस्या के खिलाफ आवाज उठायें !!!

नीलिमा गर्ग


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पत्र-पत्रिकाओं से संग्रहित किये गये लेख/विचार/कविता



अपनी निर्मम हत्या की प्रतीक्षा में

मै अजन्मी, माँ की कोख में पल रही,
एक भ्रूण कन्या,
मेरा बाप, जिसने माँ की कोख में/ बोया था बेटा,
अंकुरित हो गई बेटी।
अब मेरी हत्या की योजना बना रहा है,
माँ को बहला-फुसला कर मना रहा है।
रोज मेवा-मिठाई फल/ खिला-खिला कर पटा रहा है।
अभागिन बेटी को जन्म देकर क्या पाओगी,
घुटन, अपमान, संत्रास, दहेज, बलात्कार
यही सब तो नियति है नारी की
मैं रोती हूँ, गिड़गिड़ाती हूँ,
माँ! मुझे भ्रूण हत्या से बचालो,
मुझे खुली हवा में सांस तो लेने दो,
माँ अचानक चीख उठती है।
नहीं-नहीं-नहीं / हत्यारा बाप
मेरी माँ को ही मार डालने के / चिन्तन में खो जाता है।
जन्म लेने से पूर्व ही / मेरी हत्या की योजना बनाता है।
क्रूर हत्यारे निर्मोही बाप ने
माँ की अस्वीकृति से खीझ / उसे कोठरी में कैद कर
खाना-पीना तक बंद कर देता है।
मेरी दादी
चिल्ला-चिल्ला कर चीख रही है।
इस करम जली को जला दो,
आज्ञाकारी पुत्र-नरपिशाच पिता
केरोसीन की बोतल उठा / दियासलाई की तलाश में जुट जाता है।

असहाय विवश माँ / जलाए जाने के भय से
बलिपशु की तरह थर-थर कांपती हुई
मेरी हत्या की मौन स्वीकृति
देने को विवश-बाध्य।
नर्सिंग होम का शल्यकक्ष / मूर्छित माँ के गर्भ में
अति सूक्ष्म उपकरण / मेरी हत्या के लिये
मेरे सिर की तलाश कर रहे हैं
और मैं गर्भाशय के एक / कोने में दुबकी-अजन्मी
सभ्य समाज के बीचों-बीच
विज्ञान के जाने माने हाथों से
अपनी निर्मम हत्या की प्रतीक्षा रत हूँ।

- अवतंश रजनीश, प्रदान सम्पादक: 'चर्चित-अचर्चित'. प्रकाश नगर, रायबरेली-229001

'कोलकाता से प्रकाशित 'मनिषिका' संस्करण-2006 से साभार

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जनम से पहले

मैया ! जनम से पहले मत मार
बाबुल ! जनम से पहले मत मार

चाहे मुझको प्यार न देना / चाहे तनिक दुलार न देना
कर पाओ तो अतना करना / जनम से पहले मार न देना

मैं बेटी हूँ, मुझको भी है
जीने का अधिकार...।

मेरा दोष बताओ मुझको / क्यों बेबत सताओ मुझको
मैं भी अंश तुम्हारा ही हूँ / तज कर फेंक न जाओ मुझको

जीने का जो हक दे दो तुम
देखलुँ ये संसार...।

थोड़ी नजर बदल कर देखो / संग समय के चल कर देखो
बेटी से भी नाम चलेगा / ठहरो जरा संभल कर देखो

चौथेपन की लाठी बनकर
दूंगी दृढ़ आधार ...।

मैं जब आँगन में डोलूँगी / मिसरी सी बोली बोलूँगी
सेवा, करुणा, त्याग, तपस्या / के नूतन द्वारए खोलूँगी

दोनों कुल के मान की खातिर
तन-मन दूँगी वार...।।

- डॉ. सरिता शर्मा, 115ए, पाकेट-बी, मयूर विहार, फेज-II, दिल्ली-110091

'कोलकाता से प्रकाशित 'मनिषिका' संस्करण-2006 से साभार

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ई-मेल द्वारा प्राप्त पत्र


नन्हा फूल मुरझाया

गर्भ गुहा के भीतर एक ज़िंदगी मुस्कराई ,
नन्हे नन्हे हाथ पांव पसारे..........
और नन्हे होठों से फिर मुस्कराई ,
सोचने लगी की मैं बाहर कब आऊँगी ,
जिसके अंदर मैं रहती हूँ, उसको कब "माँ " कह कर बुलाऊँगी ,
कुछ बड़ी होकर उसके सुख -दुख की साथी बन जाऊँगी..
कब "पिता" के कंधो पर झुमूंगी,
कब "दादा" की बाहों में झूलूँगी,
नन्ही-नन्ही बातो से सबका मन बहलाऊँगी .......

नानी सुनाएगी कहानी, दादी लोरी गायेगी,
बुआ-मासी मुझपे जैसे बलहारी जाएँगी......
बेटी हूँ तो क्या हुआ काम वो कर जाऊँगी ,
सबका नाम रोशन करूंगी, देश का गौरव कहलाऊँगी ,

पर..................?
सुन कर मेरा नन्हा हृदय कंपकपाया,
माँ का दिल कठोर हुआ कैसे, एक पिता यह फ़ैसला कैसे कर पाया,
"लड़की " हूँ ना इस लिए जन्म लेने से पहले ही नन्हा फूल मुरझाया ..!!!!!!!!!


Ranjana Bhatia, email: ranjanabhatia2004@gmail.com


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समाधन समाज को ही ढूंढ़ना होगा

भ्रूण हत्या एक सामाजिक समस्या है और इसका समाधान हम सबको मिलकर ही ढूंढ़ना होगा। सरकार या कानून ऎसी बुराइयों को दूर करने में असफल रहें हैं।
भारतीय समाज यह मानता है कि बेटे से नाम चलता है, बेटे ही पितरों का उद्धार करने वाला होता है और बेटा ही कमाकर घर चलाने वाला तथा वृद्धावस्था में देखभाल करने वाला है। लेकिन गहरायी से जाँचने स ये सभी धारणाएँ भ्रांत सिद्ध हो जाती है।
हमें समाज के विचारों में तो परिवर्तन लाना ही होगा , सथ ही साथ गर्भ-परीक्षण और गर्भपात से गर्भाशय पर होने वाले बुरे प्रभाव से भी हम महिलाओं को सचेत होना पड़ेगा। गर्भपात हम महिलाओं की स्वतंत्रता में बाधक न बने इस बात को भी ध्यान में रखने की जरूरत है। माता बनना सबको अच्छा लगता है, परन्तु मातृ स्वरूप कलंकित हो यह कोई बहने नहीं चाहती। मेरी सोच है कि इस समस्या को जनचेतना से दूर किया जा सकता है। कानून हर बात का कभी समाधान नहीं हो सकता। यदि ऎसा होता तो अपराध का ग्राफ कम हो जाता, बहस का माध्यम इस समस्या का मार्ग परस्त करेगी। ई-हिन्दी साहित्य सभा का यह प्रयास निश्चय ही कोई ठोस निर्णय पर पहुँचेगी। - डॉ. पूर्णिमा केडिया ' अन्नपूर्णा', 105, फिकॉन पैलेस, लालपुर , राँची-1

- डॉ. पूर्णिमा केडिया ' अन्नपूर्णा', 105, फिकॉन पैलेस, लालपुर , राँची-1


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शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी

दस पंद्रह साल से जबसे गली मोहल्लों में अल्ट्रा साउंड सेंटर खुले हैं तब से शिक्षित और सम्पन्न राज्यों में अजन्मी बच्चियां ज्यादा मारनी शुरू कर दी गई हैं। पहले सिर्फ लोग कहते थे, फिर जनसंख्या के आंकड़ों ने कहना शुरू कर दिया। पर हम नहीं संभले क्योंकि बेटियां बोझ हैं। दिल्ली, पंजाब, हरियाणा और इनकी सीमाओं से लगते आसपास के क्षेत्र में ये ज्यादा हुआ। लेकिन कुछ नहीं हुआ।सब कुछ सरकारों पर छोड़ दिया गया, वही हुआ जो सरकारी काम में होता आया है। इन अल्ट्रासाउंड सेंटरों के बाहर तख्तियां टंग गई कि यहां भ्रूण का लिंग परीक्षण नहीं होता लेकिन नतीजा वही ढाक के तीन पात। कोई कुछ बोलने वाला नहीं कोई कुछ देखने वाला नहीं।फिर भी लिंग परीक्षण चालू हैं कोई सामाजिक जिम्मेदारी भी तो लेने को तैयार नहीं ।
पिछले दिनों एक खबर पढ़ी जिसने थोड़ी राहत दी, शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी ने यह निर्णय लिया है कि सिख धर्म को मानने वाले कन्या भ्रूणों को ना मारें अगर वे लड़िकयों को पालने में रूचि नहीं है तो वे गुरुद्वारों के बाहर रखे पालनों में बच्चियों को छोड़ जाएं, इन बच्चियों का पालन-पोषण एसजीपीसी और गुरुद्वारे करेंगे। ऐसा बहुत कम होता है जब धार्मिक संस्थाएं या समाज मिलकर इस तरह के निर्णय लेते हैं। हालांकि कुछ अंदर के लोगों का कहना है कि इस निर्णय के पीछे कुछ और कारण भी हैं जैसे कि लड़कियों की कमी की वजह से दूसरे राज्यों से लड़कियों लाकर शादी करना, लड़कों में सैक्सुअलल और सोशल फ्रस्ट्रेशन।लेकिन इससे ज्यादा वे इस बात से डरे हुए हैं कि बाहर की लड़कियों कैसे उनकी संस्कृति और सभ्यता की रक्षा कर पाएंगी। ऐसे में पहले से ही संख्या में कम होते जा रहे सिखों के लिए अपने धर्म की रक्षा करना मुश्किल हो जाएगा । खैर मामला जो भी हो लेकिन कोई संस्था इतने जोर-शोर से लड़कियों को बचाने के िलए आगे आई है तो ये स्वागत योग्य है, आखिर कोई तो है जिसे बच्चियों की फिक्र है।इस खबर को पढ़ने के दो तीन दिन बाद ही गुरु पूरब पर गुरुद्वारे जाना हुआ , वहां पर जगह-जगह बड़े -बड़े पोस्टर लगे थे जिसमें बहुत ही आकर्षक ढंग से कन्या भ्रूण हत्या रोकने की अपील की गई थी और इसे धर्म विरूद्ध बताया गया था।
लेकिन मुझे इस पूरे मामले में खुशी इस बात की हुई , कोई तो जिम्मेदारी लेने के लिए आगे आया है और इस कलंक को मिटाने की कोशिश कर रहा है।

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा


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कलियों को मुसकाने दो

खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो

जाने किस-किस प्रतिभा को तुम
गर्भपात मे मार रहे हो
जिनका कोई दोष नहीं, तुम
उन पर धर तलवार रहे हो
बंद करो कुकृत्य - पाप यह,
नयी सृष्टि रच जाने दो
आने दो रे आने दो, उन्हें इस जीवन में आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

जिस दहेज-दानव के डर से
करते हो ये जुल्मो-सितम
क्यों नहीं उसी दुष्ट-दानव को
कर देते तुम जड़ से खतम
भ्रूणहत्या का पाप हटे, अब ऐसा जाल बिछाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

बेटा आया, खुशियां आईं
सोहर-मांगर छम-छम-छम
बेटी आयी, जैसे आया
कोई मातम का मौसम
मन के इस संकीर्ण भाव को, रे मानव मिट जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

चौखट से सरहद तक नारी
फिर भी अबला हाय बेचारी?
मर्दों के इस पूर्वाग्रह मे
नारी जीत-जीत के हारी
बंद करो खाना हक उनका, ऋनका हक उन्हें पाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

चीरहरण का तांडव अब भी
चुप बैठे हैं पांडव अब भी
नारी अब भी दहशत में है
खेल रहे हैं कौरव अब भी
हे केशव! नारी को ही अब चंडी बनकर आने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

मरे हुए इक रावण को
हर साल जलाते हैं हम लोग
जिन्दा रावण-कंसों से तो
आंख चुराते हैं हम लोग
खून हुआ है अपना पानी, उसमें आग लगाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

नारी शक्ति, नारी भक्ति
नारी सृष्टि, नारी दृष्टि
आंगन की तुलसी है नारी
पूजा की कलसी है नारी
नेह-प्यार, श्रद्धा है नारी
बेटी, पत्नी, मां है नारी
नारी के इस विविध रूप को आंगन में खिल जाने दो
खिलने दो खुशबू पहचानो, कलियों को मुसकाने दो

-मनोज भावुक


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चिंतित जैन समाज

राजस्थान में लड़कियों की घटती संख्या से चिंतित जैन समाज की महिलाओं ने कन्या भ्रूण हत्या के विरुद्ध अभियान छेड़ दिया है.
इस काम में साधु-संतों और समाज के दूसरे लोगों की भी मदद ली जा रही है. पंडितों ने आश्वासन दिया है कि वे केवल बेटों को महिमामंडित करने वाले श्लोकों में बदलाव के लिए तैयार हैं और शायद अब पुत्रवान भव की जगह संतान भव के श्लोक सुनाई दें. तेरापंथ महिला मंडल की राष्ट्रीय अध्यक्ष सायर बेंगानी ने बीबीसी को बताया कि उनके यहाँ लड़कियों की संख्या तेज़ी से कम हो रही है.
जागृति अभियान
राजस्थान में फिलहाल एक हज़ार पुरुषों पर 870 महिलाएँ हैं. महिला मंडल ने जगह-जगह सम्मेलन कर जागृति अभियान छेड़ दिया है. इस अभियान को आचार्य महाप्रज्ञ, युवाचार्य महाश्रमण और साध्वी कनक प्रभा का सक्रिय सहयोग मिल रहा है. इस अभियान में सिख समाज, राजपूत और मुस्लिम महिला संगठनों ने सुर मिलाया है. श्रीगंगानगर में एक गुरुद्वारे के मुख्य सेवादार तेजेंदर पाल सिंह टिम्मा कहते हैं, “हम गाँव-गाँव जाकर बेटियों के हक़ में अलख जगा रहे हैं. हमारे ग्रंथ कहते हैं कि कुड़ी मार से कोई दोस्ती नहीं. यानी कन्या भ्रूण हत्या करने वाले से कोई रिश्ता नहीं.” टिम्मा का कहना है कि ग्रंथों का हवाला देकर लोगों को भ्रूण हत्या नहीं करने लिए पाबंद किया जा रहा है.
कन्या गरिमा कार्यक्रम
डिग्निटी टू गर्ल चाइल्ड प्रोग्राम यानी कन्या गरिमा कार्यक्रम की राज्य समन्वयक डॉ मीना सिंह कहती हैं, “ भ्रूण हत्या रोकने के लिए हमें भ्रूण परीक्षण तकनीकी से जुड़े लोगों और डॉक्टरों से संपर्क करना होगा.” सरकारी आंकड़ों के अनुसार राज्य में 1200 से ज़्यादा अल्ट्रासाउंड मशीनें लगी हैं. इस मुहिम को पंडितों ने भी समर्थन दिया है. ब्राह्मण समाज के अर्जुन पंडित कहते हैं, “हम समाज के वरिष्ठ लोगों से बात कर उन श्लोकों में बदलाव करेंगे जो पुत्रों का महिमामंडन करते हैं. पुत्रवान भव की जगह हम संतान भव का श्लोक काम में ले सकते हैं.” राजपूत समाज की प्रेम कंवर की मानें तो इस मुद्दे पर राजपूतों में सकारात्मक परिवर्तन आया है. वो कहती हैं, “अतीत की बात भूल जाओ. अब बेटियों की संख्या बढ़ रही है.”
मुस्लिम वेलफ़ेयर सोसायटी की निशात हुसैन कहती हैं, “कम से कम मुसलमानों में तो बेटी को कोख में मारने की बुराई नहीं है. मजहब शायद इसका बड़ा कारण है. नबी ने कहा है कि जिसके दो बेटियाँ हैं वो जन्नत का हक़दार है.” तेरा पंथ महिला मंडल की कांता जैन और बीना कहती हैं, “हम लोगों में बेटियों के प्रति प्रेम की समझ पैदा कर रहे हैं.” इसी मुहिम से जुड़ी कांता मालू का कहना है कि जैन तीर्थंकरों ने अहिंसा का पैगाम दिया था और कन्या भ्रूण का वध अहिंसा के संदेश का उल्लंघन है. राजस्थान सरकार ने हाल ही में कन्या भ्रूण हत्या के आरोप में 28 डॉक्टरों की प्रेक्टिस पर रोक लगा दी थी. लेकिन वंश, वसीयत और विरासत के नाम पर बेटियों को उपेक्षित रखने की प्रवृत्ति अब भी कायम है.

- नारायण बारेठ, बीबीसी संवाददाता, जयपुर


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भ्रुणहत्या को मैं कई तरीकों से देख रही हुँ

मैं भी अपने विचार रखने के लिये सोच रही हुँ, पर समझ मे नहीं आ रहा है, कि कहाँ से शुरू करूँ, क्योंकि भ्रुणहत्या को मैं कई तरीकों से देख रही हुँ।
एक तो वो जो जन्म देने के पहले ही मार दी जाती हैं, और एक वो जन्म लेने के बाद मार दी जाती हैं, एक वो जो जिन्दा रहती हैं पर उन्हे जीने का हक नही मिलता, एक वो जिन्दा रहती हैं तो जाने किस दुनिया कि स्वामिनी बन जाती हैं, अब वो किसी और को जीने नही देती, यानि कि यहाँ से फ़िर ह्त्या शुरू हो जाता है, समाज के ऐसे कई दृश्य हैं, जिन्हे देखकर मन विचलित हो जाता कि आखिर बोला जाये तो क्या बोला जाये, किसे समझाया जाये, और कैसे समझाया जाये।
उदाहरण के तौर पर मैं कुछ सच्ची बाते बता रही हुँ जो आये दिनो मेरे पास आती रहती हैं।
1. एक दिन मेरे पास एक महिला का फोन आया, अपनी बेटी-दामाद के सही जीवन के लिये औरा हीलींग कराना चाहती थी, आप कहेंगे वाह यह तो अच्छी बात, पर मैंने अन्त में वो केस लेने से इंकार कर दिया, कारण कि उनकी बेटी, शादी के बाद भी आगे पढ़ना चाहती थी, कुछ करना चाहती थी, इसके लिये उसने पहले ही अपने ससुराल में बात कर ली थी, और तब लोंगो ने कोई आपत्ति नहीं जताई, अब उनको मंजूर नहीं था, लड़की उस घर के लिय खुद के सपनों को मारने को तैयार को नहीं थी, वो एक बीवी, एक बहु, बनने के पहले खुद के पहचान को अपने ढंग से बनाना चाहती थी, इसलिये उसके घर मे हंगामा हो रहा था, जब बात मायके तक गयी तो सबने उसे यही समझाया कि बेट कुछ भी कर लो ना किचेन से छुटकारा मिलेगा न पति से, फ़िर इतना सब हंगामे की जरूरत क्या है? ससुराल में जो लोग बोल रहे हैं उनकी बात मान लो, हर तरफ़ से बेबस होकर उसने अपने आपको मारने से अच्छा अपने रिश्ते को ही खत्म करके आगे बढने का फ़ैसला ले लिया, सबकी नजरों में वो महापापी हो गयी, मेरे पास जब केस आया था तो वो तलाक के लिये पुरी तरह से तैयार थी, माँ नहीं चाहती थी कि तलाक हो, वरना समाज में वो किसी को मुँह दिखाने लायक नहीं बचेंगे। लोग चाहते थे कि मैं बेटी को पिंक औरा से ऊजान्वित करूँ ताकि, वो तलाक ना ले और आगे बढ़ने का सपना ना देखे। मुद्दे की बात यह थी कि जिसने मुझे यह केस रिफ़्फ़र किया था, वो शक्स मुझे हमेशा कहते थे कि "बेटा आप नारी जगत में जरूर कुछ अच्छा करोगे"।
बाद में मैंने उन शक्स से बात की, कि क्या समाज में मैं ही सिर्फ़ अच्छा करूँगी या और लोगो को भी करने देना चाहिये? आप भी भ्रुण हत्या के खिलाफ़ बोलते हैं, पर चन्द पैसे बनाने के लिये मेरे पास ऐसा केस भेज दिया जिससे किसी के सपनो की हत्या हो रही थी, यह क्या भ्रुण हत्या से कम दर्दनाक है? जिसने भी मेरे इस फ़ैसले बारे मे सुना, खरी खोटी सुनाई, कितनो ने तो यह तक बोल दिया कि यह लड़की चाहती ही नहीं कि लडकियाँ खुशी से रहें, कई लोगो ने कहा कि गरिमा कल को वही लडकी तुम्हे कोसेगी.... वगैरह वगैरह।
2. एक अन्य केस मिला था, जिसमें एक महिला जो कि सास हैं, चाहती थी कि उन्हें औरा प्रोजेक्शन सिखलाऊँ, मैं अपनी सुविधा के लिये पुछ लेती हुँ कि आप किस मकसद से इस कोर्स को सीखना चाहते हैं? उन्होंने ने बडे ताव से बतलाया कि वो अपनी बेटे बहुओं पर अपन कन्ट्रोल बनाये रखना चाहती हैं, इसलिये सीखना चाहती हैं, वो चाहती हैं कि उनकी बहु जो कुछ भी करे, अपनी सास के लिये करे, मुझे लगा कि शायद बहु इनको तकलीफ़ देती होगी, पर मामला कुछ और था, बहु ऑफ़िस जाती थी, उसके पहले घर के सारे काम निपटाती, आकर निपटाती, सासु माँ कि वो हरेक सेवा करती, महीने के अन्त में जो तन्ख्वाह लाती बस एक गलती थी कि वो पुरी तनख्वाह अपनी सास को ना देकर थोड़े बचा लेती थी, मुमकिन है वो उन पैसे को अपने व्यक्तिगत खर्च के लिये रखती होगी, पर सासु माँ को ये बरदाश्त नहीं था, उन्हें लगता कि बहु कभी दगा दे जायेगी। इसलिये उसके इस तनख्वाह रूपी पंख को वो काट देना चाहती थी। मुझे लगा कि एक भ्रुण हत्या ये भी है, किसी की सारी मेहनत और उस पर पलने वाले कुछ व्यक्तिगत सपने इनको मार डालो।
3. मेरी एक मित्र जो उम्र मे मुझसे काफ़ी छोटी थी, मेडिटेशन क्लास मे आती, ताकि वो सीख सके, वो हमेशा कहती, दीदी मुझे अपनी कला मे निपुण बना दो ताकि मै भी अपने पैरो पर खडी हो सकुँ, कमोबेश मै उसकी पारिवारिक हालत जानती थी, और मै चाहती भी हुँ, आज हरेक लडकी को अपने पैरो पर खडी हो सके, इसलिये उसे सीखाने मे मुझे कोई आपत्ति नही थी, पिताजी कोलकत्ता पुलिस ऑफ़िसर थे, मुझे तनिक भी अन्दाजा नही था कि समाज के बुराई को साफ़ करने वाले इंसान खुद इतने बुरे हो सकते हैं, एक दिन उनको पता लगा कि उनकी बेटी आम लडकियो से हटकर कुछ अलग कर गुजरने कि क्षमता रखने लगी है तो, उन्होने आकर सबके सामने ही कह डाला, पैरो की जुती कितना भी कर ले, सर का ताज नही बन सकती, और बननी की जरूरत भी नही है.... उस वक्त लडकी ने क्या महसुस किय होगा? क्या यह भ्रुण हत्या से कुछ कम है?
4. इस तरह के और कितने उदाहरण है जो मुझे ये सोचने पर विवश कर देते हैं कि शायद वो भ्रुण हत्या ज्यादा अच्छा है जो गर्भ मे ही कर दिया जाता है, कम से कम तिल तिल कर मरने की नौबत नही आती है, वो माता-पिता जो एक लडकी को सही मायने मे जीवन नही दे सकते, उसे मार देते है, ठीक ही करते हैं, क्योंकि जरूरी नहीं कि लड़की बड़ी होकर सिर्फ़ घर चलाने, शादी करने और बच्चे पैदा करने के ख्वाब देखे, वो उसके अलावा भी कुछ और करने के ख्वाब देख सकती है, वैसी परिस्थिती मे उसे रोज मरना पड़ता है, रोज ही उसके ख्वाबो की, उसके अरमानो की हत्या की जाती है, रोज-रोज मरने से अच्छा है कि एक बार मे ही मार दिया जाये... कहानी खत्म।
मैं बिल्कुल दुसरे दृष्टिकोण से बोल रही हुँ जो वास्तव में गन्दा है, इसका मतलब नहीं बनता कि मैं भ्रुण हत्या के पक्ष में हुँ, आप मेरी भावाना को ठंडे दिमाग से समझेंगे तो पायेंगे कि मैं उसके पक्ष में नहीं हुँ, बल्कि मैं ऐसे हत्या के विपक्ष में हुँ जो तिल-तिलकर जीवन को मार रही है, मर-मर कर जीने पर मजबुर कर रही है, जब जीवन का मतलब साँस लेना, शादी करना, बच्चे पैदा करना इत्यादि ही रह जाता है, जब अपने सपनों को मारने पर विवश होकर जीना पडता है, जब इसे ही अपनी किस्मत समझ कर खुन के ऑसुओं को पीने पर विवश होन पडता है.... मैं इस सिस्टम के खिलाफ़ बोल रही हुँ।
मुझे नहीं पता कि मेरा विचार आपके मुहिम के अनुरूप है या नही, अगर आपको ऐसा लगता है कि मेरा विचार आपके मुहिम को विषय से भटका सकते हैं तो इन्हे ब्लॉग पर ना जोड़े, मुझे तनिक भी आपत्ति नहीं होगी, क्योंकि किसी भी मुहिम के सार्थक होने के लिये विषयानुकुल विचारों से ही आगे कदम बढाया जा सकता है, अन्य बातें भटकाव पैदा कर सकती हैं। धन्यवाद
संपर्क:
Dr. Garima Tiwari (B.A.S.M)
Gold medal in Reiki
Specialized in P.K.M (Power key meditation), Face Reading, Aura Reading, Aura healing, Medtational Healing.
Functional Area-
Treatment- mental problems, memory power, respiratory problems, nerve disorder, heart problem, skin problem.
Healing- Environment, Relationship, Infant.
Boosting- Career opportunities, Luck. Wealth.
http://jeevanurja.blogspot.com
contact no.- +91-9928629114

- Dr. Garima Tiwari (B.A.S.M)


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मुझे जीने दो
मुझे
जीना है
मुझे जीने दो

हे जननी
तुम तो समझो
मुझे दुनिया मे आने तो दो

तुम
जननी हो माँ
केवल एक बार तो
मान लो मेरा भी कहना

नहीं
सह सकती मैं
और बार-बार अब
और नही मर सकती मैं

कोई
तो मुझे
दे दो घर में शरण
रहने दो मुझे अपने चरण में

क्यों
हर बार मुझे
तिरस्कार ही मिलता है?
मेरा आना सबको ही खलता है

हे जनक
मैं तुम्हारा ही तो
बोया हुआ बीज हूँ
नही कोई अनोखी चीज़ हूँ

बोलो
मेरी क्या ग़लती है?
क्यों केवल मुझे ही
तुम्हारी ग़लती की सज़ा मिलती है?

कब तक
आख़िर कब तक
मैं यह सब सहूँगी?
दुनिया में आने को तड़पती रहूंगी?

क्या
माँ का गर्भ ही
है मेरा सदा का ठिकाना?
बस वहीं तक होगा मेरा आना जाना?

क्या
नहीं खोलूँगी मैं
आँख दुनिया में कभी?
क्यों निर्दयी बन गये हैं माँ बाप भी?

कहाँ तक
चलेगी यह दुनिया
बिन बेटी के आने से?
बेटी बन कर मैने क्या पाया जमाने से?

मैं
दिखाऊंगी नई राह
दूँगी नई सोच जमाने को
मुझे दुनिया में आने तो दो

मैं
जीना चाहती हूँ
मुझे जीने दो! मुझे जीने दो!

Seema Sachdev, 7a,3rd cross,Ramanjanaya layout, Marathalli, Bangalore-37 Mob. no.:- 09980847468
e-mail:- ssachd@yahoo.co.in , sachdeva.shubham@yahoo.com


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भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध
भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है व यह मानव जाति के लिए कलंक है। हरेक सफलता के पीछे एक नारी का हाथ होता है और जब हम उस नारी जाति के भ्रूण को जन्म से पहले ही नष्ट कर देते हैं तो इस मनुष्य के लिए इससे बड़ी कलंक की बात और क्या हो सकती है? धिक्कार है उसको जो किसी भी प्रकार से भ्रूण हत्या में लिप्त हैं।
यह कहना किसी भी अर्थ में सही नहीं है कि बेटा या पुत्र से ही उद्धार होता है। आज तो ऐसा कई बार देखा गया है कि पिता जिस पुत्र से आशा रखता है वही पुत्र उसके मृत्यु का कारण भी बनता है। यदि हम आध्यात्म में गहरे तक जाएँ तो हम इस बात को अच्छी तरह से समझ सकते कि मोक्ष या उद्धार ईश्वर प्राप्ति संतान के नर या मादा होने पर कभी भी निर्भर नहीं करता है।
जिस नारी जाति से सारी मनुष्य जाति चाहे वह नर हो या मादा का जन्म होता है, उस नारी जाति के भ्रूण को जन्म से पहले ही नष्ट कर देना मनुष्य के लिए एक घिनौना कार्य ही है।


-- महेश कुमार वर्मा, पटना: दिनांक : २०.०७.२००८


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5 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

anilpandey ने कहा…

शम्भू चौधरी जी ,
आज बडे दिनों से हमें एक ऐसे ही मंच की तलास थी जिस पर हम कम से कम ऐसे मुद्दों पर खुलकर अपनी प्रतिक्रिया दे सकें जो समाज के लिए तो आवश्यक हई स्वयम के विचारों को एक पृष्ठिभूमि दे सकें । वैसे तो हम ब्लॉग भी चला रहे है पर आपका ये प्रयास काफी अच्छा लगा इससे हम से युवाओं को एक नई दिशा मिलेगी । जो आप जैसे व्यक्तित्व ही दे सकते हैं । हम इस मंच पर जरूर ही भाग लेंगे।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma ने कहा…

इस प्रकार के महत्वपूर्ण विषय पर बहस का आयोजन करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद्।

भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है व यह मानव जाति के लिए कलंक है।
हरेक सफलता के पीछे एक नारी का हाथ होता है और जब हम उस नारी जाति के भ्रूण को जन्म से पहले ही नष्ट कर देते हैं तो इस मनुष्य के लिए इससे बड़ी कलंक की बात और क्या हो सकती है? धिक्कार है उसको जो किसी भी प्रकार से भ्रूण हत्या में लिप्त हैं........

devendra kumar mishra ने कहा…

नारी शक्ति

घर की चार दिवारी में भी,
नही सुरक्षित है नारी।
घर के बाहर तो फ़ैली है,
भारी भरकम महामारी।।
घर की चार-----------------

घर में आने से पहले,
विज्ञान का है अभिशाप ।
कोख में कन्या होने पर,
गर्भपात कराते माँ-बाप ।।
आने से पहले हो जाती,
जाने की तैयारी ।
घर की चार-----------------

बेटा की चाह,
यह नोबत लाती है ।
पत्नी के होते,
शादी रचाई जाती है ।।
रूढिवादिता के चलते,
जनसंख्या में वृध्दी है जारी ।
घर की चार-----------------

बेटी पैदा होने से,
सन्नाटा छा जाता है ।
माँ-बाप कुटुम्ब कबीले में
भूचाल सा आ जाता है ।।
नन्ही जान ने,
नही देखी दुनियाँदारी ।
घर की चार-----------------

बेटा-बेटी का अन्तर,
स्पष्ट नजर जब आता है ।
बेटा को कुल का "दीपक"
बेटी को पराया जाना जाता है ।।
शिक्षा, रहन-सहन में,
नारी का शोषण है भारी ।
घर की चार-----------------

अभी समय है सावधान !
1-2 बच्चे परिवार में शान ।
बेटा हो या बेटी,
मानो ईश्वर का "वरदान" ।।
आने बाला भबिष्य,
है प्रलयकारी ।
घर की चार-----------------

नारी शक्ति है, अबला नही,
करो इस का सम्मान ।
सुनीता, इंदिरा जी,पर
देश को है अभिमान ।।
नर-नारी के अनुपात में,
गिरावट से लाचारी ।
घर की चार-----------------
देवेन्द्र कुमार मिश्रा
अमानगंज मोहल्ला नेहरु बार्ड न0 13
छतरपुर (म0प्र0)
devchp@gmail.com
devchp@yahoo.co.in

आशा जोगळेकर ने कहा…

Badi sarthaak aur samaynukool charcha chalai hai aapne

The Memory Guru of India ने कहा…

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