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रविवार, 15 नवंबर 2015

दीपावली की शुभकामना -शंभु चौधरी

एक ‘रावण’ को मरते ही एक साथ कई और ‘रावण’ पैदा हो जाते हैं। ‘भारत माता’ को इस ‘रावण रूपी राक्षक’ ने हर तरफ से बंधक बना लिया है। पूरी कानून व्यवस्था, सिस्टम इसके अधीन कार्य करने लगी है। संविधान को अपनी सुविधानुसार इन लोगों ने व्याख्यित किया है। हर तरफ लूटतंत्र को सही ठहराया जा रहा है। इस लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र का उद्योग फलफूल रहा है। इसके समर्थन में कुछ अर्थशास्त्री लूटतंत्र की व्यवस्था के पक्षधर भी हैं। ये तथाकथित अर्थशास्त्री लूटतंत्र आर्थिक ढांचे पर अपनी रटी-रटाई थेसिस सुना कर देश में आर्थिक आतंक फैलाने में लगे हैं।

रामायण में राम, सीता, लक्ष्मण की कई कथाओं का वर्णन हमें पढ़ने को मिलता है। राम के वनवास से लेकर रावण के अंत तक कई कथाओं में राम के सूक्ष्म से सूक्ष्म प्रायः प्रत्येक घटनाओं का विधिवत उसके मूल स्वरूप में हमें पढ़ने को मिलता है। भगवान राम को सभी घटनाओं में एक पवित्र पात्र के रूप में दिखाया गया है। राम के 14 साल बनवास में इनके ईर्द-गिर्द घूमती सभी घटनाओं में ‘सीता माता’ का ही जिक्र है। ‘सीता माता’ को यदि ‘रामायण’ से अलग कर दिया जाए तो ‘राम’ के चरित्र को ना सिर्फ उभारना उसे लिखना भी असंभव है।‘राम’ एक क्रिया है जिसे क्रियान्वित किया जाना है। ‘सीता’ एक घटना है जिसके कारण क्रिया को संपादित किया जाना है। हम यदि सोचते हैं कि सिर्फ ‘राम’ के आ जाने से रावण का अंत हो जायेगा, जो असंभव है। ‘राम’ के साथ हमें उस पात्र को भी खोजना होगा जिसके बहाने ‘रावण’ को मारा जाना है। अन्यथा सिर्फ ‘राम’ से पूरी व्यवस्था नहीं बदली जा सकती।
आज भारत की पूरी क्रिया प्रणाली ‘रावण’ के गिरफ़्त हो चुकी है। इस रावण को मारने के लिये बंदर सेना की फौज तैयार होती जा रही है। एक ‘रावण’ को मरते ही एक साथ कई और ‘रावण’ पैदा हो जाते हैं। ‘भारत माता’ को इस ‘रावण रूपी राक्षक’ ने हर तरफ से बंधक बना लिया है। पूरी कानून व्यवस्था, सिस्टम इसके अधीन कार्य करने लगी है। संविधान को अपनी सुविधानुसार इन लोगों ने व्याख्यित किया है। हर तरफ लूटतंत्र को सही ठहराया जा रहा है। इस लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र का उद्योग फलफूल रहा है। इसके समर्थन में कुछ अर्थशास्त्री लूटतंत्र की व्यवस्था के पक्षधर भी हैं। ये तथाकथित अर्थशास्त्री लूटतंत्र आर्थिक ढांचे पर अपनी रटी-रटाई थेसिस सुना कर देश में आर्थिक आतंक फैलाने में लगे हैं। उनसे एक छोटा सा सवाल है कि

1. ‘‘ जो किसान जमीन में सोना पैदा करता है- वह आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो जाता है? क्यों नहीं कोई उद्योगपति अथवा व्यापारी अपने व्यापार घाटे के चलते आत्महत्या करता है?’’
2. ‘‘जो मज़दूर दिन-रात कल कारखानों में या सड़कों पर मजदूरी करके अपने परिवार/बच्चों को भरण-पोषण करते हैं, किसी प्रकार अपनी जीविका चलाने के लिये मजबूर हैं, इनके पास उपयुक्त संसाधन की सुविधा, बच्चों की शिक्षा, उचित चिकित्सा क्यों नहीं है? जबकि ये सभी सुविधा, संसाधन उपलब्ध है।’’ क्या अर्थव्यवस्था का सही पैमाना इसी को ही कहते हैं?
3. जो छात्र अपनी मेहनत से विदेशी मुद्रा अर्जित कर भारत में जमा करते हैं उनके इस धन का इस्तेमाल देश को लूटने वाले लोगों की सुख-सुविधा के लिये क्यों किया जा रहा है?
4. भारतीय उद्योग जगत का भारत के प्रति क्या जिम्मेवारी बनती है? सिवा इसके की वे सरकार को लूट का एक हिस्सा देकर खुद का एंपायर स्टेट खड़ा करने के अलावा क्या करते रहें ?
5. मैं धन के एकतित्रकरण या पूंजीकरण के विरूद्ध नहीं हूँ। पूंजीकरण समृद्ध अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। परन्तु इसमें किसानों की मज़दूरों की समान हिस्सेदारी तय करने की जरूरत है। जिससे हम उन्हें दैनिक आधार भूत सुविधायें भी प्रदान कर सकें। भारत में कुछ कंपनियां इस जिम्मेदारी को आज भी निभा रही है जबकि देश की 99प्रतिशत कंपनियों मुनाफे को अपना माल समझती है।
मित्रों !
ये कुछ सवाल है जिसे हमें इन्हीं लोगों के बीच से तलाशना होगा। जिसे ये लोग नक्सलवादी कहते हैं वे नक्सलवादी सिर्फ वे इस लिये नहीं बने कि उन लोगों ने हथियार उठा लिया है। शहरी व्यवस्था ने उनके घरों को लूटने का कार्य किया है। यह बात उस सच की हक़ीकत है। हमारे आलीशान भवनों की दीवारों पर लाखों की पैंटींग इस बात का बयान करती है। हमारी इसी मानसिकता ने पूरी व्यवस्था को जकड़ लिया है। जबकि देश की 88 प्रतिशत आबादी का जनजीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है। अर्थशस्त्रियों के अलमिरों में सजी किताबों से सिर्फ धन की 'बू' आती है। कोई अंबानी बना हुआ है कोई गडकरी। कोई मनमोहन बन कर लूटरों को साथ दे रहा है तो कोई मोदी बनकर इस व्यवस्था को सरे आम निलाम कर रहा है। ये सबके सब ‘रावण’ का भेष धारण कर चुके हैं। सीता मईया तो इनके कैद में बंद है। जो कंद-मूल खाकर किसी प्रकार अपना जीवन गुजार ही है। इनके चुंगल से ‘भारत माता’ को छुड़ाना सिर्फ राम की जिम्मेदारी नहीं, हम सबको राम बनना होगा। किसी को हनुमान, किसी को विभीषण बनना होगा। कोई लक्ष्मण बने, कोई भरत के रूप में साथ दे।
जयहिन्द। 15.11.2015