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रविवार, 16 जून 2013

यह कैसा सिद्धान्त नीतीश जी? -शम्भु चौधरी

माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को यह तो बताना ही होगा कि वह कौन सा सिद्धान्त है जिसको आधार बनाकर आपने बिहार की जनता के विश्वास के साथ धोखाबाजी की। जिसमें पिछले सप्ताह से बिहार की जनता को उनके बयानों से जो दिखाई दे रहा उसमें मात्र एक कारण श्री नरेन्द्र मादी के नाम को लेकर है। तो उनको यह बताना और जबाब भी देना होगा कि नरेन्द्र मादी न तो उनके दल के प्रचारक नेता बनाये गए ना ही एनडीए के प्रचारक बने तो उनको इस बात को लेकर इतना बबाला और भविष्य में क्या होगा इसकी अभी से ही चिन्ता क्यों सताने लगी? क्या वे खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मिदवार मानते थे?
आज भाजपा व जेडीयू का 17 साल पुराना गठबंधन कई लोगों के ना चाहते हुऐ भी बिहार के मुख्यमंत्री श्री नीतीश कुमार के अहम का बली का बकरा बन गया। यह बात अलग है कि आने वाले चुनाव में इस अहंकारी व्यक्ति का हर्ष ठीक लालू यादव जैसी ही होनी तय है। आपने इस गठबंधन को भाजपा के नेताओं के लाख मनाने के वाबजूद व एनडीए अध्यक्ष श्री शरद यादव के ना चाहते हुए भी अहंकारी जिद ठान ली कि इसके लिए भला उनको कुछ भी करना पड़े वे एनडीए के गठबंधन में नहीं बने रह सकते। जिसका कारण नीतीशजी ने कहा कि ‘‘ हम किसी भी हालात में अपने सिद्धान्तों से समझौता नहीं करेगें’’ माननीय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जी को यह तो बताना ही होगा कि वह कौन सा सिद्धान्त है जिसको आधार बनाकर आपने बिहार की जनता के विश्वास के साथ धोखाबाजी की। जिसमें पिछले सप्ताह से बिहार की जनता को उनके बयानों से जो दिखाई दे रहा उसमें मात्र एक कारण श्री नरेन्द्र मोदी के नाम को लेकर है। तो उनको यह बताना और जबाब भी देना होगा कि नरेन्द्र मोदी न तो उनके दल के प्रचारक नेता बनाये गए ना ही एनडीए के प्रचारक बने तो उनको इस बात को लेकर इतना बबाला और भविष्य में क्या होगा इसकी अभी से ही चिन्ता क्यों सताने लगी? क्या वे खुद को प्रधानमंत्री पद का उम्मिदवार मानते थे? यदि श्री नीतीश जी का यही सिद्धान्त है तो उनको नैतिकता के आधार पर बिहार में एनडीए को प्राप्त बहुमत की गद्दी भी छोड़ देनी चाहिए और बिहार की जनता के सामने जाकर कहना चाहिए कि वे सिद्धान्तों के साथ समझौता नहीं कर सकते। सिर्फ नरेन्द्र मोदी का विरोध करने से वे मुसलमनों के चेहते बन सकते हैं और सिर्फ मुसलमानों के चहते बनकर सत्ता प्राप्त किया जा सकता या प्रधानमंत्री का सपना पूरा किया जा सकता तो इसमें लालू यादव को अबतक मुसलमानों ने प्रधानमंत्री बना दिया होता। चुकिं हम सभी इस बात को जानते हैं कि श्री अडवानी जी की एतिहासिक सांप्रदायिक यात्रा को रोकने का साहस सिर्फ लालू जी ने ही दिखाया था उस समय आप श्री अडवाणी जी के साथ खड़े दिखाई देते रहे। धर्मनिरपेक्षता का सिद्धान्त आपकी राजनीति चाल भले ही हो सकती है आपके इस सिद्धान्त से कोई सहमत दिखाई नहीं देता। आप इतने ही धर्मनिरपेक्ष थे तो भाजपा के साथ आपने गठबंधन ही क्यों किया था? आज जब आपकी दाल नहीं गली तो अंगूर खट्टे नजर आने लगे श्रीमान को।

मंगलवार, 11 जून 2013

आडवाणी जी का इस्तीफा नाटक

देश को दो बार संप्रदायिकता की आग में झौंकने वाले भाजपा के कदवार नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी जी ने आखिरकार मानमनुवल के पश्चात अपना इस्तीफा वापस ले ही लिया। इस इस्तीफा वापसी के पीछे भी इस अति महत्वकांक्षी व्यक्ति की सौदावाजी को नकारा नहीं किया जा सकता। जिस प्रकार इन्होंने श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को बाध्य किया था कि वे लिखकर देंवे कि देश का अगला ‘‘पी.एम इन वेटिंग’’ आडवाणी जी ही होंगे। कई सालों तक वे अपने नाम के साथ इस तगमे को लगाये जनता के सामने फिरते रहे कि ‘‘अगला प्रधानमंत्री मैं ही हूँ’’। जब देश की जनता ने इनके इस कद को दो बार सिरे से नकार दिया और पूरी की पूरी गठबंधन दल मिलकर भी माननीय आडवाणी जी को प्रधानमंत्री के पद तक नहीं पंहुचा पाई। आज इस भाजपा के लिबरल चेहरे को लगता है कि उनका ‘‘पी.एम इन वेटिंग’’ का सपना अधुरा ही रह जाएगा। इस बीच जब भाजपा में नये चेहरे उभरकर खुद-व-खुद सामने आयें हैं तो आडवाणी जी को लग रहा कि उनके पी.एम. पद को कोई दूसरा व्यक्ति जो उनके कद से छोटा है हड़पने जा रहा है। जिसके लिये उन्होंने जिन्ना की मजार पर भी मन्नतें मांगी थी और उनको धर्मनिरपेक्ष व्यक्ति के सम्मान से नबाजा था। मानो एक सांप्रदायिक व्यक्ति दूसरे सांप्रदायिक व्यक्ति को प्रमाण पत्र दे रहा हो। वर्तमान में हुए इस्तीफा नाटक ‘‘खिसयानी बिल्ली खंभा नोचे’’ मुहावरा को सत्य साबित कर देने में सक्षम हो गया। इस इस्तीफा प्रकरण से आडवाणी के कई इरादे को स्पष्ट रूप से पढ़ा जा सकता है जैसा कि इन्होंने अपने पत्र में भाजपा पर यह आरोप लगाया कि ‘‘पार्टी अपने मूल सिद्धांतों से भटक गई है। इसमें व्यक्ति विशेष का महत्व बढ़ता जा रहा है। लगता नहीं कि यह श्यामा प्रसाद मुखर्जी, पं. दीनदयाल उपाध्याय और अटल बिहारी वाजपेयी के आदर्शों पर चलने वाली पार्टी है।’’ इनका स्पष्ट संकेत है कि भाजपा में इनके कद को कोई भी व्यक्ति छोटा करने का प्रयास किया तो वे पार्टी लाईन से हटकर एक नई पार्टी तक बनाने की बात भी सोच सकते थे। श्री राजनाथ सिंह जी खैर मनायें कि उनका ( आडवाणी जी का ) तीसरा धमाका बीच में ही रूक गया अन्यथा भाजपा नेताओं को सत्ता के सपने देखने का अवसर भी नहीं देते अडवाणी जी। इस त्यागपत्र प्रकरण से किसे लाभ होगा किसे नहीं यह तो आने वाला 2014 का लोकसभा चुनाव ही बता पायेगा कि जनता ने इस प्रकरण को किस प्रकार लिया है। हाँ! एक बात जरूर है कि इससे श्री आडवाणी जी का कद बहुत छोटा हो गया। आज देशभर से आवज उठ रही है कि ‘‘नरेन्द्र मोदी को आगे लाया जाए - कांग्रेस को हटाया जाए’’ एनडीए के कुछ दलों का यह अहंकार कि यदि मोदीजी को भाजपा ने प्रजोक्ट किया तो वे दल को छोड़ देगें । वे होते कौन हैं मोदीजी को हटाने वाले? यदि देश की जनता मोदीजी को लाना चाहती है तो मोदी जी को कोई नहीं रोक सकता। गठबंधन जनता की आवाज के साथ रहना चाहे तो रहे। जाना चाहते हों तो कल क्यों आज ही छोड़कर जा सकतें हैं। धर्मनिरपेक्षता की कतार में खड़े होकर अपना दामन भी साफ कर लेवें। यही मौका है उनको धर्मनिपेक्षता का प्रमाणपत्र प्राप्त करने का। मुसलमानों के वोटों को बटोरने का।