मेरी पहली राजस्थानी कविता जिसे 4 मार्च 1987 को लिखी थी। यहाँ प्रकाशित कर रहा हूँ।
कोई गलती हो तो जानकारी देने की कृपा करेगें। - शम्भु चौधरी
कठे से थे आया रे, कठे थे जाओ रे,
एक बार देखने म्हाने भी आओ रे।
शेखावटी री हेल्यां, जोधपुर री छांव रे,
जयपुर री माया, बालू री टींला पर,
पानी भी न पायो रे।
कठे से थे आया रे, कठे थे जाओ रे,
एक बार देखने म्हाने भी आओ रे।
केरीयों रे खेत, सांगरी बचाओ रे,
फाँफरो रे देश, बाजरो भी रोयो रे,
थे तो म्हाने भूल गया,
म्हैं कईयाँ भूलाँ रे।
कठे से आया रे, कठे थे जाओ रे,
एक बार देखने म्हाने भी आओ रे।
रूँधती आवाज सूँ, आँसू कोनी गिरा,
वेश भुलाय, देस भुलाय,
भाषा कईंयाँ भुलाय रे...
थे तो म्हानै भूल गया
म्हैं कईयाँ भूलाँ रे
आपणो छोड़ थे,
परदेश कईयाँ बसायो रे,
छोड़-छोड़-छोड़ - एक दिन आओ रे।
कठे से थे आया रे, कठे थे जाओ रे,
एक बार देखने म्हाने भी आओ रे।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106
रविवार, 8 जून 2008
राजस्थानी कविता: म्हानै कईयाँ भूल्या रे!
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 10:04 pm
Labels: शम्भु चौधरी
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4 विचार मंच:
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म्हारी आन्ख्याँ म तो आंसुडा आग्या जी.
भौत ही चोखो लाग्यो थारो यो गीत.
i veri enjoy it
राजस्थानी गीत , राजस्थानी भीत और राजस्थानी शीत ,म्हाने भी बहुत याद आवे , जब असी कविता पढ़ने कु मिल जावे .
धन्यवाद इस कविता के लिए --
- विजय सिह मीणा , सहायक निदेशक (राजभाषा ), नई दिल्ली
मो 09968814674
bahut sundar likha hai, isi tarah likhate rahe. Mere blog SANTAM SUKHAYA me bhi Rajasathani kavitaye hai. padhe aur apna comments likhe.