जीवन में मनुष्य के पास एक अनमोल खजाना है, जिसे हम शब्दों का भंडार भी कह सकते हैं। संसार की किसी भी भाषा को हम लें , साहित्य से ही उस समाज की संस्कृ्ति - समृद्धी का पता चलता है। साहित्य बिन भाषा नहीं लिखी जा सकती। भाषा का आधार भले ही किसी भी लिपि में क्यों न हो, उसमें भरे हुए शब्दों का भंडार ही उस समाज की संस्कृति को बचाये रखने में समर्थ हो सकती है। अन्यथा मनुष्य जीवन पशु समान हो जाता, या पशु जीवन यापन करता। हम कभी-कभी इन शब्दों के कारण कई जगह हार जाते हैं , सम्मान भी पाते हैं। परिवार में कई बार आपसी कलह भी देखने को मिलते हैं। परिवार टूटते और बिखर जाते हैं।
माता-पिता कुंठित हो जाते हैं, पति-पत्नी के जीवन में कलह भर जाता है, दो प्रेमियों में विवाह तो कहिं तलाक हो जाता है। सास-बहु की तकरार में न जाने कितनी बहुओं ने अपने जीवन को स्वाह कर दिया । जीवन का उतार-चढ़ाव, कटुता, व्यंग्य, हास्य, प्रेम-पश्चात्ताप, युद्ध-शान्ति ये सभी शब्दों के साथ बनते और बिगड़ते हैं। हम जब महाभारत में 'कामधेनु' विनोद व्यंग्य की कथा याद करते है तो इसका परिणाम पार्वती को "द्रोपदी" के रूप में पाँच भाइयों की पत्नी बनकर पश्चाताप करना पडा़ था, पुनः द्रोपदी के कटाक्ष " अन्धा का बैटा अंधा" कहने का परिणाम भी भरी सभा में भुगतना पड़ा था। हम यह मान लेते हैं कि हम जो कुछ कहते हैं वह सही है, या वे ही सही है, या उतना ही सही है - यह सोचना सामने वाला आपकी बात को किस तरह या किस रूप में ग्रहण करता है, पर ही निर्णय लिया जा सकता है कि आपकी बात किस हद तक सही है और सही है भी कि नहीं।
कलिंग युद्ध में अशोक का हृदय परिवर्तन, सिकन्दर और पोरस की लडा़ई, हिटलर का प्रेम विवाह एवं सुहागरात के रात्री ही जीवन की समाप्ती, सिद्धार्थ का बुद्ध बनना, रावण द्वारा सीता का हरण, विभेषण द्वारा रावण को समझाना एवं लंका का त्याग, द्रोपदी का चीरहरण, महाभारत में 'अश्वातामा मारो गयो' , कर्ण की दानवीरता, राजा हरिश्चन्द्र का त्याग, एकलव्य की गुरू दक्षिणा, ईसा का सूली पर चढ़ना, अथवा जितने भी प्रकार के धार्मिक ग्रन्थ भले ही किसी भी धर्म के हों ये सभी शब्दों के अनुमोल भंडार से भरा हुआ हैं, एक-एक शब्दों के आज भी कई-कई माने निकाले जार रहें हैं, उपरोक्त सभी घटनायें या ऎसी ओर भी घटनायें शब्दों से पटा पड़ा है। जिसे ज्ञान का सागर नहीं समुद्र कहा जा सकता है। आपकी इच्छा शक्ति इस बात पर निर्भर करती है कि आप इस सागर से कितना कुछ ले पाते हैं। आज के युग में तो यह ओर भी आसान हो गया है, शब्द जानने की जरूरत भर ही आपको उस शब्द से जूड़ी तमाम जानकारी खुद-व-खुद आपके सामने एकत्र हो जाती है। बस हमें सोचने भर की देर है। परन्तु इस ज्ञान का प्रयोग जब हम अपने स्वार्थ के लिये करने में लग जाते हैं तो शब्दों का अर्थ बदल जाता है। एक किसान के शब्दों में जो स्वच्छता झलकती है, वहीं शिक्षित व्यक्ति के स शब्दों में स्वच्छता हमें खोजनी पड़ती है। एक बच्चे का तू-तू और हमलोगों द्वारा किया गया तू-तू में अन्तर शब्दों का नहीं , परन्तु बच्चे के शब्दों में जो स्नेह झलकता है वहीं हमलोगों के शब्दों में विवाद को जन्म देने की बात सामने आती है। हमालोगों के जीवन में भी कई ऎसे क्षण आते हैं हम किसी बात पर अति भावुक हो जाते तो वहीं किसी अन्य बात पर हँसने या रोने लगते हैं यह क्रिया शब्द के प्रभाव को हमारे जीवन में दर्शाती हैं। इसके लिये हमें इस बात का ज्ञान होना जरूरी हो जाता है कि हम उस शब्द को ग्रहण कर पा रहें हैं कि नहीं। उदाहरण के तौर पर एक बंगलाभाषी किसी बात को ग्रहण कर हँसने लगता हो, तो वहीं खड़ा एक अंग्रेज यह सोच में पड़ जाता है कि वह व्यक्ति आखिर किस बात पर हँसा।
वैज्ञानिक तौर पर हम इसे निम्न श्रेणी में विभक्त कर सकते हैं।
1. स्वयं पर : जब किसी घटना का वृतांत आप दूसरे को सुनाते हैं, तो आप स्वयं भी भावुक हो जाते हैं।
2. अन्य पर : जब कोई अन्य आपको कोई घटना का वृतांत सुना रहा होता तो , उसके सामने आप भावुक होने का दृश्य पैदा तो करते है परन्तु मन में संतोष जाहिर करते हैं, कि जो हुआ अच्छा हुआ। जबकि सामने वाला आपके सहानुभूती से प्रभावित हो रोने लगता है।
3.अपने और दुश्मन की बात पर एक तरफ़ हम रोने लगते तो दूसरी तरफ खुशी का इजहार करते हैं।
4.खेल के मैदान में हार-जीत पर भी अस तरह की प्रतिक्रिया हमें देखने को मिलती है।
5.कई बार एक बात को सुनकर भी हम गम सह लेते हैं और समारोह में या परिवार के बीच उस घटना को मामूली मान कर हँसने का नाटक करते हैं, परन्तु एकांत में जाते ही फूट-फूटकर रोने लगते हैं।
इस तरह की कई क्रियाओं का अलग-अलग अध्ययन किया जा सकता है। जिससे हमें जीवन के महत्वपूर्ण गूढ़ तत्व प्राप्त हो सकते हैं। - शम्भु चौधरी [09-06-2008]
सोमवार, 9 जून 2008
शब्दों का अध्ययन
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:31 am
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
2 विचार मंच:
हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा
आपका यह आलेख बहुत अच्छा लगा। इनका प्रभाव मुझ पर इतना पड़ा कि मेरे मन में यह कविता लिखने का भाव आया
दीपक भारतदीप
..................
हर शब्द अपना अर्थ लेकर ही
जुबान से बाहर आता है
जो मनभावन हो तो
वक्ता बनता श्रोताओं का चहेता
नहीं तो खलनायक कहलाता है
संस्कृत हो या हिंदी
या हो अंग्रेजी
भाव से शब्द पहचाना जाता है
ताव से अभद्र हो जाता है
बोलते तो सभी है
तोल कर बोलें ऐसे लोगों की कमी है
डंडा लेकर सिर पर खड़ा हो
दाम लेकर खरीदने पर अड़ा हो
ऐसे सभी लोग साहब शब्द से पुकारे जाते हैं
पर जो मजदूरी मांगें
चाकरी कर हो जायें जिनकी लाचार टांगें
‘अबे’ कर बुलाये जाते हैं
वातानुकूलित कमरों में बैठे तो हो जायें ‘सर‘
बहाता है जो पसीना उसका नहीं किसी पर असर
साहब के कटू शब्द करते हैं शासन
जो मजदूर प्यार से बोले
बैठने को भी नहीं देते लोग उसे आसन
शब्द का मोल समझे जों
बोलने वाले की औकात की औकात देखकर
उनके समझ में सच्चा अर्थ कभी नहीं आता है
शब्द फिर भी अपनी अस्मिता नहीं खोते
चाहे जहां लिखें और बोले जायें
अपने अर्थ के साथ ही आते हैं
जुबान से बोलने के बाद वापस नहीं आते
पर सुनने और पढ़ने वाले
उस समय चाहे जैसा समझें
समय के अनुसार उनके अर्थ सबके सामने आते हैं
ओ! बिना सोचे समझे बोलने और समझने वालों
शब्द ही हैं यहां अमर
बोलने और लिखने वाले
सुनने और पढ़ने वाले मिट जाते हैं
पर शब्द अपने सच्चे अर्थों के साथ
हमेशा हवाओं में लहराते हैं
............................
बढ़िया आलेख.