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शनिवार, 7 जून 2008

निर्निड़

माँग रहा रोटी टूकडा़, करके अनशन आज।
कई दिनों से भूखा-प्यासा,
भटक रहा तेरे दर पर
पग-पग, डग-डग को सेहजा,
दाने-दाने -- चुग-चुग कर
बचपन को पाला-पोसा।
खुद भूखा रह भूख मिटाई थी
आज बडा़ हो, बड़ा निष्ठुर हो चुका
कितनी आस लगाई थी।
घर में रोटी-पानी होगी
आंगन में धूप सुहानी होगी,
बच्चों से चहकेगा आंगन,
मन में कई कहानी होगी।
पर तरस गया....
टुकड़े-टुकड़े को,
भूखा-प्यासा, तिल-तिल को,
आँखें धंस गई, आंत अकड़ गई,
गाल दुबक गये,
पाँव कांप गये,
कम्बल, चादर, पलंग चटक गये,
सूख गये आँसू नाद।
अपने घर हुआ निर्निड़;
माँग रहा रोटी टुकड़ा, करके अनशन आज।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106

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