विधवा! विधवा न कहलाना,
तेरे माथे का सुहाग
अमर-अमिट हो लहरायेगा;
फूल खिलेगें उस धरती पर
जहाँ हमने शीश कटाया है।
रणभूमि हो या जन्मभूमि
बलिदान उसी का लेती है,
जो शीश कटाने जाते हैं,
माँ शीश उसी का लेती है।
तेरी ममता, तेरी छाया,
तेरे आँचल का श्रृंगार,
घर-घर में अब याद करेगा
सारा हिन्दुस्तान।
विधवा! विधवा न कहलाना,
तेरे माथे का सुहाग
अमर-अमिट हो लहरायेगा;
फूल खिलेगें उस धरती पर
जहाँ हमने शीश कटाया है। [karagil]
-शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453/2, साल्टलेक सिटी, कोलकाता - 700106
सोमवार, 9 जून 2008
कारगिल
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 11:19 pm
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
0 विचार मंच:
हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा