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सोमवार, 27 जून 2011

व्यंग्यः ओटने लगे कपास..- शम्भु चौधरी



भारत में राजनीति के श्रीगणेश ही होवेतानी भ्रष्टाचार से और अन्ना कहतबानी की राजनीति में जै लोगण बाड़े उनको पहले लोकपाल के दायरे में लावा। भईया ईंइ..कैसे होई? आइरे बाबा! फिर तो अनर्थ हो जाई..। लोकसभा और विधानसभा में अल्पमत के सरकार पर तो बड़ा जूर्म न हो जाई.. सोचन तानी कि हमनी के दिमाग का फितुर सोचन में लाग ग्यैल। सरकार जै भ्रष्टाचार के बात करतानी जनता से तो उकरो कोने ताल मेल नैईखे। अब तुहू लो पढ़ कि सरकार जन लोकपाल बिल के बीलवा में कै-कै सजाए मौत दे रहल है बा और काके-काके सजाए जाम। एक दो पेग हमनियों को भेज देते घुस में तो हमरी कलमवा भी मस्त होकर बाबा रामदेव, अन्ना हजारे, अरविन्द केजरीवाल और किरण बेदी के जम के लताड़ देत। साली दारू पिये बिना चलबे नहीं करत। अब जै दारू सप्लाई करै सके सै कै गुनगान तो होके ही चाही न। एईमें भ्रष्टाचार के कौन बात बा। बाबा रामदेव कै ही देखो अब बोली के धार बदल देन बानी। सोचन लागल कि एई..ई का जूल्म करदेलम कि सरकावा के कुत्तण उक..रे..पण ही भौंखन लागले। दो-चार रोटी फैकन ही पड़ी नहीं तो चुप कराये बड़ा मुश्किल हो ग्यैल। हमनी के एक कहानी सुनाये के बड़ी देर से मनवा झटपटा रहैल सुनो-
दो चोर को पकड़ कर सिपाही राजा के पास ले गये। राजा ने दांेनो से सवाल किया तुमने चोरी क्यों की। एक ने कहा- ‘‘हजूर मैंने नहीं इसने की है।’’ दूसरे ने कहा- ‘‘नहीं हजूर इसने ही की है ये झूठ बोल रहा है।’’ राजा ने सिपाही से पूछा- ‘‘तुम बताओ कि इस दोनों में से किसने चोरी की है?’’ सिपाही ने जबाब दिया कि हमको तो उस व्यापारी ने कहा कि ये दोनों चोर है सो पकड़ लिया और आपके सामने पेश कर दिया। राजा ने चोर से दोबारा प्रश्न किया क्या यह सिपाही सच बोल रहा है? पहले वाले चोर ने कहा - नहीं जहांपनाह इसने व्यापारी से रिश्वत ली है मैंने देखा है अपनी आंखों से। दूसरे ने भी तुरन्त अपने दोस्त की बात में हाँ में हाँ मिला दी। राजा ने उस व्यापारी को बुला भेजा। व्यापारी भागता-भगता दरबार में हाजीर हुआ। राजा ने उससे सवाल किया कि तुमने क्या सिपाही को रिश्वत दी थी चोर को पकड़ने के लिए? व्यापारी मन ही मन सोचा कि राजा को सबकुछ सच-सच बता देगा उसे ही मौत की सजा हो जायेगी। सो उसने बड़ी चतुराई से जबाब पेश किया कि ये दोनों चोर रात को मेरे घर में घुस आये थे। मैं और मेरी पत्नी ने मिलकर दोनों चोर को पकड़ सिपाही के हवाले कर दिया। राजा ने उनकी पत्नी को भी दरबार में हाजिर होने का फरमान जारी कर दिया। इधर दोंनो चोर और सिपाही एक हो गये सिपाही को लगा कि कहिं उसकी ही पोल न खुल जाए सो खुद बचाव की मुद्रा में आ गया। इस अवसर पर उसे चोर का साथ लेना जरूरी हो गया। तीनों ने मिलकर यह योजना बनाई कि किसी प्रकार साहुकार को ही झूठे आरोप में फंसा दिया जाए तो तीनों राजा की नजर से बच जायेगें। पत्नी के आते ही व्यापारी से रात की घटना राजा को बताने को कही। पत्नी ने व्यापार से बोली थारो दिमाग पगला ग्यो कै? रात न तो किमी कोनी होयो। तब राजा ने पूछा कि ये सिपाही तब इन दोनों का किधर से पकड़ा। पत्नी ने पलटते ही जबाब दिया - ‘‘म्हाने कै पतो’’ म तो सोई’री थी। राजा ने दोनों चोर के छोड़ किया। सिपाही को हिदायत दी की आगे से चोर पकड़ने से पहले इस बात की जाँच-पड़ताल कर लें कि वह सच में ही चोर है। व्यापारी को झूठ-मूठ सरकारी कर्मचारियों को परेशान करने के जूर्म में 5 कोड़े की सजा सुना दी। भाई इस लोकपाल बिल में भी कुछ ऐसे ही प्रावधान बना दिये गये हैं कि अपराधी को पकड़ाने वाला शत-प्रतिशत झूठे मुकद्दमें से बरी हो जायेगें और सरकारी खर्च पर उस नेक इंसान को कोर्ट के चक्कर जिन्दगी भर लगाने पड़ेगें। गए थे राम भजन को ओटने लगे कपास.... इसे कहते हैं मति.मति का फेर। अब थे ही सोचे ईसा बिल ने लाकर थे कुण सो अक्लमंदी को काम करोगा। अन्ना हजारे की तो मती खराब होगी। सागे-सागे देश की भी। भया भ्रष्टाचार खतम करने के लिए भ्रष्ट सरकार से उम्मीद करक ही पगलामी कर रहा हो।
अगला व्यंग्य लेख "भ्रष्टाचार की आड़ में सांप्रदायिकता ण बढ़ाव दे रहा है अन्ना जी।"

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