कोलकाता-20जून,2011: कांग्रेस पार्टी की लोकपाल बिल को लेकर नई व्यूह रचना की तैयारी जोरों से चल रही है। अर्थात योजनानुसार कार्य को इंजाम देना।
लोकपाल चक्रव्यूह क्या है-
1. कांग्रेस पार्टी देश में चारों तरफ सहयोगी मीडिया व समाचार संपादकों के माध्यम से इस बात को प्रचारित करेगी कि सिविल सोसाइटी के सदस्य तानाशाही रवैया अपना रहे हैं। उनकी सभी मांगे नहीं मानी जा सकती।
2. सभी विपक्षी पार्टी को भी भयभीत करना ताकी सिविल सोसाइटी के अड़ियल रूख को नजरअंदाज किया जा सके।
3. चुने हुए सदस्यों की परिभाषा के सामने में रखते हुए तमाम चुने हुए सदस्यों का एक अलग समूह का निर्माण करना। अर्थात सभी सांसद दलगत राजनीति से ऊपर उठकर कांग्रेस पार्टी का साथ दें यानी कि ‘‘चोर-चोर मौसेरे भाई’’ का नारा देकर सिविल सोसाइटी को अलग-थलग करना।
4. सिविल सोसाइटी से दो-दो हाथ करना।
अब इसी क्रम में सरकार ने हमला बोल की राजनीति शुरू करते हुए देश के तमाम बड़े समाचार समूह को प्रलोभन दिया जा चुका है। कि ये लोग सरकारी बात को महत्व प्रदान कर सिविल सोसाइटी सदस्यों को भिलन के तौर पर जनता के समक्ष प्रस्तुत करें। माननीय श्री प्रणव मुखर्जी, श्री कपिल सिब्बल, गृहमंत्री श्री पी.चिदम्बरम मानती है कि देश की जनता नासमझ है उनको बिल के किसी भी प्रावधान की कोई जानकारी नहीं है। और चुने हुए सांसदों की देश के प्रति जिम्मेदारी है। साथ ही गृहमंत्री श्री पी.चिदम्बरम जी भी फरमाते हैं कि गांधीजी के सत्याग्रह के हथियार से किसी देश में कानून नहीं बनाया जा सकता। अन्ना का अनशन गांधीजी के अनशन से भिन्न है। अब कांग्रेस सहित प्रायः सभी दल को इस बात कि चिन्ता सताने लगी कि यदि सिविल सोसाइटी की बातें को मान ली गई तो संभतः एक समय ऐसा भी आ सकता है जब देश के आधे से अधिक सांसदों को जेल की सलाखों के अन्दर जाना पडे। श्री अरविन्द केजरीवाल ने भी माना कि भला कोई अपना सुसाइडल नोट भला क्यों लिखेगा? सरकारी पक्ष अब अन्ना समूह से दो-दो हाथ करने का मन बना चुकि है। इस चक्रव्यूह योजना के तहत कांग्रेस अब तमाम राजनैतिक दलों को साथ लेकर चलना चाहती है। कांग्रेस पार्टी मानती है कि वो खुद तो इस बिल को लेकर बुरी तरह उलझ ही चुकि है अब देश के तमाम पार्टियों को भी इसमें 30 जून से पहले ही उलझा दिया जाये ताकि संसद के सत्र में उसकी पोल न खुले। कांग्रेस पार्टी अब जानबुझ कर बिल का विवादित हिस्से को बेतुके सवालों में उलझाने कि योजना बना चुकी है। ताकी बिल संसद के पटल पर रखने से पूर्व ही विवादों में घिर जाय और भ्रष्टाचार निरोधक लोकपाल बिल बैगर किसी अधिक बहस के सदन से बाहर कर दिया जाए। जिस तरह महिला आरक्षण बिल संसद में अपनी लम्बी सांसें भर रहा है लोकपाल बिल का भी कुछ ऐसा ही होने जा रहा है। देश के 70 प्रतिशत सासंद और विधायक इस बिल के किसी भी प्रावधन से सहमत नहीं होगें। संसद या विधानसभाओं में जिस धारा के अंर्तगत उनको वोट देने और बोलने का अधिकार प्राप्त है समाज का मानना है कि इस अधिकार के तहत ही संसद और विधानसभाओं में भ्रष्टाचार व्याप्त है। जबकि सरकार का कहना है कि यह लोकतंत्र नहीं तानाशाही है। उनके स्वतंत्रता के अधिकारों का हनन है। इस तरह के प्रस्ताव लाने का अर्थ है संसद के आधे से अधिक सांसद पर किसी भी समय मुकद्दमा चलाया जा सकेगा। जबकि सिवलि सोसाइटी कहती है कि जबतक कानून बनाने वाले सही आचरण या वर्ताव नहीं करेगें तब तक देश में व्याप्त भ्रष्टाचार को समाप्त नहीं किया जा सकता। उनके कहने का सरल सा अर्थ है जो भी कड़े कानून बने उसे ऊपर से ही लागू किया जाना चाहिये। अन्यथा लोगों को कहने का अवसर मिलेगा कि चोर प्रधानमंत्री बरी संत्री को कड़ी। जैसा कि 3जी मामले में साफ छवि की आड़ में डा. मनमोहन सिंह बचते आ रहे हैं। गृहमंत्री का नाम अब सामने आ ही गया। कुछ दिनों में प्रधानमंत्री को भी सीबीआई के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ सकता है चुंकि कांग्रेस इस बात को पहले से ही जानती है कि इस बिल के पारित होते ही उनकी सरकार 3जी मामले में खतरे में पड़ती दिखाई देती है तो इन लोगों ने प्रधानमंत्री को एक संस्था का नाम देकर बचाव की मुद्रा में पहले से ही दिखाई दे रहे हैं। अब सिविल सोसाइटी के सामने एक ही विकल्प बचा है कि वे देश के तथाकतित चुने हुए प्रतिनिधियों को साफ कर दें कि जनता ने उनको चुन कर भेजा है इसका अर्थ है वे जनता के प्रति न सिर्फ जिम्मेदार हैं उनका दायित्व भी बनता है कि वे जनता की बातों पर अमल भी करें। सरकारी पक्ष अपनी बैतुकी बातों से जनता को गुमराह करने की जगह बिल के सभी पक्षों पर ईमानदारी से बहस करें। क्या सही है और क्या गलत पर पहले ही बहस न कर खुले दिमाग से बिल को संसद के सामने प्रस्तुत करें न कि खुद को स्थापित करने के लिए बिल को संसद में प्रस्तुत व बहस करने से पूर्व ही बिल के मूलभूत संरचना से छेड़छाड़ और खिलवाड़ करना शुरू कर दें। कुछ काम संसद के अन्दर चुने हुए सांसदों के उपर भी छोड़ दें वे भी आपके जैसे चुने हुए ही सांसद हैं जो लोकपाल बिल को पारित करेगें या उनको आपलोगों द्वारा सुझाये हुए प्रावधानों पर अपनी राय देगें। सारा काम आपकी समिति के पांच सदस्य ही तय कर लेगें तो संसद के अन्दर बाकी बचे 540 सदस्य क्या खाख करेगें। लोकपाल बिल के मूल प्रस्तावों के साथ सदन में प्रस्तावित करना ही देश की प्रगति का नया अघ्याय होगा। कांग्रेस पार्टी इस बात को गंभीरता से लेकर अपने शातिरों पर लगाम कसे।
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