चाळो केंद्रीय भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री या बात तो कबूल करी कि वे समाज का सदस्यावां साथे कुछ मुद्दा म अभी भी असहमत है। यानी कि बिना के ही मुंडा से आ बात निकली कि वे ‘‘कुछ बिंदुओं पर हम असहमत होने के लिए सहमत हो गए हैं।’’ आ बात पढ़ मेरो तो माथो ही ठिनकगो। भ्रष्टाचार का मुख्य-मुख्य जो स्त्रोत हा सबने वे बिल से हठा दिया या जान संगळा का पौ-बारह हो गया। सारा भारत में दीपावली मनाने को एलान कर दियो। कई लोग राजना कहता कि दिल्ली भ्रष्टलोगां की नगरी है दिल्ली के संसद के शीतकालिन सभागार में जो नये-नये विचार पैदा होते हैं वह तो बंगाल में भी नहीं हो सकते। बंगाल वाले को बड़ा गुमान था ‘‘बंगाल जो आज सोचता है, भारत उसे कल सोचता है।’’ अब देखो आपने कभी सपने में भी यह सोचा था इतना तगड़ा बयान सरकार की तरफ से आयेगा कि लोग सोचते ही रह जायेगें कि आखिर जब सरकार सहमत हो चुकी तो फिर विवाद का प्रश्न ही कहाँ बचा। समाज के सदस्यों को तो सिर्फ धमकी देना आता है। देश के तमाम अखबार जिनको सरकारी रिश्वत बतौर विज्ञापन मिलते हैं उन सबको सूचना भेज दी गई कि वे सरकार का पक्ष मजबूती के साथ जनता के सामने रखें और जो सरकार को अधिक खुश यानी अन्ना के खिलाफ सरकारी पक्ष का साथ देगें उनका कोटा डबल कर दिया जायेगा। अब आप ही सोचिये घोड़ा घास से दोस्ती करेगा तो खायेगा क्या? खासकर उन समाचार पत्रों को तो सोचना ही पड़ता है जो डरपोक किस्म के प्रजाति के प्राणी हैं। जिनको समाचार की भूख से ज्यादा विज्ञापनों की भूख रहती है। जिस पर सरकारी विज्ञापन न मिले तो इनके प्राण पखेरू ही उड़ जायेगें। अखबार हालां कि या हालत देख मुझे कबीरदास की दो लाइनें याद आने लगी-
माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥
रोजना सरकार को भला बुरा कहने वाले मीडिया और समाचार वाले भ्रष्टाचार बिल पर इस कदर चुहे की तरह बिल में जा छुपे कि कोई इनको लोकतंत्र का रक्षक कहे तो सुनने में भी अब शर्म आने लगी। बेचारे कबीरदास ने भी नहीं कल्पना की होगी की उनके दोहे का मट्टी से भी बुरा हाल कर देगें ये राजनीतिज्ञों के दलाल जो खुद को लोकतंत्र का प्रहरी बताते हैं और आम जनता के पीठ पर ही कलम की धार से वार करने में नहीं चुकते। इस लेख के माध्यम से एक सीध सा सवाल सबसे करना चाहता हूँ देश में पिछले पांच-दस सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले मीडिया और समाचार पत्र वालों न मिलकर उजागर किये वे सभी के सभी किस समूह से जुड़े हुए थे? जिसमें सत्ता पक्ष से जुड़े कितने थे और अन्य मामाले जिसमें सरकारी अधिकारियों के कितने थे? चाहे वो राज्य सत्ताधारियों के मामले रहे हों या केंद्र सत्ताधारी के हों। सरकार किसकी रही हो या नहीं रही हो। देश के तमाम राजनैतिज्ञों को खुली चुनोती देता हूँ कि वे इस बात के आंकड़े प्रस्तुत करें कि पिछले 10 सालों में भ्रष्टाचार के जो मामले सामने आयें हैं उनमें कोई भी सांसद, विधायक, मंत्री का नाम शामिल नहीं है और जो भी मामले सामने आये हैं वे सभी झूठे और मनगढ़ंत मामले हैं जिनमें भ्रष्टाचार का कोई मामला बनता ही नहीं। आपके उत्तर का मुझे बेसब्री से इंतजार रहेगा।
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