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रविवार, 9 मई 2021

व्यंग्य: वैक्सीन गधे की सींग

जब से देश में प्रधानमंत्री श्री दामोदरदास नरेन्द्र मोदी जी ने यह ऐलान किया कि अब देश के युवाओं को भी वैक्सीन दी जायेगी। वैक्सीन कम्पनियों ने भी आनन-फानन में रातोंरात वैक्सीन की दरों में चौतरफा मुनाफा बढ़ा दिया।

एक सवाल के जबाब में कम्पनी के संवाद तंत्र ने गोदी मीडिया के माध्यम से जानकारी दी कि सरकार से उनको सहमति मिल गई है कि आप मेरी सरकार -तेरी सरकार और उसकी सरकार के अनुसार दाम तय कर दे। 

अब कम्पनी करे तो क्या करे। जब राजा ही देश लूटने की इजाजत देता हो तो, आपदा में अवसर भला कौन नहीं लेना चाहता।

मानो किसी मुर्दा के शरीर से कफन को को लूट लेना या मुर्दे की लाश को गिद्धों के आगे नोचने के लिए फैंक देना। 

मैंने तो देश के कपड़े उतार दिया अब तुम इसकी खाल नोच लो।

हर तरफ लूट का तांडव हो रहा है। दवा के नाम पर, ईलाज के नाम पर, आक्सीजन के नाम पर, तो भला वैक्सीन के नाम पर क्यों न हो।

पास में  मां बैठी हुई थी, बीच में बोल पड़ी -" बबुआ...आ.. हमनी के वैक्सीन दिला लाओ।"

मां को क्या पता कि वैक्सीन का आकाल पड़ चुका है। वैक्सीन तो मोदीजी पूरे विश्व में मुफ्त में बांट आये। भारत को बोल दिये खरीदो और लगाओ। 

बिहारियों को चुनाव में वादा किये थे सबको मुफ्त वैक्सीन मिलेगी, पर जब तक मिलेगी, तब तक मरते रहो। यह वादा तो नहीं किया था कब तक मिलेगी। जल्दी है तो खरीद लो बाजार से। 

मां ने फिर कहराते हुए कहा- " बैटा मुझे वैक्सीन लगवा दो, नहीं तो मैं मर जाऊँगी। " 

अब मां को कौन  समझाये.. वैक्सीन तो गधे का सींग हो गयी, कब उगेगी, कब लगेगी, यह तो गधे के मालिक को भी नहीं पता। बस रोज कोविन पर खोजते रहो। -शंभु चौधरी

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