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सोमवार, 17 दिसंबर 2018

झूठ बोलना भी कला है

झूठ बोलना भी कला है
कोलकाता 18 दिसम्बर 2018

पिछले दिनों प्रधानमंत्री मोदी ने एक रायबरेली में अपने भाषण में कहा कि ‘‘झूठ बोलने वालों पर सत्य बोलने वालों की विजय होती है। सच को श्रृंगार की जरूरत नहीं होती, झूठ चाहे जितना बोलो इसमें जान नहीं होती। झूठ की पंक्तियों को कुछ लोगों ने जीवन का मूल मंत्र बना लिया है।’’ इस बात से एक कहानी याद आ गई - 
‘‘राजस्थान के एक गांव में एक बहुत बड़ा व्यापारी रहता था उसके कारोबार का हिसाब-किताब देखने के लिये उसने एक मुनिम भी रख रखा था । मुनिम बहुत ही चालाक बुद्धि का था। वह उस व्यापारी को रोज फायदा करवाता। कभी जोड़ में भूल दिखा के, कभी दाम के भाव बढ़ा कर तो कभी गल्ले में सरप्लस दिखा के । व्यापारी को लगा कि यह आदमी तो बहुत काम का है । उसकी हर बात मानने लगा । इधर मुनिम जी ने जब व्यापारी को अपने जाल में फंसा लिया तो उसने उसके व्यापार को भीतर ही भीतर खोखला करने लगा । खाते में कुछ, हकिकत में कुछ दिखने लगा । एक दिन अचानक से व्यापारी को मंदी का सामना करना पड़ा, तब व्यापारी ने मुनिम को बुलाकर पूछा कि जो हर साल का मुनाफ़ा जमा होता था उसका हिसाब दो तब मुनिम ने जबाब दिया सेठ जी ! वह तो दो दिन के घाटे के भुगतान में ही समाप्त हो गया और आज के दिन तो आपके सर पर दस लाख का कर्ज चढ़ गया है । व्यापारी  ने अपना सर पीट लिया’’  कुछ ऐसा ही हाल आज हमारे देश का है।
पिछले साढ़े चार सालों में मोदी की सरकार में कुछ ऐसा ही हो रहा है । नोट बंदी से देश को जो घाटा हुआ उसे हमारे वित्तमंत्री जी जीएसटी से पूरा करने की हड़बड़ी की । जब जीएसटी से बात नहीं बनी तो वित्तमंत्री जी आरबीआई में जनता का जमा धन पर डाका डालने पंहुच गये ।
2014 के बाद से ही झूठ का व्यापार चल रहा है । झूठी अफवाहें फैला कर लोगों की हत्या करना। झूठे वायदे कर देश की जनता को गुमराह करना । चुनाव में किये सभी वायदे भले ही वह काला धन लाने का वायदा हो या 15 लाख रुपये लोगों के खातों में जमा करने का वायदा सब झूठ का पुलंदा साबित हुआ । युवाओं को नौकरी देने के नाम पर पकौड़े बेच के काम चलाने की सलाह से लेकर किसानों को न्यूनतम लागत मूल्य का भुगतान अथवा उनकी आमदनी को दोगुना करने की बात हो या फिर राफेल में सुप्रीम कोर्ट तक को झूठे दस्तावेज़ प्रस्तुत कर सुप्रीम कोर्ट की मर्यादा को तक ताक पर लगा देना, यह सब मोदी सरकार की झूठ बोलने वाली मशीन का कमाल है। 
मोदी जी के आने के बाद हर जगह झूठ बोलने के एटीएम लग गये हैं। मीडिया से लेकर संसद तक में झूठ का बोलबाला है । पिछले 70 सालों में झूठ पर इतना ज्ञान देते, आपने किसी प्रधानमंत्री को कभी ना सुना होगा, जितना मोदी के भाषणों से सुनने मिल रहा है । यह झूठ बोलने की कला ही तो है कि भक्तों को सब कुछ सच नजर आता है ।
शंभु चौधरीलेखक एक स्वतंत्र त्रकार हैं  विधि विशेषज्ञ भी है।

शनिवार, 15 दिसंबर 2018

बंगाल: लोकतंत्र बचाओ रथ यात्रा

दो दिन पूर्व राफेल सौदे में सुप्रीम कार्ट ने जो एकतरफ़ा सीलबंद लीफाफे के आधार पर बिना प्रतिपक्षों की दलीलों को सुने भारत सरकार के झूठ को अपने कलम से लिख का देना इसे  फैसला तो कदापी नहीं माना जा सकता । यह भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार को बचाने का प्रयास है। कानून के कार्य में लिप्त कोई व्यक्ति भले ही इसे सही ना माने पर यह फैसला की परिधी में तो कदापि नहीं आ सकता।

कोलकाता: 16 दिसम्बर 2018

लोकसभा चुनाव से ठीक पूर्व देश में पांच बड़ी घटना घटी: पहला- सीबीआई के दो प्रमुखों में भ्रष्टाचार के आरोप पर आपस में ही घमासान होना, दूसरा- मोदी के आदेश पर नियुक्त अर्जित पटेल का सरकार द्वारा आरबीआई के खज़ाने को हड़पने के प्रयास के विरूद्ध त्यागपत्र देना, तीसरा- चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव अधिकारी के रूप में अपने ही प्यादे सुनील अरोरा की नियुक्ति, चाौथा- पांच राज्यों के विधान सभाओं के चुनाव में करारी हार और पांचवा- सुप्रीम कोर्ट का लिफाफा बंद फैसला ।
जो भाजपा बंगाल में लोकतंत्र बचाओ रथयात्रा निकालने की बात कर रही है उसी भाजपा सरकार के सारे कृत्य देश के लोकतंत्र को मटीयामेट करने में लगी है । चाहे वह सुप्रीम कोर्ट में प्रमुख की नियुक्ति में हेराफेरी का मामला हो या फिर सीबीआई प्रमुख की नियुक्ति का मामला हो। पिछले साल सुप्रीम कोर्ट के ही चार जजों ने देश के इतिहास में पहली बार प्रेस के सामने आकर कहा था कि ‘‘ सबकुछ ठीक नहीं चल रहा’’  इसे आम साधारण घटना नहीं मानी जा सकती ।
दो दिन पूर्व राफेल सौदे में सुप्रीम कार्ट ने जो एकतरफ़ा सीलबंद लीफाफे के आधार पर बिना प्रतिपक्षों की दलीलों को सुने भारत सरकार के झूठ को अपने कलम से लिख का देना इसे  फैसला तो कदापी नहीं माना जा सकता । यह भी एक प्रकार का भ्रष्टाचार को बचाने का प्रयास है। कानून के कार्य में लिप्त कोई व्यक्ति भले ही इसे सही ना माने पर यह फैसला की परिधी में तो कदापि नहीं आ सकता।
जो भाजपा की  मोदी   सरकार लोकतंत्र की हत्या पर हत्या किये जा रही है । यदि इसे ही लोकतंत्र कहा जा रहा है तो निश्चय ही लोकतंत्र पर खतरा मंडरा रहा है।
जिस प्रकार बाबा रामदेव की कंपनी में इसकी कुल संपदा पिछले चार सालों में 850 करोड़ की कंपनी का 11526 करोड़ की कंपनी हो जाना और इसके विज्ञापनों के माध्यम से लोकतंत्र का हरण करना भी निश्चय रूप से किसी बड़े खतरे को संकेत देता है।
जिस प्रकार मोदी की सरकार ने चंद बड़े घरानों के लिए आते ही जमीन अधिग्रहण बिल लाये थे, जिस प्रकार मोदी ने नोटबंदी का फरमान लागू किया था, जिस प्रकार कश्मीर की विधानसभा को भंग किया गया, जिस प्रकार वहां गोवा में भाजपा की सरकार बनी, जिसप्रकर मोदीजी निजी फायदे और अनिल अंबानी को लाभ दिलाने के लिये भारत के वायु सेनाध्यक्ष से राफेल के पक्ष में बुलवना निश्चित तौर पर लोकतंत्र के लिये किसी खतरे से कम नहीं।
बंगाल में सबको पता है कि हर साल दिसम्बर से जनवरी माह तक गंगा सागर तीर्थयात्रियों का भारी जमावड़ा होता है देशभर से लगभग हर साल लाखों की संख्या में तीर्थयात्रियों का अगमन शुरू हो जाता है। ऐसे में भाजपा के द्वारा इस शांत क्षेत्र में धार्मिक उत्तेजना फैलाने की साज़िश कर रही है यह निश्चय ही लोकतंत्र के लिये किसी खतरे की ओर संकेत दे रहा है । यदि सच में भाजपा लोकतंत्र के प्रति इतनी चिंतित है तो उसे मोदी को सत्ता से हटाने पर विचार करना चाहिये।
शंभु चौधरीलेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं  विधि विशेषज्ञ भी है।

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2018

राफेल - सब कुछ सील है?

 भारत की उच्चतम अदालत ने सील बंद लिफाफे में बंद झूठ के सहारा लेकर देश को गुमराह करने का काम किया है। माननीय अदालत का दूसरे पक्षों को सुने बिना ही एकतरफ़ा  निर्णय देना खुद में अदालत की गरिमा को आघात पंहुचाता है। मानो अदालत का निर्णय भी सील बंद हो?
कोलकाता 15 दिसम्बर 2018
कल माननीय सुप्रीम कोर्ट ने राफेल लड़ाकू विमान की खरीद में हुए 30 हजार से अधिक के घोटाले और रिलायंस समूह के चेयरमैन की कंपनियों को ठेका दिये जाने पर प्रशांत भूषण सहित कई लोगों की याचिकाओं को खारिज कर दिया कहा – “हमने सब देख परख लिया और जांच लिया कि सबकुछ ठीक-ठाक हुआ है।“ केन्द्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि अब इस विषय पर बोलना ‘‘सुप्रीम कोर्ट की अवमानना है ’’
      आज इसी बात से इस लेख की शुरूआत करता हूँ न्यायालय अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा-5 न्यायिक कार्य की उचित आलोचना, जिस मामले को अंतिम रूप से सुन लिया गया हो और उसका अंतिम निर्णय अदालत के द्वारा दे दिया गया हो अवमानना नहीं है। शायद यह बात भारत के कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद को पता नहीं कि राफेल के सील बंद लिफाफे का कल समापन सुप्रीम कोर्ट ने कर दिया ।
अब बात सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले पर आता हूँ जिसपर टिप्पणी करना अदालत के अवमानना अधिनियम, 1971 के तहत अवमानना नहीं है क्योंकि माननीय अदालत ने अपना अंतिम फैसला सुना कर देश के चौकीदार और अनिल अंबानी को बहुत बड़ी सौगात दे दी।
अदालत ने अपने एकतरफा सील बंद लिफाफे के आधार पर दिये फैसले में तीन बातों का प्रमुख रूप से उल्लेख किया 1. उन्हें सौदे की प्रक्रिया पर कोई संदेह नहीं । 2. राफेल की कीमत तय करना अदालत का काम नहीं 3. 2016 में जब सौदा हुआ तो सवाल नहीं उठे।
1.    उन्हें सौदे की प्रक्रिया पर कोई संदेह नहीं  - अदालत ने एक पक्ष का सील बंद लिफाफा पढ़ा उसमें सही या गलत क्या है कैसे तय हो सकता है जबतक कि अदालत दूसरे प़ा की बात नहीं सुनती । इसका अर्थ है भारत सरकार को  क्लीनचीट की डिग्री सौंपना सरासर देश के साथ माननीय उच्चतम न्यायालय का धोखा है ।
2.    राफेल की कीमत तय करना अदालत का काम नहीं - जब राफेल की कीमत को तय करना अदालत का काम नही तो कैग कि रिपोर्ट कर जिक्र कैसे आया जो रिपोर्ट संसद में अभी तक प्रस्तुत ही नहीं की गई?
3.    2016 में जब सौदा हुआ तो सवाल नहीं उठे - अदालत तो यह कहना चाहती है कि यदि अपराध का पर्दाफ़ाश दो साल बाद हो तो कोई मुकदमा ही नहीं बनता ?
भारत के इतिहास में इससे बचकाना निर्णय शायद ही किसी अदालत ने अब तक किया होगा जा सुप्रीम कोर्ट ने दिया है।
टिप्पणी: भारत की उच्चतम अदालत ने सील बंद लिफाफे में बंद झूठ के सहारा लेकर देश को गुमराह करने का काम किया है। माननीय अदालत का दूसरे पक्षों को सुने बिना ही एकतरफ़ा  निर्णय देना खुद में अदालत की गरिमा को आघात पंहुचाता है। मानो अदालत का निर्णय भी सील बंद हो? 
Note: इस लेख की तमाम कानूनी प्रक्रिया के लिये इस लेख का लेखक जिम्मेदार है।
शंभु चौधरीलेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं  विधि विशेषज्ञ भी है।