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शुक्रवार, 7 मई 2021

मुसलमानों को सोचना है-

 

शंभु चौधरी

गृहमंत्री जी अभी भी बंगाल के सदमें से उबर नहीं पायें है। दस हजार करोड़ रुपये का जूआ इतना मंहगा पड़ेगा, गृहमंत्री जी ने कभी सोचा नहीं था। 

दीदी-ओ-दीदी 

बंगाल में अपनी कु-मानसिकता की पूरी ताकत मोदी जी और गृहमंत्री ने थोप दी थी। दीदी-ओ-दीदी बोल कर संघी विचारधारा ने बता दिया कि उसके लिए बीबी-बच्चों, औरतों के सम्मान के लिए कोई जगह नहीं है।

एक से एक हथकंडे अपनाये जाने लगे। स्थानीय विभिन्न राजनीतिक दलों के नेताओं को केंद्रीय एजेंसियों के द्वारा डरा-धमका कर , पैसों से खरीद कर अफवाहों और गोदी मीडिया का सहारा लेकर देश में इन लोगों ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया था मानों पश्चिम बंगाल, मुसलमानों से भर गया है। जबकि बिहार में कटिहार, फारबिसगंज, किसनगंज, अररिया, आदि जिले में पिछले 15सालों में बंग्लादेशी मुसलमानों की संख्या में काफी तेजी से इजाफा हुआ है, पर देश के गृहमंत्री शुतुरमुर्ग की तरह मुंह को छुपा रखें हैं। 



इस बात से कोई इंकार नहीं की भारत के सभी प्रांतों में कट्टरपंथी मुसलमानों की संख्या काफी तेजी से बढ़ी है, जो ना सिर्फ भारत की संस्कृति वरण भारत की अस्मिता के लिये भी घातक बनते जा रहा है। इसी कारण देश में कट्टरपंथी व चरमपंथियों का बोल-बाला होता जा रहा है। भारत के मदरसों में शिक्षा के नाम पर बच्चों को कट्टरवाद का पाठ पढ़ाया जाना भी अन्ततः मुसलमानों को इसकी भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है और मुसलमानों का यह व्यवहार , भारत के हिन्दुओं को संगठित करने में बड़ी आसानी से और गुणात्मक रूप से कार्य किया है। जो इन दिनों हम देख पा रहें हैं। 


भारत में मुसलमानों की संख्या सरकार के अनुसार 20 करोड़ से ऊपर है। यदि इसे ही सही मान लिया जाए तो उत्तर प्रदेश में मुसलमानों की संख्या ना सिर्फ़ बढ़ी है। जनसंख्या के हिसाब से भी पूरे भारत में अधिक है। वहीं बंगाल दूसरे स्थान पर बिहार तीसरे स्थान पर और असम चौथे स्थान पर है। यानि मुसलमानों की कुल आबादी का आधा हिस्सा इन  चार राज्यों में जीवन यापन करता है और इन चार राज्यों में से दो राज्यों में अभी भाजपा की सरकार है एवं बिहार में भाजपा समर्थित नीतीश कुमार की सरकार कार्यरत है। परन्तु देश के गृहमंत्री सहित भाजपा के तमाम दिग्गज नेताओं को लगता है कि इन चार राज्यों में से सिर्फ पश्चिम बंगाल में ही मुसलमान रहते हैं।  झूठे फैक समाचारों के सहारे खुद देश के भाजपा की आई.टी सेल बंगाल को अशांत करने की तरह - तरह की योजनाओं को अंजाम देने में लगी है। इन दिनों सैकड़ों मनगढंत धार्मिक सहिष्णुता को तार-तार कर अपना राजनीतिक स्वार्थ पूरा करने का जी तौड़ प्रयास किया गया, जो असफल भी हो गया। चुनाव में हार के बाद तो इसमें और तेजी आ गई।


भारतीय मुसलमानों को इन हालतों का अध्ययन करना जरुरी है कि क्या वे खुद के मुस्लिम कट्टरपंथी समूहों का हिस्सा बनकर हिन्दू वादी संघी कट्टरवाद को मजबूत करना चाहते हैं कि, उनको देश की राजनीति से अलग-थलग करना। 

यह तभी संभव हो सकेगा जब भारतीय मुसलमान, भारत की बहू-बेटियों की ईज्जत करें। इन दिनों कुछ प्रान्तों में मुसलमानों के द्वारा लव जेहाद के रास्ते हिन्दुओं की बेटियों को शिकार बनाया जाना कहीं न कहीं  भाजपा को राजनीति रूप से मजबूत करती है।

अब देश के मुसलमानों को सोचना है कि वह भारतीयता को स्वीकार कर अपने धर्म के कट्टर विचारधारा को दरकिनार कर खुद को नई शताब्दी में ले जाना पसंद करते हैं कि अभी भी 14वीं शताब्दी में जीना पसंद करते हैं और कट्टरवादी तत्व के हाथों का मोहरा बनना पसंद करेंगे। 

एक बात और इन दिनों देखने में आया है कि मुसलमान का एक वर्ग मुस्लिम राजनीति को अलग से सक्रिय करना चाहता है। लोकतंत्र में कोई प्रतिबंध तो नहीं है पर यही लोग साथ ही हिन्दू कट्टरपंथी ताकतों को गुणात्मक रूप से मजबूत भी कर रहें हैं। भले ही वह यह ना चाहते हों।  यह मान कर चलना होगा कि क्रिया की प्रतिक्रिया होगी ही।

"भारत का संविधान धर्म की आजादी देता है, पर साथ ही धार्मिक कट्टरपंथी विचारधारा को भले ही वह किसी भी धर्म का क्यों न हो।.इसकी इजाजत कभी नहीं देता। "

परन्तु मुसलमानों के पिछले कुछ सालों के व्यवहार ने देश को मोदी-योगी जैसे लोगों को सत्ता पर बैठा दिया। 

आज देश की 70 प्रतिशत आबादी इनके व्यवहार से असहमत होते हुए भी इनको सर पर बैठा रखी है। ।

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