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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

मेक इन इंडिया की पाक यात्रा?

यह सच है कि प्रधानमंत्री श्री मोदीजी अपने कार्यकाल में अब तक इतनी विदेश यात्रा कर ली जितनी आजतक किसी भी प्रधानमंत्री ने शायद ही कभी की हो। अभी तो यह शुरूआत है पूरे 4 साल अभी इनको और यात्रा ही करनी बाकी है। मेक इन इंडिया के सहारे प्रधानमंत्री जी अपनी विदेश यात्रा का सपना पूरा ही नहीं करेगें। इस यात्रा से भारत को विश्व के मानचित्र में भारत को सबसे शक्तिशाली देश बना देंगे।
कल की ही बात लें मोदी जी ने एक बहाना खोजा अटल जी के जन्मदिन की बात उनको याद नहीं आये, नवाज शरीफ साहेब का जन्म दिन याद आ गया और अपने विदेश कूट नीति में तत्काल बदलाव करते हुए तत्काल पंहुच गये पाकीस्तान, नवाज शरीफ जी को जन्मदिन की बधाई देने। अब इसमें कोन सी राजनीति? कैसी विदेशनीति। कैसा शिष्टाचार? मित्र देश है देश में भाजपा के नेता गाली देते रहें। विपक्ष आलोचना करता रहे। देश की सेना/जवान मरते रहें। सर काटकर पाकिस्तान ले जाता रहे। हम शिष्टाचार निभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़नेवाले।
परन्तु हमें यह सोच लेना चाहिये कि भारत का प्रधानमंत्री सिर्फ अपनी इच्छा से नही, भारत की सुरक्षा, राजनैतिक दृष्टि से, विदेश नीति के तहत , संविधान के तहत, और सबसे बड़ी बात है जनता की भावना को विश्वास में लेकर कार्य करे तभी वह भारत का प्रधानमंत्री है नहीं तो वह सिर्फ मोदी है।

मोदी जी के अबतक कार्यकाल में सबकुछ उलटा हो रहा है। तेल के दाम में कोई गिरावट नहीे हुई, उलटे डालर के दाम में 10 प्रतिशत की वृद्धि अर्थात तेल के दाम का जो फायदा देश की जनता को होना था उसका फायदा दलालों को होने लगा।
मेक इन इंडिया के नाम से देश को भीतर से खोखला करना। देश की सेना के मनोबल को निराश करना। किसानों के लिये कुछ नहीं करना। रोजाना कभी टैक्स के नाम पर कभी सरचार्य के बहाने कर का बोझ बढ़ा देना, रेल भाड़ा को बढ़ा देना, तत्काल को टिकट को महंगा कर देना, सभी व्यवसायियों को वे वजह नोटीश भेजना । कंपनियों की जांच-पड़ताल करना। विदेश से काले धन लाने की जगह देश के व्यापारियों को ही तंग करना। महंगे सूट पहनना, गैर भाजपा शासित राज्य सरकारों को जरूरत से ज्यादा तंग करना। कुछ चुनिंदा व्यापारी के हित में जमीं अधिग्रहण पाॅलिसी लागू कराना। मोदी सरकार की पहचान बन गई है। अब जरूरत वे जरूरत विदेश यात्रा मोदी जी की कूट नीति का हिस्सा बन चुका है। इसे भले ही भाजपा के चापलूस नेतागण स्पोर्ट्समेन स्प्रीट मानते हों। परन्तु यह अचानक भारत के प्रधानमंत्री की पाक यात्रा कितनी भी नज़दीकी क्यो न हो देश हित में कदापि सही कदम नहीं माना जायेगा।
जयहिन्द - शम्भु चौधरी 26/012/2015 kolkata

रविवार, 15 नवंबर 2015

दीपावली की शुभकामना -शंभु चौधरी

एक ‘रावण’ को मरते ही एक साथ कई और ‘रावण’ पैदा हो जाते हैं। ‘भारत माता’ को इस ‘रावण रूपी राक्षक’ ने हर तरफ से बंधक बना लिया है। पूरी कानून व्यवस्था, सिस्टम इसके अधीन कार्य करने लगी है। संविधान को अपनी सुविधानुसार इन लोगों ने व्याख्यित किया है। हर तरफ लूटतंत्र को सही ठहराया जा रहा है। इस लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र का उद्योग फलफूल रहा है। इसके समर्थन में कुछ अर्थशास्त्री लूटतंत्र की व्यवस्था के पक्षधर भी हैं। ये तथाकथित अर्थशास्त्री लूटतंत्र आर्थिक ढांचे पर अपनी रटी-रटाई थेसिस सुना कर देश में आर्थिक आतंक फैलाने में लगे हैं।

रामायण में राम, सीता, लक्ष्मण की कई कथाओं का वर्णन हमें पढ़ने को मिलता है। राम के वनवास से लेकर रावण के अंत तक कई कथाओं में राम के सूक्ष्म से सूक्ष्म प्रायः प्रत्येक घटनाओं का विधिवत उसके मूल स्वरूप में हमें पढ़ने को मिलता है। भगवान राम को सभी घटनाओं में एक पवित्र पात्र के रूप में दिखाया गया है। राम के 14 साल बनवास में इनके ईर्द-गिर्द घूमती सभी घटनाओं में ‘सीता माता’ का ही जिक्र है। ‘सीता माता’ को यदि ‘रामायण’ से अलग कर दिया जाए तो ‘राम’ के चरित्र को ना सिर्फ उभारना उसे लिखना भी असंभव है।‘राम’ एक क्रिया है जिसे क्रियान्वित किया जाना है। ‘सीता’ एक घटना है जिसके कारण क्रिया को संपादित किया जाना है। हम यदि सोचते हैं कि सिर्फ ‘राम’ के आ जाने से रावण का अंत हो जायेगा, जो असंभव है। ‘राम’ के साथ हमें उस पात्र को भी खोजना होगा जिसके बहाने ‘रावण’ को मारा जाना है। अन्यथा सिर्फ ‘राम’ से पूरी व्यवस्था नहीं बदली जा सकती।
आज भारत की पूरी क्रिया प्रणाली ‘रावण’ के गिरफ़्त हो चुकी है। इस रावण को मारने के लिये बंदर सेना की फौज तैयार होती जा रही है। एक ‘रावण’ को मरते ही एक साथ कई और ‘रावण’ पैदा हो जाते हैं। ‘भारत माता’ को इस ‘रावण रूपी राक्षक’ ने हर तरफ से बंधक बना लिया है। पूरी कानून व्यवस्था, सिस्टम इसके अधीन कार्य करने लगी है। संविधान को अपनी सुविधानुसार इन लोगों ने व्याख्यित किया है। हर तरफ लूटतंत्र को सही ठहराया जा रहा है। इस लोकतंत्र के नाम पर लूटतंत्र का उद्योग फलफूल रहा है। इसके समर्थन में कुछ अर्थशास्त्री लूटतंत्र की व्यवस्था के पक्षधर भी हैं। ये तथाकथित अर्थशास्त्री लूटतंत्र आर्थिक ढांचे पर अपनी रटी-रटाई थेसिस सुना कर देश में आर्थिक आतंक फैलाने में लगे हैं। उनसे एक छोटा सा सवाल है कि

1. ‘‘ जो किसान जमीन में सोना पैदा करता है- वह आत्महत्या करने को क्यों मजबूर हो जाता है? क्यों नहीं कोई उद्योगपति अथवा व्यापारी अपने व्यापार घाटे के चलते आत्महत्या करता है?’’
2. ‘‘जो मज़दूर दिन-रात कल कारखानों में या सड़कों पर मजदूरी करके अपने परिवार/बच्चों को भरण-पोषण करते हैं, किसी प्रकार अपनी जीविका चलाने के लिये मजबूर हैं, इनके पास उपयुक्त संसाधन की सुविधा, बच्चों की शिक्षा, उचित चिकित्सा क्यों नहीं है? जबकि ये सभी सुविधा, संसाधन उपलब्ध है।’’ क्या अर्थव्यवस्था का सही पैमाना इसी को ही कहते हैं?
3. जो छात्र अपनी मेहनत से विदेशी मुद्रा अर्जित कर भारत में जमा करते हैं उनके इस धन का इस्तेमाल देश को लूटने वाले लोगों की सुख-सुविधा के लिये क्यों किया जा रहा है?
4. भारतीय उद्योग जगत का भारत के प्रति क्या जिम्मेवारी बनती है? सिवा इसके की वे सरकार को लूट का एक हिस्सा देकर खुद का एंपायर स्टेट खड़ा करने के अलावा क्या करते रहें ?
5. मैं धन के एकतित्रकरण या पूंजीकरण के विरूद्ध नहीं हूँ। पूंजीकरण समृद्ध अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। परन्तु इसमें किसानों की मज़दूरों की समान हिस्सेदारी तय करने की जरूरत है। जिससे हम उन्हें दैनिक आधार भूत सुविधायें भी प्रदान कर सकें। भारत में कुछ कंपनियां इस जिम्मेदारी को आज भी निभा रही है जबकि देश की 99प्रतिशत कंपनियों मुनाफे को अपना माल समझती है।
मित्रों !
ये कुछ सवाल है जिसे हमें इन्हीं लोगों के बीच से तलाशना होगा। जिसे ये लोग नक्सलवादी कहते हैं वे नक्सलवादी सिर्फ वे इस लिये नहीं बने कि उन लोगों ने हथियार उठा लिया है। शहरी व्यवस्था ने उनके घरों को लूटने का कार्य किया है। यह बात उस सच की हक़ीकत है। हमारे आलीशान भवनों की दीवारों पर लाखों की पैंटींग इस बात का बयान करती है। हमारी इसी मानसिकता ने पूरी व्यवस्था को जकड़ लिया है। जबकि देश की 88 प्रतिशत आबादी का जनजीवन अस्त-व्यस्त होता जा रहा है। अर्थशस्त्रियों के अलमिरों में सजी किताबों से सिर्फ धन की 'बू' आती है। कोई अंबानी बना हुआ है कोई गडकरी। कोई मनमोहन बन कर लूटरों को साथ दे रहा है तो कोई मोदी बनकर इस व्यवस्था को सरे आम निलाम कर रहा है। ये सबके सब ‘रावण’ का भेष धारण कर चुके हैं। सीता मईया तो इनके कैद में बंद है। जो कंद-मूल खाकर किसी प्रकार अपना जीवन गुजार ही है। इनके चुंगल से ‘भारत माता’ को छुड़ाना सिर्फ राम की जिम्मेदारी नहीं, हम सबको राम बनना होगा। किसी को हनुमान, किसी को विभीषण बनना होगा। कोई लक्ष्मण बने, कोई भरत के रूप में साथ दे।
जयहिन्द। 15.11.2015

शुक्रवार, 29 मई 2015

केजरीवाल को संवैधानिक इनकांडन्टर में मरवा देगी भाजपा?

लेखक: शम्भु चौधरी
जैसे ही दिल्ली सरकार के नियंत्रण में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने ईमानदारी से कार्य करना क्या आरम्भ किया मानो केंद्र की मोदी सरकार सकते में आ गई महज 15 दिनों में 500 से भी अधिक भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आ गये। इधर कार्यवाही होनी शुरू ही हुई कि उधर भाजपा ने ट्रांसफर-पोस्टींग का खेल शुरू कर दिया। यह सब अब तक जो भ्रष्टाचार का खेल चल रहा था उसे छुपाने के लिये और खुद व कांग्रेस के पापों को बचाने के लिये किया जाने लगा। संविधान की दुहाई दी जाने लगी। कुछ दलाल पत्रकारों को बहस के लिये सामने लाया गया। कुछ मीडिया को हायर किया गया ताकि वे केजरीवाल को बदनाम करने का सिलसिला जारी रखें।

कोलकाताः ( 30 मई ,2015) जिस प्रकार दिल्ली में आप सरकार के भ्रष्टाचार से लड़ने के एक मात्र हथियार ‘‘भ्रष्टाचार निरोधक शाखा’’ को केंद्र की भाजपा सरकार ने उसके अधिकार क्षेत्र को सिमित करने का कुप्रयास कर भ्रष्टाचारियों को बचाने में लगी है, इससे साफ प्रतीत होता है कि केंद्र की भाजपा सरकार दिल्ली में ना सिर्फ भ्रष्टाचारियों के साथ मिली हुई है इन भ्रष्टाचारी अधिकारियों को मुख्य पदों पर आसीन कर केजरीवाल सरकार को असफल और बदनाम करने कर प्रयास भी कर रही है ताकि वह किसी भी प्रकार से केजरीवाल पर भी भ्रष्टाचार के आरोप जड़ सके और केजरीवाल को जेल भेज सके या उसकी राजनैतिक रूप से हत्या करवा दी जाए ताकी जनता के सामने वह भाजपा का विकल्प न बन सके। मानो संघ का नौटंकी राष्ट्रवाद संगठन एक अदने से आदमी के सामने बौना साबित होता जा रहा है। इसी लिये अब संघ चाहती है कि केंद्र की मोदी सरकार किसी भी प्रकार संवैधानिक अड़चनें पैदा कर केजरीवाल को संवैधानिक इनकांडन्टर में मरवा दिया जाए?

कहावत है चोर को बचाने वाला भी चोर होता है। उच्चतम न्यायालय के पास एक चोर ने इस आशा के साथ फरियाद की है कि उसको इस कार्य में साथ देने वाले सभी भ्रष्टाचारी साथी बच जाए। माननीय न्यायालय को रूख स्पष्ट करना होगा कि वह भ्रष्टाचार के मामले में देश कि अदालतों से क्या अपेक्षा रखती है? सवाल यह नहीं उठता कि किस सरकारी एजेंसी ने किस भ्रष्टाचारी को पकड़ा। सवाल यह उठता है कि क्या हम इन भ्रष्टाचारियों को इसी प्रकार बचाने का प्रयास करते रहेंगें? यदि कोई व्यक्ति किसी भ्रष्टाचारी को पकड़वता है तो वह पहले यह पता लगाये कि ईमानदार अधिकारी कौन है?

जैसे ही दिल्ली सरकार के नियंत्रण में भ्रष्टाचार निरोधक शाखा ने ईमानदारी से कार्य करना क्या आरम्भ किया मानो केंद्र की मोदी सरकार सकते में आ गई महज 15 दिनों में 500 से भी अधिक भ्रष्टाचार के मामले प्रकाश में आ गये। इधर कार्यवाही होनी शुरू ही हुई कि उधर भाजपा ने ट्रांसफर-पोस्टींग का खेल शुरू कर दिया। यह सब अब तक जो भ्रष्टाचार का खेल चल रहा था उसे छुपाने के लिये और खुद व कांग्रेस के पापों को बचाने के लिये किया जाने लगा। संविधान की दुहाई दी जाने लगी। कुछ दलाल पत्रकारों को बहस के लिये सामने लाया गया। कुछ मीडिया को हायर किया गया ताकि वे केजरीवाल को बदनाम करने का सिलसिला जारी रखें।

महज चंद दिनों में दिल्ली पुलिस के 100 से भी अधिक सिपाही घुस लेते, गरीब जनता को लुटते पकड़े गये। मानो दिल्ली में लुट का यह व्यवसाय राजनैतिक आकाओं की कमाई का बहुत बड़ा स्त्रोत था जिसे केजरीवाल की ‘आप’ सरकार ने आते ही बंद कर दिया।

आज हमें सोचना होगा कि क्या हम इसी प्रकार भ्रष्टाचार से लड़ाई लड़ेगें कि इसे समाप्त करने के लिये एक स्वर में ‘केजरीवाल’ का साथ देगें? जिस आनन-फानन में केंद्र की भाजपा सरकार ने 21 मई 2015 को एक नोटीफिकेसन जारी कर खुद के पापों को जायज़ ठहराने को प्रयास किया और भ्रष्टाचार से लड़ने के केजरीवाल सरकार के मनसुबे पर पानी फेरने का प्रयास किया, माननीय उच्चतम और दिल्ली उच्च न्यायालय को चाहिये कि वे भ्रष्टाचार के मामले में कोई समझौता ना करें।

- जयहिन्द!

रविवार, 24 मई 2015

मीडिया: राजनैतिक दलों की दलाल?

लेखक: शम्भु चौधरी
सवाल उठता है पत्रकारिता का सिद्धांत क्या है? पत्रकारिता का प्रथम और अंतिम सिद्धांत घटना का प्रत्यक्षदर्शी बनना और उसकी हुबहु तस्वीर को देश-विदेश के लोगों तक पंहुचाना ना कि किसी एक पक्ष या विपक्ष में राग अलापना। परन्तु आज का समाचार समूह खासकर मीडिया हाऊसेस के शब्द साफ दर्शते हैं कि वे किसी एक पक्ष के खिलाफ या किसी विशेष व्यक्ति का प्रचार करने में लगी हैं। इन हाऊसेस को समाचार दिखाने से कहीं अधिक रुचि राजनीति करने में है।

कोलकाताः ( 25’मई ,2015) पिछले कई लेखों में मेैं मीडिया को सवालों के कठघरे में खड़ा करता आया हूँ। आज कई दिनों के बाद पुनः इसी विषय पर अपने विचार रख रहा हूँ। देश के कुछ मीडिया घराने न सिर्फ सत्ता के दलाल बन चुकें हैं कुछ तो उन राजनैतिक पार्टियों के रहमों-करम पर ही चलती अन्यथा उनको सरकारी विज्ञापन मिलना बंद हो जाता है। इन समूह को सिर्फ इतनी ही आजादी दी जाती है कि वे विपक्ष पर यदि 10 कीचड़ उझालते हैं तो उन राजनीतिक पार्टियों के खिलाफ एक या अधिकतम दो वह भी उसकी इजाज़त उनको पहले अपने आला कमान से ले लेनी होती है।

देश में कुछ मीडिया हाउस के बिकाऊ पत्रकारों का एक वर्ग इस पूरे प्रकरण को संचालित करता है जो चुनाव से लेकर सरकार बनाने और गिराने के राजनैतिक आंकड़ें जोड़ते और घटाते रहते हैं। पिछले दिल्ली विधानसभा चुनाव के वक्त हमने स्पष्ट देखा था कि किस प्रकार भाजपा वालों ने पैसे के बल पर स्थानीय समाचार समूह, पत्रकारों और मीडिया समूह को चाँदी के जूते मारे थे। ‘‘मुंह में राम बगल में छूरी’’ लिये दिन भर इन चैनलों ने (इक्का-दुक्का) को छोड़ के अरविंद केजरीवाल को जी’ भर-भर सभ्य भाषा में गाली देने में लगे थे। मानो एक प्रकार से वे खुद ही चुनाव लड़ रहे थे।

सवाल उठता है पत्रकारिता का सिद्धांत क्या है? पत्रकारिता का प्रथम और अंतिम सिद्धांत घटना का प्रत्यक्षदर्शी बनना और उसकी हुबहु तस्वीर को देश-विदेश के लोगों तक पंहुचाना ना कि किसी एक पक्ष या विपक्ष में राग अलापना। परन्तु आज का समाचार समूह खासकर मीडिया हाऊसेस के शब्द साफ दर्शते हैं कि वे किसी एक पक्ष के खिलाफ या किसी विशेष व्यक्ति का प्रचार करने में लगी हैं। इन हाऊसेस को समाचार दिखाने से कहीं अधिक रुचि राजनीति करने में है।

पत्रकारिता के आड़ में दरअसल इन समूहों ने मीडिया हिजड़ों की दुकान खोल रखी है जो पैसा देगा उसके लिये ये लोग सड़क पर नंगा होकर नाचेगें। जो नहीं देगा उसको नंगा करेगें। -जयहिन्द

मंगलवार, 31 मार्च 2015

आतंकवादी पत्रकारिता ?

कोलकाताः 1’अप्रेल,2015, लेखक- शम्भु चौधरी

ये पत्रकार दिन-रात पूरे देश की गंदगी को पाठकों के मानस पटल पर अपनी थोपी गई विकलांग मानसिकता से एक साजिश के तहत हमें परोसनेवाली पत्रकारिता खुद को लोकतंत्र की प्रहरी मानती है परन्तु इसके कार्य तो समाज में गंदगी फैलाने के अलावा कुछ भी नहीं रह गया। विचारों की स्वतंत्रता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर रोज़ाना ये पत्रकार इतने गुनाह करतें हैं कि इनके गुनाह पर बोलनेवाले वाले भी उस समय चुप हो जातें हैं जब ये पत्रकार एक साथ उस व्यक्ति पर धावा बोल उसे इतना घायल कर देते हैं कि वह खुद को समाज का अपराधी समझने लगता है। दरअसल भारत में पत्रकारिता अब विचारप्रधान ना रहकर हमला प्रधान बन गई है।

नईदिल्ली/कोलकाताः (1’अप्रेल,2015) गत् 28’ मार्च 2015 को ‘आप’ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक बहुमत प्रस्ताव से श्री प्रशांत भूषण, श्री योगेन्द्र यादव, प्रो. आनन्द कुमार और श्री अजित झा को क्या हटाया गया जैसे पूरे हिन्दूस्तान के राजनीति दलों द्वारा पोषित पत्रकार व मीडिया समूह, व शिवसेना की थूकचाटू पत्रिका ‘सामना’ सबके सब केजरीवाल पर ऐसे पिल गये जैसे कोई बहुत बड़ा जूल्म हो गया। मानो शिवसेना में कभी विभाजन ही ना हुआ हो। भाजपा, कांग्रेस या माकपा में कभी वगावत के स्वरों को दबाया ही ना गया हो। इन राजनीति दलों में किसी व्यक्ति को पार्टी विरोधी कार्याें के लिये दंडित ही ना किया गया हो? इनकी पार्टी में तो लोकतंत्र बचा है और कल कि जन्मी पार्टी के लोकतंत्र को बचाने की चिन्ता इनको ऐसे हो गई जैसे किसी अकेले व्यक्ति ने इनके राजनीति विचारधाराओं पर हमला कर दिया हो।

ऐसे लगता है जैसे भारत के लोकतंत्र की रक्षा का लाइसेंस सिर्फ इनके पास ही हो और केजरीवाल इस लाइसेंस को भी हथिया लेना चाहता है। जो माकपा खुद को मजदूरों कर पार्टी बताती रही, देश और विश्व की आर्थिक स्थिति पर इनके पास कोई विचारधारा नहीं कि जिन मज़दूरों के अधिकार की लड़ाई वे (माकपा, भाकपा) लड़ना चाहतें हैं उन्हें रोजगार कैसे प्रदान किया जा सकेगा।

बंगाल में 35 सालों से सत्ता पे काबिज रही माकपा के शासनकाल में 60 हजार से अधिक छोटे-बड़े कल-कारखाने बंद हो गये। सैकड़ों मज़दूरों ने माकपा के लाल डंडे को ढोते-ढोते अपनी जान दे दी। उनके बच्चों ने आत्महत्या कर ली । पर इनके पोषित पत्रकारों ने ज़ुबान तक नहीं खोली की यह गलत हो रहा है। जिन राजनैतिक विचारें के सिद्धांत 320 कमरे के आलीशान महल से बनता है वे लोग मजदूरों की, किसानों के हक की बात करतें हैं। जो लेखक आजतक सोना पैदा करने वाले किसानों का मरता देखता रहा। जो पत्रकार बैंकों के ‘एनपीए’ के नाम पर बैंकों की लाखों -करोंडों की लूट को दिनदहाड़े औद्योगिक जगत द्वारा सरेआम लूटते देखते रहे वे पत्रकार केजरीवाल के ‘स्वराज’ पर ऐसे हमला कर रहें है कि जैसे इनके खूनपसिने की कमाई को केजरीवाल लूटा देगा?

सवाल उठता है केजरीवाल की तुलना आज इंदिरागांधी के एमेरजेंसी जैसी हालात से करने की नौबत इन पत्रकारों को क्यों आन पड़ी? क्या इनके पास दूसरे उदाहरण की कमी पड़ गई थी? या जानबुझ कर देश को भ्रमित करना चाहतें हैं कि केजरीवाल किसी निरंकुश शासक की तरह बन गया है। वो भी उस सत्ता की कमान पाने के बाद जिस सत्ता के पांच पति है। ये पत्रकार दिन-रात पूरे देश की गंदगी को पाठकों के मानस पटल पर अपनी थोपी गई विकलांग मानसिकता से एक साजिश के तहत हमें परोसनेवाली पत्रकारिता खुद को लोकतंत्र की प्रहरी मानती है परन्तु इसके कार्य तो समाज में गंदगी फैलाने के अलावा कुछ भी नहीं रह गया। विचारों की स्वतंत्रता, स्वतंत्र अभिव्यक्ति के नाम पर रोज़ाना ये पत्रकार इतने गुनाह करतें हैं कि इनके गुनाह पर बोलनेवाले वाले भी उस समय चुप हो जातें हैं जब ये पत्रकार एक साथ उस व्यक्ति पर धावा बोल उसे इतना घायल कर देते हैं कि वह खुद को समाज का अपराधी समझने लगता है। दरअसल भारत में पत्रकारिता अब विचारप्रधान ना रहकर हमला प्रधान बन गई है। अतः अब इस पत्रकारिता को आतंकवादी पत्रकारिता का नाम दिया जा सकता है।


शनिवार, 28 मार्च 2015

आप’का लोकतंत्र? लेखक: शम्भु चौधरी

कोलकाताः 28 मार्च 2015, लेखक- शम्भु चौधरी

श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है?

नईदिल्ली/कोलकाताः (28’ मार्च 2015) ‘आप’ की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में वही हुआ जो लगभग जो पहले से तय था। आम आदमी पार्टी के तीन वरिष्ठ नेता सहित चार सदस्यों को राष्ट्रीय से बहार का रास्ता दिखा दिया गया। एक शायर की कि एक शायरी है- बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले। आज की हुई आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद ने बहुमत प्रस्ताव से श्री प्रशांत भूषण, श्री योगेंद्र यादव, प्रो. आनंद कुमार और श्री अजित झा को पार्टी में बगावत करने और पार्टी को पिछले विधानसभा चुनाव में हराने का प्रयास करने का आरोप लगाते हुए इन चारों नेताओं को राष्ट्रीय कार्यकारिणी से निष्कासित कर दिया। प्रशांत भूषण और योगेंद्र यादव को पीएसी से पहले ही निकाला जा चुका था।

बैठक से निकलकर श्री योग्रेंद्र यादव ने आरोप लगाया कि लोकतंत्र की हत्या हो गई। सवाल उठता है कि योगेंद्र जी किसे लोकतंत्र मानते हैं। जो उनके समर्थन में खड़े थे या वे जिसे अरविंद केजरीवाल फूटी आंखों नहीं सुहाते? उसे? राष्ट्रीय परिषद की बैठक में अलग-थलग पड़े इन नेताओं ने बैठक के दौरान सिवा आरोप लगाने और अपने चंद समर्थकों के लेकर धरने में बैठने के अलावा सिर्फ इतना ही किया कि पूरी देश को यह बता दिया कि हम कितने जिम्मेदार नेता हैं।

जो प्रशांत जी कहते हैं कि उनको राजनीति नहीं आती वे कमरे के भीतर से लगातार केजरीवाल के खिलाफ साज़िश पे साज़िश रचने में लगे थे। विभिन्न प्रांतों के अपने प्रभाव में आने वाली तमाम ताकतों को पार्टी को बदनाम करने की रणनीति बनाने में जुटे थे। इसे क्या कहते हैं?

यह बात उसी समय तय हो गई थी जब दिल्ली में श्री केजरीवाल ने 70 विधानसभा सीटों में से 67 सीटों पर जीत दर्जकर सार्वजनिक रूप से घोषणा कर दी थी कि वे 5 साल सिर्फ दिल्ली की जनता से किये वादों पर ही अपना ध्यान केंद्रित करगें। इसी बात से बौखलाये श्री योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जी ने सवाल उठाने शुरू कर दिये कि दिल्ली का चुनाव ‘‘5 साल केजरीवाल ’’ के नारे से क्यों लड़ा गया? श्री प्रशांत भूषण जी यह भी चाहते थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली के चुनाव में भाजपा की जीत सुनिश्चित की जा सके इसके लिये इन तथाकथित आप’ के नेताओं ने संघ से सांठगांठ कर ली आवाम के बहाने पार्टी पर राजनीति हमला करना और भाजपा की उम्मीदवार श्रीमती किरणवेदी की प्रशंसा कर केजरीवाल को हर कदम पर नीचा दिखाने की गंदी राजनीति करते रहे। क्या इसी का नाम लोकतंत्र है? जो प्रशांत जी कहते हैं कि वे एक स्वस्थ्य राजनीति विकल्प के लिये ‘आम आदमी पार्टी’ में आये थे तो ये ओछी हरकत क्यों? इन सब सवालों का जबाब इन्हें देना ही पड़ेगा। जयहिन्द!

रविवार, 1 मार्च 2015

गद्दार कौन? आतंकवादी या मोदी?

प्रमाणित हो गया कि कभी 'राम' तो कभी 'देशभक्ति' को बेचने में भाजपा से बड़ा धोखेबाज दूसरा कोई नहीं जो आंस्तीन के सांप की तरह हिन्दुस्तानियों की भावना को भंजाकर सत्ता पर काबिज होते ही अपनी दौगली 'जात' दिखा देता है। आज जिस प्रकार से देश को चलाने का प्रयास भाजपा कर रही है इससे देश की जनता में भारी असंतोष पनपने लगा है कि स्पष्ट शब्दों में लोग कहने लगे है कि ‘‘यह भी गद्दार निकला’’

कोलकाताः 3 मार्च 2015, लेखक- शम्भु चौधरी ; जम्मू-कश्मीर में चुनाव परिणाम के पश्चात सरकार बनाने हेतु हुए एक लंबी सौदाबाजी के बाद भाजपा ने पीडीपी के साथ ठीक वैसे ही समझौता कर सरकार बना ली जैसे दूध और दही का मिश्रण। अब जम्मू-कश्मीर के नये मुख्यमंत्री जनाब मुफ्ती मोहम्मद सईद आखिरकार अपना दाव खेलने में सफल रहे। मुख्यमंत्री बनते ही आपने एक रहस्य का पर से पर्दा उठाकर कम से कम देश की जनता को बता दिया कि आप जिस इंसान पर भरोसा कर रहे हैं वह कितना भरोसेमंद है? मुख्यमंत्री बनते ही उन्होंने बता दिया था कि ‘‘मैं ऑन रेकॉर्ड कहना चाहता हूं मैंने प्रधानमंत्री से कहा है कि राज्य में विधानसभा चुनावों के लिए हमें हुर्रियत, आतंकवादी संगठनों और पाकिस्तान को श्रेय देना चाहिये’’ इनके इस बयान से स्पष्ट हो जाता है कि प्रधानमंत्री यह सब बात पहले से ही जानते हुए चुप रहकर देश की जनता से गद्दारी कर रहे थे।

जिस 370 को लेकर संध (RSS) हमेशा से देश की जनता को गुमराह करती रही, वह रामजादे आज चुप क्यों? सोचने की बात है। शायद अपनी मां का श्राद्ध कराने लगे थे? भारत सरकार को सरकारी बयान देना पड़ा कि वे धारा 370 पर कोई विचार नहीं कर रहीं। इस बयान का क्या अर्थ निकाला जाय कि यह भाजपा सरकार की तरफ से एक लिखित दस्तावेज है जो मोदी ने पीडीपी का दिया है। क्या भाजपा इस बात का जबाब देगी? या संघ के रामजादे इस पर भी चुप रहेगें? संध की बोलती पर ताला लगानेवाले मोदी की जबान में जहर ही जहर भरा है अब तो हमें लगता है कि मोदी जिताना पाकिस्तान के लिये खतरा नहीं उससे भी कहीं अधिक हिन्दुस्तान के लिये खतरनाक साबित होते जा रहा है।

मुफ्ती मोहम्मद सईद के साथ गठबंधन कर भाजपा भले ही कांग्रेस को सत्ता से अलग करने की राजनीति में सफल रही हो पर इस बात से यह तो प्रमाणित हो गया कि कभी 'राम' तो कभी 'देशभक्ति' को बेचने में भाजपा से बड़ा धोखेबाज दूसरा कोई नहीं जो आंस्तीन के सांप की तरह हिन्दुस्तानियों की भावना को भंजाकर सत्ता पर काबिज होते ही अपनी दौगली 'जात' दिखा देता है। आज जिस प्रकार से देश को चलाने का प्रयास भाजपा कर रही है इससे देश की जनता में भारी असंतोष पनपने लगा है कि स्पष्ट शब्दों में लोग कहने लगे है कि ‘‘यह भी गद्दार निकला’’। जयहिन्द!

बुधवार, 11 फ़रवरी 2015

आप’की ऐतिहासिक जीत

लेखक: शम्भु चौधरी
10 तारीख के दिन 11.00 बजते-बजते ‘‘5 साल केजरीवाल’’ के नारे से दिल्ली गुंज उठा। एक के बाद एक भाजपा के उम्मीदवार मैदान में धूल चाटते नजर आये। जैसे ही चुनाव परिणाम 'आम आदमी' के पक्ष में आने लगे तो लगा कि किसी तरह 40 तक पंहुच जायेगा। जब 35...36.. 40.. के बाद अचानक 50..51.. पर विजयी होने के आंकड़े आने लगे तो कई लोगों के नीचे की जमीन घिसकने लगी। भाजपा दलाल सटोरियों ने अपने मोबाईल को स्वीचआॅफ कर दिये।

कोलकाताः (10 फरवरी 2015) दिल्ली विधानसभा के चुनाव परिणाम ईपीएम मेशीन से ज्यूं-ज्यूं बहार आने लगे, कई मीडिया हाउस जो झूटे ही भाजपा को शुरू में बढ़त दिखाने का ढोंग रचते रहे दिन सुबह के 10 बजते-बजते उनकी जुबान लड़खराने लगी और ईपीएम मेशीन से निकल के आंकड़े बोलने लगे। कलतक जो लोग ‘आम आदमी पार्टी’ के दफ्तर में ताला लगाने की बात बोलते थकते नहीं थे। लोकतंत्र की ताकत ने उनके जुबान पर ऐसा ताला जड़ दिया कि पांच साल तक रह-रहकर सरकार को ब्लैकमेल भी नहीं पायेगें।। मेरी रचना -

जल जायेगी धरती जब, सत्ता के गलियारों में, भड़क उठेगी ज्वाला तब, नन्हे से पहरेदारों में।

दिल्ली के चुनाव में आम आदमी की जीत ने यह साबित कर दिया कि लोकतंत्र में अहंकार की कोई जगह नहीं है। आम आदमी पार्टी की सफलता ‘जनता की, जनता के द्वारा और जनता के लिये’ भारत के संविधान में सत्य को साकार कर दिया। भाजपा के नाकारात्मक प्रचार, धन की बर्वादी, अर्मादित और असभ्य भाषा का प्रयोग, 200 से अधिक सांसदों, कई केन्द्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री स्वयं, भाजपा के अध्यक्ष की पूरी ताकत, संध परिवार, कई राज्यों के मंत्री-मुख्यमंत्री सबके-सब एक परिंदे के सामने धूल चाटते नजर आये।

मोदी जी ने लोकसभा चुनाव जीतने के लिये जिन जुमले का प्रयोग कर कांग्रेस पार्टी को सत्ता से वेदखल किया था, उन्हीं जुमलों ने मोदीजी के अश्वमेध विजयी घोड़े को दिल्ली में रोक दिया। जिस विजयी यात्रा ने भाजपा अध्यक्ष श्री अमित शाह सह प्रधानमंत्री श्री मोदीजी को अहंकारी बना दिया था, यही अहंकार भाजपा को दिल्ली में डूबा दिया। भाजपा और संघ की केडर बेस ताकत, किरण बेदी का मास्टर स्ट्रोक, चपलुस मीडिया का एक वर्ग, नाकारात्मक विज्ञापनों की झड़ी ये सब प्रहार केजरीवाल के मजबूत इरादों के सामने पानी भरते नजर आये। केजरीवाल के एक-एक शब्द इनलोगों पर भारी पड़ने लगे। त्रिकोणात्मक संर्घष में किसी एक राजनीति दल को 54.2 प्रतिशत मतों का मिलना भारत के चुनावी इतिहास अबतक सभी आंकड़ों को पीछे छोड़ दिया।

10 तारिख के दिन 11.00 बजते-बजते ‘‘5 साल केजरीवाल’’ के नारे से दिल्ली गुंज उठा। एक के बाद एक भाजपा के उम्मीदवार मैदान में धूल चाटते नजर आये। जैसे ही चुनाव परिणाम 'आम आदमी' के पक्ष में आने लगे तो लगा कि किसी तरह 40 तक पंहुच जायेगा। जब 35...36.. 40.. के बाद अचानक 50..51.. पर विजयी होने के आंकड़े आने लगे तो कई लोगों के नीचे की जमीन घिसकने लगी। भाजपा दलाल सटोरियों ने अपने मोबाईल को स्वीचआॅफ कर दिये। परिणाम देखते-देखते कई लोगों की सांसे फूलने लगी। अबतक कांग्रेस पार्टी मैदान से बहार हो चुकी थी। तभी चुनाव आयोग की तरफ से एक सूचना आई कि ‘आम आदमी पार्टी’ को 54.2 प्रतिशत मिले हैं। तबतक रूझान अपने अंतिम चरण की तरफ कदम रख चुका था। आम आदमी -61, भाजपा-9, कांग्रेस - 0, और अन्य -0 । सभी की सांसें थम सी गई थी। आम आदमी पार्टी के दफ्तर में जश्न को माहौल था, भाजपा कार्यलय के बहार हल्की चहल-पहल थी और कांग्रेस के कार्यालय के बहार सन्नाटा छाया हुआ था। अंतिम चरण में मुकाबला एक तरफा हो गया था। ‘आप-65’ , ‘भाजपा -5’ ...आप-66, भाजपा-4 समाचार आया किरण बेदी चुनाव हार गई। अंतिम परिणाम ‘आप-67’ और ‘भाजपा-3’ केजरीवाल अपने मित्रों व धर्मपत्नी के साथ जनता के सामने आते हैं कहते हैं - यह आप‘की’ जीत है।

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

हिन्दू ‘भाजपा’ के बंधवा वोटर? -शम्भु चौधरी

बुखारी साब के समर्थन को ठुकरातेे हुए ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने जो साहासिक कदम उठाया यह भारत की राजनीति के लिये एक सबक है। चुनाव परिणाम में इसका क्या प्रभाव होगा यह अलग बात है लेकिन यह जरूर है ‘आप’ ने भारतीय राजनेताओं को दर्पण दिखा दिया है कि मजबूत ईरादे से यदि चुनाव लड़ा जाये तो सांप्रदायिक ताकतों को तमाचा जड़ा जा सकता है।

कोलकाताः (08 फरवरी 2015) दिल्ली विधानसभा का चुनाव प्रचार कल शाम थम गया परन्तु चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर धर्म की राजनीति करने वाले नकाबपोश चेहरे सामने आ गये। ऐसा प्रायः हर चुनाव के समय होता है। राजनैतिक ताकतें भी अपने फायदे की बात सोच उन बयानों का लाभ लेने में लग जाती है। विश्वनाथ प्रताप सिंह के दौर से कई फिरकाफरस्ती ताकतें अमूमन हर चुनाव के वक्त इस तरह के बयानबाजी करतें हैं और जनता के मतों के ठेकेदार बनकर राजनीति दलों को अपने फायदे के लिये इस्तमाल करती रही हैं।

दिल्ली के इस चुनाव में भी कुछ ऐसा ही हुआ। भाजपा को जहाँ डेरा सच्चा सौदा के गुरमीत राम रहीम का समर्थन मिला जिसमें उन्होंने दावा किया कि दिल्ली में 10 लाख सिख उनके समर्थक हैं। 'भाजपा' ने इसे स्वीकार कर लिया तो दूसरी तरफ दिल्ली के जामा मस्जिद के शाही इमाम सैयद अहमद बुखारी साब एक अपील जारी कर कहे कि ‘‘मुसलमान ‘आप’ को वोट दें’’। जबकि ‘आप’ ने इस तरह के समर्थन को ठुकराते हुए कहा कि उन्हें आम लोगों का समर्थन चाहिये धर्म-जाति के आधार पर सर्मथन देने वालों से उन्हें समर्थन नहीं चाहिये। ‘आप’ ने इसे अवसरवाद की राजनीति करार दिया।

‘आप’ के इस निर्णय से चुनाव के वक्त शाही इमाम बुखारी साब के दरबार पर घुटने टेकने वाले भारत की तमाम राजनीति दलों को मानो सांप सूंघ गया कि ‘आप’ की यह कैसी राजनीति? सामने आयी हुई थाली को ठुकरा दिया जबकि दूसरी तरफ ‘आप’ पर सांप्रदायिकता की राजनीति का आरोप लगाने वाली भाजपा के प्रवक्ता ने हिन्दुओं को भड़काने का बयान देकर कहा कि ‘‘इस फतवे के खिलाफ हिन्दू एकतरफा मतदान करें’’ भाजपा हमेशा से ही धर्म को चुनाव जीतने का एक हथकंडा मानती रही है। वहीं 'आप' ने एक नई लकीर खींच दी और धर्म को एक किनारे करते हुए आम लोगों की समस्या को अधिक महत्व दिया।

दूसरे पर सांप्रदायिकता का आरोप जड़नेवाली भाजपा भीतर से कितनी जहरीली है कि इसका इस बात से ही पता चलता है कि एक तरफ वह जब खुद धर्म के आधार पर किसी का समर्थन लेती है या बयानबाजी करती है तो उसे उसमें इसे सांप्रदायिकता की ‘बू’ नहीं झलकती। वहीं कोई दूसरे सांप्रदाय के लोग खासकर मुसलमान समाज के बयान पर तिलमिला जाती है। भाजपा को मुसलमान समर्थन दे तो वह तो वह भारतीय नहीं तो पाकिस्तानी? कलतक जिस बंगलादेशी को लेकर भाजपा सांप की तरह फुफकार मारती नहीं थकती थी आज ये सारे मुद्दे कहां चले गये?

बुखारी साब के समर्थन को ठुकरातेे हुए ‘‘आम आदमी पार्टी’’ ने जो साहासिक कदम उठाया यह भारत की राजनीति के लिये एक सबक है। चुनाव परिणाम में इसका क्या प्रभाव होगा यह अलग बात है लेकिन यह जरूर है ‘आप’ ने भारतीय राजनेताओं को दर्पण दिखा दिया है कि मजबूत ईरादे से यदि चुनाव लड़ा जाये तो सांप्रदायिक ताकतों को तमाचा जड़ा जा सकता है।

दिल्ली के चुनाव में इमाम बुखारी के प्रस्वात को ठुकरा देने के पश्चात भी मसलमानों ने बड़ी संख्या में ‘आप’ के पक्ष में मतदान किया वहीं भाजपा के हुक्म को किनारे करते हुए हिन्दुओं ने भी यह स्वीकार किया की ‘केजरीवाल’ की राजनीति में कुछ तो नया जरूर है। जो भाजपा हिन्दुओं को अपना बंधवा वोटर समझती है उसके इस भ्रम को भी चकनाचुर कर दिया दिल्ली की जनता ने। जयहिन्द!

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

स्वच्छ भारत का निर्माण -शम्भु चौधरी

यह लड़ाई अकेले ‘केजरीवाल’ की नहीं है। आम आदमी यही चाहता है कि भारत की राजनीति में अच्छे लोग आयें। भले ही वह किसी भी दल से क्यों न जूड़ा हो। राजनीति के इस गंदे प्रदुषित वातावरण में 'आम आदमी पार्टी' का छोटा सा प्रयास है कितना कारगार सिद्ध हुआ हम और आप इस बात से ही अंदाज लगा लें कि दिल्ली चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर कांग्रेस और भाजपा को साफ छवि के चेहरे को जनता के सामने रखना पड़ा। चुनाव में हार-जीत होती रहेगी। राजनीति को स्वच्छ बनाकर ही हम ‘‘स्वच्छ भारत का निर्माण’’ कर सकतें हैं।
कोलकाताः (05 फरवरी 2015) आज दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरम पर है। शाम पांच बजे से चुनाव प्रचार पर विराम लग जायेगा। इसके साथ ही विराम लग जायेगा भारत में गंदी राजनीति करने वाले उन मुनसबों पर जो पिछले 10 दिनों से दिल्ली में नाकारात्मक प्रचार में लगे हुए थे। विराम लग जायेगा जिनके हाथ किचड़ में सने थे उन पर, विराम लग जायेगा जो किचड़ में पैदा होते हैं। देश के कुछ के युवाओं का एक छोटा सा सपना पुनः जीवित हो उठेगा जिसे कुचलने के लिये भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झौंक दी थी। चुनाव आयोग ने अपनी टिप्पणी पर राजनैतिक नेताओं की इस वयानबाजी पर काफी असंतोष व्यक्त किया है। हमें चुनाव आयोग की इस टिप्पणी को काफी गंभीरता से लेने की जरूरत है।
यह चुनाव भारत की राजनीति का एक आईना माना जायेगा। जिस मोदीजी को चंद दिनों पहले ही इसी जनता ने सर का ताज बनाया था, आज उसी जनता ने इनके घंमड को चकनाचूर करके रख दिया। एक चिराग को बुझाने के लिये ‘भाजपा’ ने क्या-क्या पापड़ नहीं सैंके। बल्की यह लिखा जाए कि क्या नहीं बेलन नहीं बेले। भारतीय संस्कृति की बात करने वाली ‘भाजपा’ ने व्यक्तिगत-जातिगत हमले तक करने से परहेज नहीं किया। चुनाव नहीं जैसे मोदीजी की ‘‘मूंछ की लड़ाई’’ हो गई। भाजपा मैदान से गौन हो चुकी थी।
‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नाम पर सिर्फ सड़कों की गंदगी को दूर करने का ढोंग करने वाले मोदीजी ने दिल्ली के इस चुनाव नाकारात्मक विज्ञापनों भरमार कर दी। जो लोकतंत्र में किसी भी रूप में स्वीकार नहीं हो सकता। आरोप-प्रत्यारोप लोकतंत्र में जरूरी है। लेकिन नाकारात्मक प्रचार और व्यक्तिगत-जातिगत हमले को जनता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं कर सकती। आज लगता है आदरणीय श्री अटल जी के इस कथन को कि ‘‘किचड़ में फूल खिलेगा’’ का मायने को ही मोदीजी ने बदल डाला। दिल्ली के चुनाव में भाजपा खासकर मोदीजी के इस व्यवहार से देश को बड़ी निराशा ही हाथ लगी है। दिल्ली के चुनाव में देश की जनता ने यह देख लिया कि भाजपा के नेताओं में ठीक वैसा ही घंमड झलकने लगा जो कुछ दिनों पूर्व कांग्रेस के नेताओं में देखा जा सकता था।
मोदीजी के सपने का ‘स्वच्छ भारत अभियान’ से कुछ हटकर केजरीवाल के ‘स्वच्छ भारत निर्माण’ पर लोगों ने अपनी मोहर लगा दी। मोदीजी सड़कों की गंदगी साफ करने की बात करतें हैं वहीं केजरीवाल जी कहते हैं ‘‘भारत को अच्छा माहौल देना है तो अच्छे लोगों को इस गंदी राजनीति के अंदर आना होगा, तभी हम इस गंदगी को दूर कर पायेगें। आज जब हम किसी युवा से राजनीति की बात करतें तो उसका सीधा सा जबाब होता है - ‘‘राजनीति बहुत गंदी है’’ हमारे अंदर भी यही भावना भरी हुई थी। लेकिन अन्नाजी के आंदोलन के दौरान हमने महसूस किया कि कहीं से तो हमें इसे साफ करने की शुरूआत करनी ही होगी। यह लड़ाई अकेले की नहीं है। हम सबकी है। किरण जी का राजनीति में आना भी ‘‘बूराई पर अच्छाई’’ की एक जीत मानता हूँ। उनका स्वागत करता हूँ। वह मेरी बड़ी बहन है। कोई भी व्यक्ति साफ-सुथरे छवि का चेहरा अपनी इच्छानुसार किसी भी राजनीति दल का सदस्य बने इसमें कोई अड़चन नहीं। हमें युवाओं के अंदर व्याप्त इस हीन भावना को दूर करना होगा कि ‘‘राजनीति बहुत गंदी है’’ राजनीति बहुत अच्छी है। इसे चंदलोगों ने गंदा बना डाला है।’’
यह लड़ाई अकेले ‘केजरीवाल’ की नहीं है। आम आदमी यही चाहता है कि भारत की राजनीति में अच्छे लोग आयें। भले ही वह किसी भी दल से क्यों न जूड़ा हो। राजनीति के इस गंदे प्रदुषित वातावरण में 'आम आदमी पार्टी' का छोटा सा प्रयास है कितना कारगार सिद्ध हुआ हम और आप इस बात से ही अंदाज लगा लें कि दिल्ली चुनाव के ठीक ऐन वक्त पर कांग्रेस और भाजपा को साफ छवि के चेहरे को जनता के सामने रखना पड़ा। चुनाव में हार-जीत होती रहेगी। राजनीति को स्वच्छ बनाकर ही हम ‘‘स्वच्छ भारत का निर्माण’’ कर सकतें हैं। जयहिन्द! वंदे मातरम्