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मंगलवार, 30 अप्रैल 2019

तेज बहादुर यादव (Tej Bahadur Yadav)

#tejbahadur

शनिवार, 27 अप्रैल 2019

ईवीएम से छेड़-छाड़ संभव?


ईवीएम से छेड़-छाड़ संभव? 
चुनाव आयोग रूल 49MA  के तहत यह स्वीकार करती है कि ईवीएम में खराबी हो सकती है और मतदाता ने अपना मत जिस राजनीति पार्टी को दिया है उसे ना जाकर किसी ओर को जाने पर क्या करना होगा इसकी व्यवस्था दी गई है इसके दो अर्थ साफ-साफ निकाले जा सकतें हैं 1. ईवीएम मशीन में खराबी संभव है  2. मशीन के साथ छेड़छाड़ संभव है। यह लेख जनहित में लिखा गया है और कॉपीराइट अधिनियम से मुक्त है। आगे पढ़ें -
किसी भी चुनाव में मतदान के बाद मतगणना उसका दूसरा पड़ाव होता है। चुनाव संपन्न कराने वाले अधिकारियों का यह दायित्व बन जाता है कि वे चुनाव की सभी प्रक्रियाओं को पारदर्शीता के साथ ना सिर्फ पूरा करें साथ ही समय-समय पर सभी संबंधित पक्षों के साथ राय-मशवरा कर चुनाव की प्रक्रियाओं में सुधार भी लायें तथा  आयोग के द्वारा घोषित परिणामों में कोई शक-शुबहा की गुंजाइस ना रह जाए। चाहे वह लोकसभा के चुनाव हो या विधानसभा के चुनाव या किसी भी क्षेत्र में चुनाव हो। परन्तु चुनाव की प्रक्रिया हमेशा विवादों में बनी रही है। इस संदर्भ में ‘‘राजनारायण बनाम इंदिरा गांधी (1975)’’ का ऐतिहासिक फैसला जिसमें इलाहाबाद उच्च न्यायालय के तात्कालिक जस्टिस जगमोहन लाल सिन्हा ने श्रीमती गांधी के चुनाव को रद्द करते हुए जस्टिस सिन्हा ने अपने आदेश में लिखा कि इंदिरा गांधी ने अपने चुनाव में सरकारी अधिकारियों और सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल किया जो जन प्रतिनिधित्व कानून के अनुसार गैर-कानूनी था। 
ठीक इसी प्रकार उस जमाने में कागज के मतपत्रों के द्वारा मतदान कराया जाते थे जिसे बाहुबली लोग कई बार लूट भी लेते थे। भारत में सांइस्टिफिक रेगिंग काफी मशहूर है, जिसमें मतदान केंद्रों के अंदर सुबह से ही एक लंबी लाईन सभ्य तरीके से लगा दी जाती है और उस लाइन के सदस्य ही बारी-बारी से मतदान करते पुनः लाईन के मध्य लग जाते हैं। पीछे के लोग घंटों खडे रह जाते कुछ शोर-शराबा होता तो लाईन हटा ली जाती फिर यही प्रक्रिया कुछ अंतराल के बाद फिर से चलाई जाती है। इसी प्रकार कई ईलाकों में ऐसा भी देखा जाता है कि मतदाताओं को डरा-धमका के भगा दिया जाता है और मतदान केन्द्र पर कब्जा कर के मतदान किया जाता था। हांलाकि ईवीएम मशीन के आ जाने के बाद व टी.एन शेषन के द्वारा चुनाव प्रक्रियाओं में सुधार क पश्चात मतपत्रों की लूट में काफी हद तक कमी आई है वहीं ईवीएम की हैकिंग की बातें सामने आने लगी । चुनाव आयोग कितना भी खुद को पाक-साफ बताते रहे, कितने भी  सचे-झूठे दावे करते रहे पर विज्ञान इस बात को स्वीकार नहीं सकता कि ईवीएम के साथ छेड़छाड़ संभव ही नही है। ऐसा संभव नहीं होता तो दुनियाभर में आई.टी एक्सपर्ट क्यों रखे जाते हैं ? ईवीएम भी एक मशीन ही है इस बात से तो चुनाव आयोग इंकार नहीं कर सकता। दो प्लस दो चार हो सकतें हैं तो दो गुना तीन छह भी हो सकता है। इस बात को कोई  इंकार नहीं कर सकता ।

देखें एक ईवीएम में कितने प्रकार से प्रोग्राम सेट किये जा सकते हैं - 
1) टाइम सेट: मतदान शुरू होने के दो घंटे के बाद हर पांच मिनट में अगले पांच मिनट तक किसी भी एक पार्टी को मत देने का निर्देश दिया जा सकता है। उसे ऐसे या इस प्रकार सेट किया जा सकता है।  आप उसे सेट कर दें तो मशीन आपके आदेश का पालन करेगी। यानि की चुनाव शुरू होने के दो घंटा पश्चात से लेकर अंत तक वह वही कार्य करेगी। 
2) टाइम सेट-2 : दूसरा तरीका है मतदान शुरू होने के एक या दो घंटे के बाद प्रत्येक दो वोट के बाद तीन या चार वोट किसी एक ही दल को मिले। अर्थात आप जब वोट डालने जायेगें तो पहला व दूसरा वोट सही पड़ेगा फिर चौथा, पांचवां, छठा और सातवाँ वोट किसी एक विशेष दल को ही मिलेगा। पुनः यह प्रक्रिया स्वतः दोहराई जायेगी। यह सब कार्य मशीन स्वतः करेगी। 
3) अनुपात सेट : शुरू में 100 या 200 वोट सही पड़ेगें उसके बाद एक सही, दो गलत .. एक सही, दो गलत .. यह प्रक्रिया अंत तक चलेगी। यह प्रक्रिया में अनुपात तय कर दिया जाता है जिसमें किसी एक उम्मीदवार को हमेशा वह आगे ही रखेगा ।

अर्थात उपरोक्त तीनों प्रक्रिया में जब उम्मीदवारों के प्रतिनिधि इस बात की पुष्टि कर देगें कि सबकुछ ठीक है । तब वह अपना काम वह भी एक या  दो घंटों के बाद शुरू करेगी। भले ही चुनाव आयोग इस बात से अनिभिज्ञ हो पर ऐसा संभव है। यह एक स्वाभाविक है कि किसी भी मशीन में ऐसा किया जा सकता है। तो ईवीएम में भी संभव है।  तकनीकी विशेषज्ञ इस बात से इंकार नहीं कर सकते।  शेयर बाजार में इस प्रक्रिया का प्रयोग साधारण है जब किसी भी स्टाॅक की खरीद-बिक्री अचानक से बाधित कर दी जाती है। या उसमें नये नियम ट्रेडिंग के बीच ही जोड़ दिये जातें हैं।

जबसे वीवीपेट प्रणाली को ईवीएम यूनिट के साथ जोड़ दिया गया है तो अब नयी तरह की बातें सामने आने लगी। बड़ी संख्या में ईवीएम मशीनों में गड़बड़ी की बात खुलकर सामने आने लगी है। जो अब तक पर्दे के पीछे थी। जिसे चुनाव आयोग  अभी तक स्वीकारने  को तैयार नही था कि गलत मतदान संभव है ।  हांलाकि चुनाव आयोग अभी भी सभी आरोपों का समाधान निर्वाचनों का संचालन रूल्स, 1961’’ की रूल 49MA के तहत करने का दावा करती है जिसमें संबंधित निर्वाचन अधिकारी को नियम 17A के तहत एक ‘एक नया जांच मत’ संबंधित व्यक्ति को देने की बात कही गई है । यानि कि चुनाव आयोग का रूल 49MA यह स्वीकार करता है कि मतदान में गड़बड़ी संभव है । और अपने पापों को छुपाने के लिए मतदाताओं को पहले धमकाता भी है कि उसे आईपीसी  177 के तहत यदि यह सिद्ध हो जाता है कि मतदाता ने जानबूझ कर चुनाव अधिकारी को गलत सूचना दी तो सजा का भी प्रावधान है। परन्तु यहां यह सोचने की बात भी है कि जब ईवीएम मशीन में गलती पाई जायेगी तो किसे सजा मिलगी? देश के लोकतंत्र से खिलवाड़ करने वाले लोग सजा मुक्त और जागरूक जनता  को डराया जाना यह नेचुरल जस्टिस के विरूध है।  चुनाव आयेग इतना ईमानदार कब से हो गया? कि वह जो कहे सब सही बाकी लोग झूठे?

[ET Bureau & Agencies Apr 30, 2019, 07.17 AM IST] 
New Delhi: The Supreme Court has sought the Election Commission’s response on a plea which sought striking down of a provision in election rules that envisages prosecution of an elector if a complaint alleging malfunctioning of EVMs and VVPATs cannot be proven.
A bench comprising Chief Justice Ranjan Gogoi and justices Deepak Gupta and Sanjiv Khanna took note of the plea, filed by Mumbai-based lawyer Sunil Ahya, that said 49MA of the Conduct of Elections Rules was unconstitutional 
ऊपर के पेरा का यह अर्थ भी निकाला जा सकता है - जब वीवीपेट के द्वारा देखने की सुविधा नहीं थी तब कि ये मशीने  क्या यही करती थी जो अब वीवीपेट से जोड़े जाने के बाद देखा जा रहा है? मत किसी ओर पार्टी को जाते साफ देखा जा सकता है। इसीलिये यह नया रूल 49MA को जोड़ा गया है। अर्थात चुनाव आयोग खुद यह स्वीकार कर रहा है कि ऐसा संभव है। इसका यह अर्थ भी निकला जा सकता है कि क्या ईवीएम के साथ कोई छेड़-छाड़ की जा सकती है जो इस नये रूल 49MA में बताया गया है?

इन आरोपों को चुनाव आयोग ‘‘निर्वाचनों का संचालन नियम, 1961’’ की रूल 49MA के उप नियम 1, 2,3 व 4 के तहत आईपीसी की धारा 177 के तहत एक चेतावनी देकर, रूल 17A के तहत उस व्यक्ति को पुनः एक जांच वोट डालने का अवसर देती  है। परन्तु सवाल यह भी उठता है कि जिस ‘मत स्लीप’ में उस मतदाता ने गलती देखी उसी स्लीप की जांच कैसे होगी ? कोई जरूरी नही कि दूसरा मत भी गलत हो? या अल्टनेटर सेटिंग हो या हर चार मत के बाद एक मत की सेटिंग हो ऐसा भी तो  संभव हो सकता है? और जब जांच के लिये दूसरा मत पत्र जारी किया जाए तो वह सही पाया गया तो सजा किसे होगी?  क्यों  देश को धोखा दे रहा है चुनाव आयोग?
जहां गलत पाये जाने पर सजा  (1000/- तक फाइन व 6 माह की जेल या दोनों ) हो सकती है तो चुनाव आयोग को साथ ही यह भी बताना चाहिये कि जिन-जिन मशीनों में गड़बड़ी की शिकायत सही पाई गई और ईवीएम मशीनें उन बुथों पर बदली गई उसमें शिकायत कर्ता का आरोप सही पाया गया था क्या? और किस राजनीति दल के पक्ष में गलत मतदान हो रहा था? इन बातों को आयोग ने क्यों छुपा लिया ताकि उसकी पोल न खुल जाए ? चुनाव आयोग पर यह प्रतिबद्धता होनी चाहिये  कि वे उन ईवीएम मशीनों के आंकड़े और रद्द मशीनों का पूरा विवरण सार्वजनिक करे, ताकि जनता को यह भी पता चल सके कि ईवीएम में क्या गड़बड़ी पाई जा रही थी। और इन गड़बड़ियों का सीधा संबंध किस-किस राजनीति दल से है?  जयहिन्द! [Edited]
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी  




मंगलवार, 23 अप्रैल 2019

चुनाव आयोग - दाल में काला


VVPAT ki parchi ki ginti tou good idea hai. Kisi ko koi sikayat hi nai rahegi.

1. Voter janch kar liya ki uska vote kise Gaya.
2. Candidate gin le ki kisko kitna Mila.
Vivad Kahan hai?
Ya tou app free and fare chonaw nai karana chate. Ya niyat main kahin  khot hai.
आज तीसरे चरण का मतदान संपन्न हो गया। इसके साथ ही देशभर से ईवीएम मेशीनों में गड़बड़ी की शिकायतें आती रही। चुनाव आयोग इसे तकनीकी खराबी बोलकर मशीनों को बदल रहा है। पर यह सोचने की बात है जब से ईवीएम मशीन में किसे वोट पड़ा को वीवीपेड के माध्यम से देखने की व्यवस्था की गई है तब से उन मेशीनों में जाे शिकायतें आ रही है वह भाजपा को ही मत जाने की शिकायत क्यों दिखा रहा है अर्थात ये वहीं मशीनें है जिस लेकर लगातार कई राजनीतिक ने पिछलेे चुनावों में आवाजें उठाई थी।

इन मेशीनें में निकल रही गड़बड़ियों को चुनाव आयोग हल्के में टाल रहा है पर इसके पीछे गहरी साजिश की भी बू आ रही है कि क्या ये वहीं मशीनें हैं जिसमें बिना वीवीपेड के चुनाव हुआ थे?

यदि ये वही मशीने हैं तो चुनाव आयोग को यह बताना होगा कि इन गड़बड़ी वाली मशीनों का उपयोग पिछले किन-किन चुनाव में और किन-किन बुथों पर हुआ था? ताकि उन बुथों के मतों के परिणामों का आकलन पुनः  किया जा सके कि वहां क्या हुआ था।

चुनाव आयोग यदि वह सच में लोकतंत्र की रक्षा के प्रति प्रतिबद्ध है तो वर्तमान लोकसभा के चुनाव में शिकायतें आने वाली तमाम मेशीनों के आंकड़ों  उसकी कोड संख्या और पिछले चुनावों में उन मेशीनों का प्रयोग किन-किन बुथों पर हुआ था उसकी पूरी सूचना अपने बेवसाइट पर जारी करे। अन्यथा यह मान लिया जायेगा कि चुनाव आयोग लोकतंत्र के नाम पर मजाक करने में किसी विशेष राजनीति दल को सहयोग कर रहा है और चुनाव आयोग की उस आनाकानी की भी बात अब समझ में आ जायेगी जिसमें आयोग सभी बुथों के वीवीपेड के मतपत्रों की गिणती में हिचकिचा रहा था दाल में काला तो जरूर है। जब लोकतंत्र की ताकत जनगणना है जो मतगणना से क्यों डर रहा है आयोग?

1. Das Joseph Koottappillil6:04 In Kerala EVM votes are going to BJP while pressing icons other parties..

2.
Sameer Omar0:02 ചേര്ത്തലയിലും വോട്ടിംഗ് മെഷീനില് പിഴവ്; കോണ്ഗ്രസിനും എല്ഡിഎഫിനും വോട്ട് ചെയ്താല് സ്‌ക്രീനില് തെളിയുന്നത് താമര

https://www.reporter.live/2019/04/23/557345.html


3. 
गोवा में ‘दोषपूर्ण’ ईवीएम अन्य वोटों को बीजेपी में ट्रांसफर करती है. क्या वास्तव में प्रोग्राम में दोष है या इसे इस तरह से प्रोग्राम किया गया है.

4. 
“Faulty” EVM in Goa also transfers others votes to BJP. Are these really faulty or programmed in this fashion?

5.
Way too many EVMs are malfunctioning in Chittapur. Over 20 reported so far. Hope the district administration has enough backups.@ceo_karnataka

कई जगह खराब हुईं ईवीएम
केरल से भी इसी तरह की खबर आ रही है. न्यू इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक आरोप लग रहे हैं कि कांग्रेस को पड़ने वाले वोट बीजेपी के खाते में जा रहे हैं. न्यूज एजेंसी पीटीआई के मुताबिक राज्य के कई लोकसभा क्षेत्रों से ईवीएम खराब होने की रिपोर्ट्स आ रही हैं. कासरगोड में 20 ईवीएम और कयानकुलम में 5 मशीनों के खराब होने की रिपोर्ट आई है. वायनाड जहां से कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी चुनाव लड़ रहे हैं यहां एनडीए के प्रत्याशी ने फिर से चुनाव कराने की मांग की है. इस लोकसभा सीट पर भी कई ईवीएम के खराब होने की खबर आई है.
यूपी में खराब हुईं 300 ईवीएम?यूपी के रामपुर में समाजवादी पार्टी ने आरोप लगाया कि सैकड़ों ईवीएम मशीनें काम नहीं कर रही हैं. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार आजम खान के बेटे अब्दुल्ला ने आरोप लगाया कि 300 से ज्यादा ईवीएम काम नहीं कर रही हैं. हालांकि बाद में रामपुर के डीएम ने कहा कि इसमें कोई सच्चाई नहीं है. ये अफवाह था.

शनिवार, 20 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत - 9

न्यायपालिका खतरे में - CJI  जस्टिस गोगोई
‘‘मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।  कुछ शक्तिशाली लोग सीजेआई के ऑफ़िस को निष्क्रिय करना चाहते हैं।  लोग पैसे के मामले में मुझ पर ऊंगली नहीं उठा सकते थे, इसलिये इस तरह का आरोप लगाया है। सीजेआई ने कहा कि मैं देश के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करूंगा।  जिन्होंने मुझपर आरोप लगाए हैं, वे जेल में थे और अब बाहर हैं। इसके पीछे कोई एक शख़्स नहीं है, बल्कि कई लोगों का हाथ है।" - CJI  जस्टिस गोगोई
         एक अपराधी महिला को जेल में इस प्रकार तैयार किया कि वह देश के उच्चतम अदालत के मुख्य जस्टिस रंजन गोगोई को ही  यौन शोषण के मामले में सीधे टारगेट कर दिया । मोदी जी इस बात को अब भली भांति जान चुके है कि अदालत के सामने झूठे दस्तावेज़ रख कर  राफेल के मामले में वे अब बुरी तरह से फँस चुके हैं । जिसे पिछली सुनवाई में  अटॉर्नी जनरल के.के वेणुगोपाल उसी दिन खुली अदालत में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को  धमकी भी दे  चुके थे कि वे  राफेल मामले में अपने पहले के फैसले की समीक्षा कर के सही नहीं कर रहे हैं । 
           मोदी जी यह बात अच्छी तरह जानते है कि यौन शोषण का एक ऐसा कमजोर हथियार है।  जिसका प्रयोग कर किसी भी व्यक्ति को तत्काल बदनाम किया जा सकता है और महिला को कुछ नहीं होगा क्योंकि उसके नाम को लेना भी अपराध है। मोदी ने कई जगह अपने राजनीति फायदे के लिए इसका प्रयोग किया भी है हार्दिक पटेल की फर्जी सेक्स सीडी आप सभी को याद होगा ही। मोदी किसी को भी इस हथियार से बदनाम करने में उन्हें महारत प्राप्त है।  यौन शोषण का ताजा आरोप  अपने रास्ते के काँटे को हटाने के लिए ही किया है यह एक प्रमाणित तथ्य है। मोदी के सत्ता में आने के बाद  इस नये हथियार को प्रयोग धड़ल्ले  किया जाने लगा है।  जिस दिन रंजन गोगोई  ने केन्द्र सरकार को यह आदेश दिया कि वे राफेल से जुड़े वे तमाम दस्तावेज़ ना सिर्फ कोर्ट में जमा करे, साथ ही साथ उन तीनों वादियों को भी उसकी प्रति दी जाए तब से मोदी सरकार बेचेन थी कि किस प्रकार सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई को रास्ते से हटा दिया जाय । क्योंकि अभी संसद का गठन होने मे एक माह वक्त लगेगा और किसकी सरकार आयेगी यह किसी को पता नहीं । मोदी की लहर 2014 जैसी नहीं हैं यह सब  बात (राफेल)मोदी के लिये चिंता का विषय बन चुकी थी। 
        
      पिछली सुनवाई के बाद एक माह तक सुप्रीम कोर्ट में इस बात पर विचार करती रही कि वे क्या फैसला ले? क्या चोरी के दस्तावेज़ पर सुनावई करे कि नहीं? जिस दिन यह निर्णय आया उसी दिन गोगोई जी को यह सोच लेना चाहिये था कि अब उनके साथ भी कुछ गलत होने वाला है जो जस्टिस लोया के साथ हुआ था। खैर अभी मामला यौन शोषण तक ही आकर अटक गया पर आगे भी कुछ भी हो सकता है। क्योंकि भाजपा का एक वर्ग राम मंदिर के मामले में भी रंजन गोगोई के ऊपर तरह-तरह के आरोप खुल कर मीडिया के सामने लगा चुकी है। 
          यहां यह  बात लिखने  में आज मैं जरा भी संकोच नहीं करुंगा कि  सुप्रीम कोर्ट के जजों को लोकतंत्र की रक्षा के लिये एकजूटता दिखानी चाहिये। और किसी भी हालात में राफेल की सुनवाई जल्द से जल्द  कर दूध का दूध और पानी का पानी कर देना चाहिये भले ही इसके लिये कोई भी कीमत क्यों ना चुकानी पड़े।
       
        मोदी जी आगामी लोकसभा चुनाव जीतने में राफेल सौदे की सुनवाई को अपना सबसे बड़ा रोड़ा मान रहें है कि कहीं अगली सुनवाई में कोई बात उनके खिलाफ जगजाहिर हो गई तो पूरा देश उन्हें मारने दौड़ेगा । वैसे भी फ्रांस में अनिल अंबानी को टैक्स में जो राहत राफेल सौदे के बाद दी गई जैसा कि ‘‘ला मोंडे’’ में छपा है। इस अपराध को भी राफेल सौदे की एक कड़ी के रूप में  देखा जा रहा है । इस खतरे को भी मेादी जी पहले से ही भाँप चुके है।
          आज की ताजा घटनाक्रम इसी अपराघ की एक कड़ी है जो सीधे मोदी से जोड़कर देखी जा  रही है।  यौन शोषण के आरोप से घिरे सुप्रीम कोर्ट में मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई ने अपने ऊपर लगे  यौन शोषण के आरोप को खारिज करते हुइ कहा कि ‘‘ मुझे नहीं लगता कि इन आरोपों का खंडन करने के लिए मुझे इतना नीचे उतरना चाहिए । सीजेआई रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका खतरे में है। अगले हफ्ते कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई होनी है, इसलिये जानबूझकर ऐसे आरोप लगाए गए। 
          रंजन गोगोई ने कहा कि न्यायपालिका को बलि का बकरा नहीं बनाया जा सकता है। ‘‘मैंने आज अदालत में बैठने का असामान्य और असाधारण कदम उठाया है क्योंकि चीजें बहुत आगे बढ़ चुकी हैं।  कुछ शक्तिशाली लोग सीजेआई के ऑफ़िस को निष्क्रिय करना चाहते हैं।  लोग पैसे के मामले में मुझ पर ऊंगली नहीं उठा सकते थे, इसलिये इस तरह का आरोप लगाया है। सीजेआई ने कहा कि मैं देश के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि मैं महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई करूंगा।  जिन्होंने मुझपर आरोप लगाए हैं, वे जेल में थे और अब बाहर हैं। इसके पीछे कोई एक शख़्स नहीं है, बल्कि कई लोगों का हाथ है।"
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत - 8

मुल्क के गद्दार 
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार और इमरान खान की मिली भगत का एक नमूना प्रतित होता है।   अर्थात  प्रधानमंत्री मोदी और इमरान खान इन दोनों ने मिलकर भारत की जनता को मुर्ख बनाने का प्रयास किया है। ये दोनों ही अपने-अपने मुल्क के गद्दार हैं ।
अब यह बात घीरे-धीरे सामने आ रही है कि पुलमावा में 14 फरवारी 2019 को हुए आतंकी हमले के समय मोदी जी और उनकी सरकार क्यों चुप थी?
1. पुलमावा में सैनिकों पर आतंकी हमला के दौरान प्रधानमंत्री को चार घंटे फिल्म की सुटिंग कराते रहना ।
2. फिर सुटिंग से निकलते ही जनता को संबोधन करना जिसमें पुलमावा घटना का कोई उल्लेख ना होना ।
3. शाम 5 बजे तक प्रधानमंत्री कार्यालय,  गृह मंत्रालय और रक्षा मंत्रालय का गायब हो जाना ।
कई बातों को संदेह के कठघरे में खड़ा कर देता है कि 24 घंटा काम करने वाले देश के  प्रधान सेवक जवानों की शहादत के समय आखिर क्या कर रहें थे? इसका जबाब अभी तक सीधे तौर पर नहीं दिया गया ।  फिर पुलमाव की घटना को दबाने के लिए मोदी ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के साथ मिलकर एक चालाकी की। ‘‘दोनों देश की जनता को ठगों योजना’’नकली एयर स्ट्राइक हमला 26 फरवरी 2019 को भारतीय वायु सेना के बालाकोट के सूनसान ईलाके में किया गया।  जिसकी दो तरह से पुष्ठि हो जाती है।  अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इसकी पुष्ठि भी  हो चुकी है कि जिस मस्जिद को हमले में गिराये जाने का दावा गोदी मीडिया कर रही है वह सब झूठ है।
इस झूठ की सच्चाई इस प्रकार है-
1.  पाकिस्तान की संसद में प्रधानमंत्री इमरान खान ने यह ऐलान कि वह भारतीय पायलट अभिनंदन को  पाकिस्तान बिना किसी शर्त के  रिहा करेगा। साथ ही बताया कि 'बालाकोट' में भारतीय हमला हुआ, उससे पाकिस्तान को कोई क्षति नहीं हुई है।
2. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज भाजपा कार्यकर्ताओं के सामने यह स्वीकार करना की भारतीय सेना को एयर स्ट्राइक के दौरान किसी भी पाकिस्तानी नागरिक या पाकिस्तानी सैनिकों को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए यह भारत सरकार की तरफ से हिदायत दी गई थी।
3. 350 आतंकवादी सहित मसूद को छुड़ाने वाला युसूफ भी मारा गया।
4. अमित शाह ने  कहा कि 250 आतंकवादी मारे गये।
5.  सेना की तरफ से बयान आया कि उनका काम लाशें गिनना नहीं है। अर्थात कितने आतंकी मारे गये इसका उनके पास कोई आंकड़ा नहीं है।
6.  भारतीय पायलट विंग कमांडर अभिनंदन की  बिना  शर्त  रिहाई और 
7.  इमरान खान का यह कहना कि मोदी को फिर सत्ता में आना चाहिये।
इन सब बातों को कड़ी दर कड़ी जोड़ दिया जाय तो पुलमावा की साजिश में मोदी सरकार और इमरान खान की मिली भगत का एक नमूना प्रतित होता है।   अर्थात  प्रधानमंत्री मोदी और इमरान खान इन दोनों ने मिलकर भारत की जनता को मुर्ख बनाने का प्रयास किया है। ये दोनों ही अपने-अपने मुल्क के गद्दार हैं ।
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बुधवार, 17 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत -7

चुनाव  आयोग बनाम नमो आयोग
देश की सर्वशक्तिमान संस्थान यानि कि ‘चुनाव आयोग’ जिसे भारत के संविधान में सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपाल को छोड़कर किसी भी व्यक्ति को सरकारी-गैर सरकारी  अधिकारियों के अधिकारों में परिवर्तित, उसके पद से उसका हस्तांतरण, उसके कार्यों  में हस्तक्षेप / रोक या कुछ भी जो उसे उचित लगे कि चुनाव की प्रक्रिया में उस  व्यक्ति का उपयोग कर सकती है  या  रोक लगा सकती है या  उसे निर्देश दे सकती है चाहे वह कितने ही बड़े पद पर विराजमान क्यों न हो परन्तु इस बार 2019 के लोकसभा चुनाव में देश के प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक,  मायावती से ल्रेकर आजम खान तक सबको भारत के संविधान से खेलने की पूरी आजादी चुनाव आयोग ने प्रदान कर दी है।  बार-बार उच्चतम अदालत को इसमें हस्तक्षेप करना पड़ रहा है । मानो चुनाव आयोग भी ‘नमो आयोग’ बन चुका हो। जिसे ना तो संविधान से मतलब है  ना ही अपने पद की गरिमा से।
यह बड़े ही आश्चर्य की बात है कि देश की इन तीनों  चुनाव अधिकारियों को उच्चतम अदालत के सामने यह बोलना पड़ा कि ‘‘हां ! माई लॉड हमें पता लग गया कि हमारे पास शक्ति है।’’ हमें याद करना होगा कि टी एन शेषन  दसवें मुख्य चुनाव आयुक्त  के रूप में  कार्य किये थे जिनके कार्यकाल को भारत में चुनाव प्रक्रिया की सुधार की दिशा में ऐतिहासिक कदम माना जाता है । शेषन ने ना सिर्फ चुनावों में व्याप्त धांधली व भ्रष्टाचार मिटाने के लिए कई साहसिक कदम उठाये, मतदाताओं को पहचान पत्र  देने में भी इनकी प्रमुख भूमिका को नकारा नहीं जा सकता ।
1993 में  चुनाव की किसी भी चुनावी प्रक्रिया को रोक कर  दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव में कहीं कोई  खतरा पैदा ना खड़ा कर दिया जाए के सावधानी हेतु एक आम सहमति बनी कि चुनाव आयोग को तीन-सदस्यीय निकाय बना दिया, जहां किसी भी बड़े फ़ैसलों पर तीनों की सहमति या बहुमत का निर्णय जरूरी होगा ।   यह इसलिये भी जरूरी हो गया था कि तब तक चुनाव आयोग एक सर्वशक्तिमान निकाय बन चुका था । जिसे भारत की जनता ने वे तमाम अधिकार दे रखें हैं जो प्रधानमंत्री के पास भी नहीं है।
भारत के संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत भारतीय चुनाव आयोग  को वे तमाम शक्तियां प्रदान की गई है जो एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए जरूरी है। जब संसद के अधिकारों को सीमित कर दिया जाता है तो देश में निर्णय लेने के लिए दो ही वैधानिक शक्तियां बची रह जाती है - एक उच्चतम अदालत दूसरा खुद चुनाव आयोग। परन्तु आज मोदी द्वारा नियुक्त  ये तीनों चुनाव आयुक्त की यह हालत हो यह  चुकी है कि वह कोई भी छोटे से छोटे  फ़ैसलों को लेने में इस कदर डरती है कि उन्हें हर बार निर्णय लेने में  उच्चतम अदालत को आदेश देना पड़ रहा है। चाहे वह वोटों की गिनती का मामला हो या फिर नेताओं के जबान पर लगाम ।  यदि सबकुछ अदालत से ही चलना है तो फिर इस  आयोग की जरूरत ही क्या है?
मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में श्री सुनील अरोड़ा पदोन्नति (नियुक्ति-2017),  श्री अशोक लवासा, चुनाव आयुक्त की नियुक्ति  जनवरी, 2018  और  श्री सुशील चंद्रा ने फरवरी 2019 में चुनाव आयुक्त के रूप में  पद भार ग्रहण किया यानि  इनकी नियुक्तियां भी  अब संदेह के घेरे में आ चुकी है।  क्या इन तीनों आयुक्तों को इसलिये लाया गया कि वे चुनाव आयोग की तमाम व्यवस्था को ताक पर रखकर चुनाव कराये। प्रधानमंत्री को कुछ भी कहने व करने की आजादी मिल सके, मतपत्रों की शत-प्रतिशत गिनती में इनको किस बात का डर सता रहा है? लोकतंत्र इन्हीं संस्थाओं के हाथों संचालित होती है यदि चुनाव आयोग  में जनता का विश्वास ही नहीं रहा तो  तब क्या करेगा आयोग? मतपत्रों की शत-प्रतिशत गिनती लोकतंत्र को और मजबूत ही करेगी तो चुनाव  आयोग  इससे पीछे क्यों हट रही है? आयोग को किस बात की चिन्ता सता रही है? 
क्या अबसे चुनाव आयोग वही करेगें जो तुलसी दास की एक  चौपाई में लिखा है -
बस इसमें  राम की जगह ‘मोदी’ लिख दीजिये आपको सारा जबाब मिल जायेगा ।
होइहि सोइ जो मोदी रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा॥
अस कहि लगे जपन मोदीनामा। गईं तीन आयुक्त जहँ मोदी सुखधामा॥ 
गांधी जी के तीन बंदर तो आपने जरूर देखें होंगें। एक बार फिर देखें । बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत बोला । ये तीनों चुनाव आयुक्त इतने अच्छे नमो भक्त बन चुके हैं कि अब इनको कुछ भी ना तो दिखता है ना सुनता है ना वे बोलते हैं । परन्तु यह लोकतंत्र है चुनाव आयोग को यह समझ लेना होगा कि आयोग चाहे कितना भी  नमो  धांधली में हिस्सेदार बन जाए जनता जब मुखर होती है तो इंदिरा गांधी जैसी तानाशाह को भी घूल चटा देती है, जबकि चाहे वह बंग्लादेश युद्ध का ममला रहा हो, पार्टी का अंदरूनी  ममला रहा हो, संविधान संशोधन का मामला रहा हो, ऑपरेशन ब्लू स्टार  या फिर आपातकाल का निर्णय लेने में  श्रीमती गांधाी के घूल बराबर भी नहीं है मोदी।  जब वो चुनाव हार गई तो मोदी तो किस खेत की मूली है ?  झूठे और फर्जी एयर स्ट्राइक से देश को एक बार भ्रमित तो कर सकते है बार-बार नहीं। मोदी जी यह लाकेतंत्र है जिसे गांधी (महात्मा गांधी) की तरह उनकी हत्या तो कर सकते हैं पर उनके विचारों को नहीं मार सकते । जिसे  नेल्सन मंडेला की तरह 27 साल जेल में तो रखा जा सकता है या आंग सान सू को  20 साल  नजरबंद किया जा सकता पर उनकी आवाजों को दबाया नहीं जा सकता । आज मोदी जी जिस प्रकार का प्रयोग भारत में कर रहें हैं जिसमें युवाओं को देशद्रोह के झूठे मामलों में फसाने से लेकर संवैधानिक संस्थाओं को अपने चुंगुल में करने के सभी प्रयास एक दिन सभी प्रयोग विफल साबित हो जायेगे। 

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लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी  

सोमवार, 15 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत-6

हर-हर मोदी वर्ससेज घर-घर कन्हैया

मोदी जी (भाजपा) यह बात अच्छी तरह से जानते हैं कि उनको देश में युवाओं से कड़ी चुनौती मिल सकती है। इसके लिये उन्होंने दो मार्ग अपनाये कि किसी भी प्रकार या तो इन युवाओं को बदनाम कर दिया जाए या उसे देशद्रोही ठहरा दिया जाए । जिस प्रकार दिल्ली में पिछली  विधान सभा के चुनाव में अरविंद केजरीवाल को 'भगोड़ा' बोलकर बदनाम करने की एक बड़ी साजिश की गई, मोदी सत्ता की अपनी पुरी ताकत झोंक दी, आरएस,एस सहित तमाम संगठन दिल्ली में डेरा डाल दिये थे कि किसी भी प्रकार दिल्ली की सत्ता केजरीवाल से छीन ली जाए, जो नाकाम ही नहीं हुई भाजपा की 28 विधान सभा की सीट भी इस चक्कर में हाथ से चली गई।  वहीं गुजरात में हार्दिक पटेल (आरक्षण आंदोलन के युवा नेता हैं। ओबीसी दर्जे में पटेल समुदाय को जोड़कर सरकारी नौकरी और शिक्षा में आरक्षण चाहते हैं) को देशद्रोही बना दिया गया और उसे इस कदर बदनाम करने का प्रयास किया गया जिसमें फर्जी सैक्स सीडी तक का भी ईस्तमाल किया गया ।  फर्जी मामले में आनन-फानन में उन्हें 2 साल की सजा भी सुनवा दी गई ताकि मोदी के लिए व अगले छः साल कोई चुनौती न बन सके।  वही हाल इन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय से डॉक्टरेड करने वाले एक युवा डॉ कन्हैया कुमार  के ऊपर भी फर्जी देशद्रोह का मुकदमा चलाने का प्रयास किया गया । कन्हैया कुमार को  लोकसभा चुनाव में रोकने की भरपूर तैयारी कर ली थी मोदी सकार ने परन्तु  कंस की मौत जब कृष्ण के हाथों ही लिखी तो वह सात तालों में कन्हैया को  कंस  कैद नहीं कर सका । मोदी की हर चाल  विफल होती चली गई ।  बात-बात में देश से लोगों को पाकिस्तान भेज देने वाले गिरीराज सिंह के दिन भी  खराब आ गये कि बेचारे को एक कीड़ी जैसा दिखने वाले अदने से युवक के सामने जिसने राजनीति का ‘क’ भी नहीं सीखा के सामने खड़ा कर दिया और  बीजेपी के केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को बार-बार पानी पीने की नौबत आ गई । 
कन्हैया कुमार अखिल भारतीय छात्र परिषद  (AISF),जो  भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी  (CPI) की स्टूडैंट विंग हैए के नेता हैं। वह 2015 में जेएनयू (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय) छात्र संघ के अध्यक्ष पद के लिए चुने गए थे।  इनको  दिल्ली पुलिस ने एक साज़िश के तहत गिरफ्तार लिया था । अदालत ने सबूत ना प्रस्तुत किये  जाने पर जमानत पर रिहा कर दिया। दिल्ली पुलिस का कहना है कि जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (२०१६) में जब राष्‍ट्रविरोधी नारे लगाये जा रहे थे तब कन्हैया भी वहां मौजूद था जो कि एक सरासर झूठा और मनगढ़ंत आरोप है । मोदी इस बात को अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी  झूठ को इतनी ताकत से फैलाया जाए कि वह सच लगने लगे और  साथ ही  उस झूठ को सुनने से लोगों की भावना भी आहत हो ऐसा लगना चाहिये।
परन्तु मोदी शायद भूल गये थे कि यह गुजरात नहीं है जहां हार्दिक पटेल को दो साल की सजा सुनवा दी गई यह भारत है ।  कोई किसी जज या पत्रकार की हत्या करवा सकता है और कानून उन मामलों को दबाने में सहयोग करे तो उसे इस बात के लिये भी तैयार हो जाना चाहिये कि जो आदमी यह सब करवा सकता है वह किसी के साथ भी ऐसा करने से परहेज नहीं करेगा । इस लोकतंत्र की रक्षा करने के लिये सभी पत्रकारों को भगत सिंह बनने का समय आ गया है। पत्रकार लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ है इसे साबित करने का यह सही अवसर है कि वे मुखर हो कर अपनी बात जनता तक पंहुचायें।
आज यह बात लिखने में जरा भी संकोच नहीं दिखाना चाहिये कि कन्हैया कुमार इस बार चुनाव परिणाम के चुनाव आयोग के तमाम पिछले रिकॉर्ड को तौड़ देगा ।  एनडीटीवी के  रवीश कुमार से बात करते हुए - "कन्हैया कुमार ने कहा कि मेरा अपना अनुमान है कि अगर मैं चुनाव जीतकर संसद जाउँगा तो शायद नरेंद्र मोदी वहां नहीं होंगे, क्योंकि मैं उसी स्थिति में चुनाव जीतूंगा जब भाजपा विरोधी माहौल पूरे देश में बनेगा. अब कुछ लोगों ने बेगूसराय में बोलना शुरू किया है कि देश में क्या होगा नहीं जानते, लेकिन बेगूसराय में तो आपको जिताएंगे."  जयहिन्द !

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रविवार, 14 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत-5


गोदी मीडिया
इस लेख में आज हम गोदी मीडिया की बात करेंगे।  मीडिया तो हमने बहुत सुना था पर ‘गोदी मीडिया’ और फेक समाचार शब्द का चलन मोदी के पिछले पांच सालों के कार्यकाल की देन है।  हमें याद करना होगा जब भाजपा के अध्यक्ष ने एक टीवी चैनल को अपना साक्षात्कार देते हुए यह स्वीकार किया था कि ‘‘चुनाव के समय मोदी जी के द्वारा 15 लाख रुपये देश के सभी नागरिकों के बैंक खातों में आ जायेगें - यह एक जुमला था’’  उसी प्रकार अच्छे दिन आयेंगे का वादा, तेल और डालर के कीमतों की बात हो या सेना के दो सर वापस लाने की बात। कालेधन से लेकर युवकों की रोजगार की बात, किसानों की समस्या से लेकर महिलाओं की सुरक्षा, चुनाव समाप्त होते ही सब बातें गायब हो चुकी थी और पाकिस्तान से दो-दो हाथ करने के दम भरने वाले 56 इंची के सीना वाले मोदीजी अपने प्रधानमंत्री पद के शपथ समारोह में सबसे पहले तात्कालिक पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को निमंत्रण भेज देते हैं और देश को बिना बताये छुप कर पाकिस्तान चले जाते हैं । उसी प्रकार कश्मीर के चुनाव के समय मोदीजी ने जिस राजनीति दल को देशद्रोही कह कर संबोधित किया था उसी राजनैतिक पार्टी के साथ सरकार इस शर्त पर बना लेते जिसका परिणाम हमने देखा कि किस प्रकार ऊरी, पठानकोट या पुलमावा में सेनाओं की हत्या की गई । पुनः से कश्मीर में पत्थरबाजी की घटनाओं को बल मिला। आतंकवादियों को एक नई जान फूंक डाली मोदी की सरकार ने।
मोदी के कार्यकाल में पुनः सेना के सर काट करे ले गए। कश्मीर की खुली सड़कों पर सेना के जवानों को जूतों से पीटा गया, सेना के हाथों को इस कदर बांध दिया कि गोदी मीडिया इन सब बातों को देशभक्ति, राष्ट्र भक्ति की संज्ञा देते नहीं थक रहीं थी और एक नये तरीके के राष्ट्रवाद की परिभाषा गोदी मीडिया के द्वारा गढ़ी जा रही थी जो देश के 60-70 प्रतिशत आबादी को जिसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख- इसाई सभी समुदाय के लोग शामिल है जो (भापजा व संघ के नहीं) मोदी के विचारों से सहमत नहीं वे लोग देशद्रोही हैं। भले ही वह सेना का जवान हो या खेतों में काम करता किसान ही क्यों न हो। 

इससे पूर्व हम गोदी मीडिया पर बात करें हम मीडिया के स्वरूप चर्चा कर लेते हैं।  मीडिया से अभिप्रायः जिसमें प्रिंट मीडिया, रेडियो, टेलीविजन, सोशल मीडिया जिसमें इंटरनेट के द्वारा संचालित समाचार मीडिया भी है।  इन सबमें छह ककार ‘कब, कहां, क्या, किसने, क्यों, कौन और कैसे’ का उत्तर जानने की जिज्ञासा हर समय बनी रहनी चाहिये। यह मीडिया का मूल मंत्र है।  किसी भी प्रस्तुति के दो हिस्से होते हैं पहला है ‘समाचार’ और दूसरा है ‘विचार’ । समाचार में विचारों का समावेश पत्रकारिता में कदापि स्वीकार नहीं किया जा सकता। विचारों की प्रस्तुति अलग होती है इसे मिलाकर समाचार नहीं बनाया जा सकता ।  उदाहरण के तौर पर कोई घटना के चित्रण में उसका विवरण, शब्दों के चयन से उसकी प्रस्तुति, घटनास्थल के चित्र व प्रतिक्रियाएँ ही उस घटना के आधार भूत और मूल तत्व हैं । यदि इसमें पत्रकार या संपादक कोई भी अपनी बात को जोड़ता है तो वह किसी भी रूप में स्वीकार योग्य नहीं है। हाँ! कई बार जनहित में छोटी सी छोटी घटना को बड़ी घटना बना देना या देश के हित में बड़ी से बड़ी घटना को छोटी बना देना पत्रकारिता में आजादी है। जैसा कि अन्ना आंदोलन जो कोई जन आंदोलन नहीं था यह मीडिया द्वारा प्रायोजित आंदोलन था जो छोटे-छोटे समूह की बातों को इस प्रकार दिखा रहे थे मानो देश में भूचाल पैदा हो जाएगा । जबकि जयप्रकाश जी का आंदोलन जन आंदोलन था । इस फर्क को हमें समझना होगा ।

परन्तु इन दिनों मीडिया का एक बड़ा घड़ा / वर्ग पत्रकारिता को फेक न्यूज का माध्यम बना लिया है । खासकर इलेक्ट्रोनिक मीडिया में इसके पांव तेजी से फैल चुके हैं अब वे ही ऐंकर न्यूज चैनलों में चल रहें है जो झूठ का साथ देने और अपने सम्मान को गिरवी रख कर रोजीरोटी के जुगार में लगे हैं। चाहे वह रजत शर्मा, सुमित अवस्थी, अर्नब गोस्वामी, रोहित सरदाना,  बरखा दत्त, अंजना ओम कस्यप, फिर स्वेता सिंह या सुधिर चौधरी ही क्यों न हो। इन दिनों ये स्पष्ट रूप से खुद को गोदी मीडिया के प्रर्यायवाची बना चुके हैं। इनका काम ही सिर्फ झूठ को इस प्रकार फैलाना कि वह सच लगे। अर्थात गोदी मीडिया- झूठ, छद्म राष्ट्रवाद, नकली देश भक्ति व विपक्ष को हर बात में कमतर कर आंकना इनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इनका बस एक ही धर्म बचा है मोदी भक्ति । यही मोदी भक्ति इनके कार्यों को गोदी मीडिया बना देती है।  

मीडिया का प्रथम धर्म होता है कि वह उन छः ककारों की खोज करे जो समाचार की प्रमाणिकता है परन्तु गोदी मीडिया की पत्रकारिता का इन मूल सिद्धांतों से कोई लेना देना नहीं, उल्टे जो इन छः ककारों बात करता है उन्हें वे देश विरोधी करार देते नहीं थकते। मसलन पुलमावा में 42 भारतीय सैनिकों की अतांकवादियों के द्वारा हत्या कर दी गई व उसके बाद भारतीय सेना ने बालाकोट एयर स्ट्राइक किया । सवाल तब खड़ा हुआ जब रात की इस घटना को लेकर सरकारी तंत्र की तरफ से एक फेक सूचना प्रसारित की गई कि इसमें 350 आतंकवादियों के मारे जानेे और उस मस्जिद को नेस्तनाबूद कर देने की बात कही गई । गोदी मीडिया ने इसे प्रमाणित करने के लिये एक वीडियो गेम्स का सहारा लिया और उसे इस प्रकार प्रसारित व प्रचारित किया मानो वही वीडियो गेम सच्ची घटना की तस्वीर है । जब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक जन सभा में कहा कि 250 आतंकवादियों को मौत के घाट सुला दिया गया तब जाकर विवाद शुरू हुआ और सेना की तरफ से इसका खंडन आया कि उनका काम लाश गिनना नहीं है। दुनियाभर के पत्रकारों ने घटनास्थल का दौरा करते हुए उस मस्जिद को देखा कि जिसके नेस्तनाबूद कर देने की बात का दावा भारत की गोदी मीडिया कर रही थी, वहां सैकड़ों बच्चों को पढ़ते देखा गया । अर्थात किसी व्यक्ति को सत्ता में पुनः स्थापित करने के लिये उसके पक्ष में अफ़वाहों को फैलाना, दूसरों के सवालों पर उसे देशद्रोही करार कर देना और खुद को देश भक्त साबित करना वह भी झूठ के बल पर । जो मीडिया का काम कदापि नहीं है । कौन देश भक्त है या कौन देशद्रोही यह कानून का काम है परन्तु इन दिनों वे मीडिया और उनके चंद ऐंकर बाजारवाद के गिरफ़्त में इस प्रकार कैद हो चुके हैं कि उनको सपने में भी मोदी ही मोदी का भूत दिखता है पता नहीं कब किसकी ज़ुबान फिसल जाए और उनका भी हाल पुण्य प्रसून बाजपेयी या इनके जैसे कई खुद्दार पत्रकारों के साथ किया जा रहा है इनके साथ भी ना हो जाए ।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी  

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शनिवार, 13 अप्रैल 2019

भारत में महाभारत-4



फ्रांस के प्रमुख दैनिक समाचार पत्र ले मोंडे’ के अनुसार भारतीय प्रधानमंत्री के 2015 में फ्रांस आगमन के बाद श्री अनिल अंबानी की दूरसंचार कंपनी रिलायंस अटलांटिक फ्लैग फ्रांस फ्रांसीसी कर अधिकारियों ने 151 मिलियन  के बजाय € 7.3 मिलियन के लिए एक समझौता किया। अर्थात श्री अंबानी को फ्रेंच से 143.7 मिलियन फ्रांसीसी डालर की कर छूट मिली। यह छूट क्यों मिली और कैसे मिली यह अभी भी रहस्य बना हुआ है।  समाचार ने लिखा कि यह छूट फ्रांस के साथ 36 विमानों के सौदे से जोड़कर देखा जा रहा है। आपको याद होगा कि  अप्रैल 2015 में  भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी दो दिवसीय पेरिस की यात्रा के दौरान ने 36 राफेल जेट की  सीधी खरीद के लिए एक आश्चर्यजनक घोषणा की थी, जिसकी जानकारी भारतीय अधिकारियों रक्षा मंत्रणालय को नहीं भी थी। यहां यह भी गौर करने की बात है कि भारत सरकार को यह बात जानकारी थी कि नहीं?  और यदि थी तो उसे अबतक देश से छुपाया क्यों गया? भारत के प्रधान सेवक को यह तो बताना ही चाहिये कि जो व्यक्ति किसानों के ऋण पिछले पांच सालों में माफ नहीं कर सका वह अपने मित्र अनिल अंबानी के मामले में इतनी दिलचस्पी क्यों ले रहा था?  यह सब महज संयोग तो नहीं हो सकता मोदी जी !

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