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बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

दीये जो बड़े हो गये

आज जब मेरी पत्नी ने मुझे से यह कहा ‘‘दीये जो बड़े हो गये वह मुझे ला दो’’ तो एक बार मैं सोचता रहा फिर थोड़ा सोचने लगा। उनकी जरूरत समझी तो समझ में आया कि उनको जो दीये बूझ गये हैं वे चाहिए। काजल निकालने के लिए सराई को उलटने के लिए बड़े हो गये दीये से सहारा देने के लिए। कितना सम्मान होता है हमारे संस्कारों में कि हम दीये को भी बूझा न कह कर, दीये को बड़े हो गये कहतें हैं। दीया जब जलने के बाद अन्त में पूरी बाती एक साथ जल उठती हैं। इसी जलती लौ के करण ऐसा लगता है कि उसकी लौ बड़ी हो गई। बस इसके बाद वह बूझने ही वाली है। इसलिए इसका नाम हो गया ‘‘दीये जो बड़े हो गये’’ दीपावली की आप सभी को शुकामनाएं।
आपका ही।
शंभु चौधरी

मंगलवार, 25 अक्तूबर 2011

सलमान खुर्शीद जी का ताजा बयान -


आपके ताजा बयान जिसमें आपने सरकार और सिविल सोसायटी के बीच मतभेदों को बढ़ावा न देने की अपील की है हम इसका स्वागत करते हैं। हम सरकार से भी चाहते हैं कि वे सिविल सोसायटी के सदस्यों की भीतरी जांच जैसी कायरता पूर्ण कार्रवाई से बाज आये। नहीं तो देश भर के सांसदों और नेताओं की भी जांच शुरू कराने के लिए व्यापक जन आन्दोलन शुरू किया जा सकता है। हम जानते हैं कि वर्तमान सरकार में कुछ अच्छे सदस्य भी हैं जो देश से भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए ईमानदारी से प्रयास कर रहें हैं। संसदीय समिति के अध्यक्ष एवं स्व.लक्ष्मीमल सिंघवी जी के पुत्र श्री मनु सिंघवी जी पर भी हमें पूरा भरोसा है कि वे जो भी निर्णय लेगें वह देश के व्यापक हितों को ध्यान में रख कर लेगें। देश की भावना को महत्व देगें न कि भ्रष्ट नेताओं के चक्कर में पड़ कर पुनः आन्दोलन का रास्ता खोल दें जैसा कि हमारे पूर्व एक भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री जी ने किया जिसके चलते देश को 12 दिन का प्रसव पीड़ा से गुजरना पड़ा था।
सिविल सोसायटी के सदस्यों की जांच कर आप देश भर में एक जहर का सृजन करने का प्रयास कर रहें हैं। आपको यह ध्यान रखना चाहिये कि कोई दूध का धुला नहीं है। यदि आपकी सरकार का यही रवैया रहा तो आपकी सरकार जाने के बाद किस-किस की जांच होगी तब इसके लिए आपको भी तैयार रहना चाहिए। नेक कार्य को नेक ही रहने दें। किसी का नुकसान कर देश में एक नई परंपरा कायम की जा रही है। हाँ! इतना ज़रुर याद रखियेगा कि जिस तरह से श्रीमती किरण जी और अरविन्द केजरीवाल को परेशान किया जा रहा है इससे काँग्रेसी का भला तो कुछ नहीं होगा देश को इससे काफी क्षति होगी। जरा मन की अंतरात्मा को पूछ कर देख लिजिऐगा। इस तरह कि कार्यवाही से हमलोगों काफी आहत हुएं हैं कि किन बेईमानों को देश सौंप दिया गया है। इस तरह भ्रष्टाचार संरक्षक मंत्री हमें न तो कमजोर कर सकते हैं न ही देश लूटने लाइसेंस ही हम देगें इनको। -एक सदस्य

बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

‘राइट टू रिजेक्ट’ एवं ‘राइट टू रिकॉल’


कोलकाता: 20 अक्टूबर 2011
विश्व की निगाहें भारत के इस बहस पर लगी हुई है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में श्री अण्णा हजारे ने एक नई बहस को जन्म दे दिया है। ‘राइट टू रिजेक्ट’ एवं ‘राइट टू रिकॉल’ अर्थात चुनाव संबंधी प्रावधानों में जरूरी संषोधन किए जाने की। जिससे मतदान की प्रक्रिया के समय ही मतदाता सभी उम्मीदवारों को यदि अस्वीकार कर दे तो ऐसी स्थिति में चुनाव आयोग पुनः नये उम्मीदवारों को सामने आने का अवसर प्रदान कर सकती है। इसी प्रकार चुने जाने के बाद जो सांसद या विधायक अपने क्षेत्र में विकास के कार्य न कर रौबदारी या भ्रष्टाचार में संलिप्त पाया जाता हो, ऐसे सदस्यों को जनता पुनः वापस बुला सके।

पिछले दिनों रामलीला मैदान में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर श्री अण्णा हजारे जी का अनशन को सारी दुनिया ने देखा। विश्वभर में श्री अण्णाजी के समर्थन में लोगों ने अपनी राय रखी। दो कदम आगे-दो कदम पीछे करने वाली सियासी पार्टियों ने भी आखिरकार श्री अण्णा की बातों पर अपनी मोहर लगा दी। आखिर हमें किसी व्यक्ति पर टिप्पणी करने से पहले यह तो सोचना ही पड़ेगा कि क्या सिर्फ जब श्री अण्णा हजारे ही सोचेगें तब ही हमारे देश की संसद सक्रिय होगी अन्यथा वह उसी निरसता के साथ देश के चुने हुए सांसद अपनी धौंस जमाते रहेंगें कि वे ‘चुन कर आयें हैं।’ मानो देश चलाने या लूटने का एक प्रकार से इनको जनता ने लाइसेंस दे दिया हो अब जनता चुपचाप पांच साल अपने घरों में ताला लगा कर बैठ जाए? हमें इन सभी बिन्दुओं पर खुलकर सोचने की जरूरत है।
देश के जिम्मेदार कई संपादकों ने पिछले दिनों हिसार में हुए लोकसभा सीट के चुनाव पर श्री अण्णा हजारे टीम पर अपनी कलमें धिसने का कोई अवसर चुकने नहीं दिया। मौका भी था चुनाव में राजनीति तो करनी ही चाहिए। परन्तु लोकतंत्र का चौथा खंभा भी राजनीतिज्ञों का मोहरा बन जाए तो इसे देश का दुर्भाग्य ही माना जा सकता है। एक पत्रकार मित्र ने लिखा कि यदि कांग्रेस को वोट न दें तो श्री अण्णाजी को यह भी बताना चाहिए कि किसको वोट दें? हम उनसे ही जानना चाहतें हैं कि जब बुखारी साहब जामा मस्जिद से फतुआ जारी करते हैं उस समय इनकी कलम किस पान की दुकान पर ‘मुजरा’ देखने चली जाती है? या उस समय सियासतदानों की सोच किस कसाईखाने की दुकान पर हलाल होने के लिए तैयार खड़ी दिखती है? हमारे जिन मित्रों को बोलने या लिखने का पैसा मिलता है उनकी बात तो मुझे भी समझ आती है परन्तु जिनकी कलम आजाद परिन्दें की तरह स्वतंत्र अकाश में गोता लगाती है उनकी सोच को जब लकवा मार जाए तो हमें कुछ सोचने को मजबूर तो कर ही देती है।
आज जो कुछ भी लिखा या पढ़ा जा रहा है यह भविष्य में हमें आज की घटनाओं की याद दिलाएगी। आजादी के बाद देश में इतनी बड़ी संख्या में बुद्धिजीवी एवं युवा वर्ग एक साथ सामने आकर देश में सूरसा की तरह फैलती जा रही एड्स बीमारी (भ्रष्टाचार) को रोकने/कम करने के लिए कार्य कर रही है। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम अपनी कलम की रूख को भी ईमानदारी से उसकी दिशा तय करने दें। गंगा में प्रदूषण फैलाने से हमारी आने वाली पौध को बहुत क्षति हाने वाली है, वेवजह इस जल प्रवाह में अपनी दखलदांजी न करें। हाँ! जो सच है उस पर अपनी बेबाक राय अवश्य देनी ही चाहिए।
आज देश के सामने नई पहल पर बहस होनी शुरू हो गई चुनाव आयोग से लेकर प्रायः सभी राजनैतिक दलों के अलग-अलग प्रतिनिधि ‘राइट टू रिजेक्ट’ एवं ‘राइट टू रिकॉल’ पर अपनी-अपनी प्रतिक्रियाओं व चिन्ताओं से देश को अवगत करा रहें हैं। देश के युवाओं में भी इस बहस में अच्छी रुचि देखी जा रही है। विदेशों में कई देश के युवा वर्ग अपने-अपने देश में इस व्यवस्था को लागू करवाना चाह रहें हैं ऐसे में भारत की तरफ तमाम विश्व की नजर टिकी है कि हम इस बहस का कौन सा समाधान निकालने जा रहे हैं।
जहाँ तक अभी तक के तमाम विचारों को जानने का अवसर मुझे मिला जिसमें किसी व्यक्ति विशेष का नाम लिखना उचित नहीं प्रतीत होता ‘राइट टू रिजेक्ट’ का समाधान सभी को आसान लगता है जबकि ‘राइट टू रिकॉल’ पर बहुत सारी आशंकाएँ चुनाव आयोग सहित देश के एक बुद्धिजीवी वर्ग ने जताई है।


‘राइट टू रिजेक्ट’:
जहाँ तक मैं समझता हूँ कि ‘राइट टू रिजेक्ट’ को जितना हम आसान समझ रहे हैं जबकि चुनाव आयोग के लिए यह एक पैचिदा भरा निर्णय होगा। एक तरफ तो हमारा संविधान देश के प्रत्येक नागरिकों को चुनाव लड़ने का अधिकार देती है तो दूसरी तरफ हम जनता को यह अधिकार भी दे दें कि वह उनको ‘रिजेक्ट’ कर सकती है तो क्या दोबारा इसी उम्मीदवार को किसी दूसरे चुनाव क्षेत्र से संसद या विधानसभा में नहीं भेजा जा सकता? या फिर पुनः वही उम्मीदवार उसी सीट से चुनाव लड़कर जीत गया तो इसका क्या अर्थ निकाला जाएगा?


‘राइट टू रिकॉल’:
इस विषय पर प्रायः एक सी बात सामने आ रही है कि चुनाव आयोग इसमें उलझ कर रह जाएगा। जबकि इस समस्या का सीधा समाधान है। हम ‘राइट टू रिकॉल’ को चुनाव आयोग से अलग कर दें। जिस प्रकार हम किसी सरकारी कर्मचारी को बर्खास्त या ससपेंड करते हैं अथवा महा-न्यायाधीशों पर महा-अभियोग लगाकर उनको न्यायिक प्रक्रियाओं से अलग किया जाता रहा है हमें इस समस्या को भी इन्हीं प्रक्रियाओं के तहत गुजारना होगा। वर्तमान में हम नैतिक आधार पर उनका मंत्री पद तो छिन लेते हैं परन्तु उनकी सदस्यता बनी रहती है। कई बार ऐसे सदस्यों को सरकार ब्लैकमेल कर अपने पक्ष में संसद/विधान सभाओं में मतदान कराने के मामले भी उजागर हुए हैं। अतः जब हम संसद में भ्रष्टाचार के मामले पर एक लम्बी बहस कर ही रहें हैं तो इसी में ऐसे सदस्यों पर महा-अभियोग लाने का भी प्रावधान कर दिया जाना चाहिए ताकी देश के खजाने को लूटने वाले चन्द राजनेताओं को यह अंदेशा बना रहे कि उनकी राजनीति अब समाप्त होने वाली है।

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2011

हिन्दीभाषी बंगाल का गौरव - ममता बनर्जी

Kolkata: Wednesday 19.10.2011

"एक विशेष भेंटवार्ता में पश्चिमबंग की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने राज्य के रह रहे हिंदीभाषियों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने बंगाल का गौरव बढ़ाया है और यहां निवास करने वाले हिंदीभाषी बंगाल के समाज में बहुत पहले से ही ठीक उसी तरह घुल मिल चुके हैं जैसे दूध में शक्कर घुलता है। हम उस शक्कर को दूध से अलग नहीं करना चाहते। यह बात आपने सन्मार्ग समाचार के संपादक के साथ एक एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए कही।"


हिन्दीभाषी बंगाल का गौरव - ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री, पश्चिमबंग
कोलकाता में कल एक विशेष भेंटवार्ता में पश्चिमबंग की मुख्यमंत्री सुश्री ममता बनर्जी ने राज्य के रह रहे हिंदीभाषियों की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने बंगाल का गौरव बढ़ाया है और यहां निवास करने वाले हिंदीभाषी बंगाल के समाज में बहुत पहले से ही ठीक उसी तरह घुल मिल चुके हैं जैसे दूध में शक्कर घुलता है। हम उस शक्कर को दूध से अलग नहीं करना चाहते। यह बात आपने सन्मार्ग समाचार के संपादक के साथ एक एक्सक्लूसिव बातचीत करते हुए कही। आपको जानकारी होगी अभी हाल ही सुश्री ममता बनर्जी खुद के दम-बल पर गत् 34 सालों से चले आ रहे वाममोर्चा सरकार को धूल चटा कर सत्ता पर काबिज होने के पश्चात से ही एक-एक कड़े और ठोस राजनैतिक निर्णय लेती जा रही है जिसमें दार्जिलिंग की समस्या और जंगलमहल जैसे आदिवासी इलाकों का विकास, सरकारी कर्मचारियों को समय पर वेतन उपलब्ध कराना। वहीं सत्ता के मदहोश में पार्टी के सदस्यों की गुंडागर्दी पर भी लगाम लगाते हुए आपने अपने ही दल के सभी सदस्यों को साफ कर दिया कि उनकी पार्टी का कोई भी सदस्य जनता के साथ अभद्र व्यवहार या चंदा उगाही में संलग्न पाया गया तो उसकी खैर नहीं। कल शाम ही कोलकोता में सुश्री ममता बनर्जी ने राज्य के उद्योग जगत से जुड़े 300 से अधिक राजस्थानियों को दीपावली मिलन के एक मिलन समारोह एक दावत दे कर उन्हें राज्य के विकास में साथ आने का निमंत्रण दिया जिसको लेकर मारवाड़ी समाज में अच्छी प्रतिक्रिया रही साथ ही आपने हिन्दी भाषा भाषी समाज के सामाजिक संगठनों को भी आह्वान किया कि वे आगे आकर बंगाल की कला-संस्कृति में भी अपना योगदान दें। आपने आगे कहा कि हिंदी समाज बंगाल की माटी में रच बस गया है बंगाल का हिंदीभाषी समुदाय यहाँ का अभिन्न अंग बन चुका है। आपने बंगाल के अतीत को याद करते हुए हिन्दी भाषाभाषियों के योगदानों का नमन करते हुए कहा कि उन्हें पिछली सरकार की ख़ामियों को नजरअंदाज कर पुनः एक बार फिर से राज्य के विकास में अग्रणी भूमिका निभानी होगी। आपके यह विचार उस समय आयें हैं जब महाराष्ट्र में श्री बाल ठाकरे व राज ठाकरे हिन्दीभाषियों पर भाषा के नाम अत्याचार करने में तूले हुए हैं। - कोलकाता से शंभु चौधरी की रिर्पोट

रविवार, 16 अक्तूबर 2011

दीपावली की शुभकामनाएँ - शम्भु चौधरी


इसमें कोई शक नहीं नक्सलवादियों ने सरकारी ताक़तों को नुकशना पहुँचाने के नाम से बेकसूर जनता को भी काफी हानी पहुँचाई है। जो किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता है। हम अपनी दीपावली के दीये उन आदिवासियों के साथ जलाना पसंद करेंगे जिन्हें सरकार नक्सलवादी समझती है। माना कि सरकार पर देश की सुरक्षा का भार है परन्तु नक्सलवादियों के नाम पर सरकार इनके घरों को ही उजाड़ दे, यह सुरक्षा नहीं हो सकती। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।

नक्सलवाद पर लिखी मेरी एक कविता से आज आपको दीपावली की शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ।
एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद .., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मैं सोचा यह क्या कहता है? हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है।

सर्वप्रथम हमें आतंकवाद को व्याखित करना होगा, खुद की जमीं पर रहकर अपने हक की लड़ाई लड़ना आतंकवाद नहीं हो सकता चाहे वह कश्मीर की समस्या ही क्यों न हो, लेकिन को कुछ ईश्लामिक धार्मिक संगठनों ने धर्म को आधार मानते हुए सारी दुनिया में आतांकवाद फैला दिया, पाक प्रायोजित तालिबानियों द्वारा धर्म को जिहाद बताया उनलोगों ने न सिर्फ़ कश्मीर समस्या को उलझाया। भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश सहित विश्व के अनेक देशों के भीतर आतंकवाद को देखने का एक अलग नजरिया प्रदान कर दिया। जिसका परिणाम यह हुआ कि आज विश्व में हर तरफ यह प्रश्न उठता है कि आखिर एशिया महाद्वीप से ही आतंकवाद क्यों पैदा हो रहा, सारे विश्व के अपराधियों का सुरक्षा केन्द्र बनता जा रहा है यह महाद्वीप। संभवतः भारत विश्व में एक मात्र देश होगा जो लगातार आज़ादी के बाद से इस समस्या से झूझता आ रहा है। ९/११ की घटना यदि अमेरिका की जगह भारत में हुई होती तो शायद अमेरिका, तालिबानियों का सफ़ाया कभी नहीं करती़। कारण स्पष्ट है अमेरिका को किसी बात का दर्द तभी होता है जबतक वह खुद इस दर्द को न सह ले।
इसी प्रकार भारत में नक्सलवाद का काफी तेजी से विकास हुआ खासकर आदिवासी इलाकों में जहाँ हम अभी तक विकास, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत ज़रूरतों को भी नहीं पहुँचा पाये। हमने उनके घर (वन, वनिस्पत, खनिज, पर्वत, जंगल आदि) को सरकारी समझा और उनको उस जगह से वेदखलकर उन्हें जानवर का जीवन जीने को मजबूर करते रहे। जब इन लोगों को कुछ लोगों ने वगावत का पाठ पढ़ाया तो ये देश के लिये गले की फांस बन गई। आपको सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर समस्या क्या है, सिर्फ हथियार उठा लेने से आतंकवाद हो जाता तो भारत स्वतंत्रता आन्दोलन के हजारों शहीद को भी हमें आतंकवाद कहना होगा। इसमें कोई शक नहीं नक्सलवादियों ने सरकारी ताक़तों को नुकशना पहुँचाने के नाम से बेकसूर जनता को भी काफी हानी पहुँचाई है। जो किसी भी दृष्टिकोण से सही नहीं ठहराया जा सकता है। हम अपनी दीपावली के दीये उन आदिवासियों के साथ जलाना पसंद करेंगे जिन्हें सरकार नक्सलवादी समझती है। माना कि सरकार पर देश की सुरक्षा का भार है परन्तु नक्सलवादियों के नाम पर सरकार इनके घरों को ही उजाड़ दे, यह सुरक्षा नहीं हो सकती।
आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।

शुक्रवार, 14 अक्तूबर 2011

कोलकाता में बने राजस्थान भवन –केशव भट्टड़

  • बंगाली समाज के साथ राजस्थानी मध्यमवर्ग का सांस्कृतिक संवाद जरुरी
  • मारवाड़ी संस्थाएं अपनी कला-संस्कृति का करे बंगाल में प्रदर्शन


    कोलकाता 23 अप्रेल कोलकाता राजस्थान संस्कृतिक विकास परिषद के तत्वावधान में शनिवार को राजस्थान सूचना केंद्र में “बंगाल के राजनीतिक-सांस्कृतिक जीवन में मध्यम वर्ग की भूमिका – विशेष सन्दर्भ: मारवाड़ी समाज” विषयक संगोष्ठी का आयोजन कथाकार-संपादक दुर्गा डागा की अध्यक्षता में किया गया अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में दुर्गा डागा ने कहा कि यह बहुत ही गंभीर विषय है मारवाड़ी मध्यमवर्ग प्रतिभा और उर्जा से भरा हुआ है उसके पास सपने हैं राजनीतिक और सांस्कृतिक जागरूकता के लिए सामाजिक संस्थाएं पहल करे कार्यक्रम के लिए समाज के लोगों को लेकर परामर्शमंडल बनाये और समाज में जागरूकता लाने का कार्य करे बंगाल के संस्कृतिकर्मियों से मेलजोल और संवाद हो सरकार के काम-काज पर सजगता से ध्यान रखें और संस्थाओं के माध्यम से अपनी आवाज़ उठायें मध्यम वर्ग के लड़के-लड़कियां राजनीति में रुचि लेकर आगे आये साहित्य पढ़ने से व्यक्तित्व का विकास होता है और जड़ों को समझने में आसानी सामजिक कार्यक्रमों में धर्म का विकल्प देने का प्रयास होना चाहिए मुख्य वक्ता पत्रकार विशम्भर नेवर ने कहा कि सारा मारवाड़ी समाज धार्मिक कार्यक्रमों में लगा है-राजनीति कौन करे? राजनीति में गठबंधन बंगाल से शुरू हुआ समाज में जो सांस्कृतिक रिसाव हो रहा है उसे रोकना जरुरी है वाम-सरकार का फायदा मारवाड़ियों ने उठाया अमुक राजनीतिक पार्टी अमुक को टिकट दे या तमुक को , इसका निर्णय वो राजनीतिक पार्टी ही करेगी मारवाड़ियों में सांगठनिक शक्ति होगी, तो पार्टियां उनके पीछे आएँगी पत्रकार राजीव हर्ष ने कहा कि मध्यमवर्ग समाज के आयाम निर्धारित करता है वैल्यू की स्थापना मध्यम वर्ग करता है महंगाई और अप-संस्कृति से यही वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होता है मध्यम वर्ग अपनी नैतिकता के दायरे में बंधा रहता है मध्यम वर्ग की रोज़गार परिस्थितियां उसे अन्य गतिविधयों में शामिल होने की अनुमति नहीं देती विज्ञान, कला संकाय आदि क्षेत्रों में हम कहाँ है? मारवाड़ी को डरपोक और पैसा कमाने वाले की संज्ञा दे दी गयी जागरण, भगवत कथा, धार्मिकता पर जितना ध्यान देते है उसमे से समय निकालकर अन्य चीजों पर भी ध्यान दे- राजस्थानी साहित्य-संस्कृति-कला की प्रदर्शनिया हो कथाकार विजय शर्मा ने कहा कि विश्लेषण न कर कार्य योजना बनाये बंगाली से बात करनी है तो उनके सिनेमा, साहित्य, संस्कृति में उसके समकक्ष खड़ा होना होगा हमारे कार्यों में पारदर्शिता होनी चाहिए मारवाड़ियों की तमाम खूबियां बयां करने वाली कहानियां खत्म हो रही है और हर्षद-हरिदास की कहानियां हावी हो रही है पत्रकार सीताराम अग्रवाल ने कहा कि मध्यम वर्ग समाज के उच्च और निम्न वर्ग के बीच सेतु का कार्य करता है मारवाड़ी मध्यम वर्ग अपनी ताक़त को पहचान ही नहीं पाया संगठन का ककहरा यहाँ के लोगो को मारवाड़ियों ने सिखाया, वे प्रदर्शन और दिखावे से बचे रहे सामाजिक संगठनो में कार्यकर्ताओं को सम्मान देना होगा, तभी एक शक्ति के रूप में यह वर्ग उभरेगा क़ानूनी सलाहकार ध्रुवकुमार जालन ने कहा कि हमने अपनी ताक़त नहीं पहचानी फिजूलखर्ची रोकनी होगी और उर्जा राजनीतिक-सांस्कृतिक क्षेत्र में लगानी होगी डॉ.कडेल ने कहा कि मारवाड़ी लेखक-पत्रकारों ने मारवाड़ी समाज की समस्याओं पर लिखा ही नहीं नेतृत्व देने वाले खुद सामने आते है या समाज उन्हें ढूंढ निकलता है मारवाड़ी समाज का मध्यम वर्ग आत्मसम्मान विस्मृत कर चूका है तो इसकी क्या भूमिका रह जाति है सञ्चालन करते हुए केशव भट्टड़ ने कहा कि बंगाल में बंगाली मध्यमवर्ग जागरूक और संगठित है उनका नेतृत्व मध्यमवर्ग से आता है बुद्धदेव भट्टाचार्य हो, या ममता बनर्जी, ये सभी निम्न-मध्यवित्त वर्ग से आतें है, लेकिन मारवाड़ियों में इसका अभाव है पहले और वर्तमान में यह बड़ा अंतर आया है कोलकाता-राजस्थान की पृष्ठभूमि पर सत्यजित राय की फिल्म ‘सोनार किल्ला’ को उदाहरण रूप में रखते हुए उन्होंने कहा कि फ़िल्म में राय बताते हैं कि बंगाल के बंगाली और मारवाड़ी मध्यमवर्ग के बीच संवाद नहीं है, जो होना चाहिए कोलकाता में राजस्थान भवन की आवश्यकता पर जोर देते हुए उन्होंने कहा कि मीरा को सामने रखकर मारवाड़ी मध्यमवर्ग बंगाली मध्यमवर्ग के साथ सांस्कृतिक संवाद और सांस्कृतिक आदान-प्रदान करें राजस्थानियों ने बंग प्रदेश में अपनी नागरिक पहचान नहीं बनायीं वे राजनीति में सीधे हस्तक्षेप से बचते हैं पर्यटकों के रूप में बंगाली समुदाय राजस्थान को प्राथमिकता देता है, लेकिन राजस्थानियों से उसका परिचय सांस्कृतिक रूप से नहीं हुआ यह विडम्बना है अतिथियों और श्रोताओं का पुष्पों से स्वागत संयुक्त संयोजक गोपाल दास भैया ने और आभार संयुक्त संयोजक बुलाकी दास पुरोहित ने किया


    केशव भट्टड़
    संयोजक, 9330919201
    कोलकाता-राजस्थान संस्कृतिक विकास परिषद
    10/1 सैयद सालेह लेन, कोलकाता-700073
    फैक्स: 033 22707978

  • बुधवार, 5 अक्तूबर 2011

    रावण नहीं मरा इस बार- शंभु चौधरी

    रावण नहीं मरा इस बार
    मेरे मन का रावण था
    घर-घर में अब फैल गया,
    एक सर को काटा तो,
    दस ने जन्म लिया
    दस का सौ,
    सौ का हजार,
    फैल गया जग में अब रावण
    रावण नहीं मरा इस बार।
    रामलीला में जल जाऐगा रावण?
    मनलीला में जल जाए तब
    समझो रावण निकला है।
    रावण कभी मरा है जग से
    वह तो एक सिर्फ पुतला है।
    जड़ से जब तक जल न जाए
    समझो अब भी जिन्दा है।
    रावण नहीं मरा इस बार।
    राम नहीं बचे अब जग में,
    रावण अब भी जिंदा है।
    बानर सेना छुप-छुप देखे
    आंगना सूना-सूना है।
    रावण नहीं मरा इस बार।
    विजया दशमी की शुभकामनाओं के साथ
    शंभु चौधरी, कोलकाता।