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बुधवार, 22 मई 2019

चुनाव आयोग: दाल में काला

चुनाव आयोग: दाल में काला  
किसी भी विषय के शोध में उसकी समस्या का निदान ही शोधकर्ता के लिये प्रमुख माना जाता है। कहा जाता है कि समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका आधा हल माना जाता है। कई बार समस्याओं को हम खुद की नाकामियों को छुपाने के लिए भयानक बना देते हैं या फिर समस्या को समझते-बुझते हुए भी कुछ ऐसी हरकतें करते हैं कि समस्या को सुलझाने की जगह और विकराल बना देते हैं। आज के चुनाव आयोग के अपरिपक्व के इस निर्णय के कारण ही कल का दिन पूरे देश के लिए तनावपूर्ण होनेवाला है। 

चुनाव समाप्त होते ही जिसप्रकार से मीडिया में ‘‘एक्जिट पोल’’ आने लगे उससे विपक्ष में स्वभाविक रूप से खलबली का माहौल बनना था। आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेदेपा प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू लगातार विपक्ष के सभी नेताओं से मिलकर एकजूट करने का प्रयास चुनाव से पूर्व भी करते रहे और चुनाव के सामाप्त होते ही पुनः सक्रिय हो गए। दिल्ली में सोनिया गांधी, अरविंद केजरीवाल, उत्तरप्रदेश में मायावती-अखिलेश से और बंगाल आकर ममता बनर्जी से भी मुलाकात की। 


कल 22 दल के नेताओं ने एक साथ मिलकर चुनाव आयोग से अपील की थी कि वे लोकसभा के चुनाव में उच्चतम अदालत के निर्णय के अनुसार प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आनेवाले सभी विधानसभा क्षेत्रों के पांच-पांच ईवीएम मशीनों के वीवीपेट पर्ची की गिनती शुरू होने से पहले कराये ताकि इस बात का मिलान हो सके कि  ‘‘ईवीएम मशीनों’’ से किसी प्रकार की छेड़-छाड़ नहीं की गई है। परन्तु चुनाव आयोग इस बात को मानने को तैयार नहीं है।


आज एक साथ दो खबरें आई - 
पहला- की देश में पहली वार केन्द सरकार की तरफ से मतगणना के दिन संभावित हिंसा को देखते हुए गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को अलर्ट जारी किया है। गृह मंत्रालय की तरफ से  राज्य के मुख्य सचिवों और डीजीपी को इस संबंध में सचेत करते हुए कहा गया है कि वे किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहे । 
दूसरा- भाजपा अध्यक्ष अमित शाह का अलग बयान आता है कि उनके नेता भी स्ट्रांग रूम के पास सतर्क रहें। खास कर ओड़िसा और बंगाल के लिए अलग से निर्देश जारी किये गए । सवाल उठता है कि ऐसा कौन सा पहाड़ कल टूटने वाला है या सुनामी आने वाली है जिसके लिये अचानक से कल तक जो चुनाव में जीत की निश्चिंत होकर कमाऊ की गुफा में ध्यान करने चले गये थे। एक तरफ विपक्षी खेमा परेशान था तो मोदी खेमे में पार्टी चल रही थी । आज अचानक से यह सब परिवर्तन क्यों ?

किसी भी विषय के शोध में उसकी समस्या का निदान ही शोधकर्ता के लिये प्रमुख माना जाता है। कहा जाता है कि समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका आधा हल माना जाता है। कई बार समस्याओं को हम खुद की नाकामियों को छुपाने के लिए भयानक बना देते हैं या फिर समस्या को समझते-बुझते हुए भी कुछ ऐसी हरकतें करते हैं कि समस्या को सुलझाने की जगह और विकराल बना देते हैं। आज के चुनाव आयोग के अपरिपक्व के इस निर्णय के कारण ही कल का दिन पूरे देश के लिए तनावपूर्ण होनेवाला है।
इससे पहले की आगे की बात करेे हम निम्न बातों पर गौर करें।
1. प्रधानमंत्री मोदी जी का मीडिया दर्शन के समय "फाटकेबाजों" की बात उनके श्रीमुख से निकलना।
2. चुनाव समाप्त होते ही 19 मई की शाम को विभिन्न मीडिया हाऊसेस की तरफ से ‘‘एक्जिट पोल’’ जारी करना, जिसमें एनडीए को 300 से लेकर 350 सीटें आने की संभावना जतायी गई।
3. 19 मई से 21 मई अमित शाह चुप रहे पार्टी मनाते रहे।
4. 22 मई को जैसे ही चुनाव आयोग का फैसला सामने आता है कि पांच वीवीपेट की पर्ची- प्रति विधानसभा की गिनती पहले नहीं की जायेगी
5. केन्द्र सरकार के साथ-साथ मोदी पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी सतर्क जारी करने लगे।


 इन पाचों बातों का एक दूसरे चौली-दामन का रिश्ता है। मोदीजी के द्वारा फाटकेबाजी की बात कहना, ‘‘एक्जिट पोल’’ में एनडीए को 300 से लेकर 350 सीटें आने की संभावना व्यक्त करना, उत्तरप्रदेश में मायावती व अखिलेश के महागठबंधन को अनुमान से कम सीटें देना, बंगाल में एनडीए को अनुमान से अधिक सीटें देना, बिहार में अनुमान से अधिक सीटों का आना, जो पूरे देश में चिन्ता का विषय है कि क्या कहीं ईवीएम से छेड़छाड़ तो नहीं हो रही। इसके साथ ही ट्रकों में ईवीएम मशीनों का पकड़ा जाना, स्ट्रोंग रूम की सुरक्षा को लेकर जगह-जगह से असंतोष का होना, भारत के पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी के द्वारा अपनी चिंता सार्वजनिक करना व तमाम विपक्षी दलों की बात का दरकिनार करना और चुनाव आयोग की हठधर्मिता इस बात को मजबूत करती है कि चुनाव आयोग किसी खास उद्देश्य की पूर्ती के लिए कार्य कर रहा है। खुले शब्दों में कहा जाए तो जनमत के साथ खिलवाड़ करने का मन बना लिया है। चुनाव आयोग ने। जिसका परिणाम कितना भयावह होगा इस बात का अंदाज भी सरकार को लग चुका है और इसीलिये मतगणना के दिन इस प्रकार की सुरक्षा की बात केन्द्र सरकार को करनी पड़ रही है ।


अब बात करते हैं कि चुनाव आयोग  क्यों नहीं चाहता की वीवीपेट की पर्ची की गिनती पहले हो जाए। क्योंकि चुनाव आयोग इस बात से भलीभांती वाकिफ है कि इससे दो तरह के परिणाम सामने आयेंगे। यदि पहले गिनती करा ली जाती है तो आधी से अधिक लोकसभा की सीटों पर विवाद शुरू हो जायेगा कि पूरी शत-प्रतिशत पर्चिओं की गिनती हो। जो चुनाव आयोग नहीं चाहता कि ऐसा हो। जब ईवीएम का 'जीन' जनता के सामने निकल जायेगा तब विवाद होने पर चुंकि 95 प्रतिशत की गिनती हो चुकी होगी उसे दौबार गिनती नहीं करनी होगी और वह बाकी के ईवीएम की पोल को जनता के सामने लाने से बच जायेगा। 

यदि चुनाव आयोग की मंशा पाक-साफ होती तो वह विपक्ष की इस मांग को स्वीकार कर लेता। परन्तु दाल में काला तो जरूर है ।
जयहिन्द ।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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