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बुधवार, 15 मई 2019

17वीं लोकसभा - एजेंडा सेटिंग

17वीं लोकसभा - एजेंडा सेटिंग
"2014 में दिये नारों में जनता से सीधे संवाद नजर आता था जैसे मंहगाई, अच्छे दिन और घर-घर मोदी ये सभी नारों में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य ‘जनता से संवाद’ काम कर रहा था।  जबकि 2019 के चुनाव में इनके नारे से ‘जनता से संवाद’ गायब है और इनके समर्थक चाहकर भी मोदी लहर नहीं बना पा रहे थे जैसा पिछले लोकसभा चुनाव में हुआ था। राम मंदिर, जय श्री राम, हिन्दू-मुस्लिम, सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक, एनआरसी का मुद्दा जहां जो काम लगे वहां वही लगा दिया गया। भाजपा के तमाम नेताओं को समझ में नहीं आ रहा था कि 'किस' जनता को क्या कहना है और क्या नहीं कहना है। किसी भी जगह मोदीजी जनता से सीधा संवाद जो पिछले लोकसभा में कर रहे थे नहीं कर पा रहे थे। उसकी जगह मोदी जी भूगोल के साथ-साथ विज्ञान को भी बदलने लगे"
17वीं लोकसभा के सातवें और अंतिम चरण का चुनाव आगामी रविवार को शेष 59 सीटों के लिय मतदान होने जा रहा है इसके साथ ही चुनाव आयोग का चेहरा भी ‘मोदी रडार’  से साफ-साफ दिखने लगा कि किस प्रकार चुनाव में मोदी का सहयोग कर रहा है ‘चुनाव आयोग’ । गुजरात से एक गुंडा बंगाल आकर पैसे के ताकत पर बंगाल में अराजकता फैला जाता है।
‘विद्यासागर’ की मुर्ति को तुड़वा जाता है। बंगााल की संस्कृति पर हमला कर जाता है कोई इसका विरोध करे तो देश के लोकतंत्र पर खतरा पैदा हो जाता है ? देश के सर्वोच्च अदालत ने जब सीधे मोदी सरकार पर हमला किया कि ‘‘देश के लोकतंत्र को खतरा पैदा हो चुका है’’ तब दिल्ली के तथाकथित बिकाऊ मीडिया हाऊसेस की जुबान को लकवा मार गया था? जब आरबीआई पर हमला हुआ, जब सीबीआई को पंगु बना दिया गया, जब चुनाव आयोग को भ्रष्ट अफिसरों से भर दिया गया तब इनका लोकतंत्र किस महखने में ‘स’राब की बोतलें खोल रहा था? लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को तबायतों का अड्डा बना देने वाले मीडिया हाऊस खुद को लोकतंत्र का रक्षक मानते हैं पर इनकी हरकतें तो बताती है ये लोकतंत्र के भक्षक हैं । भाजपा का चरित्र तो दिल्ली के चुनाव में सड़क-सड़क पर चर्चा का विषय बना हुआ है कि किस प्रकार ये लोग किसी महिला के लेकर कितने नीचे स्तर तक गिर सकते हैं। कोई यही बात इनकी महिला नेताओं को लेकर करे तब? सत्ता के लोभ ने इनके स्तर को इतना नंगा कर दिया कि अब ‘शरम’ भी इनसे ‘शरमा’ जायेगी । असभ्यता और अनैतिकता इनके खुन में रमा-रचा-बसा है कोलोस्ट्रोल की परतें जम गई है इनके खुन में जो-जो पाप 70 साल में नहीं देखे आज की युवा पीढ़ी यह सब देख-सुन व सीख रही है ।
खैर ! अब परिणामों के घनघोर बादल छटने लगे हैं। इसबार के चुनाव में भाजपा ने कई बार अपनी रणनीतिओं में बदलाव किया कभी ‘‘राम मंदिर’’ को भुनाने का प्रयास किया गया, जब इस पर बात नहीं बनती दिखी तो, पांच साल किसानों को ठगती रही मोदी सरकार ने ठीक चुनाव से पूर्व जल्दीबाजी में अपने अंतिम बजट में दस हजार किसानों को 2000-2000/- खैरात में बांटे । पांच साल व्यापारियों को कंकाल बना देने के बाद उन्हें आयकर में 12,500/- का प्रलोभन देने का काम किया गया जो आंख में धूल झौंकने के बराबर है क्योंकि 5 लाख से ऊपर आय के होते ही यह छुट गायब हो जाती है। फिर भी इनको लगा कि इससे भी बात नहीं बनी तो जैसा सभी अनुमान लगा रहे थे कि मोदी जी चुनाव से ठीक पहले पाकिस्तान पर हमला भी कर सकते हैं कुछ ऐसा ही किया भी गया और राहुल की तरह, मोदीजी को भी पिछली कांग्रेस सरकार की तरह सर्वशक्तिमान नेता के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा । विश्व की सबसे बड़ी पार्टी के तकतवार नेता को अचानक से इन कलपुर्जे की क्या जरूरत आ पड़ी। जब मोदी जी इतना काम किये हैं कि पिछले 70 सालों में कभी हुआ ही नहीं जैसा कि इनके घोषणा पत्र में कहा गया है तो फिर ऐन चुनाव के वक्त यह छल-प्रपंच किसके लिए किये गये?
इस बीच विपक्ष लगातार मोदी के पिछले पांच सालों के कार्याकाल व तमाम संवैधानिक संस्थाओं को लेकर शोर मचा ही रहा था, वहीं राहुल गांधी ‘राफेल’ के मुद्दे को किसी भी हालत में छोड़ने को तैयार नहीं थे। लगातार ‘‘चौकीदार चोर है’’ बोल-बोल कर मोदी पर प्रहार किये जा रहे थे । 
2019 के चुनाव में भाजपा की रणनीति में तीन बार बदलाव लाया गया। पहले इनका नारा बड़े-बड़े विज्ञापनों से यह प्रचारित किया गया कि ‘‘नामुमकिन अब मुमकिन है’’  फिर इसमें मोदीजी का नाम जोड़ा गया ‘‘ मोदी है तो मुमकिन है’’ यह बताने का प्रयास किया गया कि मोदी के आने से वह काम हुआ जो कभी नहीं हो सका था पर जैसे ही इस नारे का उल्टा अर्थ सामने आने लगा तो अचानक से मोदी ने ‘‘मैं भी चौकीदार’’ से कांग्रेस पर पलटवार करना चाहा। यानि 'राहुल' का वार सही जगह जाकर लग चुका था। मोदी अपनी सारी रणनीति भूलकर खुद 'चौकीदार' के एजेंडे में उलझ गये और साथ ही अपनी पूरी टीम को भी उसमें उलझा डाले। इसे पत्रकारिता में ‘‘बुलेट एजेंडा सेटिंग’’ बोला जाता है जो सीधे सामने वाले के मस्तिष्क में जाकर अटेक करता है। किसी ने उन्हें ज्ञान दिया कि इससे आप ‘राफेल’ के मुद्दे को ही खुद जनता के बीच ले जा रहें हैं तो रातों-रात मोदी की पार्टी ने फिर अपने नारे में बदलाव कर दिया ‘‘फिर एक बार मोदी सरकार’’  जबकि पिछले 2014 के लोकसभा के चुनाव में मोदी पार्टी के कई नारे थे जिसमें - बहुत हुई मंहगाई की मार- अबकी बार मोदी सरकार’’ , ‘‘अच्छे दिन आने वाले हैं।’’ ‘‘हर-हर मोदी-घर-घर मोदी’’  आप एक नजर नारों के इस गणित को ही देखें । 
2014 में दिये नारों में जनता से सीधे संवाद नजर आता था जैसे मंहगाई, अच्छे दिन और घर-घर मोदी ये सभी नारों में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य ‘जनता से संवाद’ काम कर रहा था।  जबकि 2019 के चुनाव में इनके नारे से ‘जनता से संवाद’ गायब है और इनके समर्थक चाहकर भी मोदी लहर नहीं बना पा रहे थे जैसा पिछले लोकसभा चुनाव में हुआ था। राम मंदिर, जय श्री राम, हिन्दू-मुस्लिम, सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक, एनआरसी का मुद्दा जहां जो काम लगे वहां वही लगा दिया गया। भाजपा के तमाम नेताओं को समझ में नहीं आ रहा था कि 'किस' जनता को क्या कहना है और क्या नहीं कहना है। किसी भी जगह मोदीजी जनता से सीधा संवाद जो पिछले लोकसभा में कर रहे थे नहीं कर पा रहे थे। उसकी जगह मोदी जी भूगोल के साथ-साथ विज्ञान को भी बदलने लगे। कभी कुछ, कभी कुछ कह डालते हैं जो स्वतः विवाद पैदा कर देती है। कहने का अर्थ है कि 2019 के चुनाव में मोदीजी ना तो पिछले पांच सालों की सफलता पर कोई बात कह पा रहे थे ना ही  भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ही मोदीजी के कार्यकाल की सफलता पर कोई चर्चा कर रहें थे। 

हां! भाजपा के घोषणा पत्र में मोदी सरकार के कार्यों की चर्चा जरूर की गई है ‘‘संकल्पित भारत - सशक्त भारत’’ के नाम से 2019 का भाजपा के संकल पत्र में लिखा है कि ‘‘कोई एक सरकार बीस साल तक चलती है तो एक-दो ऐतिहासिक निर्णय लेती है। श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार ने पांच वर्षों में अनेक ऐसे निर्णय लिये हैं, जो ऐतिहासिक और आमूलचूल बदलाव को मूर्त रूप देने वाले हैं । स्वच्छता आंदोलन, उज्जवला योजना, सौभाग्य योजना, नोटबंदी, जीएसटी, सर्जिकल स्ट्राइक, एयर स्ट्राइक, हर घर बजली, 2.5 करोड़ से ज्यादा परिवारों को आवास तथा पचास करोड़ लोगों को मुफ्त चिकित्सा देने के लिए आयुष्मान भारत योजना और 14 करोड़ लोगों को मुद्रा लोन के तहत ऋण जैसे अनेक ऐसे कार्य हैं, जो कांग्रेसनीत यूपीए सरकार ने करना तो दूर, कभी सोचा तक नहीं ।’’ 
अर्थात चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में कही गई बातों की कोई चर्चा नहीं हो रही थी, ना ही भाजपा का यह संकल्प पत्र को आम जनता पढ़ पा रही थी।  जनता तो मोदीजी और अमित शाह के आये दिन के भाषणों  के टेप गोदी मीडिया के माध्यम से ही सुन व पढ़ रही थी जिसमें सिवा हिन्दू खतरे में है को छोड़कर कोई नई बात थी तो "डाक्टर मोदी जी" का तीसरा ज्ञान ‘‘नाले के गेस पैदा करने से "रडार ज्ञान" तक, डिजिटल कैमरा से लेकर ई-मेल ज्ञान’’ मानों देश की युवाओं को वह यह बता रहे हैं जो दादी मां अपने बच्चों को कैसे बहला फुसला के खाना खिला देती थी। मोदीजी के संकल्प घोषणा पत्र में एक नजर उसके आंकड़ों पर देखें तो 66.5 करोड़ देश की आबादी को मोदी की तमाम योजनाओं से सीधे लाभ पंहुचा है। यानि कि लगभग देश की आधी आबादी को मोदी सरकार ने सीधे लाभ पंहुचा है। वहीं 10 करोड़ किसानों के बैंक खातों में 2000/- रुपये ठीक चुनाव से पहले जमा करा कर लगभग 75.5 करोड़ लोगों को सीधे लाभ दिया गया । इस प्रकार देखा जाए तो मोदी सरकार ने कुल 90 करोड़ मतदाताओं में से 75 करोड़ मतदाताओं को जो कुल मतदाताओं का 83% होता है को तो सीधे मोदी सरकार से लाभ मिला है तो फिर उनको अपने कामों पर वोट ना मांगना, समझ से परे है।  कभी सेना का नाम पर, तो कहीं राम के नाम पर तो कभीं नेहरू, राजीव गांधी को अपमानित कर, तो कहीं विद्यासागर जी की मुर्ति को खंडित कर, कहीं हिन्दुओं को भड़का कर, तो कहीं पुलमावा के शहीदों के नाम वोट करने का प्रथम युवा मतदाताओं से आह्वान कर, तरह-तरह की बात, जगह-जगह, अलग-अलग बात करते देखे गए। इसके साथ ही गोदी मीडिया साथ-साथ अपनी ताकत झौंके हुए है। 

मुझे एक बात अभी तक समझ में नहीं आ रही जब मोदी सरकार की इतनी सफलता है तो उनको अपने कामों पर वोट ना मांगते देखकर घोर आश्चर्य भी हो रहा है और इनके रणनीतिकारों के दिवालियापन पर अफसोस भी । ऊपर मैंने इनके नारे के फर्क की बात की, फिर इनके घोषणा पत्र की बात की अब तीसरे भाग में कुछ चुनावी अंकगणित पर भी चर्चा कर लेते हैं।

2014 में पांच राज्यों प्रमुख राज्यों जिसमें उत्तरप्रदेश, राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तिसगढ़ और बिहार जो भाजपा का गढ़ माने जाते थे जिसमें पिछले लोकसभा के चुनाव में भाजपा ने उत्तरप्रदेश में 41.3% वोट प्रतिशत शेयर के साथ में 80 में 71 सीटें,  राजस्थान में 54.9% वोट प्रतिशत शेयर के साथ में 25 में 25 सीटें , मध्यप्रदेश में 54% वोट प्रतिशत शेयर के साथ 29 में 27 सीटें, छत्तिसगढ़ में  में 48.7% वोट प्रतिशत शेयर के साथ 11 में 10 सीटें और बिहार में वर्तमान यूपीए गठबंधन को 51.6% वोट प्रतिशत शेयर के साथ 40 में 30 सीटें आज इनके पास है। यानि की इन पांच राज्यों में ही भाजपा को 163 सीटें मिली थी। जो 2019 के चुनाव में उत्तरप्रदेश में वोट प्रतिशत घटकर 35% वोट प्रतिशत के नीचे घिसने का अनुमान लगाया जा रहा है इसके प्रमुख कारण है - योगी सरकार से ब्राहमणों की बड़ी नाराजगी वहीं मोदी सरकार की नोटबंदी व जीएसटी से परेशान बुनकर उद्योग का कमजोर तबका खासा नाराज दिख रहा है। जबकि 2014 में ‘‘मोदी लहर’’ में बाबजूद बहुजन समाज पार्टी व समाजवादी पार्टी को 41.8% वोट प्रतिशत शेयर प्राप्त हुए थे।  यह ‘‘मोदी लहर’’ जैसा कि सबने 2014 में देखा और अनुभव भी किया था आज किसी भी रूप में यह कोई ‘मोदी लहर’ यूपी में नहीं है। वहीं पिछले विधानसभा चुनाव में राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ़ में भाजपा की सरकार चले जाने से वहां भी लोकसभा के चुनाव के वे सम्मीकरण जो 2014 में थे गड़बड़ाये हुए हैं। अर्थात कि उत्तर प्रदेश में 10%  और इन तीनों राज्यों - राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तिसगढ़ में 7% से 10% वोट शेयर प्रतिशत में गिरावट का अंदाज आंका जा रहा है। 
वहीं बिहार की बात ले लें तो, इस बार बिहार में लोजपा और नितीश की सरकार से लोगों को नाराज साफ देखा जा रहा है जो नितीश कुमार के चेहरे से भी साफ झलक रहा है। कहने का अभिप्रायः यह है कि बिहार में भी भाजपा 2014 के मुकाबले उतनी मजबूत नहीं दिखाई पड़ रही है।  अर्थात इन पांच राज्यों में कुछ न कुछ खोना निश्चित है । जो लगभग 80 सीटों के आसपास माना जा रहा है । 
अब महाराष्ट्र, गुजरात में भी भाजपा को कुछ नुकसान तो जरूर होगा यह नुकसान दोनों राज्यों में मिलाकर 10 सीटों के आसपास से रहेगी।  इसी प्रकार भाजपा को अन्य राज्यों में जैसे दिल्ली, कर्नाटका, झारखंड, हरियाणा और असम में भी हानि के संकेत मिल रहे है। कुल अनुमान के अनुसार इसबार भाजपा को पिछले चुनाव परिणाम से लगभग 100 सीटों का भारी नुकसान का आंकलन साफ दिख रहा है जिसकी भरपाई बंगाल व ओडिशा से कदापी संभव नहीं हो सकता यदि अमित शाह की बात भी मान ली जाए तो तब भी  बंगाल की कुल 42 सीटें, ओडिशा की कुल 21 सीटें और त्रिपुरा की दो सीटों में आधी भी भाजपा को दे दी जाए यानि कि 65 सीटों में 30-32 सीटें भी भाजपा के खातें में जोड़ भी दी जाए जो एक काल्पनिक बात है तब भी भाजपा को बहुमत से 70 सीटें कम रहेगी। जो ना तो अखिलेश - मायावती की जोड़ी पूरी कर सकती है ना ही शरद पवार और ममता की जोड़ी । जयहिंद !

लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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