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सोमवार, 16 दिसंबर 2013

व्यंग्य: हम हार नहीं मानगें? - शम्भु चौधरी



कुछ तो शर्म करो भाई! भाजपा ने दिल्ली में सरकार बना भी लेती या नहीं बनाई तो क्या हुआ? केजरीवाल को दे तो दिया सबने मिलकर अपना समर्थन। अब उसकी जिम्मेदारी है कि वह जनता से किये वादों को पूरा करे। सिर्फ छह महीने में बिजली-पानी का वादा हम भी देखते हैं कैसे पूरा करेंगें? हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। जबतक केजरीवाल को अपनी जाति में शामिल नहीं कर लेते, हम हार नहीं मानगें।  


भाजपा को अगला चुनाव कांग्रेस के साथ मिलकर लड़ना चाहिए। यह बात हमें सुनने में बड़ी ही अटपटी सी लगती हो, पर इस बात में कहीं ना कहीं सच्चाई तो लग ही रही है। आज सुबह मॉर्निंग वॉकर क्लब में कुछ हंसी मजाक की बात चल रही थी तभी मुंगेरीलाल काफी गंभीर हो कर बोलने लगे’ आप लोगों को मजाक की सूझ रही है? इस देश का अब क्या होगा? ऐसे ही दिल्ली में विधानसभा चुनाव के बाद भाजपा, सरकार बनाने से पहले ही मैदान छोड़ कर पतलीगली से भाग निकली। नैतिकता का यही तकाजा यदि लोकसभा चुनाव के पश्चात दिखा तो सोचे देश का क्या होगा?
पास खड़े सीताराम जी मुंगेरीलाल की बात सुन कर थोड़े चिंतित नजर आने लगे। बीच में ही मुंगेरीलाल को टोकते हुए बोले- ‘‘यार बात तो सोचने की है, अब केजरीवाल को ही देखो समर्थन लेने के नाम पर भी अपनी शर्तें रख रहा है। गजब ही कर दिया बंदे ने’’ मेरे जीवन में तो ऐसा कभी नहीं सुना था। इतनी नैतिकता किस काम की? भले आदमी को थोड़ा तो समझौता करना ही चाहिए। अब ये घमंड ही तो है और इसको क्या कहें ?

अब सुबह का वातावरण धीरे-धीरे राजनीतिमय होने लगा। गोपालजी ने चर्चा में भाग लेते हुए कहा कि मुझे तो लगता है इसमें भी कोई राजनीति है? केजरीवाल को सरकार बना लेनी चाहिए। राजनीति पार्टियों को समर्थन लेने की कीमत चुकानी पड़ती है परन्तु केजरीवाल को तो सब कुछ बिना शर्त बिलकुल मुफ्त मिल रहा है। कहावत हैं न ‘‘हल्दी लगे ना फिटकरी रंग चोखो आये’’ अब केजरीवाल को कुछ काम कर के दिखाना चाहिए।
हमारे कुछ मित्र राजनीति बहस होते देख धीरे-धीरे घिसकने लगे। अब हम चार ही बच गये थे सो बात करते-करते चाय की दुकान की तरफ हो लिए। चाय वाले के पास खड़े-खड़े बात ही कर रहे थे कि पास में ही युवकों की एक टोली खड़ी थी पहले तो वे लोग हमारी बातें सुनते रहे, फिर कुछ देर बाद उनमें से एक युवक थोड़ा ताव में आकर बोलने लगा। -
‘‘तो भाई सा’ब ये बीजेपी और कांग्रेस वाले ही मिलकर सरकार क्यों नहीं बना लेते? इनकी हर जगह आपस में मैच फिक्सड है। अब ये लोकपाल बिल को ही ले लिजिये? बीजेपी के वो क्या नाम है..... कुछ याद करते हुए... हां!  जेटली जी सा’ब कहते हैं कि ‘‘संसद में लोकपाल बिल को बिना बहस के ही पास कर दिया जाए’’ भाई!  मैं पूछता हूँ ये दोनों इतने उतावले क्यों दिखने लगे लोकपाल बिल को पास करने के मामले में? सोचना तो पड़ेगा ही दो विपरीत विचारधारा के ध्रुव जब एक दिखें तो दाल में काला तो जरूर है। हो ना हो देश में ग्रहण काल दिख रहा है।
तभी उनमें से एक दूसरा युवक बोलने लगा-
‘‘मुझे तो राहुल गांधी ज्यादा ईमानदार नजर आते हैं। बेचारा जो कुछ भी बोलता है सही बोलता है। दागी बिल में भी राहुल जी को उन लोगों ने वेबजह बकरा बना दिया। जब भाजपा और कांग्रेस दोनों ने तो तय ही कर लिया था कि दागी अध्यादेश जल्दी से पास हो जाए तो बेचारे को बकरा क्यों बनाया मिलकर?

तभी तीसरा युवक सामने आया- हमें समझाने की लहजे में बोला ‘‘आरटीआई कानून से लेकर कोयला दलाली तक दोनों राजनीति दल सूर में सूर मिलाते नजर आतें हैं। क्यों ने दोनों ही मिलकर दिल्ली में सरकार बना लेते?’’
अब मुंगेरीलाल से रहा नहीं गया। बीच में ही टोकते हुए कहे ये सब तो ठीक है पर केजरीवाल को तो मौका हाथ से गँवाना नहीं चाहिए?
हम तो गंवारू लोग हैं, हमें तो बस यही समझ में आता है कि कैसे भी हो सरकार बना लो बस। जनता का वादा पानी, बिजली से हमें अब क्या लेना-देना वैसे भी केजरीवाल को कौन सा 5 साल सरकार चलानी है। 6 माह के बाद चुनाव करवाना तो होगा ही? अभी तो सरकार बना ही लेनी चाहिए’’ - क्यों कोई गलत बात हो तो बताओ?
मेरे से तब रहा नहीं गया। मैंने उनसे पूछा मेरी एक बात समझ में नहीं आती ये अन्ना को क्या हो गया जो उनको अचानक से ये अनशन की क्या सूझी, मुझे तो इनके अनशन के समय और इनके बयान पर भी शंका नजर आने लगी।

मुंगेरीलाल अब आपे से बहार हो गए- बोले जो भी हो जैसा भी हो बस अब संसद को चलने भी दो यार मिलकर जब दोनों बड़ी पार्टियां काम करती हैं तो इसमें देश का भला ही तो है। आप लोगों को बस बात बनानी आती है। बेबजह हर बात में अंगूली करना आदत सी बन गई है।

देश की दो बड़ी राजनीति पार्टी देश हित में लगातार फैसलों पर फैसला लिये जा रही है। चार साल संसद को जम कर लूटा, देश को मिल बांट कर लूटा। अब चुनाव का समय आया और फैसले लेने में लगी है तो भी इनके ऊपर सवाल पर सवाल किये जा रहे हो!! कुछ तो शर्म करो भाई! भाजपा ने दिल्ली में सरकार बना भी लेती या नहीं बनाई तो क्या हुआ? केजरीवाल को दे तो दिया सबने मिलकर अपना समर्थन। अब उसकी जिम्मेदारी है कि वह जनता से किये वादों को पूरा करे। सिर्फ छह महीने में बिजली-पानी का वादा हम भी देखते हैं कैसे पूरा करेंगें? हमने भी कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। जबतक केजरीवाल को अपनी जाति में शामिल नहीं कर लेते, हम हार नहीं मानगें।

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