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शनिवार, 21 दिसंबर 2013

दिल्ली चुनावः आप ने रचा नया इतिहास-2


भारतीय गणतंत्र की इस खुशबू के साथ ही हमें यह भी सोचना होगा कि इस चमन में जो फूल खिल रहे हैं उसे कैसे इन गिद्ध दृष्टि से बचाया जा सके। निःश्कोंच मुझे यह बात मानने से कोई परहेज नहीं कि अभी आम आदमी पार्टी में परिपक्वता की काफी कमी देखने को मिली है। हांलाकि उनकी भावना और ईमानदारी पर कोई शक नहीं, परन्तु जिस प्रकार के शब्दों का चयन या प्रयोग पार्टी के कार्यकर्ताओं को करते देखा जा रहा है यह लोकतंत्र की भाषा नहीं हो सकती। कम से कम सभ्य तो नहीं मानी जा सकती। 
देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि कोई राजनैतिक पार्टी सिर्फ इसलिए जनता के पास रायशुमारी के लिए जाती है कि अब चूंकि उनकी पार्टी को विधानसभा में पूर्ण बहुमत नहीं मिला है ऐसे में उनकी पार्टी को सरकार बनाने के लिए दूसरी राजनीति पार्टी अर्थात जिस कांग्रेस के खिलाफ वे चुनाव लड़कर आयें हैं उनके ही समर्थन से सरकार बनानी चाहिए कि नहीं?

भारत के राजनीति इतिहास में कहीं भी ऐसे प्रयोग की चर्चा पढ़ने या सुनने को नहीं मिली है। हाँ! अक्सर इस बात की चर्चा हम जरूर करते हैं कि दो विपरीत विचारधाराओं को संसद और विधान सभाओं में जो चुनाव के पूर्व एक दूसरे के कट्टर विरोधी माने जाते थे, एक -दूसरों के खून के प्यासे थे, वे सत्ता के लिए कमरे में बैठकर आपस में गले मिल जनता का गला घोंटते रहें हैं। जनता इनके इन इरादों को कभी भाँप भी ही नहीं पाती थी। लाचार जनता किंकर्तव्यविमूढ खुद को ठगी सी महसूस करती अगले चुनाव का इंतजार करती नजर आती। जिस अंगूलियों से उन्होंने वोट दिया था उन अंगूलियों को दाँत के तले दबाने के अलावा जनता के पास कुछ भी नहीं बचता था।

देश में कई राजनीति दल तो सिर्फ इस काम के लिए ही बने हैं जो सिर्फ खरीद फरोख्त के कार्य को ही अपना राजनीति धर्म मानती रही हैं । ऐसे राजनीति दलों की इस वातावरण में चाँदी ही चाँदी हो जाती थी। यह भारतीय लोकतंत्र का सबसे बड़ा सच भी है तो मजाक भी है। गठबंधन की सरकार चलाना या सरकार बनाने के लिए गठबंधन बनाना सिवा एक राजनैतिक समझौता है। जिसने देश को लूटने के एक हथियार के रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा है।

भारत की जनता को यह भी सोचना जरूरी हो गया कि देश में गठबंधन राजनीति का जो दौर शुरु हुआ है यह देश के कितने हित में है? कांग्रेस पार्टी के वर्तमान अनुभव की ही बात को लें तो यूपीए-2 का गठबंधन पूरी तरह से भ्रष्टाचार के बलि चढ़ चुका है। जिन-जिन राजनैतिक पार्टियों ने कांग्रेस से गठबंधन किया उन लोगों ने जमकर देश को लूटने में कोई कोरकसर बाकी नहीं रखी। कुछ ईमानदार लोग राजनीति करने की चेष्टा की तो उनको बीच में ही इस गठबंधन से बाहर जाना पड़ा। एक गये तो दो नये आ गये। कुल मिलाकर गठबंधन की राजनीति, सत्ता का संरक्षण और देश को लूटने का लाइसेंस बन चुका है। इस राजनीति में आतंकवादी तक भी संरक्षण प्राप्त कर सकता है।

इन सबके बीच भारतीय लोकतंत्र में एक ठंडी हवा का हल्का सा झोंका ही सही देश की जनता ने दिल्ली के चुनाव में महसूस किया है। शायद मेरे मित्र मेरी इस बात से भी सहमत होंगे कि भले ही हमारी अपनी अलग-अलग विचारधारा रही हो पर इस बार दिल्ली के चुनाव में सिर्फ दिल्ली की जनता की ही भागीदारी हमें नहीं दिखी बल्की लगभग पूरी देश की निगाहें इस चुनाव पर ही टिकी थी, दिल्ली की जनता के साथ-साथ देश की जनता ने भी ‘आप पार्टी’ की रायशुमारी में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया है। जो कभी देखने को नहीं मिला था।

भारतीय गणतंत्र की इस खुशबू के साथ ही हमें यह भी सोचना होगा कि इस चमन में जो फूल खिल रहे हैं उसे कैसे इन गिद्ध दृष्टि से बचाया जा सके। निःश्कोंच मुझे यह बात मानने से कोई परहेज नहीं कि अभी आम आदमी पार्टी में परिपक्वता की काफी कमी देखने को मिली है। हांलाकि उनकी भावना और ईमानदारी पर कोई शक नहीं, परन्तु जिस प्रकार के शब्दों का चयन या प्रयोग पार्टी के कार्यकर्ताओं को करते देखा जा रहा है यह लोकतंत्र की भाषा नहीं हो सकती। कम से कम सभ्य तो नहीं मानी जा सकती। आम आदमी पार्टी ने जनता का विश्वास प्राप्त करने में जरूर सफलता प्राप्त की है परन्तु इस विश्वास पर खरा उतरने के लिए इनको ना सिर्फ अपनी भाषा को संतुलित करने, साथ ही इनको अब ज़िम्मेदारी पूर्वक बयान देने की भी जरूरत है।

रविवार की रात आम आदमी पार्टी के लिये काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। ‘आप’ एक ऐसे अंतर्विरोध के बाद सरकार बनाने का फैसला लेगी जहां दिल्ली में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बनकर विधानसभा में विपक्ष की भूमिका निभायेगी।  लोकतंत्र में इसे त्रासदी कह लें यह हकीकत। आम आदमी पार्टी को मानना ही होगा कि वह जो सोचती है ये रास्ते उतने आसान नहीं हैं। अपने घोर दुश्मन के सहयोग से सरकार बनाना उससे भी कहीं खतरनाक मार्ग है। जबकि इनको इनमें से एक विकल्प चुनना ही होगा। इसी को लोकतंत्र कहा जा सकता है।

मेरी शुभकानाऐं ‘आप’ के सभी कार्यकर्ताओं के साथ है। इसी शुभकामनाएं के साथ।
शम्भु चौधरी
21-12-2013

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