सरकार चलाने का तर्जूबा सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के पास ही। देश की सत्ता में काबिज हो देश के खजानों को लूटना, देश की खनिज संपदा का बंदरवाट करना इनके सरकार चलाने का अर्थ होता है। देश को लूटो और राज करो। केजरीवाल को सरकार चलानी इसलिये नहीं आती क्योंकि केजरीवाल व इसके साथी इस बंद पिंजडे का पंछी नहीं हैं । हमें अवसर मिला है इसमें अपनी आहुति देने का। संविधान की मर्यादा का पालन करनेवालों को भी खुलकर केजरीवाल का साथ देना होगा नहीं तो ये लूटरें संविधान के हथियार से केजरीवाल को घायल कर देगें ।
जबसे केजरीवाल की आम आदमी सरकार दिल्ली में आई है। सियासतदानों के तरकश में नये-नये शब्द पैदा होने लगे। राजनीति को रंडीखाना बना देने वाले इन नेताओं के मुंह से कभी पागल शब्द निकलता है तो कभी ‘‘शहरी नकस्लवाद’’। एक महाशय ने एक बेनेर अपने फेसबुक पर चिपकाया है उसमें लिखा है - ‘‘आम आदमी पार्टी माओवादी संगठन जैसा है।’’ मेरी एक कविता के बोल कुछ इस प्रकार है।- एक परिंदा...
एक परिंदा घर पर आया, वह फर्राया- फिर चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मैं सोचा यह क्या कहता है? / हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है।
एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मुझे हैरत इस बात से नहीं कि भाजपा और कांग्रेस राजनीति तरीके से आम आदमी पार्टी को घेरने में लगी है। लोकतंत्र में इसका स्वागत है। हैरनी इस बात से है कि 50 से 500 कमरों के आलिशान झूग्गी-झोपडियों में रहने वाले गरीब देश के इन महान सपुतों को राजनीति करने के लिये केजरीवाल का कभी 5 कमरे का घर मिलता, तो कभी सरकारी गाड़ी का नम्बर प्लेट। कभी ये रंडियों का बचाव करने का मौका तलाशतें हैं, परन्तु नादान लडकियों को इस गौरखघंघे की आग में झौंकने वाले दरिंदों के खिलाफ चुप रहतें हैं। दिल्ली पुलिस के काली करतुतों उनकी काली कमाई के खिलाफ चुप हैं परन्तु उनके द्वारा अपराधियों को बचाये जाने को लेकर की गई गलत कार्रवाही के पक्ष में हंगामा बरापा रहें हैं। जिन बिजली कंपनियों के पुश्तैनी कारोबारी को कभी धन का संकट नहीं था आज अचानक से उनके पास धन की कमी हो गई। जिस सरकारी कंपनी ने कभी यह नहीं कहा कि वह बिजली नहीं दे सकते, उसने अचानक से नोटिस चिपका दी कि पहले पैसा दो फिर बिजली लो। मानो दिल्ली में ‘आप’ की सरकार क्या बनी, रातों-रात सारे के सारे ईमानदार हो गये। जो भाजपा पिछले 15 साल से सोई हुई थी। रजाई से बहार निकालकर खुद को तरोताजा महसूस करने लगी। जैसे दिल्ली से ही मोदी के भाग्य का फैसला होने वाला है।
दिल्ली की सरकार चुन कर आई है। परन्तु दिल्ली की सारी व्यवस्था दिल्ली के उप-राज्यपाल के माध्यम से केन्द्रीय सरकार चलायेगी। प्रत्येक बात पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को उप-राज्यपाल की स्वीकृति लेनी आवश्यक होगी। मानो दिल्ली की जनता ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाकर कोई पाप कर दिया है। अबतक दोनों (कांग्रेस व भाजपा) पार्टियों का धंधा दिल्ली में फलफूल रहा था। दिल्ली को तुम मिलकर लूटो, देश को हम मिलकर लूटतें हैं कोई किसी के काम में दखल नहीं देगा। इस बात की शपथ लेते थे कि दोनों पक्ष कभी भी इस लूट की व्यवस्था को जनता के सामने उजागर नहीं करेगें। यह है इनके संविधान की व्याख्या। दरअसल ये लोग संविधान की शपथ लेकर देश की जनता को लूटने का धंधा चलाते थे, जिसे केजरीवाल ने जगजाहिर करने का प्रयासभर किया है।
दिल्ली की जनता को लूटने के लिये इनके पास सारे नियम कानून और सिस्टम उपलब्ध है परन्तु जनता के धनको लूटने वालों पर अंकुश की बात करते ही इनको संविधान की याद आने लगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री के हाथ-पांव को कानून से बांधने के सभी कानून उपलब्ध है। देश के इन लूटरों के खिलाफ बोलने व दिल्ली जनलोकपाल कानून बनाने की बात करते ही इनको पद व गोपनियता की याद सताने लगी। कहते हैं वे संविधान से बंधे हुए हैं। जैसे चोर चिल्लाता है कि मुझे मारो मत मैं भी इंसान हूँ।
सरकार चलाने का तर्जूबा सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के पास ही। देश की सत्ता में काबिज हो देश के खजानों को लूटना, देश की खनिज संपदा का बंदरवाट करना इनके सरकार चलाने का अर्थ होता है। देश को लूटो और राज करो। केजरीवाल को सरकार चलानी इसलिये नहीं आती क्योंकि केजरीवाल व इसके साथी इस बंद पिंजडे का पंछी नहीं हैं । हमें अवसर मिला है इसमें अपनी आहुति देने का। संविधान की मर्यादा का पालन करनेवालों को भी खुलकर केजरीवाल का साथ देना होगा नहीं तो ये लूटरें संविधान के हथियार से केजरीवाल को घायल कर देगें । जयहिन्द! - शम्भु चौधरी 07.02.2014
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