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सोमवार, 17 नवंबर 2014

धर्मनिरपेक्षता की आड़ में आंतकवाद को पनाह ?

(पंडित नेहरू के 125वी जयंती के अवसर पर) 
लेखक: शम्भु चौधरी


पंडित जवाहरलाल नेहरू की आलिशान कब्र को ढोहने वाली कांग्रेसी जमात की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गांधी ने पंडित नेहरू के 125वी जयंती के अवसर पर आयोजित अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि ‘‘नेहरू के विचार पर आज खतरा पैदा हो गया है। क्योंकि तथ्याों को गलत ढंग से रखा जा रहा है और तोड़-मरोड़ कर पेश किया जा रहा है। उन्होंने धर्मनिरपेक्षता को भारत के लिये अकाट्य जरूरत पर भी जोर दिया।’’ 
श्रीमती सोनिया गांधी का यह बयान कि पंडित नेहरू के विचार को खतरा पैदा हो गया  है यह खुद में कांग्रेस पार्टी की समाप्ति की तरफ इशारा भर  है। भला कब तक कांग्रेसी चम्मचे गांधी परिवार की  वैशाखी के भरोसे देश को लूटते रहेगें? भारत में कुकुरमुत्ते की तरह धर्मनिरपेक्षता की दुहाई देने वाली  राजनैतिक दलों का पैदा होना इस बात का सबूत है कि पंडित जी के विचार से देश का सत्यानाश भले ही किया जा सकता भारतीय सांस्कृतिक विकास कदापि संभव नहीं है। 

पिछले 65 सालों में इस देश में धर्मनिरपेक्षता की राजनीति सिर्फ सत्ता को प्राप्त करने के लिये किया जाता रहा है। चाहे वह कांग्रेस पार्टी रही हो या अन्य कोई भी आंचलिक राजनैतिक पार्टी, सबके सब येन-केन प्रकारेण मुसलमानों का राजनैतिक दोहन कर खुद को सत्ता में स्थापित कर देश को लूटना इनका एकमात्र लक्ष्य रहा है। आज देश की जनता ने एकमत से इनको किनरे लगा दिया है।

आज यह प्रमाणित होता जा रहा है कि भारत में जिसप्रकार की सेक्लुरिजम की रोटी सैंकी जा रही है इससे देश की एकता और अखंडता को खतरा पैदा होने लगा है। अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के नाम पर इस देश में ईस्लामिक आंतकवाद को बढ़ावा मिलने लगा है। 

आज भारत के तमाम शहरों में इन राजनैतिक दलों की सुरक्षा कवच पहनकर मुस्लीम आतंकवादी भारत में तेजी से पनप रहे हैं। इन आतंकवदियों का सीधा शिकार सबसे पहले भारतीय मुसलमानों होतें हैं। उनको पहले धर्म की दुहाई दी जाती है फिर धन का लालच देकर इन नदान बच्चों को ये आतंकवादी अपना हथियार बना लेते हैं और यहीं से शुरू होती है इनकी कारगुजारी की शुरूआत। स्नेह-स्नेह इन आतंकवादियों ने भारत के पुर्वत्तर सहीत देश की कई सीमाई राज्यों में अपना जाल से फैला दिया है। इसके लिये पूर्णरूप से पंडित नेहरू की विचारधारा ही जिम्मेदार मानी जा सकती है। जिन्होंने इन्हें वोटबैंक के रूप में सत्ता प्राप्त करने का जरिया मान लिया है। 

 बर्दमान विस्फोट कांड में ‘एनआईए’ की टीम की सक्रियता ने इन दिनों इन तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतों की नींद ही उड़ा दी है। एक के बाद एक, परत दर परत मदरसों के माध्यम से भारत में सांप्रदायिक जहिरले तार बिछते जा रहे थे। बिहार के बाद बंगाल में इन आतंकवदियों का सुरक्षित कोरीडोर बनाने में आखिर किसने मदद की यह भारतीय राजनीति के लिये शौध का विषय है।

हाँ! यदि कांग्रेस अध्यक्षा श्रीमती सोनिया जी यह मानती है कि पंडित नेहरू के यही बिचार थे कि भारत को आतंकवदियों को भरोसे सुपुर्द कर दिया जाय तो ऐसे विचारों को आज ना तो कल तो खतरा पैदा होना ही था। धर्मनिरपेक्षता की आड़ लेकर ईस्लामिक आतंकवाद को भारत में संरक्षण देना यदि पंडित नेहरू की विचारधारा का मूल मंत्र है तो ऐसी विचारधारा किसी भी रूप में भारत को कभी भी स्वीकार नहीं।



गुरुवार, 6 मार्च 2014

‘आप’ फूंक-फूंक कर चले।

यह लड़ाई अंग्रेजों से लड़ने की नहीं, कि देश की जनता भावनात्मक रूप से ‘आप’ के साथ हो जायेगी। यह लड़ाई उस व्यवस्था से जो हमारे जीवन का अंग बन चुकी है। इस भ्रष्ट व्यवस्था में हर किसी का स्वार्थ छुपा हुआ है। चाहे वह पत्रकार हो या संपादक, सिपाही हो या ऑफिसर,  मंत्री हो या चपरासी। चेन की तरह सबके सब इस व्यवस्था के हिस्सेदार बन चुकें हैं। 
कोलकाताः (दिनांक 06 मार्च 2014) 
कल गुजरात के राधनपुर में आम आदमी पार्टी के संयोजक श्री अरविंद केजरीवाल के साथ जो कुछ भी घटा और तुरन्त उसके बाद दिल्ली भाजपा कार्यालय के बाहर जो कुछ भी हुआ, उसकी नाकारात्मक प्रतिक्रिया स्वभाविक थी। कुछ निर्णय ‘आप’ के आंदोलन को कमजोर करने में काफी महत्वपूण रहें हैं जिसमें 1. खड़की एक्सटेनशन में आधी रात को बिना वारण्ट के छापा मारना, मुख्यमंत्री के रूप मे केजरीवालजी का धरना और कल का दिल्ली और लखनऊ में ‘आप’ का कदम। 
‘आप’ को समझना होगा कि देश की जनता ‘आप’ के हर कदम पर नजर रखे हुए है। कांग्रेस और भाजपा के पापों से देश को मुक्त कराने के लिये जनता में अजीब सी छटपटाहट है। जबकी भाजपा और कांग्रेस हर उस ताकत (सरकारी तंत्र) का प्रयोग ‘आप’ को कुचलने के लिये करना चाहेगी जिससे ‘आप’ की शक्ति क्षीण हो।
इन दिनों जिसप्रकार मोदी के उग्रवादी समर्थक सिर्फ ‘आप’ और केजरीवाल को तारगेट करने में लगें हैं इससे साफ हो जाता है कि भाजपा को कांग्रेस से कम, ‘आप’ से अधिक खतरा है। 
इसीलिये मुम्बई में नितीन गडकरीजी, राज ठाकरे को मनाने में जूटें हैं कि कहीं दिल्ली जैसा हाल इनका महाराष्ट्र में भी ना हो जाय। भाजपा (मोदी ग्रुप) का सारा अंकगणित ‘आप’ खराब कर सकती है। इस बात का इनको आभास हो चुका है। इसलिय भाजपा उस हर कदम का राजनीति लाभ लेने का प्रयास करेगी जिससे ‘आप’ की लहर को नूकशान  हो। ‘आप’ को इन सब बातों पर ध्यान देने की जरूरत है।
दूसरी सबसे महत्वपूर्ण बात है कि ‘आप’ भ्रष्टमुक्त व्यवस्था लाने के लिये सबसे दुश्मनी मोल लेता जा रहा है। ऐसे में कोई भी ऐसी व्यवस्था जो अधिकांशतः भ्रष्टाचार में लिप्त है वह हर उस अवसर के तलाश में है जिससे ‘आप’ को ना सिर्फ राजनीति रूप से क्षति पंहुचा सके। तमाम सरकारी दस्तावेजों में भी अदालत को भी गुमराह कर सके। कहाँ-कहाँ, और किस-किस को सफाई देते फिरेगें ‘आप’? 
यह लड़ाई अंग्रेजों से लड़ने की नहीं, कि देश की जनता भावनात्मक रूप से ‘आप’ के साथ हो जायेगी। यह लड़ाई उस व्यवस्था से जो हमारे जीवन का अंग बन चुकी है। इस भ्रष्ट व्यवस्था में हर किसी का स्वार्थ छुपा हुआ है। चाहे वह पत्रकार हो या संपादक, सिपाही हो या ऑफिसर,  मंत्री हो या चपरासी। चेन की तरह सबके सब इस व्यवस्था के हिस्सेदार बन चुकें हैं। 
संविधान इनके हाथों में कैद हैं। सरकारी तंत्र को पूरी तरह से इन अपराधियों ने कब्जे में कर रखा है। सबको एक साथ ललकार नहीं जा सकता। अभी सिर्फ सत्ता के दलालों को ही ललकारना सही रहेगा। बाकी सभी व्यवस्था को साथ लेना होगा। भले ही वह गलत ही क्यों न हो। जयहिन्द!!  - शम्भु चौधरी
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मंगलवार, 4 मार्च 2014

अण्णाजी की राजनीति? - शम्भु चौधरी

संसद में लोकपाल बिल पारित करते समय अण्णाजी को जिन व्यक्तियों ने गुमराह किया उनमें से एक चौथी दुनिया के प्रधान संपादक श्री संतोष भारतीय भी हैं, जिन्होंने  अपने नये संपादकिया देखें 24 फरवरी का अंक ‘‘लोकतंत्र को तमाशा ना बनने दें’’ में श्री अण्णा हजारे के उस 17 सूत्रीय कार्यक्रम का जिक्र करते हुए आपने ममता बनेर्जी की काफी प्रसंशा की है। 
कोलकाताः (दिनांक 04 मार्च 2014) 
अण्णाजी जी ने जिस प्रकार ममता दीदी को लेकर राजनीति शुरू की है यह भी ठीक उसी राजनीति का हिस्सा है जिसप्रकार अण्णाजी ने जी ने रालेगणसिद्धी में बैठकर अनशण किया और पलकों में ही केन्द्र की कांग्रेस सरकार और भाजपा के दो एजेण्टों ने मिलकर अण्णाजी को गुमराह किया था। अब यह बात किसी से छुपी नहीं है कि वे दो एजेण्ट कौन थे। खुद अभी भाजपा में शामिल हुए जनरल वि.के.सिंह ने स्वीकारा किया कि ‘अण्णाजी’ एक सशक्त 'लोकपाल बिल' लाना चाहते थे। फिर देश को गुमराह क्यों किया गया? इसका जबाब अभी रहस्य बना हुआ है। परन्तु जिस प्रकार लोकपाल समिति के चयन पर रोजाना उठ रहे विवाद और चयनित सदस्यों के द्वारा पद से त्यागपत्र इस बात पर संकेत तो दे ही रहा है कि कहीं दाल में काला है जिसे कांग्रेस और भाजपा दोनों मिलकर छुपाना चाहते हैं।

संसद में लोकपाल बिल पारित करते समय अण्णाजी को जिन व्यक्तियों ने गुमराह किया उनमें से एक चौथी दुनिया के प्रधान संपादक श्री संतोष भारतीय भी हैं, जिन्होंने  अपने नये संपादकिया देखें 24 फरवरी का अंक ‘‘लोकतंत्र को तमाशा ना बनने दें’’ में श्री अण्णा हजारे के उस 17 सूत्रीय कार्यक्रम का जिक्र करते हुए आपने ममता बनेर्जी की काफी प्रसंशा की है।  

आप लिखते हैं कि 30 जनवरी को कोलकाता के पैरेड ग्राउंड में ममताजी की रैली में 30 लाख लोग आये थे।  20 लाख मैदान में 5 लाख मैदान के बहार और 5 लाख लोग कोलकाता की सड़कों पर। मुझे ताजूब होता है कि श्रीमान संपादकजी को कोलकाता की भौगोलिक स्थिति का कोई अंदाजा तक नहीं है। शहर में 15 लाख लोग यदि एक साथ प्रवेश कर जाएं तो टॉलिगंज से श्यामबजार और हवड़ा स्टेशन से सियालदाह स्टेशन के सभी मार्ग व सभी मैदान जाम हो जायेगें।  वैसे बिग्रेड पैरेड मैदान की अधिकतम क्षमता ही 5 लाख लोगों की है यदि अंदर और बहार चारों तरफ आदमियों से पट जाए।

 खैर! यह इनके सोचने का नजरिया है। जहाँ तक अण्णाजी के 17 सूत्रीय पत्र की बात है तो संपादक जी ने ‘अपने संपादकिय में कहीं भी ‘आप’ पार्टी का जिक्र तक नहीं किया जबकि इनको इस बात का पता था कि अरविंदजी ने इस पत्र पर पहले ही अण्णाजी से मिलकर अपनी स्वीकृति दे दी थी। ना तो संपादक ने अपने पत्रकारिता के धर्म को निभाने के प्रयास किया ना ही वे भारतीय राजनीति में ‘आप’ का अपने लेख में चिन्हीत तक ही किया। यदि अरविंद जी किसी समाचार मीडिया की बात करते है तो उनमें "चौथी दुनिया" समूह का विद्वेष साफ झलकता है। 

संपादक की माने तो ‘भारतीय राजनीति में ममता बनेर्जी के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। सुश्री ममता बनेर्जी स्वयं एक कुशल नेत्री है परन्तु उनकी टीम में आज भी बहुत से ऐसे लोग हे जिस पर बंगाल की जनता को पूरा विश्वास नहीं है।  इससे साफ हो जाता है कि अण्णाजी और ममता जी को राजनीति फायदे के लिय इस्तमाल किया जा रहा है "संतोष भारतीय" ने इन दोनों को अपने राजनीति फायदे और केजरीवाल को नूकशान पंहुचाने के लिये प्रयोग करना शुरू कर दिया है। जो कहीं न कहीं नीच मनसिकता का परिचायक है।  इससे ममता बनेर्जी को कोई फायदा नहीं होगा। ना ही ममता बनर्जी का बंगाल से बहार कोई कद बनने की संभावना वर्तमान राजनीति में दिखाई देती है। - शम्भु चौधरी

रविवार, 2 मार्च 2014

"संसद" बहुमत की बपौती नहीं!

ऐसा बहुमत जो लोकतंत्र की मूल भावना को तहसनहस करता हो, ऐसा बहुमत जो देश को लूटने के लिये बनाया जाता हो और लुटरों को सुरक्षा प्रदान करता हो उसे कदापी बहुमत नहीं माना जा सकता भले ही पूरी की पूरी संसद उसके पक्ष में ही क्यों ना खड़ी हो। हमें इसके उन पहलुओं पर भी गंभीरता से सोचना होगा कि ‘अल्पमत’ की जायज बातों को कहीं ‘बहुमत’ से दबाया तो नहीं जा रहा? यदि ऐसा है तो यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है।
अन्ततः कल 15वीं लोकसभा ने अपनी अंत्येष्टि कर ली। मनमोहन सरकार के इस अंत्येष्टि कार्यक्रम के समापन समारोह जब प्रतिपक्ष की नेता श्रीमती सुषमा स्वराज ने कहा की ‘‘तेलंगाना व लोकपाल बिल को इस संसद ने पास किया जो वर्षों से लंबित पड़ा था। यह अपने आप में इतिहास है।’’ जबकि लोकसभा के वरिष्ठतम सदस्य व भाजपा के नेता श्री लालकृष्ण आडवाणी जी सदन में अपनी तारीफ सुनकर भावुक हो गये उनकी आंखों में आंसू भर आये। यह दोनों ही दृश्य कई प्रश्नों का जबाब खोज रही है।

15वीं लोकसभा ने जाते-जाते जिस प्रकार बिल पर बिल पास करने की हड़बड़ी दिखाई, इससे संसदीय लोकतंत्र परंपरा पर कई प्रश्नचिन्ह भी लगा दिये हैं कि क्या ‘‘इसी को लोकतंत्र कहते हैं?’’ संसद को जिसप्रकार ब्लैकआउट कर बहुमत को दंभ भरा गया। ‘‘क्या इसे ही लोकतंत्र की मर्यादा कही जा सकती है?’’इसीप्रकार बहुमत की ताकत से संसद को चलाया जाना था तो ‘‘महिला बिल’’ ने क्या पाप किया था? 

तेलंगाना राज्य बने इस बात पर देश में कहीं विवाद नहीं। परन्तु जिस जमीन पर इसकी फसल रोपी गई है वह ना सिर्फ लोकतंत्र के लिये खतरे की घंटी है। इससे भाजपा की नियत पर शक होना लाजमी है कि यह प्रतिपक्ष में बैठी है कि सत्तापक्ष की दलाल है? 

15वीं लोकसभा में ही ‘‘लोकपाल बिल’’ को लेकर भाजपा नेता श्री अरुण जेटली जी का एक और बयान चौंकानेवाला रहा ‘बिल’ पर बहस का समय नहीं मिले तो सदन में बिना बहस के भी ‘‘लोकपाल बिल’’ को पारित किया जा सकता है।’’ सवाल इस बात का नहीं कि जेटलीजी ने सबकुछ देख सुन लिया है। सवाल इस बात का है कि देश की जनता को जानने का हक है या नहीं? कि संसद में हो क्या रहा है? 

"संसद" बहुमत की बपौती नहीं!
संसद सिर्फ बहुमत की बपौती नहीं है। इससे 125 करोड़ लोगों की आस्था जूड़ी हुई है। बहुमत एक आस्था और व्यवस्था का नाम है, ना कि तानाशाही का। राजनैतिक दलों में आपसी सहमती बने यह अच्छी परंपरा  है। परन्तु संसद को ब्लैकआउट कर तेलंगाना बिल पारित कर देना। देश को गुमराह कर ‘‘लोकपाल बिल’’ को पास करवाना, अपने राजनैतिक फायदे के लिये ‘‘दागी बिल’’ पर आपसी सहमती बनाना। इसीप्रकार जो लोग देश के हिसाब-किताब की पल-पल की खबर रखना चाहतें हैं वे ही लोग अपना हिसाब देना नहीं चाहते? ऐसे कृत्य को बहुमत की मोहर लगा देना, लोकतंत्र के लिये घातक माना जाना चाहिये। ऐसा बहुमत जो लोकतंत्र की मूल भावना को तहसनहस करता हो, ऐसा बहुमत जो देश को लूटने के लिये बनाया जाता हो और लुटरों को सुरक्षा प्रदान करता हो उसे कदापी बहुमत नहीं माना जा सकता भले ही पूरी की पूरी संसद उसके पक्ष में ही क्यों ना खड़ी हो। हमें इसके उन पहलुओं पर भी गंभीरता से सोचना होगा कि ‘अल्पमत’ की जायज बातों को कहीं ‘बहुमत’ से दबाया तो नहीं जा रहा? यदि ऐसा है तो यह लोकतंत्र के लिये शुभ संकेत नहीं है।

जो लोग अब तक देश लूटते रहे जाते-जाते इनलोगों ने सदन के भीतर लोकतंत्र को लूटने का अवसार भी नहीं चुके। ऐसे में सवाल उठता है कि आगामी लोकसभा चुनाव में हम जिसे विकल्प के तौर पर देख रहें हैं वह कहीं इन्हीं लुटरों का सरदार तो नहीं?

आगामी लोकसभा की तैयारी अब जोरों पर है। अब यही लोग संदन से निकल कर हमारे वोट को लूटने आनेवाले है। कोई हमारी भावना को लूटेगा तो कोई हमारे विचारों को। सबको सत्ता की भूख है। देश की परवा इनमें से किसी को नहीं है। देश की सोचने वाला शख्स इनके विचारों में अराजकता फैला रहा। वह शहरी नकस्लवादी है। उन्हें सरकार चलानी नहीं आती। वह पागल है। उनके पास कोई आर्थिक नीति नहीं। उसको पता नहीं देश की विदेश नीति क्या होनी चाहिये? हमें सोचना होगा कि हमें देश के लूटरों में से किनको चुनना है कि एक वह पागल को चुनना है जो देश के लिये मरने को तैयार खड़ा है। जिसे सत्ता नहीं चाहिये उसे देश की भ्रष्ट व्यवस्था में सुधार चाहिये। 
जयहिन्द!!
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16वीं लोकसभा की उलटी गिनती शुरू

कोलकाताः (दिनांक 2 मार्च 2014)

मैं व्यक्तिगत तौर पर मोदीजी का काफी प्रशंसक रहा हूँ। परन्तु मोदी के देशभक्तों ने मुझे काफी निराश कर दिया। मोदीजी के देशभक्तों ने तो खुले रूप से यह नारा दे दिया कि जो मोदी अर्थात आरएसएस को अर्थात भाजपा को वोट नहीं दे, वह देशद्रोही है। इसप्रकार मोदीजी के लक्ष्य 272 सांसद जो संसद में बैठने वाले हैं वे तो देशभक्त माने जायेगें बाकी बचे 271 सांसद देशद्रोहियों के मतों से जीतकर संसद में जानेवाले हैं। अर्थात इनकी मानें तो देश की 65 प्रतिशत आबादी देशद्रोहियों की श्रेणी में आनेवाली है। भाजपा ने कहीं भी इस बात का खंडन नहीं किया कि यह अफवाह या इस तरह की बात सही नहीं हैं ना ही वह अपने समर्थकों को मना ही कर रही है कि वे ऐसी बातें ना करें। एक तरफ तो राजनाथ सिंहजी, मोदी जी मुसलमानों को समझाने में लगे हैं तो दूसरी तरफ इस तरह की बातों से उनको सीधे-सीधे तारगेट भी किया जा रहा है। खैर!!!

आईये मोदी जी के भविश्य पर एक नजर दौड़ातें है-
सपा, बसपा, बिजूजनता दल, सीपीआई, सीपीएम, एनसीपी, डीएमके, टीएमसी इनकी वर्तमान 15वीं लोकसभा में 122 सीटें हैं। जो आगामी लोकसभा चुनाव में भी लगभग इन्हीं आंकड़ों को छूने वाली है। यदि उत्तरप्रदेश में सपा, बसपा को नूकशान होता है तो बंगाल में उतनी ही सीटों का ‘टीएमसी’ को फायदा होता दिखाई दे रहा है।  इन 122 सीटों में 50से 60 सीटें ऐसी हैं जिनमें भाजपा का कोई अतापता ही नहीं है इनमें बंगाल की 41 सीटें भी है।  ना ही इन सीटों पर मोदी फेक्टर कुछ काम कर रहा है। 

बची 421 सीटों पर हम पैनी नजर दौड़ाते हैं तो लगभग 70-80 सीटें जिनमें आंचलिक व छोटी-छोटी पार्टियों का कब्जा बरकरार रहेगा। बची 351 सीटों पर त्रिकोणात्मक संघर्ष है। इसमें कांग्रेस पार्टी, जदयू, आरजेडी, एडीएमके, ‘आप’ यदि सबको मिलाकर भी 150 सीटें मान ली जाती है तो 201 सीटें मोदीजी के खाते में बचती है। इन 201 सीटों में वे दल भी शामिल है जो ‘भाजपा गठबंधन’ से खुद को जोड़ चुके हैं। 71 सीटें किसके सहयोग से जूटाते हैं यह अभी देखना बाकी है।
भाजपा जिस प्रकार नाटकीय रूप से प्रचार में जूटी है कि पूरे भारत में मोदी की हवा बह रही है। उपरोक्त परिणाम से तो इस हवा की हवा ही निकलती दिखाई देती है मुझे। जयहिन्द!!

नोटः किसी को इस आंकड़ों में कोई भूल नजर आती हो तो वह अपनी बात तत्थ के साथ रख सकते हैं।
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सोमवार, 24 फ़रवरी 2014

हिन्दी - कब तक उपेक्षित रहेगी

हिन्दी - कब तक उपेक्षित रहेगी
(लेखक - विजय गुजरवासिया)

हमारा महान भारत विश्व में एक ऐसा सार्वभोम राष्ट्र है जिसने अभी तक अपनी राष्ट्र भाषा की घोषणा नहीं की है। सन् 1950 में देवनागरी लिपी में हिन्दी को सरकारी भाषा के रुप में मान्यता दी गई। 15 वर्ष तक सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का भी उपयोग होता रहेगा। इसके अनुसार 26/1/1965 तक ही सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का प्रयोग होना चाहिए था किन्तु राजनैतिक इच्छाशक्ति के अभाव में संसद में यह पास कर दिया गया कि 1965 के बाद भी सरकारी कामकाज में अंग्रेजी का वर्चस्व बना रहेगा। इसका दुष्परिणाम यह हुआ कि अंग्रेजी फलती फूलती रही और हिन्दी के साथ सौतेला व्यवहार होता रहा। 
आज स्थिति यह है कि विद्यालयों, कालेजों एवं सभी उच्च शिक्षण संस्थानों में अंग्रेजी को प्राथमिकता मिलती है, हिन्दी को गौण स्थान प्राप्त होता है। गिरावट यहां तक आ गई है कि अंग्रेजी बोलनेवालों में उच्च मानसिकता (Superiority Complex)  परिलक्षित होने लगी है। भारत की अधिकांश भाषाओं की जननी ‘संस्कृत’ तो लुप्तप्राय हो रही है किन्तु बोधगम्य हिन्दी के प्रति हीन भावना  (Inferiority Complex)  लज्जाजनक है। अन्तराष्ट्रीय ही नहीं बल्कि अन्तर्देशीय मंचो पर भी हमारे देश के प्रवक्ता विदेशी अंग्रेजी भाषा में वक्तव्य देने में अपनी शान समझते हैं। 

भारत पर आधिपत्य कायम रखने के लिए ब्रिटिश-साम्राज्य को अंग्रेजी पढ़े लिखे किरानियों की आवश्यकता थी इसलिए लोर्ड मेक्यले ने भारत में अंग्रेजी का प्रचार प्रसार किया। किन्तु स्वाधीनता के पश्चात् अंग्रेजी का प्रचलन जिस अबाध गति से बढ़ा है उसी का परिणाम है कि हमारी युवापीढ़ी पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति का अन्धानुकरण कर रही है और हमारे देश की नैतिक परम्पराएं, मौलिक मान्यताएं तथासरल जीवन शैली धराशायी हो रही है। 

देश की प्रायः 79% जनता हिन्दी समझती है भले ही उनकी आंचलिक और मातृबोली हिन्दी से अलग हो। 
जब देश पराधीनता की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था तब स्वदेशी आन्दोलन चला। विदेशी कपड़ो की होली जलाई गई स्वदेशी पर जोर दिया गया। विद्यालय प्रायः हिन्दी माध्यम अथवा प्रान्तीय भाषाओं के माध्यम से चलते थे। हिन्दी माध्यम से पढ़े हुए मनीषियों ने भारत में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में अपने ज्ञान और विद्वता का झण्डा फहराया। सिर्फ महाजनी जाननेवालों ने बड़े बड़े व्यवसाय और उद्योग-धन्धे स्थापित किए। आज हर क्षेत्र में हिन्दी पिछड़ रही है। घरों में, मित्रमण्डली में, गोष्ठियों और सभाओं में भी लोग हिन्दी की अपेक्षा अधकचरी अंग्रेजी का उपयोग करने में अपनी शान समझते हैं। यहां तक कि विवाह शादी जैसे मांगलिक अवसरों, धार्मिक आयोजनों आदि के निमन्त्रण-पत्र भी हिन्दी की जगह अंग्रेजी में छपने लगे हैं। स्वतन्त्र भारत में विदेशी भाषा का बढ़ता हुआ यह वर्चस्व समाज को कहां ले जायगा यह चिन्तनीय विषय है।   

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् हिन्दी को पुष्ट, प्रांजल और बोधगम्य शब्दों से भरपूर बनाने का सघन प्रयास नहीं हुआ। अन्तर्राष्ट्रीय मानक की विज्ञान संबन्धी और तकनीक संबन्धी शब्दावली का पूर्ण विकास स्वतन्त्रता के 65 वर्षो में भी नहीं हो सका इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा ? अंग्रेजियत मानस के दलदल में फंसे राजनेताओं को इस ओर ध्यान देने तथा सत्साहित्यकारों को प्रोस्ताहित करने की फुर्सत ही नहीं है। अंग्रेजी अथवा आंचलिक भाषाओं का विरोध नहीं है किन्तु एक भाषा जो बहुभाषी भारत राष्ट्र को एक सूत्र में बांध सकती है, जो देशज और विदेशी शब्दों को सहजता से अन्तर्भुक्त कर सकती है, जिसका समृद्ध साहित्य देश की सामाजिक रीति नीति का दर्पण है, जिसकी देवनागरी लिपी पूर्ण वैज्ञानिक है, जो राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन होने की नैसर्गिक दावेदार है वह सिर्फ हिन्दी है। इसलिए हिन्दी को अब अवश्य ही यथोचित प्रोत्साहन और उच्चतम स्थान मिलना चाहिए। 
आज भारत के सभी हिन्दी समाचार पत्रों एवं उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों को चेष्टा करनी चाहिये कि अधिक से अधिक हिन्दी में भाषण हों एवं लोगों को बताना चाहिये कि केवल अंग्रेजी बोलने वालों की पूछ नही होनी चाहिये। हिन्दी में पत्राचार करते या बोलते हैं उनकी भी इज्जत अंग्रेजी बोलने वालों से ज्यादा होगी तभी हिन्दी को असली दर्जा मिल सकेगा। प्रतिवर्ष चैदह सितम्बर को हिन्दी दिवस मनाने से ही काम नहीं चलेगा बल्कि हरपल, हरदिन, हर अवसर पर हिन्दी की आराधना होनी चाहिए क्योंकि कवि के शब्दों में -
निज भाषा उन्नति अहै सब उन्नति को मूल,
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय को सूल।

(लेखक - पश्चिम बंग प्रादेशिक मारवाड़ी सम्मेलन के मानद अध्यक्ष हैं) 




रविवार, 9 फ़रवरी 2014

संविधान के पहरेदार?


 ‘‘बैईमानों की पूरी व्यवस्था सिस्टम से चलती है।’’


अपने देश का यह दुर्भाग्य रहा है कि संविधान के पहरेदार संविधान की आड़ लेकर देश को लूटने में लगे हैं। मुझे वह दिन याद है जब पिछले दो साल पहले जन लोकपाल बिल को लेकर अण्णाजी का आंदोलन उबाल पर था। उस समय सारे नेताओं की बोलती बंद हो गई थी। अचानक से सभी नियमों को ताक पर रखकर संविधान के ये चौकीदार एक साथ संसद में खड़े होकर देश की जनता को इस बात का आश्वासन दिये थे कि वे जल्द ही एक सशक्त लोकपाल कानून को मूर्तरूप दे देगें। दो साल पश्चात परिणाम हमारे सामने हैं। किस प्रकार इन नेताओं में अब उसके सदस्यों के चयन को लेकर रस्साकशी चल रही है। 

 दरअसल ये संविधान के रक्षक नहीं भक्षक हैं। जो लोग उच्चतम न्यायालय के निर्णय को बदलने के लिये ‘‘आरटीआई कानून में संशोधन’’ और ‘‘दागी सांसदों व विधायकों को बचाने का बिल’’  रातों रात संसद और राज्यसभा से पारित कर राष्ट्रपति के अनुमोदन हेतु भेज सकतें हैं। मानो इन बैईमानों की सुरक्षा के लिये ही संविधान में तमाम संवैधानिक व्यवस्था पहले से ही बनाई हुई हो। खुद को कितने सुरक्षित महसुस करते हैं ये बैईमान जब संसद या विधानसभा में चुनकर चले जातें हैं। अंदाजा लगा लिजिये।

वास्तविकता यह है कि पिछले 60-65 सालों में इन राजनैतिक घरानों ने अपनी सुविधानुसार देश के संविधान को गढ़ा और देश को लूटने के नियम बनाते रहे। उद्योगिक घरानों की मिली भगत से देश के खनीज संपदा को लूटने वाले ये संविधान के पहरेदार देश के चंद उद्योगिक घरानों के लाभ के लिये देश की मुद्रा को डालर के अनुपात में कमजोर कर उन्हें लाभ पंहुचाने में कोई कसर बाकी नहीं रखते । भले ही इस मुद्रा विनिमय की कितनी भी कीमत देश की जनता को चुकानी पड़े, इन्हें इस बात की तनिक भी परवाह नहीं।

आज पुनः दिल्ली में इनको संविधान और संवैधानिक व्यवस्था की याद आने लगी।  इनकी संवैधानिक व्यवस्था देश के लूटरों को बचाने के लिये बनी हुई है। किस प्रकार पूरी की पूरी व्यवस्था संविधान की दुहाई देने के लिये एक नजर आती है। मानों बैईमानों को हर हाल में बचाना इनके संविधान में लिखा है।

 इनको ईमानदार व्यवस्था लागू करने से कोई दिलचस्पी नहीं। बैईमानों को बचाने वालों को बईमान कहा जाए तो इनके सम्मान को ठेस पंहुचती है।  जबकि देश की पवित्र संसद में बैठकर देश की मर्यादा को तार-तार कर देने में और दागियों के समर्थन से सरकार चलाने में इनके सम्मान को कोई ठेस नहीं पंहुचती।  इनका खुद का सम्मान देश के सम्मान से कहीं ऊँचा है।  ये अब संविधान के पहरेदार बन चुकें हैं। इनसे ऊपर/ इनके ऊपर अब कोई नहीं। इनकी पूरी व्यवस्था संवैधानिक सिस्टम से चलती है। अब हमें इनके बनाये पूरे सिस्टम को तौड़ना देना होगा। तभी इनको उस जेल भेजा जाना संभव होगा। जयहिन्द! 
- शम्भु चौधरी 09.02.2014
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शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

व्यंग्य: कानून के पहरेदार?


हमारे मोहल्ले में एक व्यापारी चोरी का माल खरीदने और बेचने का कारोबार करता था। जब भी उसके यहाँ पुलिस की कोई रेड पड़ती वह आदमी अपनी पंहुच की बात उस पुलिस ऑफिसर को बता के उल्टे उस अधिकारी को ही धमका देता। बेचारा पुलिस ऑफिसर उसकी धौंस से कांपने लगता और भाग जाता।
इस बात की चर्चा शहर में हर तरफ होने लगी। व्यापारी भी अपने धोंस के किस्से बाजार में फैलाता रहता था ताकि सब कोई उससे डरते रहे। एक बार एक नया ऑफिसर आया उसने भी उस कारोबारी की चर्चा सुनी तो उसने ठान लिया कि जैसे ही कोई चोर पकड़ा जायेगा उसे लेकर वह चोरी का बरामद करने खुद जायेगा। लगे हाथ उसे एक चोर मिल भी गया। उसने हवालात से उस चोर को बुलाया उसके बयान को डायरी में नोट किया और उस व्यापारी के यहाँ माल बरामद करने के लिये रेड डाल दी। संयोग से वह व्यापारी भी मिल गया।
व्यापारी ने अपनी आदतन धौंस जमाते हुए कहा कि जानते नहीं ‘‘मैं कौन हूँ?’’
ऑफिसर - ‘‘जी नहीं!’’
व्यापारी - ‘‘मेरी पंहुच ......तक है’’ तुमको पता नहीं होगा शायद? ‘‘आवाज पर जोर देते हुए कड़क से’’
ऑफिसर - ‘‘जी नहीं! आप चुप रहेंगे की आपको भी हथकड़ी डाल दूँ?’’
व्यापारी - ‘‘तुम्हारा ट्रांसफर करावा दूंगा समझते हो न चुपचाप यहाँ से चले जाओ, लिख देना कि कुछ नहीं मिला इसी में भलाई है, व्यापारी ने पुनः रौब दिखाते हुए और अपने आदमी की तरफ आँख से इशारा करते हुए कहा - ‘‘अरे कल्लू सा’ब को भीतर ले जाकर माल दिखा दो। सब समझ जायेगा।’’ व्यंग्य कसते हुए ‘‘शायद नया आया है इस इलाके में? नई बिल्ली म्यांऊ..म्यांऊ..’’
ऑफिसर - ‘‘जी नहीं!’’ आप बहार आईये हम खुद देख लेंगे भीतर क्या-क्या रखा है।   ऑफिसर ने चोर से पूछा ‘‘बोले क्या चोरी का माल इसी के यहाँ बेचा था? चोर - ‘‘जी सरकार’’
अबतक ऑफिसर की बात में अकड़ आ गई थी। उसने वे सारे माल भी बरामद कर लिये थे। तभी व्यापारी ने कहा हजूर! आपका फोन आया हुआ है। मंत्री जी लाइन पर आपका इंतजार कर रहें हैं।
ऑफिसर समझ गया कि बात जरूर ऊपर से शुरू होती है। फोन पर उसने बात की ‘‘ जी सर..ररर  ‘‘जी ठीक है।’’
ऑफिसर- चोर को मारते हुए साला झूठ बोलता हैं सच..सच बता माल किसके यहाँ बेचा है?
चोर चिल्लाता रहा.... माँ कसम... आप बोलें तो अपने बच्चे की कसम खा लेता हूँ!! मैंने इसी व्यापारी के यहाँ सारा माल बेचा है। देखिये व फंखा, व टीवी हाँ... वे जेवरात...
ऑफिसर- हरामी.. चोर को गाली देते हुए.. चल साले थाने तेरी आज वह धुलाई करूँगा कि सारा सच अपने आप बहार आ जायेगा।
चोर अब तक समझ गया था। सॉरी सर गलती हो गई अब किसी को कुछ नहीं बोलूँगा।
(नोट: इस व्यंग्य में सभी पात्र नकली हैं।)
- शम्भु चौधरी 08.02.2014
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शुक्रवार, 7 फ़रवरी 2014

एक ईमानदार पहल में आहुति दें देशवासी....



सरकार चलाने का तर्जूबा सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के पास ही। देश की सत्ता में काबिज हो देश के खजानों को लूटना, देश की खनिज संपदा का बंदरवाट करना इनके सरकार चलाने का अर्थ होता है। देश को लूटो और राज करो। केजरीवाल को सरकार चलानी इसलिये नहीं आती क्योंकि केजरीवाल व इसके साथी इस बंद पिंजडे का पंछी नहीं हैं । हमें अवसर मिला है इसमें अपनी आहुति देने का। संविधान की मर्यादा का पालन करनेवालों को भी खुलकर केजरीवाल का साथ देना होगा नहीं तो ये लूटरें संविधान के हथियार से केजरीवाल को घायल कर देगें ।

जबसे केजरीवाल की आम आदमी सरकार दिल्ली में आई है। सियासतदानों के तरकश में नये-नये शब्द पैदा होने लगे। राजनीति को रंडीखाना बना देने वाले इन नेताओं के मुंह से कभी पागल शब्द निकलता है तो कभी ‘‘शहरी नकस्लवाद’’। एक महाशय ने एक बेनेर अपने फेसबुक पर चिपकाया है उसमें लिखा है - ‘‘आम आदमी पार्टी माओवादी संगठन जैसा है।’’ मेरी एक कविता के बोल कुछ इस प्रकार है।- एक परिंदा...

एक परिंदा घर पर आया, वह फर्राया- फिर चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मैं सोचा यह क्या कहता है? / हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है।
एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

मुझे हैरत इस बात से नहीं कि भाजपा और कांग्रेस राजनीति तरीके से आम आदमी पार्टी को घेरने में लगी है। लोकतंत्र में इसका स्वागत है।  हैरनी इस बात से है कि 50 से 500 कमरों के आलिशान झूग्गी-झोपडियों में रहने वाले गरीब देश के इन महान सपुतों को राजनीति करने के लिये केजरीवाल का कभी 5 कमरे का घर मिलता, तो कभी सरकारी गाड़ी का नम्बर प्लेट। कभी ये रंडियों का बचाव करने का मौका तलाशतें हैं, परन्तु नादान लडकियों को इस गौरखघंघे की आग में झौंकने वाले दरिंदों के खिलाफ चुप रहतें हैं। दिल्ली पुलिस के काली करतुतों उनकी काली कमाई के खिलाफ चुप हैं परन्तु उनके द्वारा अपराधियों को बचाये जाने को लेकर की गई गलत कार्रवाही के पक्ष में हंगामा बरापा रहें हैं।  जिन बिजली कंपनियों के पुश्तैनी कारोबारी को कभी धन का संकट नहीं था आज अचानक से उनके पास धन की कमी हो गई। जिस सरकारी कंपनी ने कभी यह नहीं कहा कि वह बिजली नहीं दे सकते, उसने अचानक से नोटिस चिपका दी कि पहले पैसा दो फिर बिजली लो। मानो दिल्ली में ‘आप’ की सरकार क्या बनी, रातों-रात सारे के सारे ईमानदार हो गये। जो भाजपा पिछले 15 साल से सोई हुई थी। रजाई से बहार निकालकर खुद को तरोताजा महसूस करने लगी। जैसे दिल्ली से ही मोदी के भाग्य का फैसला होने वाला है।
दिल्ली की सरकार चुन कर आई है। परन्तु दिल्ली की सारी व्यवस्था दिल्ली के उप-राज्यपाल के माध्यम से केन्द्रीय सरकार चलायेगी। प्रत्येक बात पर दिल्ली के मुख्यमंत्री को उप-राज्यपाल की स्वीकृति लेनी आवश्यक होगी। मानो दिल्ली की जनता ने दिल्ली में अपनी सरकार बनाकर कोई पाप कर दिया है। अबतक दोनों (कांग्रेस व भाजपा) पार्टियों का धंधा दिल्ली में फलफूल रहा था। दिल्ली को तुम मिलकर लूटो, देश को हम मिलकर लूटतें हैं कोई किसी के काम में दखल नहीं देगा। इस बात की शपथ लेते थे कि दोनों पक्ष कभी भी इस लूट की व्यवस्था को जनता के सामने उजागर नहीं करेगें। यह है इनके संविधान की व्याख्या। दरअसल ये लोग संविधान की शपथ लेकर देश की जनता को लूटने का धंधा चलाते थे, जिसे केजरीवाल ने जगजाहिर करने का प्रयासभर किया है।
दिल्ली की जनता को लूटने के लिये इनके पास सारे नियम कानून और सिस्टम उपलब्ध है परन्तु जनता के धनको लूटने वालों पर अंकुश की बात करते ही इनको संविधान की याद आने लगी। दिल्ली के मुख्यमंत्री के हाथ-पांव को कानून से बांधने के सभी कानून उपलब्ध है। देश के इन लूटरों के खिलाफ बोलने व दिल्ली जनलोकपाल कानून बनाने की बात करते ही इनको पद व गोपनियता की याद सताने लगी। कहते हैं वे संविधान से बंधे हुए हैं। जैसे चोर चिल्लाता है कि मुझे मारो मत मैं भी इंसान हूँ।
सरकार चलाने का तर्जूबा सिर्फ कांग्रेस और भाजपा के नेताओं के पास ही। देश की सत्ता में काबिज हो देश के खजानों को लूटना, देश की खनिज संपदा का बंदरवाट करना इनके सरकार चलाने का अर्थ होता है। देश को लूटो और राज करो। केजरीवाल को सरकार चलानी इसलिये नहीं आती क्योंकि केजरीवाल व इसके साथी इस बंद पिंजडे का पंछी नहीं हैं । हमें अवसर मिला है इसमें अपनी आहुति देने का। संविधान की मर्यादा का पालन करनेवालों को भी खुलकर केजरीवाल का साथ देना होगा नहीं तो ये लूटरें संविधान के हथियार से केजरीवाल को घायल कर देगें ।  जयहिन्द! - शम्भु चौधरी 07.02.2014
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बुधवार, 5 फ़रवरी 2014

मोदीः राजधर्म नहीं चुरा पा रहे?

भाजपा (मोदी) खेमा आगामी लोकसभा चुनाव में 272 सीटें लाने का दावा ठोक रही है। जबकी भाजपा (अडवाणी) खेमा चुपचाप मजे लेने में। इस दावे की पोल खोलने के लिये अडवाणी खेमा कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगा। बिहार में जदयू, बंगाल से ममता, महाराष्ट्र से शिवसेना और जम्मू कश्मीर के फारूक अब्दुल्ला कुछ ऐसे राज्य हैं जहां से कुल 50-60 सीटें ऐसी है जिसका झूकाव अडवाणी खेमे की तरफ है। 272 के आंकड़ें को पार करने के लिये इन सीटों की जरूरत पडेगी। 
आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी सरचढ़ कर बोलने लगी। जहाँ कांग्रेस पार्टी बिल पर बिल लाकर देश को चुनाव की तैयारी में जूटी है। अभी से बकवास विज्ञापनों के माध्यम से मीडिया व समाचार पत्रों का मुंह बंद कर, राहुल बाबा के चेहरे पर करोंड़ों का पाउडर पोतने में लगी है। वहीं ‘आप’ के देशभर में बढ़ते प्रभाव के कारण भाजपा की बैचेनी भी साफ झलकने लगी है। दिल्ली को राजनीति का दंगल बना देने वाली भाजपा पिछले 15 साल खुद दिल्ली को लूटती रही, फिर शीला दीक्षित की सरकार के साथ मिलकर 15 साल दिल्ली की जनता को जमकर लूटा। अब दोनों पार्टियाँ मिलकर ‘आप’ की सरकार गिराने में लगी है। मामला देश उन उद्योगिक घरानों से जूड़ा है जिनके बलबुते पर इनकी पार्टी का खर्चा चलता है।
वैसे तो देश में राजनीति पार्टीयों की भरमार है। सभी अपने-अपने क्षेत्र में कोई 20 सीट लाने का दावा ठोक रही है तो कोई 30 सीट, कोई 40 सीट। सबसे मजे की बात है की कांग्रेस पार्टी को ‘‘लोहे की टक्कर’’ देने वाली भाजपा (मोदी) खेमा आगामी लोकसभा चुनाव में 272 सीटें लाने का दावा ठोक रही है। जबकी भाजपा (अडवाणी) खेमा चुपचाप मजे लेने में। इस दावे की पोल खोलने के लिये अडवाणी खेमा कोई कोर कसर बाकी नहीं रखेगा। बिहार में जदयू, बंगाल से ममता, महाराष्ट्र से शिवसेना और जम्मू कश्मीर के फारूक अब्दुल्ला कुछ ऐसे राज्य हैं जहां से कुल 50-60 सीटें ऐसी है जिसका झूकाव अडवाणी खेमे की तरफ है। 272 के आंकड़ें को पार करने के लिये इन सीटों की जरूरत पडेगी। 
दूसरी तरफ कांग्रेस पार्टी की तरफ से अभी तक कोई दावा प्रस्तुत नहीं किया गया कि कांग्रेस को आगामी आम चुनाव में कितनी सीटें मिलेंगी? कांग्रेस अभी तक इस उलझन में है कि वह किसे प्रधानमंत्री पद का उम्मिदवार बनायें। जबकि कांग्रेसी चम्मचे राहुल गांधी को अभी से ही अपना प्रधानमंत्री मान रहें हैं। इन चम्मच छाप नेताओं ने देश में अपनी इतनी अच्छी छवि बना रखी है कि इनको गांधी परिवार के बहार देखना भी बेईमानी होगी। 
उघर सीपीएम एवं सीपीआई हर तरफ हाथ-पांव मारने में लगी है कि किसी प्रकार उसे 20-30 सीटें मिल जाये। अपने खुद के जो राज्य थे पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा एवं केरल इन तीनों राज्यों में इनका जनाधार काफी नीचे खिसक चुका है। प्रकाश करात के अहंकार ने सीपीएम को पश्चिम बंगाल, त्रिपुरा से सत्ता बेदखल ही नहीं किया संगठन को भीतर से कमजोर भी कर दिया है।
 ‘इंडिया फस्ट’ का नारा देने वाले भाजपा के इकलोते नेता नरेन्द्र मोदी जी कल ही चुनावी सभा करने बंगाल आये। बंगाल की 42 लोकसभा सीटों पर अपना मजबूत उम्मिदवार भी ठीक से खड़ा कर पाने में असमर्थ,  बंगाल की भाजपा कोलकाता के बिग्रेड परेड मैदान के आधे हिस्से को बड़ी मसक्कत करने के बाद भी ठंग से नहीं भर पाई,  मोदी जी ने बंगाल की जनता को आह्वान किया कि वे सभी 42 सीट उनको झौली में भर दें। 
सवाल उठता है कि चुनाव मोदी जी लड़ रहे है कि भाजपा लड़ रही है? मैं और मेरा गुजरात से मोदी आज तक ऊपर नहीं उठ पाये हैं। बिहार जातें हैं तो खुद को गोबंशी कह कर वोट मांगते हैं। बंगाल आये तो ममता दीदी का परिवर्तन का नारा चुरा लिया। मोदीजी ने कहा कि ‘‘अबकि दिल्ली में परिवर्तन की बारी’’। यूपी में गये तो अजित सिंह का गन्ना चुरा लाये। कहीं से ईमान चुराया तो कहीं से गरीबों का सम्मान चुराया। सबसे बड़ी बात तो यह है कि मोदी जी कांग्रेस के सरदार पटेल तक को चुरा कर भरे बाजार में बेच दिया, कांग्रेसियों की हिम्मत तक नहीं हुई की मोदी को जबाब तक दे सके। 
भले ही मोदी जी ने अपनी पार्टी से सभी कद्दवार नेताओं को क्रमवद्ध अपने रास्ते से हटा दिया हो। भले ही भाजपा, मोदी के पीछे भागती भीड़ को देख के ललायित हो रही हो कि अबकि नैया ‘रामजी’ के भरोसे नहीं ‘मोदीजी’ के भरोसे पार लगेगी, भले ही राजनाथ सिंह को आगे-पीछे मोदी ही मोदी दिखाई देतें हों। पर इतना तो सच है कि मोदी जी अभी तक अटल जी के एक छोटे से अटल वाक्य ‘‘ राज धर्म का पालन हो’’ को नहीं चुरा पाये। जो आगामी चुनाव का गणित है। जयहिन्द!
- शम्भु चौधरी 06.02.2014
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रविवार, 19 जनवरी 2014

बात पते की - दिल्ली पुलिस का अपहरण

20.01.2014 (Kolkata)
 जल्द ही रहस्य से पर्दा उठने का समय आ गया है। दिल्ली की पुलिस के नाक के नीचे विदेशी महिलाओं के द्वारा देह व्यापार, ड्रग्स का व्यापार उनके संरक्षण में चल रहा था। कहीं कोई रोक-टोक नहीं थी। कोई उनको बोलने वाला नहीं था। रोजाना आपके हमारे बैंकों के एकाउन्टस को हाईजैक कर लेना, लाटरी के नाम पर जाली एसमएस, इमेल का रेकैट फैलाने वाले का धंधा जैसे ही चौपट होने के कगार आया कि तमाम वे ताकतें, जिसमें दिल्ली की पुलिस सहित केंद्र के कई नेता और तमाम उन राजनीति ताकतों के प्यादे की मिलभगत, सबके-सब रातों-रात बैखला गये।

 दिल्ली पुलिस को  अचानक से उनको रात में सपना भी आ गया कि केजरीवाल का अपहरण तक हो सकता है। दरअसल ये अपहरण की हवा सिर्फ केजरीवाल को दिल्ली पुलिस के द्वारा ब्लैकमेल करने की साजिस है। दिल्ली का रेकैट चाहता है कि उनके फलफूल रहे धंधे में केजरीवाल व उनके मंत्री उनके धंधे में कोई दखल ना दें अन्यथा उनका अपहरण तक किया जा सकता है। 

 दिल्ली के कानून मंत्री श्री सोमनाथ भारती ने पिछली रात स्थानीय लोगों की लगातार सूचना के अनुसार दिल्ली पुलिस को घटनास्थल पर जाने का आदेश दिया, दिल्ली पुलिस उन पर कार्यवाही करने से इंकार कर दी, मंत्री को कहती है उनके पास वारंट नहीं है। दिल्ली के कानून मंत्री का यह प्रयास उनको इतना नागवार गुजरा कि वे उनके ही ऊपर ही विदेशी महिलाओं के साथ छेड़छाड़ का आरोप जड़ दिया ।

 सरेआम दिल्ली में सैकड़ों महिलाओं की ईज्जत को लुटते देखनेवाली दिल्ली पुलिस को कभी शर्म तक नहीं आती कि दिल्ली में इतनी घटनायें क्यों और कैसे हो जाती है जबकि देश की सबसे कड़ी सुरक्षा व्यवस्था दिल्ली में दिल्ली पुलिस द्वारा पूरे ताम-झाम के साथ की जाती है। 

करोंड़ों का धन सिर्फ नेताओं की चौकीदारी में ही बहा दिया जाता है। कानून-व्यवस्था के नाम पर देश की आंख में घूल झौंकनेवाली दिल्ली पुलिस क्या है बता पायेगी कि दिल्ली में जब कई बम धमाके हुए तो उनकी सूचना उनके पास क्यों नहीं थी? आज अचानक से केजरीवाल के अपहरण की बात, किस बात की तरफ संकेत देती है? - शम्भु चौधरी

शुक्रवार, 17 जनवरी 2014

बात पते कीः ‘राजधर्म’ ? - शम्भु चौधरी


 लोकसभा का चुनाव सर पर आ गया। कांग्रेस पार्टी में हार की बैचेनी साफ दिखने लगी है। वहीं दिल्ली फ़तह में जुटी भाजपा देश की जनता में देश प्रेम की भावना (गुब्बारे में हवा) भरने में लगी है। यही भाजपा एक बार देश में ठीक इसी प्रकार का प्रयोग राम मंदिर बनाने के मुद्दे पर कर चुकी है।  ‘‘कसम राम की खाते हैं मंदिर वहीं बनायेगें’’ सरकार बनते ही मंदिर गया बुट लादने। कैसा राम मंदिर? मंदिर तो हमारे एजेंडे में था ही नहीं। यह तो एनडीए की सरकार है। भाजपा की सरकार बनेगी तब सोचेगें। न्यायालय का आदेश आने से या सुलह हो जाने से राम मंदिर बनाया जायेगा। फिर कुछ दिनों बाद भाषा में थोड़ा बदलाव आया। राममंदिर हमारे लिये एक राष्ट्रीय मुद्दा है। इससे देश के करोड़ों लोगों की जन भावना जुड़ी हुई है।
2014 के चुनाव में भाजपा ने मंदिर मुद्दे कुल मिलाकर पल्ला ही झाड़ लिया है। अब इस बूढ़ी घोड़ी पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने लाल लगाम चढ़ा दी है। मोदीजी दुल्हे की तरह जँचने भी लगे। सज-धज के तैयार गुजरात के वीर पुरुष श्री नरेंद्र मोदी जी रोज नये-नये सपने देखने लगे हैं।

श्री नरेंद्र मोदी जी अभी तक अटल जी की एक अटल वाक्य को बोल नहीं पाये ‘‘राजधर्म का पालन करें’’   हाँ! मोदीजी इसी बात को कई प्रकार से समझाने में लगे हैं कि ‘‘सरकार का एक ही धर्म है ‘इंडिया फस्ट’, एक ही धर्मग्रंथ है ‘देश का संविधान’, एक ही भक्ति है ‘देश भक्ति’ फिर कुछ दिनों बाद याद आया तो इस कलाम में एक वाक्य और जोड़ दिये देश की एक ही शक्ति है ‘जन शक्ति’ कोटी जनता देश की जनशक्ति, सरकार की एक ही पूजा होती है देश के 125 करोड़ जनता की भलाई। अब तो मुसलमानों के गुणगान में भी कशिदे पढ़ने लगे।  


मोदी जी आप इतना लंबा-चौड़ा भाषण देकर अटल जी की एक वाक्य ‘‘राजधर्म का पालन करें’’ को हमें समझाने में लगे हैं। आप क्या समझते हैं कि आप और आपके समर्थक ही चतुर और बाकी मुर्ख? आपके समर्थकों ने तो अभी से ही आपा खो दिये हैं। हमें देशभक्ति का पाठ बाद में पढ़ा देना, चुनाव से पहले अपने समर्थकों को पाठ पढ़ा दो कि वे देशभक्ति में इतने मतवाले ना बन जाय कि आपका सपना अधूरा का अधूरा ही रह जाए।
18.01.2014 (Kolkata) 

मंगलवार, 14 जनवरी 2014

बात पते कीः ‘‘आप’ को वोट देने के पहले सोचें?’’ - शम्भु चौधरी


अब इस बात में कोई बहस नहीं रही कि देश में तीसरा विकल्प गर्भ में जन्म ले चुका है। जो कांग्रेस और भाजपा की भ्रष्ट राजनीति से अलग अपनी नई सोच रखता है। कांग्रेसवाद, भ्रष्टवाद, बामवाद, समाजवाद, गाँधीवाद, लोहियावाद, दक्षिणवाद, पश्चिमवाद, दलीतवाद, अल्पसंख्यकवाद, हिन्दूवाद, मुस्लिमवाद और ना जाने कितने वाद के वादों की भूलभुलैया के बीच एक नया वाद जिसे ‘इंसानवाद’ का नाम देना सटीक रहेगा, ने जन्म ले लिया है।

(कोलकाता- 15.01.2014) : दिल्ली विधानसभा के चुनाव में ‘आप’ को सफलता क्या मिली, भाजपा के कर्णधार नेतागण सबके सब अपनी नैतिकता को भूला बैठे। अपनी प्रमुख राजनीति प्रतिद्वन्द्वी कांग्रेस को निशाना लगाने से हटकर पूरे देश में ‘आप’ के खिलाफ जनमत बनाने में लग गई। अचानक से इनके ऊपर ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ा कि भाजपा को कांग्रेस से कहीं ज्यादा ‘आम आदमी’ से खतरा लगने लगा?
फेसबुक पर इनके समर्थकों की भाषा शर्मनाक तो हो ही चुकी है संघ संचालित व संघ विचारधारा के पोषक लेखकों की भाषा ने भी अपना संयम खो दिया है। कोलकाता के एक प्रमुख हिन्दी समाचार पत्र ने तो अपनी संपादकीय में ही लिख दिया कि ‘‘ ‘आप’ को वोट देने के पहले सोचें’’  संपादक जी अभी से इतनी घबड़ाहट क्यों?  कि इनको संपादकीय तक लिखना पड़ा। 

कुछ लोग इसे पानी का बुलबुला मानते हैं तो कुछ चिल्लड़ पार्टी कहने से नहीं चुकते। इसमें बुरा तो कुछ भी नहीं दिखता। ये मानते हैं कि देश की जनता को अभी से जितना डराया और धमकाया जाएगा उतना वे मोदी के पक्ष में खड़े हो जायेंगे। मानो गुजरात मॉडल का प्रयोग संघी समर्थक पूरे देश में करना चाहते हैं। 
जहां एक तरफ कांग्रेस आज काफी राहत महसूस कर रही है कि कल तक भाजपा का जो रूख उसके विरूद्ध था वह अब ‘आप’ के पीछे हाथ धो कर लग गयी है। 

वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के भी हाथ-पाँव अभी से ही फूलने लगे हैं। इनको लगता है कि कांग्रेस से कहीं ज्यादा नुकसान भाजपा को  ‘आप’ से हो सकता है। वर्तमान हालत तो यही संकेत दे रहें हैं कि जिस पार्टी का अभी तक देश में ठंग से कोई संगठन तक नहीं तैयार है। जिसने महज मां के भ्रूण में कदम ही रखा है उसे मारने के लिये देश के तमाम जाने-माने राजनीतिज्ञों की एक फौज लामबंध हो चुकी है। शायद इसीलिये राजनीति से खुद को दूर रखने वाली सामाजिक व देश की संस्कृति की रक्षा में लिप्त संस्था के सरसंघचालक को इस बात की चिंता अभी से सताने लगी और लगे हाथ संघ प्रमुख मोहन भागवत ने भाजपा को हिदायत दे डाली कि ‘‘वह आम आदमी पार्टी को हल्के में ना लें’’ 

अब इस बात में कोई बहस नहीं रही कि देश में तीसरा विकल्प गर्भ में जन्म ले चुका है। जो कांग्रेस और भाजपा की भ्रष्ट राजनीति से अलग अपनी नई सोच रखता है। कांग्रेसवाद, भ्रष्टवाद, बामवाद, समाजवाद, गाँधीवाद, लोहियावाद, दक्षिणवाद, पश्चिमवाद, दलीतवाद, अल्पसंख्यकवाद, हिन्दूवाद, मुस्लिमवाद और ना जाने कितने वाद के वादों की भूलभुलैया के बीच एक नया वाद जिसे ‘इंसानवाद’ का नाम देना सटीक रहेगा, ने जन्म ले लिया है। शायद अरविंद केजरीवाल इसीलिए अपनी पार्टी के हर बैठक में कवि प्रदीप का यह गीत को गुनगुनाते हैं - ‘‘इंसान को इंसान से हो भाई चारा, यही पैगाम हमारा.. यही पैगाम हमारा।’’

सोमवार, 13 जनवरी 2014

बात पते की - मोदी की हवा?

सच है कि राजनीति में घोड़े की चाल हमेशा 2.5 की होती है। शह-मात का खेल जो चलना था नितिन गड़करी जी को, सो उन्होंने डा.हर्षबर्धन को साफ मना कर दिया कि वे किसी की बात ना सुने। जाहिर था इन सबके पीछे सुषमा स्वराज और सबके पीछे थे प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये आडवाणी जी। मोदी की हवा तो निकलनी ही थी।

 दिल्ली भाजपा ने मोदी का पूरा खेल ही बिगाड़ दिया अब मोदी पगला गये, इनके समर्थक गाल-गलौज की भाषा का प्रयोग करने को ऊतारु हैं। इनको लगने लगा कि दिल्ली अब दूर हो गई है। चंद दिनों पहले तक मोदी के समर्थन में एक तरफा हवा बह रही थी, पिछले पांच राज्यों के चुनाव में 4 उत्तर भारत के राज्य ऐसे थे जिसमें भाजपा की एकतरफ़ा जीत दर्ज थी।

परन्तु भाजपा के पुराने खिलाड़ी और राजनाथजी के कट्टर विरोधी दिल्ली भाजपा के प्रभारी श्री मान् नितिन गडकरी जी भीतर ही भीतर मोदी के रथ को रोकने की योजना पर कार्य कर रहे थे इसके लिये उन्होंने विजय गोयल की दुखती नब्जों को सहलाया और दिल्ली में कमजोर नेतृत्व को सामने ला खड़ा किया।

डा. हर्षवर्धन जी जो 32 सीटों पर जीत प्राप्त कर प्रथम स्थान पर थे सरकार बनाने का दावा प्रस्तुत कर ‘आप’ और कांग्रेस को आपस में उलझा सकते थे। परन्तु गडकरीजी ने फोन पर उनको ऐसा करने से मना कर दिया कि ‘‘वे सरकार बनाने का दावा ना करें।’’ बात बड़े नेता की माननी थी सो डा.हर्षबर्धन जी ने चुनाव परिणाम के आते ही शाम को अपने हाथ खड़े कर दिये।

उधर भाजपा अध्यक्ष राजनाथजी दावा कर रहे थे कि वे 4-0 से आगे हैं कि नितिन गडकरी ने हवा निकाल दी। राजनाथजी चाह कर भी डा.हर्षबर्धन को मना नहीं पाये कि वे कम से कम सरकार बनाने का दावा तो प्रस्तुत करें। ताकी विधानसभा में दोनो पार्टियों का रूख क्या रहता है इसका अंदाजा जनता को स्वतः ही लग जाये।

सच है कि राजनीति में घोड़े की चाल हमेशा 2.5 की होती है। शह-मात का खेल जो चलना था नितिन गड़करी जी को, सो उन्होंने डा.हर्षबर्धन को साफ मना कर दिया कि वे किसी की बात ना सुने। जाहिर था इन सबके पीछे सुषमा स्वराज और सबके पीछे थे प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये आडवाणी जी। मोदी की हवा तो निकलनी ही थी।

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अरविंद का जनता दरबार - शम्भु चौधरी


अरविंद केजरीवाल ने सचिवालय की छत से जनता को संबोधित कर जनता को धेर्य रखने को कहा कि ‘‘जल्द ही व्यवस्थित रूप से पुनः जनता दरबार लगाया जाएगा। अरविंद ने अपने बयान में कहा कि इतनी भीड़ की उनको उम्मीद नहीं थी। इसके लिय नये सिरे से पूरी व्यवस्था करनी होगी। जिससे लोगों की समस्याओं का जल्द से जल्द निदान हो सके।’’ 

 दिल्लीः दिनांक 11 जनवरी’2014 - सरकार हो तो ऐसी जो जनता के दर्द को अपना दर्द बना लें। दिल्ली में सचिवालय के बाहर ‘आम आदमी पार्टी की सरकार’’ के द्वारा जनता दरबार में जनता की समस्या इतनी देखने को मिली की शायद कभी किसी ने उनकी सुध तक ना ली हो। जैसे ही आज से सुबह 9.30 बजे से जनता दरबार लगाने की घोषणा हुई जनता को लगा कि कोई उनकी बात सुनेगा, जनता अपने आवेदन और समस्याओं के साथ उमड़ पड़ी। 
आज की बैकाबू भीड़ को देखकर अरविंद केजरीवाल को आज की जनता दरबार को बीच में ही रोक देना पड़ा।

अरविंद केजरीवाल ने सचिवालय की छत से जनता को संबोधित कर जनता को धेर्य रखने को कहा कि ‘‘जल्द ही व्यवस्थित रूप से पुनः जनता दरबार लगाया जाएगा। अरविंद ने अपने बयान में कहा कि इतनी भीड़ की उनको उम्मीद नहीं थी। इसके लिय नये सिरे से पूरी व्यवस्था करनी होगी। जिससे लोगों की समस्याओं का जल्द से जल्द निदान हो सके।’’ 

इस जनता दरबार में सबसे बड़ी समस्या जो देखने को मिली वह लोग समूह के रूप में ज्यादा आ रहे थे। ठेकेदारी में काम कर रहे मजदूरों की सबसे बड़ी समस्या थी जो लोग बड़े-बड़े ग्रुप बनाकर जनता दरबार में आ गये । जिससे पूरी-पूरी व्यवस्था धीरे-धीरे चरमरा गई।

कहावत है ‘‘एक अनार-सौ बीमार’’  अरविंद केजरीवाल और इनके मंत्री ज्यों-ज्यों जनता के दर्द को सहलाते गए यह दर्द जख्म का रूप धारण करता गया। मानो दिल्ली की जनता में पिछले 30 सालों से इस दर्द को सहने की आदत सी बन गई थी। असफलता सफलता की कुंजी होती है। आज अरविंद केजरीवाल ने फिर प्रमाणित कर दिया की वे आज भी जनता के साथ हैं। भले ही आज इस दरबार से जनता की समस्या ना सुनी जा सकी हो पर यह तो साफ हो गया कि समस्या की जड़ें बहुत पुरानी है जिसे जड़ से ही समाप्त करना होगा। 

गुरुवार, 9 जनवरी 2014

राम! राम! सत्यानाश


‘नमो’ समर्थकों की भाषा एक पोस्ट आप भी पढ़ लें। 

‘नमो’ ने अभी से ही अपने समर्थको को गाली गलोज करना सीखा दिया है।
 राम! राम! सत्यानाश कर देगा देश का।

‘नमो’ ने अभी से ही अपने समर्थको को गाली गलोज करना सीखा दिया है।
 राम! राम! सत्यानाश कर देगा देश का।

‘नमो’ ने अभी से ही अपने समर्थको को गाली गलोज करना सीखा दिया है।
 राम! राम! सत्यानाश कर देगा देश का

सोमवार, 6 जनवरी 2014

आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय नीति?

आदरणीय केजरीवाल जी।                 दिनांकः 06/01/2014
सादर नमस्कार!

विषय:  आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय नीति।
आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी समिति को प्रेषित पत्र

आदरणीय सदस्यगण।

वैसे तो ‘आम आदमी पार्टी’ से जुड़े मुझे चंद ही दिन हुए हैं राजनीति में लगातार 1974 से रुचि रखने और आप लोगों से जुड़ कर कार्य करने की प्रेरणा से यह पत्र आप सभी सदस्यों के विचारार्थ भेज रहा हूँ।
दिल्ली के चुनाव के पश्चात जिस प्रकार कांग्रेस व भाजपा अन्य राजनीतिक दलों के द्वारा लगाता राष्ट्रवादी व अन्य राष्ट्रीय मुद्दों पर बहस को तेज कर ‘आप’ को बैकफुट पर लाना चाहती है इसके लिए हमें ना सिर्फ सतर्कता की जरूरत है हमें उन तमाम मुद्दों पर गंभीर चिंतन कर नीति के निर्धारण की भी अत्यंत आवश्यकता है।

निम्न विषय आपके ध्यानार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ-

1. सर्वप्रथम हमें संगठन के लिए समर्पित कार्यकर्ताओं की भर्ती करनी चाहिए। संभव हो तो उन्हें सवैतनिक भत्ता के साथ सम्मान पूर्वक पद पर उनकी नियुक्ति हो। ताकी संगठन में उनके कार्यानुसार भविष्य में उनको सम्मानित राजनीति पदों पर स्थापित किया जा सके।

2. कश्मीर सहित उन सभी राष्ट्रीय मुद्दों पर ‘आप’ की स्पष्ट नीति हो। ताकी कोई भी उसके विरुद्ध कार्य या बयान ना दे सके।
3. देश की सुरक्षा, अर्थ व्यवस्था, शिक्षा, किसान नीति, मज़दूर नीति, सरकारी-ग़ैरसरकारी कर्मचारी नीति, व्यापार नीति, बैंकिंग नीति, शेयर बाजार , विदेश नीति, पड़ोसी देशों के साथ संबंध, राज्यों के साथ संबंध, विदेशी मुद्रा भंडार व काला धन, खनिज संपदा नीति आदि पर विचार करना।
4.भ्रष्टाचार व अन्य जन अपादा-विपदा नीति के साथ-साथ आम जनता की जनसेवा से जुड़े कई क्षेत्र जिसमें बिजली-पानी, चिकित्सा-दवाओं की कीमतों पर नियंत्रण, खाद्य वितरण प्रणाली व यातायात व्यवस्था।
5.डालर के मूल्य पर नियंत्रण और तेल के प्रबंध पर अंकुश व आयात-निर्यात व्यवस्था में सामंजस्य करना साथ ही देश की उद्योगिक क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रदान करना।
6.आधार भूत इंफ्रास्टेक्चर व्यवस्था को सुचारु करना, सरकारी विभागों की ज़िम्मेदारी तय करना व सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक सौहार्द बनाये रखते हुए स्वच्छ राजनीति व्यवस्था का निर्माण कर  देश में कानून व व्यवस्था का राज कायम करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए।
7. खेल क्षेत्र से राजनीतिज्ञों का वर्चश्व समाप्त करना।
8. कई ऐसे विषय जो यहां छुट गए हैं का अध्ययन करना और प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर प्रणाली पर देश के जाने-माने विद्वानों की राय प्राप्त कर नीति का निर्धारण करना।
9. आम आदमी की प्राथमिकता इस बात पर भी हो कि जो नीति का निर्माण हो वह राष्ट्र की जनता पर दूरगामी प्रभाव छोड़ सके। व अन्य राजनीति पार्टियों को सोचने के लिए मजबूर कर दे।

आशा है 'आप' की  राष्ट्रीय कार्यकारणी समिति मेरे पत्र पर गंभीरता से विचार करेगें। आपके उत्तर का इंतजार रहेगा।

आपका ही शुभचिंतक
शंभु चौधरी, कोलकाता

शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

दिल्ली भाजपाः सदी की चूक - शम्भु चौधरी


जहां तक मेरी राजनीति समझ है भाजपा के नेताओं ने दिल्ली में सरकार का दावा ना प्रस्तुत कर ‘आप’ पार्टी को राजनीति जमीन प्रदान कर दी है। आज देशभर में ‘आम आदमी पार्टी’ की धूम मची हुई है। जो लोग भाजपा में आना चाहते थे वे सभी झूंड के झूंड  ‘आप’ को ज्वाईन करने लगे। ‘आप’ द्वारा सरकार बनाने की घोषणा के महज चार दिनों में ‘आप’ को देशभर में जो समर्थन प्राप्त हुआ और दिल्ली में जिस प्रकार शपथ समारोह का दृश्य देशभर ने देखा इससे भाजपा की जमीन नीचे से हिल गई है।

दिल्ली विधानसभा चुनाव में डॉ. हर्षवर्धन जी  के नेतृत्व में भाजपा ने चुनाव लड़ा। नीतिन गडकरी जी इस विधानसभा क्षेत्र के प्रभारी बनाये गए। चुनाव का वक्त ज्यों-ज्यों नजदीक आता गया विजय गोयल से चुनाव की कमान छीनकर भाजपा के सबसे शातिर नेता श्रीमान् नितिन गडकरी ने गोयल से यह कमान छीन ली और साफ-सुथरी छवि की आड़ में दिल्ली भाजपा की कमान खुद के खेमे के चापलूस नेता डॉ. हर्षवर्धन जी के हाथों थमा दी। दिल्ली भाजपा यह कवायद वह भी चुनाव के ऐन वक्त पर, जीत का बहाना था कि मोदी के विजय रथ को रोकने का? यह तो वक्त ही बतायेगा। हाँ! अब यह बात साफ हो चुकी कि दिल्ली भाजपा के डॉ. हर्षवर्धन जी ने जिस प्रकार दावा प्रस्तुत किया कि उनकी पार्टी विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी होकर भी विपक्ष में बैठी है इसका अर्थ निकालना तो पड़ेगा ही।

दरअसल भाजपा के पक्ष में 32 सीटों के परिणाम जैसे ही घोषित हुए,   डॉ. हर्षवर्धन जी ने बैगेर राजनीति विचार विमर्श किये ही बयान जारी कर अपने हाथ खड़े कर दिये बस यही पल भाजपा के लिए आत्मधाती निर्णय साबित हो गया। यह बात तो डॉ. हर्षवर्धन जी विधानसभा के भीतर भाजपा के पक्ष में विश्वास मत प्राप्त करने के वक्त भी कह सकते थे। सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरने के बाद अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग ना कर राजनीति मैदान से भाग से भाग खड़े होने वाले डॉ. हर्षवर्धन जी को यह तो जबाब देना ही होगा कि आज देश भर में मोदी की लहर में ‘आप’ पार्टी को मजबूत आधार प्रदान कर देने के लिए सबसे प्रमुख दोषी कौन है?

जहां तक मेरी राजनीति समझ है भाजपा के नेताओं ने दिल्ली में सरकार का दावा ना प्रस्तुत कर ‘आप’ पार्टी को राजनीति जमीन प्रदान कर दी है। आज देशभर में ‘आम आदमी पार्टी’ की धूम मची हुई है। जो लोग भाजपा में आना चाहते थे वे सभी झूंड के झूंड  ‘आप’ को ज्वाईन करने लगे। ‘आप’ द्वारा सरकार बनाने की घोषणा के महज चार दिनों में ‘आप’ को देशभर में जो समर्थन प्राप्त हुआ और दिल्ली में जिस प्रकार शपथ समारोह का दृश्य देशभर ने देखा इससे भाजपा की जमीन नीचे से हिल गई है। 

इस सबके लिए मैं विशेष रूप से भाजपा को ही जिम्मेदार मानता हूँ। जितना आसान राह था मोदी का दिल्ली सफर, दिल्ली भाजपा ने उसके मार्ग में देशभर में कांटे उगा दिये। दिल्ली भाजपा के प्रभारी श्रीमान नितिन गडकरी ने राजनाथ सिंह से जो राजनैतिक बदला लिया इसके भनक भी शायद किसी को नहीं मिली होगी।  दिल्ली के इस राजनैतिक चाल मे सह किसने किसको दिया यह तो वक्त ही बतायेगा पर मात तो साफ नजर आ रही है। 

दिल्ली विधानसभा में विश्वासमत के दौरान डॉ. हर्षवर्धन जी भले ही नैतिकता की बात करते रहे हों, केजरीलवाल और मनीष सिसोदिया पर व्यक्तिगत अरोपों की झड़ी लगा दी। दिल्ली विधानसभा में कश्मीर का राग अलापते रहे हों पर दिल्ली की जनता के हित में बात कहने से बचते रहे। 30 सालों से दिल्ली की जनता को धोखा देने वाले राजनैतिक दल इससे ज्यादा बोल भी क्या सकते थे? 

खैर! भले ही भाजपा के समर्थक डॉ. हर्षवर्धन के भाषण से खुश हो लें, साथ ही यह भी ना भूलें कि इसी  (डॉ. हर्षवर्धन) व्यक्ति ने ‘आप’ को पूरे देश में रातों-रात फैला दिया है। दिल्ली चुनाव परिणामों के परिपेक्ष में देखा जाए तो जहाँ कांग्रेस ने ‘आप’ को समर्थन देकर दिल्ली में अपनी स्थिति को पहले से बेहतर बना ली है वहीं भाजपा ने सरकार का रास्ता ‘आप’ के लिए छोड़कर मोदी के साथ घोखा किया है। 

जो काम कांग्रेस ने किया यही काम भाजपा भी कर सकती थी। पहली बात तो भाजपा को सरकार बनाने का दावा स्वयं प्रस्तुत करना चाहिये था। सदन के भीतर दोनों (आप एवं कांग्रेस) पार्टियों की स्थिति स्वतः साफ हो जाती। यह नहीं हुआ तो ‘आप’ को समर्थन देकर कांग्रेस को पूरे देश में घेरा जाना था। भाजपा दोनों जगह विफल रही और आज खुद पूरे देश में ‘आप’ की शिकार बन गई। 

गुरुवार, 2 जनवरी 2014

मोदी के राह का रोढ़ा - शम्भु चौधरी


सवाल उठता है कि- डॉ. हर्षवर्धन जी जब खुद मानतें हैं कि दिल्ली की जनता ने उनकी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने लाया है उनके पास विधानसभा में सबसे अधिक सीट है। उनकी पार्टी को सबसे अधिक मत मिले हैं तो सरकार क्यों नहीं बनाई? सवाल सरकार बनाने का नहीं था। प्रधानमंत्री पद का सपना संजाये श्री अडवाणी जी, भाजपा के संविधान को पलटने वाले व दौबारा अध्यक्ष का सपना देखने वाले श्रीमान नितिन गडकरी जी,  महात्मा गांधीजी के पूण्य समाधि स्थल पर ठुमका लगाने वाली सुषमा स्वराज एवं डॉ. हर्षवर्धन जी दिल्ली में मोदी के रथ को रोक कर यह साबित कर दिये कि मोदी को दिल्ली में किसी भी प्रकार से आने नहीं दिया जाएगा। 

दिल्ली के विधानसभा चुनाव के समय डॉ. हर्षवर्धन जी के भाषण से साफ झलक रहा था कि वे दिल्ली की जनता की समस्या के लिए नहीं अपने राजनीति एजेंडे पर भाषण दे रहे थे इनके इस भाषण को भाजपा के तथा कथित राष्ट्रप्रेमी जो सिर्फ खुद को देशभक्त की श्रेणी में रखना चाहते हैं जोर-शोर से प्रचार करने में लग गए।  इनका तर्क मान लिया जाए तो दिल्ली में सिर्फ 33 प्रतिशत जनता ही राष्ट्रप्रमी और बाकी 67 प्रतिशत जनता देशद्रोही? डॉ. हर्षवर्धन जी ने अरविंद केजरीवाल के 18 मुद्दों के जबाब में आपने अपनी 18 भड़ास निकाल दी।
भड़ास में आपने सुरक्षा, भ्रष्टाचार, बंगला, मोहनशर्मा की शहादत, अफजल की फांसी, सेनिकों की शहादत,
 कश्मीर पर बहस,  सिसोदिया जी को चंदा की जाँच,  आयकर विभाग के कमिश्नर नहीं थे केजरीवाल, मुफ्त पानी सिर्फ 8लाख घरों ही क्यों?,  पानी का बिल बढ़ा दिया,  बिजली में सब्सिडी जनता के पैसों का दुरुपयोग है,  आँकड़ों की बाजिगीरी करके धोखा दे रहे , बाटला हाउस एनकाउंटर पर, कश्मीर के देशद्रोही बयानों पर, आतंकवादियों से समर्थन माँगने पर केजरीवाल को देश से माफी माँगनी चाहिए, कांग्रेस के समर्थन पर सवाल किए।   

डॉ. हर्षवर्धन जी मानो दिल्ली विधानसभा में ‘आप’ द्वारा प्रस्तुत विश्वास मत पर भाषण नहीं संसद में जनता को संबोधन कर रहे थे। व्यक्तिगत आरोप लगाने के माहिर भाजपाईयों ने दिल्ली के विधानसभा में भी अपनी जात दिखा दी कि वे जनता की भावना से खिलवाड़ करने के लिए अपने पैंट का जीप भी खोल सकते हैं। 
भाजपा को सिर्फ जनता की भावना से खिलवाड़ करना आता है। दिल्ली के चुनाव में जिस प्रकार इन लोगों ने देश की भावना से खिलवाड़ कर जनता के वोट प्राप्त करने का प्रयास किया इससे साफ हो जाता है कि इनको देश सेवा और देश से कोई प्रेम नहीं । राम मंदिर निर्माण के समय भी कुछ ऐसा ही किया गया था। अब राममंदिर इनके लिए कोई मुद्दा नहीं रहा।

 लोकसभा चुनाव से पूर्व किसी भी प्रकार देश की भावना को सांप्रदायिक जहर से पाट दिया जाय। कारण स्पष्ट है कि भाजपा खुद भ्रष्टाचार से चारों तरफ से घीरी हुई है। कांग्रेस का हर कदम पर भाजपा ने साथ दिया । दिल्ली में पिछले 15 सालों से विपक्ष की भूमिका निभाने में पूर्णतः असफल रही भाजपा दिल्ली विधानसभा में या तो केजरीवाल जी पर, मनीष सिसोदिय व्यक्तिगत आरोपों की छड़ी लगा दी या फिर देश की भावना के साथ खिलवाड़ करते नजर आये। 

सवाल उठता है कि- डॉ. हर्षवर्धन जी जब खुद मानतें हैं कि दिल्ली की जनता ने उनकी पार्टी को सबसे बड़ी पार्टी के रूप में सामने लाया है उनके पास विधानसभा में सबसे अधिक सीट है। उनकी पार्टी को सबसे अधिक मत मिले हैं तो सरकार क्यों नहीं बनाई? सवाल सरकार बनाने का नहीं था। प्रधानमंत्री पद का सपना संजाये श्री अडवाणी जी, भाजपा के संविधान को पलटने वाले व दौबारा अध्यक्ष का सपना देखने वाले श्रीमान नितिन गडकरी जी,  महात्मा गांधीजी के पूण्य समाधि स्थल पर ठुमका लगाने वाली सुषमा स्वराज एवं डॉ. हर्षवर्धन जी दिल्ली में मोदी के रथ को रोक कर यह साबित कर दिये कि मोदी को दिल्ली में किसी भी प्रकार से आने नहीं दिया जाएगा।  

भाजपा की राजनीति हार का ठिकरा अब डॉ.हर्षवर्धनजी केजरीवाल के ऊपर फोड़ना चाह रहें हैं। मुझे अभीतक इस बात का जबाब नहीं मिला कि 32 सीटों के परिणाम जैसे ही घोषित हुए डॉ. हर्षवर्धन जी ने सीधे मीडिया में बयान जारी कर दिये कि वे सरकार नहीं बनायेगें। इतनी जल्दी और विधायक दल की बैठक बिना किये ही इसप्रकार का बयान कहीं मोदी के खिलाफ गहरी साजिश का हिस्सा तो नहीं? 
आज दिल्ली में ‘आप’ की सरकार बनते ही पूरे देश में केजरीवाल व उनके साथियों को जो समर्थन मिला है क्या इसके लिए दिल्ली भाजपा दोषी नहीं? दिल्ली भाजपा कहीं मोदी के रथ का रोढ़ा तो नहीं बन गई? यह मोदी के समर्थकों को सोचना होगा।
03.01.2014

गडकरी की चाल सफल

जनता पर एहसान लाद रही थी कांग्रेस

देश के इतिहास में शायद यह पहली घटना होगी जब किसी विधानसभा की कार्यवाही का सीधा प्रसारण हुआ हो। दिल्ली विधानसभा में अरविंद केजरीवाल की ‘आप’ की सरकार के बयान को देश की जनता सीधे देख रही थी। इससे पहले हम विधानसभाओं का प्रसारण जब सदन के भीतर चप्पल-जूते चलते थे तभी देखते थे।
विधानसभा में विश्वास मत पर कांग्रेस अपने 8 विधायकों को लेकर अहंकार में बोलती नजर आई मानो वह ‘आप’ को समर्थन नहीं दिल्ली की जनता के ऊपर बड़ा भारी एहसान कर रही हो। वहीं भाजपा इस बात का दंभ भरती रही कि दिल्ली की जनता ने उनको सर्वाधिक मतों से विजयी बनाया और सबसे बड़ी पार्टी के रूप में होकर भी विपक्ष में बैठी है। मानो सब कोई जनता के वोट से चून कर आयें, और जनता पर ही अपने दल का एहसान लाद रहें हो। वहीं केजरीवाल ने साफ किया कि वे जनता के साथ कल भी थे और आज भी उसी तरह से जनता के साथ खड़े हैं। आप ने 37-32 से विश्वास मत जीता।

डा. हर्षवर्धन तो पहले से ही भगोड़े थे। 

हर्षवर्धन जी विधानसभा में केवल इस बात का दंभ भर रहे थे कि वे विपक्ष में बैठकर भाजपा दिल्ली की जनता पर ही एहसान कर रही है। ‘‘हमारी पार्टी सबसे बड़ी पार्टी है जिसे जनता ने सबसे अधिक सीटें दी है। सबसे अधिक वोट मिले हमको। हम जनता के वोट से चुनकर आयें हैं इसलिए हम जनता को सदन के भीतर बैठकर जूते मारेगें।

गडकरी की चाल

दिल्ली में गडकरी की चाल सफल हुई दिल्ली में मोदी को हरा दिया गडकरी ने दिल्ली में सरकार ना बनाकर दिखा दिया की देश की पूरी जनता मोदी के साथ नहीं।

बुधवार, 1 जनवरी 2014

कलम आज इनकी जय बोल - शम्भु चौधरी

देश को संसद में, विधानसभा में लूटने वाले लोग, गठबंधन के नाम पर लोकतंत्र का चिरहरण करने वाले, लोकतंत्र को लूटतंत्र में तब्दील करने वाले लोग, चुनाव के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी करने वाले लोग, विकास के नाम पर भ्रष्टाचार करने वाले लोग, कॉर्पोरेट चंदे के सौदागर, असामाजिक तत्वों के बल पर सत्ता प्राप्त करने वाले लोग, जनतंत्र को बर्वाद कर देने पर आमदा सत्ता की जोड़-तोड़ में माहिर शातिर लोगों को अचानक से सबकुछ अराजकता लगने लगी। 
आम आदमी पार्टी दिल्ली की सत्ता को संभालते ही महज दो दिनों जनता से किया वादा पूरा कर दिखाया। अरविंद केजरीवाल में कार्य करने की अदभुत क्षमता को देख देष आश्चर्यचकित है अपनी बीमारी के बावजूद भी केजरीवाल ने आम जनता से किये दो प्रमुख वादों में- पानी और बिजली क दामों में कटौती कर दिखा दिया कि सरकार चाहे तो जनता की भलाई के लिए कार्य करना चाहे तो इसमें कोई अड़चन नहीं आ सकती। ‘आप’ के मंत्री मनीश सिसोदिया, राखी बिड़ला जहाँ रात को रैन बसेरा का निरक्षण कर रहे तो,  सोमनाथ भारती, सत्येन्द्र जैन, गिरीश सोनी और सौरभ भारद्वाज सभी अपने-अपने कार्य में लगे देखे गए। कई महत्वपूर्ण जनता के हित में फैसले लिए जा रहे हैं । 

जनता एक तरफ खुश नजर आ रही है तो दूसरी तरफ अन्य राजनीति दल एवं इनके द्वारा पोषित समाचार संपादकों, किसी के हाथ तो, किसी के पाँव भारी हो गए । इनको लगने लगा कि अब तक जिस दिल्ली को वे अपने आभा मंडल से हड़प लेना चाहते थे में सफलता नहीं मिल तो क्या हुआ हम अपनी पूरी ताकत झोंक देगें परन्तु केजरीवाल या ‘आप’ पार्टी को किसी भी हालात में मोदी के मार्ग में आने नहीं दिया जाएगा । 

अभी से ही इन लोगों ने आरोपों की झड़ी लगा दी । महज चार दिन में 40 आरोप जन्म हो गए।  ऐसा क्यों किया? वैसे करने से क्या होगा? "जनता का पैसा है।" ‘आप’ वाले जनता का पैसा लुटाने में लग गए? आदि-आदि देश का धन लूटने वाले के मुंह से जनता के प्रति संवेदना के शब्द 30 साल बाद सुनने को मिल रहें हैं 15 साल भाजपा दिल्ली की सत्ता में रहकर भी गरीबों तक पानी पंहुचाने के नाम पर पानी बेचने का धंधा शुरू कर दिया तब इनको जनता की याद आई कि जनता के धन सदुपयोग कर जनता की सेवा की जाय अब अचानक से महज चार दिनों में इनको जनता के धन की चिंता सताने लगी।

15 साल कांग्रेस वाले सत्ता में राज्य किये। शीला जी ने कई विकास के काम किये तब इनको पानी की बात क्यों नहीं आई। दिल्ली के कई कॉलोनियों में आजादी के 60 साल बाद भी पानी की पाइप लाइन तक नहीं डाल पाये, दावा इतना कि मानो देश की तकदीर ही बदल डाली हो। 

देश को संसद में, विधानसभा में लूटने वाले लोग, गठबंधन के नाम पर लोकतंत्र का चिरहरण करने वाले, लोकतंत्र को लूटतंत्र में तब्दील करने वाले लोग, चुनाव के नाम पर करोड़ों की हेराफेरी करने वाले लोग, विकास के नाम पर भ्रष्टाचार करने वाले लोग, कॉर्पोरेट चंदे के सौदागर, असामाजिक तत्वों के बल पर सत्ता प्राप्त करने वाले लोग, जनतंत्र को बर्वाद कर देने पर आमदा सत्ता की जोड़-तोड़ में माहिर शातिर लोगों को अचानक से सबकुछ अराजकता लगने लगी। 

जनता से संवाद यदि अराजकता है तो जनता यही चाहती है। जनता की सत्ता में हिस्सेदारी यदि विद्रोह है तो हाँ! जनता इस विद्रोह के साथ है। जनता का धन लूटने से बचा के जनता के काम आता हो तो अरविंद के हर फैसले जनता को मंजूर है। आज देश करवटें ले रहा है। देश के अच्छे युवक देश के लिए कुछ करना चाहते हैं। हमें हर हाल में इनका साथ देना चाहिये ।

 राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी ने अपनी कविता शायद इन्हीं दिनों के लिये लिखी थी - ‘‘कलम आज इनकी जय बोल’’ मुझे गर्व हो रहा है कि हम आज सपने के भारत को पूर्व से उगता देख रहें हैं । भले ही इन युवकों में प्रशानिक क्षमता-दक्षता कम हो पर देश सेवा का जज्बा जो है इनमें। हम संतुष्ट है। आशा करता हूँ इनका भविष्य उज्जवल हो। इन्हीं शुभकामनाओं के साथ नववर्ष की मंगलकामना करता हूँ। जय हिन्द, जय भारत!!
02-01-2014
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