Translate

शनिवार, 1 जून 2019

व्यंग्य: आम चुस के खाओ -


व्यंग्य: आम चुस के खाओ -

चुनाव समाप्त होते ही कई विद्वान पंडितों को मुंह की खानी पड़ी । मानो वे सभी चारों खाने चित्त हो चुके थे अब मौका था उनका जो तुका चलाने में शातिर थे। एक बार गांव में अकाल पड़ा । गांव के सभी लोगों ने मिलकर पास गांव के में एक पंडित के पास जाने की ठानी । जब सभी मिलकर यह विचार की ही रहे थे तो एक अनपढ़ विद्वान उसी गांव से गुजर रहा था, उसने समझ लिया कि ये सभी पानी को लेकर परेशान हैं। मौका अच्छा था। उसे पता था कि पानी तो अपनी मर्ज़ी से आयेगा, क्यों न तब तक इनके ध्यान को किसी दूसरी तरफ उलझा दिया जाए । उसने गांव वालों से कहा कि अगले दस दिनों में बारिश हो सकती है बशर्ते कि गांव के सभी लोग रोज़ाना नियम से भगवान का कीर्तन करें। 


अब क्या था लोग सब काम-धाम छोड़कर भजन-कीर्तन करने में लग गये। मेला जमने लगा। अनपढ़ विद्वान ने भी प्रवचन देना शुरू कर दिया। उसके भी मौज़ होने लगे। वह जानता था कि पानी आयेगा तब आयेगा जाएगा कहां? यह तो प्राकृतिक की देन है अपने समय से आ ही जायेगा। चंद ही दिनों में बादल घिरने लगे, गांव वालों में उत्साह देखे ना बन रहा था। भोज देने की तैयारी शुरू होने लगी । 

जिन टीवी चैनलों ने चुनाव परिणाम के ‘एक्जिट पोल’ किये उनको पता था कि वे कितने झूठे हैं तभी तो वे अपने दावे की तीन दिनों तक पुष्टि नहीं कर पा रहे थे। कोई सामने आकर यह नहीं बोल रहा था कि वे जो बता रहें हैं वे शत-प्रतिशत सही है। जैसे एक ज्योतिषी तुका चला देता है और बिहार में कहावत प्रचलित है ‘‘लह गया तो वाह... वाह... नहीं तो राम.. राम... ’’  चुनाव के समय यह सब आम बात है। काेई पत्रकार यह दावा नहीं  कर सकता कि वह जो आंकड़ें उठा रहा है वही सही है।  हर झूठ के भीतर एक ‘‘बड़ा झूठ’’ और हर सच के अंदर सिर्फ ‘सच’ ही छुपा रहता है। कई बार झूठ,  ‘सच’ साबित हो जाता है पर ‘सच’ तो ‘सच’ ही रहता उसे साबित नहीं किया जा सकता । हाँ कुछ समय के लिए उस सच पर परदा डाला जा सकता है।



ठीक यही हाल था इन टीवी चैनलों के एंकरों का।  चुनाव परिणाम आते ही इनके तो बांझे ऐसे खिल गई  जैसे कोई अनहोनी हो गया हो, उनको भी खुद पर विश्वास नहीं हो रहा था कि क्या सच में ऐसा भी हो सकता है? यानि की चुनाव में कुछ भी असंभव नहीं। नामुमकिन को मुमकिन बनाने की कला का नया ज्ञान इन्हें प्राप्त हो गया था।

अब मौका था इनका पलटवार होना स्वाभाविक था। हर जगह आप ही सही हो यह जरूरी नहीं था। मेरे पास भी कुछ पत्रकार आने लगे। 

कल ही रामप्रसाद जी मेरे घर सुबह-सुबह आ टपके। आते ही बोले - और चौधरी जी ! क्या लिख रहे हो?

मैंने भी उनके व्यंग्य का जबाब व्यंग्य से ही दिया। ‘‘ नया कुछ नहीं ! बस सोच रहा हुँ कि पकौड़े की दुकान खोल लूँ। क्यों कैसा रहेगा?

रामप्रसाद - हैं... हैं... हंसते हुए अरे आप तो नाराज़ हो गये मैं तो बस यूँ ही पूछ लिया। 

मुझे समझाते हुए  ‘‘अब देखो भाई! समय के साथ चलो अपना क्या कोई चुनाव जीते हारे, तनख़्वाह तो उतनी ही मिलेगी जो कल मिलती थी।’’

मैंने भी बात को साकारत्मक ढंग से लेते हुए जबाब दिया - ‘‘ हां सो तो है पर एक बात समझ में नहीं आती कि भाई अमित शाह को सब कुछ पहले से ही कैसे पता था? .थोड़ा रूक कर.. कि ...

उसको 300 प्लस सीटें आयेंगी। बंगाल में 20-22 सीटें आ जायेगी? अभी तक गले से नीचे नहीं उतर रहा।

रामप्रसाद - पलटकर जबाब देते हुए छोड़ो यार इन पचरों में पड़ कर क्या होगा?। सुना नहीं मोदी जी ने चुनाव से पहले क्या कहा था ?

मैं फिर आश्चर्य से उनकी तरफ देखने लगा - क्या कहा था?  "कुछ समझा नहीं यार ... प्रश्न भरी निगाहों से रामप्रसाद को देखने लगा ..."

रामप्रसाद - अरे भाई ! आम चुस के खाओ, चुस के खाने के मजा ही कुछ ओर है।

जयहिन्द !

लेखक स्वतंत्र  पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

0 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

एक टिप्पणी भेजें