शंभु चौधरी, 15/04/2019
पाकिस्तानी की तरह ही सन् 2014 के बाद भारत में भी इसी तरह हिन्दूत्व कट्टरवाद विचारधाराओं को काफी बल मिला है। राष्ट्रवाद के नाम पर देश में भय का एक नया वातावरण पैदा किया गया, मोदी से असहमत होने वाले व्यक्ति को देशद्रोही बना देना उनकी मां-बहनों को खुलेआम गाली देना, किसी विशेष धर्म का नाम लेकर अन्य धर्म के लोगों में तनाव पैदा करना । एनआरसी व भारतीय नागरिकता के नाम पर किसी एक धर्म वर्ग के लोगों को पनाह देना तो दूसरों को भयभीत करना, यह सभी बातें ना तो संध की विचारधाओं में है ना ही भारत के संविधान में ।
भारतीय संविधान की प्रस्तावना में लिखा है कि ‘‘हम भारत के लोग, भारत को एक सम्पूर्ण प्रभुत्व सम्पन्न, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को न्याय, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त करने के लिए तथा, उन सबमें व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढाने के लिए,दृढ संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई0 को एतद द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’’
अर्थात भारत को प्रभुत्व संपन्न (किसी अन्य सत्ता के अधीन न हो), समाजवाद (अर्थात सबको बराबरी का हक मिले) के मार्ग पर चलते हुए पंथनिरपेक्ष (अर्थात धार्मिक विचारधारों से ऊपर उठकर) लोकतंत्रात्मक गणराज्य यानि कि जनता के द्वारा चुनी गई सरकार का प्रतिनिधित्व को स्वीकार करना । जिसमें सामाजिक, आर्थिक, राजनीति, धार्मिक विचारधाराओं की स्वतंत्रता, अभिव्यक्ति (मर्यादा में रहते हुए बोलने) की आजादी, अपने धर्म के अनुकूल उपासना करने व शिक्षा प्राप्त करने, स्वतंत्र रूप से व्यापार करने, धन अर्जित करने व व्यव करने की आजादी प्राप्त है। जिसमें हिन्दू, सिख, जैन, बौद्ध, मुसलमान और क्रिश्चन सभी धर्म के लोगों की सहभागिता हेतु संकल्प को दोहराया गया है । स्पष्ट है कि भारत दुनिया के उन महान देशों में एक है जिसमें कई धर्मों का समावेश तो है ही, हजारों जाति, उप-जाति, आदिवासी-जनजाति, मजदूर, किसान, जवान और वैष्य समाज सबका इसमें योगदान है। किसी एक अंग को भी इससे अलग नहीं किया जा सकता ।
भारत का अर्थ यह कदापि नहीं हो सकता कि वह किसी एक व्यक्ति के लिये ही बना हो या किसी एक राजनीति दल के लिये या किसी एक धर्म के लिए। यदि किसी एक व्यक्ति या धर्म का पक्षधर हो कर बात करना संविधान की मर्यादाओं की सीमाओं को पार करना है या इसकी (संविधान की) हत्या करना जैसा होगा, जैसे गांधी जी की हत्या नाथूराम गोडसे के द्वारा की गई थी । यहां यह भी समझना होगा कि गांधी जी कि हत्या के पीछे मुख्य वजह थी विचारधाराओं का टकराव । गोडसे कट्टर हिन्दू विचारधारा का परिणाम था परन्तु गांधी जी मुसलमान नहीं थे । वहीं स्व. इंदिरा गांधी या राजीव गांधी की हत्या किसी मुसलमान ने नहीं की थी ना ही किसी रूप से इन तीनों हत्यओं के पीछे मुस्लीम धर्म को किसी भी रूप में दोषी ठहराया जा सकता है। स्व. इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सिखों की हत्या में मुसलमाना कहां था? वहीं गोधरा कांड के पश्चात मुसलमानों की खुलेआम हत्या किसके शह पर की गई यह सब प्रमाणित है। चन्द लोगों के अपराध की सजा पूरे समाज को दिये जाना वह भी उनकी हत्या कर के कहां तक ऊचित है?
इससे पहले कि हम भारत की बात करें हम पाकिस्तान की हालात पर एक चर्चा कर लेते हैं । हम सभी इस बात से भलीभांति परिचित है कि पाकिस्तान अपनी इस्लामिक छवि को बनाये रखने के बावजूद वह बंग्लादेश को गवां बैठा सिर्फ भाषा के अंतर को वह (पाकिस्तान) नहीं समझ सका । अर्थात धर्म से देश को जोड़ा नहीं जा सकता। पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरवादिता ने पाकिस्तान को अंदर और बाहर या यूं कह ले कि पूरे विश्व में आतंकवाद का पर्यावाची बना दिया । आज भारत सहित दुनियाभर में फैले आतंकवाद के केन्द्र में पाकिस्तान की प्रमुख भूमिका को नकारा नहीं जा सकता । तो क्या आज हम यानि की भारत भी उसी दिशा में बढ़ रहा है जिस पर पाकिस्तान चल रहा है?
पाकिस्तानी की तरह ही सन् 2014 के बाद भारत में भी इसी तरह हिन्दूत्व कट्टरवाद विचारधाराओं को काफी बल मिला है। राष्ट्रवाद के नाम पर देश में भय का एक नया वातावरण पैदा किया गया, मोदी से असहमत होने वाले व्यक्ति को देशद्रोही बना देना उनकी मां-बहनों को खुलेआम गाली देना, किसी विशेष धर्म का नाम लेकर अन्य धर्म के लोगों में तनाव पैदा करना । एनआरसी व भारतीय नागरिकता के नाम पर किसी एक धर्म वर्ग के लोगों को पनाह देना तो दूसरों को भयभीत करना, यह सभी बातें ना तो संध की विचारधाओं में है ना ही भारत के संविधान में ।
आज भारत को भी पाकिस्तान के उन्हीं रास्तों पर ले जाने का कुप्रयास किया जा रहा ह जिसके चलते पाकिस्तान आज पूरी दुनिया में बदनाम हो चुका है। आज जिस प्रकार भारत में भी कहीं भाषा के आधार पर, कहीं धर्म के आधार पर बांटे जाने का प्रयास चल रहा है किसी नये खतरे को संकेत है। यह सब देश को जोड़ने के नाम पर देश को तोड़ने व नये रूप के आतंकवाद का जन्म है। आनेवाले दिनों में जिसे दुनिया में संभवतः ‘‘हिन्दू आतंकवाद’’ के नाम से जानेगा। आर.एस.एस (संघ) को अब यह सोचना होगा कि जिस गोडसे ने उनकी सदस्यता छोड़ दी थी पर गांधी जी की हत्या उसी ने ही की थी यह सच्चाई है। इस बात से तो संघ इंकार नहीं कर सकता। संघ को अब यह भी सोचना होगा कि क्या भारत के इसी निर्माण की कल्पना उनके के विचारधारा का हिस्सा है जैसा मोदी और शाह की जोड़ी सोच रहे हैं या नहीं? आदरणीय मोहन भागवत के उस बयान जिसमें वे प्रतिपक्ष को भी देश निर्माण में उसकी भूमिका को इंकार नहीं करते तो वहीं आडवाणी जी के ताजा बयान जिसमें किसी के विचारधारा से सहमत ना होने पर उसे देशद्रोही कहना कहाँ तक उचित है?
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