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सोमवार, 1 अप्रैल 2019

मोदी ब्राण्डिंग बनाम विपक्ष


सन् 2014 के लोकसभा चुनाव में मोदी ने विज्ञापन और फेक मीडिया और  हजारों फेक आई.डी के सहारे अपनी ब्राण्डिंग  की। इस नये तरीके के प्रचार ने जनता को इतना प्रभावित किया कि पूरे भारत में भाजपा को किसी ने, ना देखा न सुना। सिर्फ मोदी ही मोदी हर जगह छाये रहे।   मोदी के इस व्यावसायिक मोदी ब्रांडिग का उपयोग जिस प्रकार बड़े पूंजीपति घराने किया करते हैं मोदी ने ठीक उसका ही अनुसरण किया । कई व्यापारिक घरानों को लगा कि इस मोदी ब्रांडिग का लाभ सीधे उनको मिलेगा । अच्छे दिन आ जायेगें । वह हुआ भी एक चाय वाले की इस प्रकार ब्राण्डिंग  की गई कि देश को लगा  कि यही चाय वाला ब्रांड सही है। 
आयें विज्ञापन की दुनियों में ‘ब्रांडिंग’ का क्या मतलब है? इसपर एक नजर देते हैं -  ‘ब्रांडिंग’  से तात्पर्य है, आपका ब्रांड यह बताता है कि वे आप जिस उत्पादन को देख व सुन रहें हैं वह विश्वसनीय है और इसकी सेवा को प्राप्त करने में आपको कोई धोखा नहीं होगा । जैसे टाटा का उत्पादन या फिर एसीसी सिमेंट आदि । 
2014 का चुनाव इसी प्रकार मोदी की ब्रांडिंग कर के लड़ा गया था । गुजरात माॅडल को झूठा प्रचार किया गया । करोड़ों रुपये इस ब्रांड को प्रचारित करने में पानी की तरह बहाया गये। चुनाव इतना मंहगा बना दिया कि निष्पक्ष लोकतंत्र की कल्पना ही बेमानी लगने लगी ।   पूरे चुनाव में भाजपा को कोई अता-पता ही नहीं रहा । सिर्फ मोदी-मोदी के नाम पर चुनाव लड़ा गया इसके चलते भाजपा का स्थायित्व पूर्णतय समाप्त होकर दो व्यक्ति का संगठन बन गया । 
2019 के चुनाव में इस ब्रांडिंग का असर साफ दिखने लगा। शिवसेना, अगप जो चुनाव से पूर्व मोदी को खुल तौर चुनौती दे रही थी, शिवसेना तो शेर से चूहा बनकर रह गई और असम में असम गण परिषद गिदर बनकर पुनः भाजपा के साथ गठबंधन कर लिया । इस मोदी ब्रांडिंग के चक्कर में शिवसेना ने अपना अस्तितित्व ही दाव पर लगा दिया ।  सब खुले तौर पर कहने लगे कि शिवसेना अब समाप्ति के कगार पर आ खड़ी हैं इसके नेताओं में सिर्फ गिदरभभ्की के और कुछ नहीं बचा । वहीं असम में अगप के नेताओं की घ्ज्ञिग्गी बिल्ली बन चुकी है नागरिकता संशोधन बील, लोकसभा में दो सीट भीख में मिल गई इन बेचारों को।
दूसरी तरफ अडवानी खेमे को एक प्रकार से किनारे लगा दिया गया । एक प्रकार से देखा जाए तो भाजपा अब एक राजनीति संगठन ना रह कर व्यापारिक संगठन बन चुकी है जिसमें मोदी इसके ब्रांड का काम कर रहें हैं।
इस ब्रांड राजनीति का एक सबसे बड़ा खतरा यह भी है कि खुदा न ख़स्ता इस मोदी नामक ब्रांड में कोई राजनीतिक हमला हो गया जैसे राफेल की खरीदारी को लेकर या नोट बंदी को लेकर तो पूरी भापजा का जहाज बीच समुद्र में ही डूब जायेगा । तब ऊपर से कोई राम ही अवतरित होकर भाजपा को बचा पायेगा । 
इस ब्रांड में स्थायित्व नहीं है क्यों कि 2014 में किये सारे वादे झूठे निकले।  2019 इस ब्रांड की लेबलिंग चाय वाला से बदल कर इसे चौकीदार बना दिया गया । जो विज्ञापन जगत में एक उत्पादन की असफलताओं को छुपाने का प्रयास माना जाता है।  मोदी भक्तों को या आभास हो चुका था कि उनका ब्रांड बाजार में फेल हो चुका है इसके लिये उन्होंने दस नये रास्ते चुने कि कैसे 2019 के चुनाव में सफलता पाई जाए? जो इस प्रकार है।
1. "अच्छे दिन आयेंगे" चुनाव में कोई नेता ना उछाले ताकि विपक्ष को हमला करने को मौका  मिले। 
2. राफेल सौदे पर या सरकार के कामकाज पर कोई बात न हो । 
3. विपक्ष खास कर कांग्रेस पर हमला और तेज कर दिया जाए।
4. हिन्दूत्व, देशभक्ति और देश की सुरक्षा को जम कर भूनाया जाए।
5. नोटबंदी या जीएसटी की बात कोई न करे।
6. महागठबंधन को बदनाम किया जाए ।
7. विपक्षी नेताओं को मुद्दों से भटकाकर रखा जाए ।
8. प्रतिपक्ष के कुछ दलाल नेताओ से ऊल-जलुल बुलवाकर, गोदी मीडिया के सहारे उनके वक्तव्यों पर जनता को गुमराह किया जाए ।
9. जनता को चुनाव तक मोदी कार्यकाल की विफलताओं पर सोचने का कोई भी अवसर ना दिया जाए।
10. भाजपा के तमाम बड़े नेताओं को किनारे लगाकर मोदी  ब्रांड  को और अधिक मजबूत किया जाए।
इस प्रकार हम देखते हैं कि 2019 का चुनाव एक प्रकार विपक्ष की विफलता ही मानी जाऐगी क्योंकि विपक्ष एकतरफ सीटों के तालमेल में जहां रणनीति को बनाने में पूरी तरह से असफल रहा वहीं मोदी ब्रांड के मुकाबले दूसरा कोई नया ब्रांड प्रस्तुत करने में भी असफल रहा है। भाजपा के सबसे बड़े हिन्दी भासी गढ़  (उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान, दिल्ली, छत्तिसगढ़ और बिहार) में कांग्रेस सहित तमाम विपक्ष रणनीति बनाने में पूर्णतय असफल हो चुकी है । ऐसे में एक तरफ कमजोर होती विपक्ष और दूसरी तरफ मजबूत रणनीतिकार जो अपने घोर विरोधी शिवसेना को पुनः साथ में लेकर चुनाव में आ गई । ऐसे में हम भले जितना भी लोकतंत्र-लोकतंत्र-लोकतंत्र करते रहें परिणाम मोदी के पक्ष में साफ दिखाई देने लगे हैं । जयहिन्द ।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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