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सोमवार, 8 अप्रैल 2019

लोकतंत्र बनाम सुप्रीम कोर्ट ?


शंभु चौधरी, 09/04/2019 
पिछले दिनों हुई दो घटनाओं का जिक्र करते हुए उपरोक्त शीर्षक का चयन किया हूँ । सवाल सीधा माननीय सुप्रीम कोर्ट से है। 
1. बंद लिफाफे को पढ़कर और वादी की बात न सुनते हुए निर्णय देने की प्रक्रिया और जब निर्णय में विवाद शुरू हुआ तो पुनः सुनवाई की गई, वादी पक्ष की बात भी सुनी गई पर निर्णय देने में लगभग एक माह की चुप्पी किसी रहस्य से कम नहीं है।
2. ईवीएम की पारदर्शिता पर 21 विपक्षी दलों के द्वारा दाखिल याचिका पर निर्णय में शक की जगह छोड़ देना ।
  • भारत में सुप्रीम कोर्ट की विशेष मान्यता थी जो उपरोक्त दो निर्णयों से लोकतंत्र पर प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया क्या अब ऐसे ही सब चलता रहेगा क्या? अभी हाल ही में हमने देखा था कि किस प्रकार सीबीआई प्रमुख को हटाने में सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार का साथ दिया था पहले तो सुनावाई के दौरान अखबार में छपी रिपोर्ट को लेकर विफर गई फिर निर्णय ऐसे वक्त में दिया जब आलोक वर्मा के कार्यकाल के चंद दिन ही बचे थे और दूसरे ही दिन सरकार के साथ मिलकर उन्हें पद से हटा दिया गया।
  • इसी प्रकार कॉलेजियम को लेकर जो विवाद सामने आया जिसमें पूर्व निर्णय को वेबसाइट में ना डाला जाना और फिर नाम में बदलाव कर देना । यह बताता है कि सुप्रीम कोर्ट के भीतर सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। 
  • तीसरी सबसे बड़ी घटना अनिल अंबानी को लेकर है जिसमें अदालत के निर्णय से छेड़छाड़ किया गया। यानि की एक तरफ कॉलेजियम के निर्णय को वेबसाइट पर ना डालना दूसरी तरफ अनिल अंबानी से जुड़े फैसले में वेबसाइट में छेड़छाड़ कर देना । यह सभी बातें पकड़े जाने पर अदालत ने खुद स्वीकार किया है कि ऐसा हुआ है। सवाल यह उठता है कि यही अदालत तो 2014 से पहले भी थी, तब क्यों नहीं ऐसी गलतीयां सामने आई ? क्या यह सब महज संयोग है या कुछ और?
  • 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने माननीय चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई में राफेल मामले से जुड़े नये तथ्यों को पुनः सुना गया, सुनवाई पूरी कर ली गई, आज लगभग एक माह होने जा रहे हैं लोकसभा चुनाव की प्रक्रिया शुरू हो चुकी हैं राफेल से सीधे मोदी का भविष्य जुड़ा हुआ है।  जनता सुप्रीम कोर्ट से जानना चाहती है उन दस्तावेजों को देख कर और शीलबंद लिफाफे के झूठ को देखकर क्या निर्णय ले रही है ? प्रश्नचिन्ह अभी भी बना हुआ है। क्या देश की सुरक्षा के नाम पर किसी एक व्यक्ति के द्वारा इतना बड़ा घोटाला  कर दिया जाए जो अब अखबारों में भी छप चुका है माननीय अदालत चुप क्यों? 
  • कल ही ईवीएम के आज के ताजा फैसले पर आता हूँ जिसमें 21 दलों की बात को एक प्रकार से किनारे कर दिया गया । सुप्रीम कोर्ट को संविधान के भाग-3 अनुच्छेद -13 की याद दिलाता हूँ जिसमें साफ-साफ शब्दों में लिखा है ‘‘ अनुच्छेद -13: जनता के मूल अधिकारों से असंगत या उनका अल्पीकरण करने वाली विधियां या प्रणाली / रूल्स आदि किसी भी संस्था या राज्य ( यहां संविधान के अनुसार ‘राज्य’ का अर्थ है सरकार व सरकारी अधिकारी व, वे तमाम प्राधिकरण जिसमें चुनाव आयोग भी शामिल है।) द्वारा लागू किया जाना ‘शून्य’ होगा । 
लोकतंत्र में मतपत्रों से की गिनती से ही सरकार बनती है । यदि देश की जनता को विश्वास में नहीं लिया जाता तो यह पक्षपात ही माना जायेगा । सवाल उठता है कि जब चुनाव कराने के लिए चुनाव आयोग छः / सात चरणों में चुनाव करवा सकती है तो एक चरणों में उसकी गिनती भी हो जाए तो क्या तुफान आ जायेगा? सुप्रीम कोर्ट का ताजा फैसला कहीं न कहीं फिर इस बात को इंगित तो नहीं करता कि वे (सुप्रीम कोर्ट) कहीं न कहीं खुद ? लोकतंत्र की जमीं पर शक को जन्म देना किसी नई आपदा का संकेत है। जयहिन्द !
Note: आज दिनांक 10/4/2019 को उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुना दिया पढ़ें  लेख "भारत में महाभारत-1"

2 विचार मंच:

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HARSHVARDHAN ने कहा…

आपकी ब्लॉग पोस्ट को आज की ब्लॉग बुलेटिन प्रस्तुति 125वां जन्म दिवस - घनश्याम दास बिड़ला और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान जरूर बढ़ाएँ। सादर ... अभिनन्दन।।

Anita ने कहा…

खतरे की घंटी है यह तो..

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