Translate

शुक्रवार, 29 नवंबर 2013

तहलका : तमाशा ना बन जाए देश? - शंभु चौधरी

सवाल यह उठता है कि महिला का होना, महिला के साथ होना कहीं अपराध तो नहीं बन गया? कोई भी कभी भी किसी भी दिन, किसी कारण से ही अपने साथ हुए व्यवहार को यौन उत्पीड़न के रूप में प्रस्तुत कर दें और हमारा कानून संबंधित पुरुष का अपराधी मामने लगे तो और यह क्रम इसी प्रकार ही चलता रहा तो जो कानून, संसद ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये हैं वही कानून देश की पूरी सभ्यता को चौखट पर लाकर खड़ा कर देगा।

कोलकाता- 30 नवम्बर ’2013 इन दिनों महिलाओं के द्वारा कथित यौन उत्पीड़न आरोप में दो घटना ने पूरे समाज को झकझोर दिया है। जिसमें लगातार एक सप्ताह से सुर्खियों में तहलका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल के ऊपर लगाया गया यौन उत्पीड़न मीडिया वालों के लिए टीआरपी बढ़ाने के लिए मानो एक प्रकार से ‘‘यूरिया खाद’’ ही मिल गया हो । दूसरा मामला वर्तमान में पश्चिम बंगाल राज्य के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री ए के गांगुली पर एक वर्ष पूर्व की घटना का जिक्र अपने ब्लॉग में लिख कर किया । दोनों ही मामले एक ऐसे वर्ग से जुड़े हैं जहां समाज को सोचने के लिए मजबूर तो करता ही साथ ही यह भी सोचने के लिए बाध्य करता है कि आखिर यह सब हो क्या रहा है? कहीं हम आधुनिक बनते-बनते महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर इस कदर अपराधी बन जाए कि पूरी दूनिया हमारे पास खड़ी होने से भी भयभीत होने लगे?

सर्वप्रथम में यहां यह लिख देना जरूरी समझता हूँ कि में पीड़ित महिला की भावना के साथ हूँ और महिलाओं की भावना उनकी मान-मर्यादा का सम्मान भी करता हूँ । साथ ही इस बहस में उनकी भागीदारी भी चाहता हूँ जो महिलाओं की सुरक्षा के प्रति चिन्तीत भी हैं।

अभी हाल के दो मामले हमारे सामने हैं-

पहला मामला:-
तहलका संपादक तरुण तेजपाल का ही लें जो हाल की ही घटना पर आधारित है। इस मामले की पीड़ित महिला ने पहले मामले को पत्राचार और तेजपाल से वार्तालापए संस्थान के सहयोगियों के माध्यम से सुलह-सफाई मे कुछ दिन गंवा दिए। सवाल उठता है कि जब तरुण तेजपाल के खिलाफ यौन उत्पीड़न का मामला बनता है तो यह सुलह सफाई कहीं अपने कंपनी के बॉस को ब्लैकमेल करने का हिस्सा तो नहीं था? आखिर वह पीड़ित पत्रकार महिला कोई अनपढ़ व तैहाती औरत या लड़की तो नहीं थी कि उसको थाने में जाकर अपनी बात कहने से डर लग रहा था। जो महिला 6 पेज का पत्र लिख कर यह कहती हो कि ‘‘तेजपाल ने जो किया वह दुष्कर्म है । एक ओर जहां तेजपाल अपने धन, ऐश्वर्य, रसूल और विशेष लाभ को बचाने के लिए जद्दोजहद कर रहे वहीं उनके लिए यह लड़ाई अपने सम्मान और अपने अधिकार के लिए है कि मेरा शरीर मेरा है और मेरे नियोक्ता का खिलौना नहीं है ।’’ सवाल उठता है कि जो पत्रकार महिला इतनी लंबी-लंबी बातें, बड़ी-बड़ी बातें कर रही है वह घटना के इतने दिन बाद उसको याद आया कि वह अपने सम्मान के लिए लड़ रही है? कौन सा सम्मान बताने का कष्ट करेंगी। फिर ईमेल और एसएमएस का आदान-प्रदान क्यों हुआ? समझौते और माफीनामा किस लिए मांगा और किसके लिए मांगा जा रहा था? तेजपाल की लड़की और सोमा चौधरी और चंद मित्रों को बीच में क्यों डाला और डाला भी गया था तो उसका क्या उद्देश्य था?

इन सब प्रश्नों का जबाब उनको देना ही चाहिए । जब इस पत्रकार महिला ने इतने नाटक कर दिये उसके बाद भी वह खुद गोवा के थानें में या देश के किसी भी थाने में प्राथमिकी दर्ज कराने क्यों नहीं गई? उसको इस बात का भी जबाब देना चाहिए कि वह तरुण तेजपाल के साथ जो बातें इन दिनों शेयर करने लगी थी और उनसे उत्तेजक बातें पूछने लगी थी वे क्या बातें थी और क्यों करती थी? उसका इन बातों से उसके प्रोफेशन से क्या रिलेशन था? आज उस पीड़ित महिला को अपने शरीर की चिंता है तो क्या इस बात का भी जबाब वे देगी कि तब उसको अपने कद और अपने उम्र का ध्यान क्यों नहीं आया था? तब उसका सम्मान किधर घास चढने गया था?

दूसरा मामला:-
भी ठीक इससे विपरीत पर कुछ-कुछ मिलता जुलता सा है। जिसमें पीड़ित महिला अधिवक्ता ने एक आपबीती जग से शेयर की । यह आपबीती वर्तमान में पश्चिम बंगाल राज्य के मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री ए के गांगुली के अधीन एक वर्ष पूर्व प्रशिक्षु अधिवक्ता के तौर पर जब प्रशिक्षण ले रही थी तब की है जो इस महिला ने भी किसी थाने में जाकर आरोप नहीं लगाया, उसने इस रोचक वारदात को अपने ब्लॉक पर ठीक प्रतिभा खेतान की कहानी की तरह एक लेखिका बनकर प्रसिद्धि प्राप्त करने के लिए लगा दिया । मामले की जांच के आदेश आनन-फानन में दे दिए गए । जांच जारी है ।

सवाल यह उठता है कि महिला का होना, महिला के साथ होना कहीं अपराध तो नहीं बन गया? कोई भी कभी भी किसी भी दिन, किसी कारण से ही अपने साथ हुए व्यवहार को यौन उत्पीड़न के रूप में प्रस्तुत कर दें और हमारा कानून संबंधित पुरुष का अपराधी मामने लगे तो और यह क्रम इसी प्रकार ही चलता रहा तो जो कानून, संसद ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए बनाये हैं वही कानून देश की पूरी सभ्यता को चौखट पर लाकर खड़ा कर देगा।

0 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

एक टिप्पणी भेजें