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बुधवार, 6 नवंबर 2013

व्यंग्यः हाथी-चारों तरफ से सिर्फ खाता ही खाता है।- शम्भु चौधरी

मानो चुनाव आयोग नहीं जनता के मनोरंजन का साधन बन गया है। इसबार तो सभी तालाब को भी मिट्टी से पटवाने की मांग की गई ताकी तलाब में लबालब कमल के फूल जो खिलते जा रहें हैं उन्हें रोका जा सके। चुनाव आयोग को एक काम और करना चाहिए क्रिकेट में छक्का लगाने पर भी प्रतिबंध कर देना चाहिए क्योंकि एंपायर हर छक्के पर दोंनो पंजा उठाकर जनता को इशारा करता है कि वोट कहां डालना है।

आज ही कांग्रेस पार्टी के एक मास्टर जी ने मीडिया जगत की कक्षा ली और उसमें वे सभी बच्चों का समझाने में लगे थे कि उनकी पार्टी हाथी है और मोदी की पार्टी शियार, खैर ! मुझे इनसे क्या लेन-देना वह शियार हो या खरगोश । इसके पहले कुछ दिन ही पूर्व इनके विद्धान प्रधानमंत्री जी ने कहा था कि उनकी पार्टी कछुए की चाल से चल रही है जो अंत में सफलता प्राप्त कर लेगी।

भाई ! इनको इतिहास का इतना ज्ञान हो गया कि ये लोग हिटलर के इतिहास को पढ़-पढ़कर कभी खरगोश निकालते हैं तो कभी शियार अब इतिहास का इनको कितना पता है यह तो मैं नहीं जानता हाँ! आदमखोर हिटलर का नाम वे सुने होंगे हम भी आदमखोर हाथी को जानते हैं जो दिल्ली में बैठकर पूरे देश में आतांक पैदा कर रहा है। इसके पहले इनके इतिहास से चींटी निकली थी । आम आदमी पार्टी को इनके ही एक नेता ने चींटी कहा था जो अब दिल्ली के विधानसभा चुनाव में इनके नाक में दम कर दिया है और बैचारी शीला जी छटपट-छटपट कर रही है पानी भी नहीं पी पा रही । वैसे भी दिल्ली में पानी की किल्लत है।

आपने एक मुहावरा पढ़ा होगा - ‘‘हाथी के दांत खाने के और दिखाने के और’’ इसका मतलब मुझे अभी तक नहीं समझ में आया, आज जब इनके एक नेता ने समझाया तो इसका अर्थ समझा। अर्थ समझते ही खुद का ही सर खुजलाने लगा तो पता चला कि हाँ! ये लोग ठीक ही तो कह रहें हैं कि ये लोग हाथी ही हैं अब देखिये ने इनकी पार्टी ने पिछले 10 सालों में इतना लूटा कि लालू यादव बेचारे जाने को तो जेल चले गए, पर कांग्रसियों को देश लूटने का नूख्सा सिखा गए।

एक कहावत और देखिये- ‘‘हाथी जिंदा लाख का मरे तो सवा लाख का’’ आपको याद नहीं हो तो इतिहास की किताब खोलकर हिटलर का इतिहास पढ़ लिजिएगा । पिछले उत्तरप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग ने सारे हाथीयों को तिरपाल से बंधवा दिए थे ।

अब चुनाव आयोग को कौन समझाए कि भाई जहां दिमाग खर्च करना है वहां तो खर्च करते नहीं, जहां नहीं खर्च करना है वहीं दिमाग लगाते हो । मानो चुनाव आयोग नहीं जनता के मनोरंजन का साधन बन गया है। इसबार तो सभी तालाब को भी मिट्टी से पटवाने की मांग की गई ताकी तलाब में लबालब कमल के फूल जो खिलते जा रहें हैं उन्हें रोका जा सके। चुनाव आयोग को एक काम और करना चाहिए क्रिकेट में छक्का लगाने पर भी प्रतिबंध कर देना चाहिए क्योंकि एंपायर हर छक्के पर दोंनो पंजा उठाकर जनता को इशारा करता है कि वोट कहां डालना है, और जिस राज्य में चुनाव की घोषणा हो जाए वहां सभी को हाथ मिलाने पर भी प्रतिबंध लगा देना चाहिए। मुझे हाथ और हाथी से याद आया कांग्रेस पार्टी को इससे मिलते जूलते सभी जूमले और शब्दों का कॉपीराइट करवा लेना चाहिए ताकी इसके नाजायज प्रयोग पर भी प्रतिबंध लगाया जा सके, कम से कम सभी भाजपाईयों के हाथ तो कटवा ही देने चाहिए कारण की ये लोग इस पंजे का प्रयोग गलत काम के लिए भी कर सकतें हैं मसलन शोचालय जाने के वक्त या भाषण देते वक्त। ये जनता तो बैचारी इतनी भोली है कि ये क्या जाने की ये पंजा खूनी है कि पाक..-साफ?

अरे मैं सफेद हाथी की बात बताना भूल गया। ये कहावात ने तो मुझे हिला ही दिया। अब जब ये हाथी मर जायेगा तो सवा लाख का कैसे हो जायेगा यह बात मेरी समझ में नहीं आ रही थी तभी पास बैठा एक बूढ़े आदमी ने मुझे समझाया कि हाथी का सिर्फ दांत ही नहीं उसकी लीद भी गांव वाले खरीदकर ले जाते हैं। सुनकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ कि इस हाथी ने इतना क्या खा लिया कि गांव वाले इसकी लीद भी खरीदकर ले जायेंगे।

हां! लीद से ध्यान आया कि एक कहावत और भी है शायद कांग्रसियों ने इसे हिटलर के इतिहास में नहीं पढ़ा होगा वह है कि ‘‘हाथी चले बजार-कुत्ता भूँके हजार‘‘ भाई ठीक ही पढ़ा है आपने इतिहास को आने वाले चुनाव में आप हाथी हो कि कुत्ता यह तो देश की जनता ही आपको बताएगी। पर एक बात बात-बात में याद आ गई कि सफ़ेद हाथी एक मुहावरा है जिसका अर्थ होता है कि जो दिखने में सफेद दिखता है वह किसी काम का नहीं।

अब यह तो इनको ही तय करना है कि ये लोग कौन सा हाथी है। लाल, काला, पीला या सफेद?

इसी बात से एक कहानी भी याद आ गई- जो बचपन में सभी ने पढ़ी ही होगी।
एक गाँव में चार अंधे रहते थे। उन्होंने गाँव में हाथी आने की खबर सुनी। वे रास्ता पूछते-पूछते हाथी के पास पहुँचे। महावत से बोले, ‘‘भैया, जरा हाथी को कब्जे में रखना, हम उसे टटोलकर देखेंगे।’’
महावत ने सोचा.इसमें मेरा क्या बिगड़ता है, इन अंधे गरीबों का मन रह जाएगा। बोलाए ‘‘खुशी से देखो।’’
अंधे हर चीज को हाथ से टटोलकर ही देखते हैं। एक ने अपना हाथ बढ़ाया तो हाथी के कान पर पड़ा। बोला, ‘‘हाथी तो सूप की तरह होता है।’’
दूसरे का हाथ उस हाथी के पाँव पर पडा। बोला, ‘‘नहीं, हाथी खंभे सा होता है।’’
तीसरे के हाथ के सामने सूँड़ आई। उसने कहा- ‘‘नहीं-नहीं, वह तो मोटे रस्से जैसा होता है।’’
चौथे का हाथ हाथी के पेट पर पड़ा। वह कहने लगा- ‘‘आप सब गलत कहते हो, हाथी तो एकदम मशक सा होता है।’’
चारों अपनी-अपनी बात पर अड़ गए और लगे लड़ने-झगड़ने। हर एक अपनी ही हांकता, दूसरे की नहीं सुनता था।
एक जयराम रमेश जैसे समझदार आदमी पास खड़ा-खड़ा इनकी सब हरकतें देख रहा था। उसने अपने मन में लड़ाई का बड़ा अच्छा नतीजा निकाला कि दरअसल हाथी नहीं ये एक विचित्र जानवर है जो चारों तरफ से सिर्फ खाता ही खाता है।

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