मेरे साथ चलो न चलो
मेरी बातों को मानो न मानो,
हम सबका लक्ष्य एक है;
उसकी तरफ बढ़ते रहो, हमेशा की तरह,
कल भी, आज भी, कल भी,
इसे कोई प्रण कह ले या चुनौती;
इसे ही स्वीकार करना होगा!
क्षमता हो या न हो,
लक्ष्य की तरफ बढ़ना ही होगा,
कल भी, आज भी, कल भी।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी़-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106
रविवार, 2 दिसंबर 2007
लक्ष्य
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 2:41 am 0 विचार मंच
एक दाने की तलाश!
नयी सदी का आना,
किरणों में एक सदी का गुजर जाना,
एक सदी के गर्भ में ही, एक सदी का जन्म
नई पौध, नया उत्साह, नई उर्जा, नया उमंग,
पर चिडि़यों की कोलाहल मैं, कुछ भी नया नहीं था।
वही धुन, वही राग, न वीणा न कोई तान,
बस था वही पुराना सा दर्द,
एक दाने की तलाश!
एक दाने की तलाश।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी़-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 2:38 am 0 विचार मंच
सती
मैं तो भावावेश में जल रही थी,
तुने आवेश में जलाया,
पापा-पापा मैंने की,
ऎ पापी!
तुने सती बनाया।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी़-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 2:37 am 0 विचार मंच
मैं भी धन्य हो जाऊँ
जन्म मुझे दो एक बार माँ, ऎसा गौरव पाऊँ,
इस मिट्टी का तिलक लगा, मैं भी धन्य हो जाऊँ।
जिस धरती का सुहाग, अमर अमिट हो लहराता हो,
कच्चे धागे का बंधन भी, तोड़ न कोई पाता हो,
माँ की ममता, दूध पिलाने को, हो जाती आतुर;
गौरव से सर ऊँचा कर जब गाँव-गाँव मुसकाता हो,
ऎसी धरा पर जन्म लेने को, मन मेरा अकुलाता है।
जन्म मुझे दो एक बार माँ, ऎसा गौरव पाऊँ,
इस मिट्टी का तिलक लगा, मैं भी धन्य हो जाऊँ।
-शम्भु चौधरी, एफ.डी़-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 2:01 am 0 विचार मंच
ये आँखें हैं!
आँखों की स्नेह भरी दुनिया में, बीज ऩफ़रत के मत बोना।
ममता भरी इन आँखों में, आंसू के मोती मत पोना।।
प्यार भरी इन आँखों में, कामुक्ता से मत धोना।
शर्म-ओ-हया इन आँखों की, इंसान के आगे मत खोना।।
आँखों को देने वाले से, आँखें न कभी मिलाना तुम।
नफ़रत के बीज बोने वाले, खेती आँखों में हलने वाले,
बारूद के बल चलने वाले, जह़र के शब्दों से सींचने वाले;
नासमझ को बहकाने वाले,
इंसानों को धमकाने वाले,
यह मत समझो, इन आँखों ने,
जो तुमने दिखलाया,वो ही देखा,
बस देखा है इन आँखों ने वो सब !
जो तुमने नहीं देखा।
देगी ये आँखें ही तेरे इन कारनामों का जबाब,
जब ये जलेगी, तो मांगेगी, एक-एक से जनाब!
आज न सही,
तुम हिटलर, लादेन बनो या सद्दाम!
ये आँखें हैं!
आयेगी जरूर लेने एक दिन, अपना हिसाब
आयेगी जरूर लेने एक दिन, अपना हिसाब -शम्भु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 1:48 am 0 विचार मंच
शनिवार, 1 दिसंबर 2007
समझौता
गाँव से आया एक परिवार,
सड़क के किनारे,
घर बसा, खुदा से दुआ मांग रहा था।
कल तक गाँव में जो लड़की,
लगती थी आँखों को प्यारी,
शहर में आते ही लगी थी खटकने,
कल तक जो बच्ची लगती थी,
आज लगने लगी थी बड़ी,
पर लाचार हो चुपचाप था,
सुबह कब हुई, पता ही नहीं चला,
सामने लड़की चाय लिये खड़ी थी,
अब्बा ! चाय पी लो !
उसकी आँखों में शर्म,
और मेरी आँखों में लाचारी
दोनों ने एक दूसरे से समझौता कर लिया था।
उसने भी अपनी आँखें छुपा ली,
मैंने भी अपनी आँखें झूका ली
- शम्भु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:33 pm 0 विचार मंच
प्रेम
प्रेम तो बस्ती में बचा था,
पाँच-दस रूपये में नीलाम हो रहा था,
लोगों की लगी थी लम्बी कतारें,
घर के बच्चे सो गये थे ,
थके-हारे।
इस प्यार के इंतजार में ,
कुछ हमारे - कुछ तुम्हारे।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:25 pm 1 विचार मंच
कारपेन्टर
एक नेता ने अपने एक साथी से कहा;
जल्दी से कोई ऎसा राज बताओ,
या फिर संसद से कोई मंत्री की -
कुर्शी ही गायब करवाओ,
मुझे मंत्री बनना है।
कोई चमत्कार दिखलाओ,
पास खड़े एक समर्थक ने कहा -
सर! मेरे पास वही ' कारपेन्टर ' है,
जिसने संसद की सारी कुर्सियाँ बनाई है,
कहें तो,
मन्त्री की क्या बात करते हैं, सर्!
सीधे प्रधानमंत्री की ही कुर्सी बनवा लाता हूँ।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:13 pm 0 विचार मंच
भरोसा
खून की बोतल लिये, खड़ा एक मरीज,
मांग रहा था भीख।
दया करो! मांई-बाप!
आपके हाथों का स्वाद, कुछ अनोखा है,
न कोई कत्ल, न कोई धोखा है।
दिवालों पर लिखे नारों में,
इतना तो भरोसा है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:05 pm 0 विचार मंच
मानवाधिकारी से फरियाद
जेल में बन्द एक अपराधी, आयोग से गुहार लगाई।
हजूर!
मैं अपराधी नहीं हूँ, कत्ल के आरोप जो लगे हैं
अदालत में न कोई गवाह, न उनके कोई सबुत मिले हैं ;
और जो कत्ल हुए हैं उनके गुणाहगार सत्ता के मुलाजिम हैं।
मैने तो बस पेट के लिये उनका काम ही किया है,
हजूर!
ये लोग रोज मुझे मारते-पिटते और मुझ पे जुल्म ढाते हैं,
तड़पा-तड़पा के पानी पिलाते व दो दिन में एक बार ही खिलाते हैं
कड़कती सर्दी में रात को कम्बल छिनकर ले जाते हैं,
दवा के नाम पे ज़हर देने की बात दोहराते हैं।
हजूर!
ऎसा लगता है, आकावों के डर से मुझे डराते और धमकाते हैं,
भेद ना खुल जाये, इसलिये बार-बार आकर मुझे समझाते हैं
मुझे डर है कि ये लोग मुझ से भी बड़े अपराधी हैं
जो कानून की शरण में सारे गैर-कानूनी हथकण्डे अपनाते हैं।
हजूर!
मैं न सिर्फ निर्दोष, गरीब और बाल-बच्चेदार भी हूँ,
घर में मेरी पत्नी और बीमार माँ परेशान है,
मेरे सिवा उनको देखने वाला न कोई दूसरा इंसान है,
बच्चे सब छोटे-छोटे, करता मैं फरियाद हूँ।
हजूर!
ये लोग जान से मारने का सारा इंतजाम कर चुके हैं,
अदालत से कहिं ज्यादा इनका खौफ़ देख
करता मुझे हैरान है, कलतक मैं सोचा करता था,
शहर का सबसे बड़ा अपराधी मैं ही हूँ,
इनकी दुनिया देख तो लगता है मैं तो कुछ भी नहीं हूँ।
हजूर!
मै मानव हूँ, मुझे भी जीने का अधिकार है,
आप ही मेरे कृष्ण भगवान हैं, इस काल कोठरी में दिखती ;
एक मात्र आशा की किरण, जो आपके गलियारे से आती दिखाई देती है।
इस लिये है मानवाधिकारी!
हजूर!
आपके शरण में मैं खड़ा हूँ!
आपके शरण में मैं खड़ा हूँ!
-शम्भु चौधरी, एफ.डी.-453, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-700106
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 12:03 am 0 विचार मंच
बुधवार, 28 नवंबर 2007
मानवाधिकार
Tribal woman stripped naked in Guwahati
"वे" भी तो हैं 'मानव'!
परन्तु हम उसे मानव नहीं मानते;
उसे अपनावें, यही सत्य है।
ईश्वर भी यही है।
अज़ान या घन्टे की आवाज से ईश्वर नहीं मिलते;
ईश्वर न तो गिरजघरों में रहते हैं,
न ही गुरूद्वारा, मस्जीद, मंदिर में,
यह तो बस बसा है हमारे-अपके हृदय में,
कैद हो गया है हमारा हृदय,
जो चारदिवारी के बीच खोजता है ईश्वर को,
पूजा उसकी करो जो दीन है,
वे दीन नहीं,
भूखे, नंगे और लाचार हैं या अशक्षित हैं,
उनकी सेवा ऎसे करो, कि वे इनसे मुक्त हो सके,
अपने दान से उनके जीवन को बदलने का प्रयास करें।
वे दीन नहीं,
उनके हृदय में बसा "हृदय"
स्वच्छ व संतुष्ठ है।
भूखे-नंगे-अनपढ़ तो हम हैं;
न तो हम स्वच्छ हैं, न ही संतुष्ठ ;
मानव से मानव की दूरियों को बढ़ाते चले जा रहें हैं।
उनको देखो!
वे कैसे एकत्रित हो नाच-झूम-गा रहें,
परन्तु हम एक कमरे में सिमटते जा रहे हैं
हमारी दूरी तय नहीं,
और वे दूरी को पास आने नहीं देते।
देखो! उनको ध्यान से देखो, और कान खोल कर सुनो!
.....उनकी तरफ ध्यान दो!.........
'सूर्य की किरणें, बादलों का बरसना़......
हवा का बहना, खेतों का लहलहाना......
पक्षियों का चहकना, चांद का मुस्कराना......
मिट्टी की खुशबु, वन की लकड़ी, वंशी की धुन......
सब उनके लिये है, हमारे पास क्या है?
सिर्फ एक मिथ्या अधिकार कि हम 'मानव' हैं
तो वे क्या हैं? - जानवर? ......
नहीं! वे भी मानव हैं, पर ......
हम अनके साथ जानवर सा करते हैं सलुक;
कहीं धर्म के नाम पर, कहीं रंग के नाम पर,
कहीं वर्ण के नाम पर, कहीं कर्ण के नाम पर,
यह सब शोषण है, इसे समाप्त करना होगा;
इसके लिये हमें लड़ना होगा - शम्भु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 10:07 pm 0 विचार मंच
कोलकात्ता
1. कोलकात्ता आज भी ढोता है, जिन्दा लाशों को, कन्धों पे नहीं, शीनों पे, श्मशान की बात मत करो; ये तो फिर जग जाते हैं, हम लावारिश लाशों की गिनती में आ जाते हैं। चढ़ कर देखो एक बार सिर्फ! एहसास तुम्हें हो जायेगा मानवता व आजादी का नाम नहीं ले पायेगा। | 2. ये सड़कें, ये गलियाँ, फुटपाथ का रहना अमीरों का घर है, गरिबों का गहना। देखों शहर कलकत्ते का रैन वसेरा, धुँआं देती गाड़ी, जलती ये राहें, इंसानों की यहाँ चिता सज गई है, ये वादे-इरादे, ये रिश्ते और नाते, सभी कुछ है पर आधे-आधे। अधिकारों का यह सब झूठा आडम्बर, बँटता है खूनी रोजगार यहाँ पर; देखो शहर कलकत्ते का रैन वसेरा, अमीरों का घर है, गरिबों का गहना। -शम्भु चौधरी |
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:41 am 0 विचार मंच
मैं भी स्वतंत्र हो पाता
मैं भी स्वतंत्र हो पाता
- शम्भु चौधरी, कोलकात्ता
चलो आज खिड़कियों से कुछ हवा तो आई,
कई दिनों से कमरे में घुटन सी बनी हुई थी।
हवाओं के साथ फूलों की खुशबू
समुद्री लहरों की ठंडक,
थोड़ी राहत,थोड़ा शकुन,
पहुँचा रही थी मेरे मन को शकुन
कुछ पल पूर्व मानो कोई बंधक बना लिया था
समुंदर पार कोई रोके रखा था,
कई बंधनों को तोड़, स्वतंत्रता के शब्द ताल
बज रही थी एक मधुर धुन।
सांय...सांय.....सांय.....सांय.....
मैं नितांत, निश्चित व शांत मन से
एकाग्रचित्त हो कमरे के एक कोने में बैठा,
हवाओं का लुफ्त उठा रहा था।
काश! इन हवाओं की तरह,
मैं भी कभी स्वतंत्र हो पाता
अपने - आपसे?
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*
निःशब्द हो जलता रहा
- शम्भु चौधरी, कोलकात्ता
आज, अपने आपको खोजता रहा,
अपने आप में,
मीलों भटक चुका था, चारों तरफ घनघोर अंधेरा
सन्नाटे के बीच एक अजीब सी, तड़फन ,
जो आस-पास,
भटक सी गयी थी।
शून्य ! शून्य ! और शून्य !
सिर्फ एक प्राण,
जो निःसंकोच, निःस्वार्थ रहता था,
हर पल साथ
पर मैंने कभी उसकी परवाह न की,
अचानक उसकी जरूरत ने,
सबको चौंका दिया।
चौंका दिया था मुझको भी,
पर! अब वह
बहुत दूर, बहुत दूर, बहुत दूर...
और मैं जलता रहा निःशब्द हो आज
..
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:02 am 0 विचार मंच
मंगलवार, 27 नवंबर 2007
देश भक्ति गीत
वतन की नाव मारो मुझे एक ऐसी कलम से, जिससे फड़कती हो मेरी नबज़; लड़ते रहें, हम लेकर नाम मज़हब का, मुझको भी जरा ऐसा लहू तो पिलावो, वरसों से भटकता रहा हुँ, कहीं एक दरिया मुझे भी दिखाओ; बना के वतन की नाव यहाँ पे; मेरे मन को भी थोडा़ तो बहलाओ। मरने चला जब वतन कारवाँ बन, कब तक बचेगा जरा ये भी बताओ? | श्रद्धांजलि नमन तुम्हें, नमन तुम्हें, नमन तुम्हें, वतन की राह पे खडे़ तुम वीर हो, वतन पे जो मिटे वो तन, नमन तुम्हें! नमन तुम्हें, नमन तुम्हें! नमन तुम्हें, ये शहीदों की चित्ता नहीं, भारत नूर है, चरणों पे चढ़ते 'हिन्द' ! तिरंगे फूल हैं। मिटे जो मन, मिटे जो धन, मिटे जो तन, वतन की राह पे खडे़ तुम वीर हो, वतन पे जो मिटे वो तन, नमन तुम्हें! नमन तुम्हें! नमन तुम्हें! नमन तुम्हें! |
मेरा भारत महान मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २ हम वतन के हैं सिपाही... वतन के पहरेदार! मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २ डर नहीं तन-मन-धन का...मन मेरा बलवान! वतन की रक्षा के खातिर... दे देगें हम अपने प्राण मेरा वतन मेरा वतन...ये प्यारा हिंदोस्तान - २ सात स्वरों का संगम भारत... जन-गण की आवाज, मिल-जुल कर गाते हैं सब... मेरा भारत महान् | ध्वजः प्रणाम् हिन्द-हिमालय, हिम शिखर, केशरिया मेरा देश। उज्ज्वल शीतल गंगा बहती, हरियाली मेरा खेत, पूर्व-पश्चिम, उत्तर-दक्षिण... लोकतंत्र यह देश चक्रधरा माँ करते...हम सभी नमन्, 'जय-हिन्द' - 'जय-हिन्द'। |
संपर्क: शम्भु चौधरी, एफ.डी. - 453, साल्टलेक सिटी,कोलकाता - 700106
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 10:05 pm 1 विचार मंच
Labels: शम्भु चौधरी