1. कोलकात्ता आज भी ढोता है, जिन्दा लाशों को, कन्धों पे नहीं, शीनों पे, श्मशान की बात मत करो; ये तो फिर जग जाते हैं, हम लावारिश लाशों की गिनती में आ जाते हैं। चढ़ कर देखो एक बार सिर्फ! एहसास तुम्हें हो जायेगा मानवता व आजादी का नाम नहीं ले पायेगा। | 2. ये सड़कें, ये गलियाँ, फुटपाथ का रहना अमीरों का घर है, गरिबों का गहना। देखों शहर कलकत्ते का रैन वसेरा, धुँआं देती गाड़ी, जलती ये राहें, इंसानों की यहाँ चिता सज गई है, ये वादे-इरादे, ये रिश्ते और नाते, सभी कुछ है पर आधे-आधे। अधिकारों का यह सब झूठा आडम्बर, बँटता है खूनी रोजगार यहाँ पर; देखो शहर कलकत्ते का रैन वसेरा, अमीरों का घर है, गरिबों का गहना। -शम्भु चौधरी |
बुधवार, 28 नवंबर 2007
कोलकात्ता
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:41 am
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