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शनिवार, 1 दिसंबर 2007

प्रेम

प्रेम तो बस्ती में बचा था,
पाँच-दस रूपये में नीलाम हो रहा था,
लोगों की लगी थी लम्बी कतारें,
घर के बच्चे सो गये थे ,
थके-हारे।
इस प्यार के इंतजार में ,
कुछ हमारे - कुछ तुम्हारे।

1 विचार मंच:

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जयप्रकाश मानस ने कहा…

कृपया इससे जुड़ना चाहेंगे । सादर
www.srijansamman.blogspot.com

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