खून की बोतल लिये, खड़ा एक मरीज,
मांग रहा था भीख।
दया करो! मांई-बाप!
आपके हाथों का स्वाद, कुछ अनोखा है,
न कोई कत्ल, न कोई धोखा है।
दिवालों पर लिखे नारों में,
इतना तो भरोसा है।
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