8th May 2020, कोलकाता (भारत):h
उड़ीसा हाई कोर्ट |
उड़ीसा हाई कोर्ट ने वीडियो कोन्फ्रेंस के माध्यम से नारायण चंद्र जेना द्वारा दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए देश के अन्य प्रांतों से प्रवासी मजदूरों को राज्य में बिना कोविड-19 की जांच के उड़ीसा में प्रवेश पर रोक लगा दी । इस फैसले के बाद गुजरात व अन्य प्रांतों से उड़ीसा आने वाली सभी श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। जस्टिस एस पांडा और के.आर महापात्रा की खंडपीठ के इस आदेश से जहाँ लाखों प्रवासी मजदूरों को जिन्होंने अपने वापस आने की उम्मीद जगा ली थी, फिर सदमे में आ गए ।
"Supreme Court has stayed the order of the Orissa High Court, which had asked the state government to ensure that all migrants, who are in the queue to enter Odisha, should be tested negative for Covid-19 before boarding the conveyance." On 8th May 2020 time 6.00 pm. Supreme Court has stayed
एक तरफ लाखों विदेशी प्रवासी भारतीयों को ‘वंदे भारत मिशन’ के तहत हवाई जहाजों व जल मार्ग से भारत लाया जा रहा है तो दूसरी तरफ भारत के भीतर देश की उच्च अदालतें ऐसे फैसले सुना रही है जिसे सभ्य समाज कभी भी नहीं स्वीकार सकता ।
माननीय उड़ीसा हाई कोर्ट को भारत के संविधान के पार्ट -3 आर्टिकल - 14 को ठीक से पढ़ लेना चाहिये
‘‘ राज्य (यहाँ राज्य से अभिप्राय केन्द्र, राज्य की सरकारें, सरकारी सभी विभाग) भारत के किसी भी व्यक्ति को समान संरक्षण देने से इनकार नहीं कर सकती । चाहे वह किसी भी धर्म, जाति, वर्ग का हो । ’’
इसकी परिभाषा के अर्थ पर नहीं इसके मूल भावना पर आज विचार करने की हमें जरूरत है। कि देश-विदेश से एक तरफ लाखों श्रमिकों, छात्रों, पर्यटकों को अपने-अपने देश व देस (Village) बुलाने व पंहुचाने के लिए "वंदे भारत मिशन" का अभियान चलाया जा रहा वहीं उड़ीसा हाई कोर्ट के इस फैसले से स्वार्थ की बू आने लगी ।
खुद को बचाते हुए दूसरों के लिए मददगार बनने की जगह मैदान छोड़ कर भागने से किसी भी प्रान्त को इस महामारी से नहीं बचाया जा सकता है। अदालत सामूहिक रूप से किसी को भी बिना उसके अपराध के सिर्फ एक जनहित याचिका से लाखों निर्दोषों को सूली पर नहीं चढ़ा सकती । उन मजदूरों की रक्षा की बात जनहित में समझ में आती है पर उनके हितों के ऊपर रात के अंधेरों में रेलगाड़ी चलाकर उनका कत्ल नहीं किया जा सकता।
यदि मैं यहाँ गलत नहीं हूँ तो अदालतों को भी इस जनहित की मर्यादाओं का पालन करना अनिवार्य है। एक राज्य में किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए उसके प्रवेश को बाधित कर दिया जाना जिसमें कि उसने कोई अपराध न किया हो वहीं दूसरे राज्य में इस प्रक्रिया का जारी रहना अपने आप में अदालत के निर्णय पर प्रश्न खड़ा कर देता है।
देश में राज्यों से राज्य के रास्ते रोक दिये गये । शहर से शहर व गांव से गांव के दरवाजे बंद कर दिये गए । अब अस्पतालों के दरवाजों पर भी न्याय का ताला जड़ देना किसी भी दृष्टि से उचित नहीं होगा। माननीय उड़ीसा हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से मैं अपील करता हूँ कि वे ऐसे निर्णय का तत्काल कोई विकल्प निकाले । सरकार उन मजदूरों को अन्य राज्य की तरह वापस बुला कर उन मजदूरों, श्रमिकों व छात्रों को उनके प्रखंड में 21 दिनों तक क्वरांटाईन में रखा जा सकता है ना कि उसे आने से ही रोक देना । मेरी दृष्टि से यह अपराध से भी बड़ा अपराध है । जयहिन्द ।
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