17 May 2020 कोलकाता (भारत):
मित्रों ! आपने गुब्बारे वाले को जरूर देखा होगा । वह गुब्बारे बेचता है और जो नहीं बिकता उसे हवा में उड़ा देता है। बीस लाख करोड़ का गुब्बारा इन मजदूरों के लिए बस आकाश में उड़ते बैलून की तरह ही है। मजदूरों के दर्द को दरकिनार कर, हम आत्मनिर्भता की बात कर रहें हैं । ऐसी आत्मनिर्भरता का परिणाम तो बीस सालों में भी नहीं आयेगा।
भारत के अद्वितीय प्रधानमंत्रीजी एको अहं, द्वितीयो नास्ति मोदीजी पिछले दिनों कोरोना की इस महामारी के बीच चौथी या पांचवीं बार राष्ट्र को संबोधन करने आये । इससे पहले वे तीन या चार बार देश को संबोधन कर चुके थे। जहाँ तक मेरी मैमोरी ठीक हो तो शायद एक बार जनता कफ्र्यू के लिए, दूसरी बार थाली पिटवाने के लिए, तीसरी बार दीया जलवाने और चौथी बार मन की बात के लिए और अबकि बार राहत पंहुचाने आये । लोगों को यह आशा थी कि इस बार लाॅकडाउन फेज - 4 की घोषणा भी मोदी जी कुछ न कुछ पिटवाकर करेगें। भले ही वह लोगों का सर ही क्यों न हो पिटवा दें पर कुछ न कुछ तो कर के ही रहेगें शांति से न तो खुद रहेगें न किसी को रहने देगें। आपको लाॅकडाउन फेज - 3 में भी नहीं छोड़े, खुद नहीं आये तो क्या देश के तीन बहादुरों को सर्जिकल स्ट्राइक करने अस्पतालों में भेज दिये, आखिर देश की सुरक्षा से जो जुड़ा था । रातों-रात तीनों सेना के जवान सजग हो गए और लगे गरीब लोगों की मौत पर फूल बरसाने। लाॅकउाउन फेज -3 तो अपने आप में ऐतिहासिक यादगार तस्वीरें हमें दे गया हें । सेना के तीनों सेनाध्यक्षों ने वह कर दिखाया जो ‘‘न भूतो न भविष्यति’’ संभव हो सकेगा ।
अपने-अपने घरों में पिछले 50 दिनों से कैद देश की 128 करोड़ जनता टीवी पर, प्रधानमंत्रीजी ‘‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति ’’ मोदीजी को सुनने को बेताब थी। बचे दो करोड़ गरीब मजदूर जो देश के विभिन्न एनएच की शानदार सड़कों पर भूखे-प्यासे, मरते-मरते अपने प्रधानसेवक जी को सुनने के लिए ठीक आठ बजे अपनी-अपनी यात्रा स्थगित कर दी थी। सबको आशा थी कि आज उनके दर्द को प्रधानमंत्रीजी जरूर सुन लेगें । उनके (प्रधानसेवकजी) आंखों में फिर से दर्द के आंसू झलकेगें। कुछ पल रोयेंगे, फिर रुमाल से आंसूओं को पूंछकर भावक शब्दों से हमें कुछ बोलेंगे। पल-पल गुजरता गया, मोदी जी का भाषण समाप्त हो चुका था । राहत के नाम पर जो कुछ सुना उन गरीबों के पले तो बस इतना ही पड़ा कि मोदी जी कुछ बोले हैं जो उनकी समझ में नहीं आया सो अब भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमणजी चार दिन उसे समझाने रोज शाम चार बजे आयेंगी ।
सबको आशा थी कि आज उनके दर्द को प्रधानमंत्रीजी जरूर सुन लेगें । उनके (प्रधानसेवकजी) आंखों में फिर से दर्द के आंसू झलकेगें। कुछ पल रोयेंगे, फिर रुमाल से आंसूओं को पूंछकर भावक शब्दों से हमें कुछ बोलेंगे। पल-पल गुजरता गया, मोदी जी का भाषण समाप्त हो चुका था । राहत के नाम पर जो कुछ सुना उन गरीबों के पले तो बस इतना ही पड़ा कि मोदी जी कुछ बोले हैं जो उनकी समझ में नहीं आया सो अब भारत की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमणजी चार दिन उसे समझाने रोज शाम चार बजे आयेंगी ।
छात्रों के लिए बसों व ट्रेनों की व्यवस्था की गई । विभिन्न प्रान्तों में बसे प्रवासी मजदूरों के लिये श्रमिक ट्रेन भी चलवा दी । विदेशों में फंसे लोगों के लिए ‘‘वंदे भारत मिशन’’ शुरू कर दिया गया। परन्तु जो लोग गलती से ही सही,सड़क के मार्ग से गांव के लिए चल पड़े, उनका क्या होगा? ये लोग अब भी यह आस लगाये बैठे थे कि शायद अब तो इनकी बारी आ ही जायेगी। इनका दोष सिर्फ इतना ही था कि इनको एक माह से न तो राशन मिला ना ही इनके मालिकों ने इन्हें पैसे दिये थे । रोज कमाने, रोज खाने वाले दिहाड़ी मजदूर थे ये सब, जिनको लगा कि अब कुछ अनर्थ हो जायेगा । मरना तो था ही क्यों न गांव ही चल दिया जाय । इनके पास जो कुछ था, लेकर गांव की तरफ पैदल ही चल पड़े सैकडों मील की यात्रा पर ।
प्रधानसेवक जी के बीस मिनट के भाषण में इन लाखों मजदूरों को मोदीजी की बुलैट ट्रेन ने मिनटों में कूचल कर रख दिया। मजदूर आंखों में आंसू बहाते, खून का घूंट पीकर रह गये । जो बच्चे कल तक मोदी-मोदी चिल्लाते नहीं थक रहे थे वही आज भारत की शानदार सड़कों पर दम तौड़ते नजर आ रहे थे।
रोजान रास्ते में नये हादसे के शिकार ये मजदूर बड़ी संख्या में सरकार से वड़ी उम्मीद लिए बैठे थे, परन्तु प्रधानसेवक जी के बीस मिनट के भाषण में इन लाखों मजदूरों को मोदीजी की बुलैट ट्रेन ने मिनटों में कूचल कर रख दिया। मजदूर आंखों में आंसू बहाते, खून का घूंट पीकर रह गये । जो बच्चे कल तक मोदी-मोदी चिल्लाते नहीं थक रहे थे वही आज भारत की शानदार सड़कों पर दम तौड़ते नजर आ रहे थे। इस घटना ने नोटबंदी के दर्द को भी बौना बना दिया था। नोटबंदी में जब लाखों लोगों को अचानक से मोदीजी ने सड़कों पर ला खड़ा कर दिया गया था । तब की घटना लोगों ने यह कह कर सह लिया कि इससे देश का भला होगा । जबकि सच्चाई यह है कि मध्यम परिवार आज भी उस सदमे से उबर नहीं पाया है। तब भी मोदी भक्तों (मां-बहनों की गाली देने वालों ) के पास इसका जबाब तैयार था और आज भी तैयार है। देश के सारे मंत्री से लेकर संत्री तक, राष्ट्रपति से लेकर राज्यपाल तक, प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक सबके जबान को लकवा मार गया था, किसी की हिम्मत तक नहीं हो पा रही थी कि इन मजदूरों को कोई राहत भी पंहुचा दे । सड़क मार्ग में सरकार के गुमास्तों ने जमकर लूट मचा रखी थी। खाने के समान से लेकर बच्चों के दूध तक को नहीं छोड़ा। पैसे और औरतों की इज्जत की तो बात कोई ज़ुबान पर ला भी नहीं सकता । मानो सबकुछ रामराज्य था । कुछ मददगारों को तो प्रशासन की धमकी भी मिल गई । ट्रकों से लोगों को उतार दिया गया। पानी की बोतलें तक नहीं छोड़ी इन लोगों ने। कोई रेल के रास्ते छुप कर गांव जा रहा था तो कोई गांव के रास्ते । दर-दर की ठोकरें खाते इन लोगों की एक आफत नहीं थी, जब ये लोग किसी तरह अपने राज्य की शरहद पंहुच भी जाते तो इनके सामने नई आफत आ खड़ी होती, इनके लिए स्व के राज्य में भी प्रवेश के मार्ग बंद कर दिये गये। जांच व गांव भेजने के नाम से इनको लूटा गया । एक बस का भाड़ा इनसे एक लाख तक वसुला गया। ये सभी बातें प्रमाणित हो चुकी है।
कोरोना की इस महामारी ने एक साथ कई जख्मों को हरा (green) कर दिया था। यदि आपने ‘‘वंदे भारत मिशन’’ चलाया, यदि आपने श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई, तो इन मजदूरों ने जो कि पिछले एक माह से सड़कों पर फंस चुके हैं उन्होंने कौन सा अपराध कर दिया कि सरकार इतनी निर्दयी हो गई ? मौन धारण तो मोदी जी ने नोटबंदी के समय भी किया था, लोगों की मरने की खबरें जगह-जगह से आती रही, पर प्रधानसेवक जी ठस से मस नहीं हुए । लोग मरते रहे प्रधानसेवक जी विदेश यात्रा पर निकल पडे़ थे । इनकी अनुपस्थिति में मोदी भक्तों ने मोर्चा संभल लिया था । कोई चूं-चूपड़ किया कि उसकी जबान खींचकर बाहर निकाल देते थे । आज भी कोरोना की इस महामारी में ऐसा ही कुछ चल रहा है। परन्तु इस बार का हालात कुछ बदले हुए हैं । गरीबों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले प्रधानसेवक की चुप्पी ने भक्तों को भी झकझोर तो दिया ही है, आखिर मानवीयता भी कुछ होती है।
मौन धारण तो मोदी जी ने नोटबंदी के समय भी किया था, लोगों की मरने की खबरें जगह-जगह से आती रही, पर प्रधानसेवक जी ठस से मस नहीं हुए । लोग मरते रहे प्रधानसेवक जी विदेश यात्रा पर निकल पडे़ थे । इनकी अनुपस्थिति में मोदी भक्तों ने मोर्चा संभल लिया था । कोई चूं-चूपड़ किया कि उसकी जबान खींचकर बाहर निकाल देते थे । आज भी कोरोना की इस महामारी में ऐसा ही कुछ चल रहा है। परन्तु इस बार का हालात कुछ बदले हुए हैं । गरीबों के लिए घड़ियाली आंसू बहाने वाले प्रधानसेवक की चुप्पी ने भक्तों को भी झकझोर तो दिया ही है, आखिर मानवीयता भी कुछ होती है।
अब बात इस बीस लाख करोड़ की हम कर लेते हैं । प्रधानमंत्री जी के आज छठवाँ साल पूरा हो चुका । आपने पंचतंत्र की एक कहानी ‘‘ग्वालिन का सपना’’ जरूर पढ़ा होगा । एक ग्वालिन थी, वह दूध बेचने जा रही थी । उसके सर पर दूध से भरा घड़ा था । चलते-चलते वह मन ही मन विचार कर रही थी, दूध को बेचने से जो पैसे मिलेंगे, उन पैसो से वह अंडे खरीदेगी, अंडों से मुर्गी के बच्चे होगें तो वह उससे दो से चार, चार से चौदह, चौदह से चौसठ बच्चे करेगी । फिर वह उससे एक बड़ा फर्म हाउस खोल लेगी और एक दिन वह धनवान बन जायेगी, तभी सामने से एक गाड़ी उससे टकरा जाती है, उसका दूध सड़क पर बिखर जाता है ।
कहानी पढ़ते ही एक भक्त चिल्ला पढ़ा इसमें प्रधानमंत्री जी क्या दोष? ट्रेन की पटरियों पर कोई सोएगा तो मरेगा ही न । रास्ते पर चलेगा तो मरेगा ही न । मोदी ने ट्रेन चला दी फिर ये पैदल क्यों ? सही बात है अब इनको गुजरात या महाराष्ट्र वापस जाना होगा ट्रेन पकड़ने क्या यही न कहना चाहतें हैं आप? तो क्या रास्ते में इनके लिए हेलीकाप्टर भेजे? तो किसी ने लिखा कि नहीं हेलीकाप्टर तो फूलों को बरसाने के लिए है ।
कहानी पढ़ते ही एक भक्त चिल्ला पढ़ा इसमें प्रधानमंत्री जी क्या दोष? ट्रेन की पटरियों पर कोई सोएगा तो मरेगा ही न । रास्ते पर चलेगा तो मरेगा ही न । मोदी ने ट्रेन चला दी फिर ये पैदल क्यों ? सही बात है अब इनको गुजरात या महाराष्ट्र वापस जाना होगा ट्रेन पकड़ने क्या यही न कहना चाहतें हैं आप? तो क्या रास्ते में इनके लिए हेलीकाप्टर भेजे? तो किसी ने लिखा कि नहीं हेलीकाप्टर तो फूलों को बरसाने के लिए है । गांव में जब बाढ़ आ जाती है तो गांव वाले सबसे पहले ‘ढिबरी’ और माचिश साथ रख लेते हैं ताकि रात के अंधेरे में वह संदेश भेजने के काम आ सके । आप कभी सोच भी नहीं पाओगे कि ‘अंधेरा’ भी लोगों की रक्षा करता है। परन्तु देश के प्रधानमंत्री जी की आंखें इस कदर चौंधिया गई है कि दिन के उजाले में भी कुछ नहीं दिखाई दे रहा इनको।
गांव में जब बाढ़ आ जाती है तो गांव वाले सबसे पहले ‘ढिबरी’ और माचिश साथ रख लेते हैं ताकि रात के अंधेरे में वह संदेश भेजने के काम आ सके । आप कभी सोच भी नहीं पाओगे कि ‘अंधेरा’ भी लोगों की रक्षा करता है। परन्तु देश के प्रधानमंत्री जी की आंखें इस कदर चौंधिया गई है कि दिन के उजाले में भी कुछ नहीं दिखाई दे रहा इनको।
आज कुछ ऐसा ही सपना प्रधानमंत्रीजी मोदीजी ने देश की जनता को दिखाया है। चार दिनों भारत के वित्त मंत्री जी इस सपने की किस्त जनता को परोस रही है । चार दिनों की प्रेस ब्रिफिंग से अब तक पल्ले सिर्फ इतना ही लगा कि बैंकों से लोगों को कर्ज मिलेगा। भारत का दो सो लाख करोड़ का बजट चार घंटे में समाप्त हो जाता है पर प्रधानमंत्री जी के द्वारा की गई बीस लाख करोड़ की जिसमें से सत्तर प्रतिशत पुरानी घोषणा को मिला दिया गया था, को जनता को समझाने में इनको चार दिन लग गया।
कोरोना की महामारी से बचाव के लिए इन दो महीनों में कोई घोषणा नहीं की, सिवा लाॅकडाउन के, थाली पिटवाने, दीया जलवाने या गरीबों के सर पर फूलों की बरसात करवाने के यदि कोई महत्वपूर्ण कार्य किया है तो वह रेल के हजारों डब्बों को कोरोना अस्पतालों में तबदील करवा दिया गया । यह काम स्कूल-विद्यालयों में भी किया जा सकता था । अब वे डब्बों में कैसे कोरोना अस्पताल चलेगा यह भी सोचने की बात है?
कोरोना की महामारी से बचाव के लिए इन दो महीनों में कोई घोषणा नहीं की, सिवा लाॅकडाउन के, थाली पिटवाने, दीया जलवाने या गरीबों के सर पर फूलों की बरसात करवाने के यदि कोई महत्वपूर्ण कार्य किया है तो वह रेल के हजारों डब्बों को कोरोना अस्पतालों में तबदील करवा दिया गया । यह काम स्कूल-विद्यालयों में भी किया जा सकता था । अब वे डब्बों में कैसे कोरोना अस्पताल चलेगा यह भी सोचने की बात है?
मित्रों ! आपने गुब्बारे वाले को जरूर देखा होगा । वह गुब्बारे बेचता है और जो नहीं बिकता उसे हवा में उड़ा देता है। बीस लाख करोड़ का गुब्बारा इन मजदूरों के लिए बस आकाश में उड़ते बैलून की तरह ही है। मजदूरों के दर्द को दरकिनार कर, हम आत्मनिर्भता की बात कर रहें हैं । ऐसी आत्मनिर्भरता का परिणाम तो बीस सालों में भी नहीं आयेगा। हाँ ! इतना जरूर है कि इन लोगों की मानसिकता से देश के मजदूरों के आत्मसम्मान को ठेस लगी है उसका परिणाम घातक ही होगा। ‘‘एको अहं, द्वितीयो नास्ति, न भूतो न भविष्यति’’ । यह अंहकार देश को ले डूबेगा । जयहिन्द !
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