18, मई’ 2020 कोलकाता (भारत):
पैसा मिले ना मिले पर रामप्रसाद जी की बातों पर उनकी पत्नी को आज भी विश्वास है कि रामप्रसाद जी झूठ तो नहीं बोलेंगे। बीस लाख करोड की बात सुन कर पत्नी भी दंग रह गई, आश्चर्य भरी आवाज में बोली - ‘‘बीस लाख’’ हाई रे दईया।’’
आज सुबह उठते ही रामप्रसाद जी अपना कैलकुलेटर खोजने लगे। वैसे तो इस कैलकुलेटर का पिछले चार सालों में कभी काम नहीं पड़ा । फिर भी यदा-कदा सब्जी वाले, दूधवाले या फिर राशन की दुकान वाले का हिसाब जरूर कर लिया करते थे रामप्रसादजी। बोलते किसी का एक पैसा भी नहीं रखना, पांच सौ रुपये के हिसाब को दस बार इस कैलकुलेटर से मिलाते । पिछले दिनों ही किराना वाले का बिल लगे कैलकुलेटर से जोड़ने, तीन बार जोड़े, तीन बार में तीन तरह का उत्तर आया, कभी दस रुपये ज्यादा तो कभी दस रुपये कम । रामप्रसाद जी भी परेशान हो गए थे । फिर उन्होंने सौ-सौ के पांच हिस्सों में उसका जोड़ खुद ही निकालने लगे,
दुकानदार ने जोर देकर कहा -
भाई साहब भूल-चूक लेनी देनी। आप मुझे पचास रुपये कम दे दो । हिसाब मिल जाए तो बाकी का भिजवा देना।
तभी..रामप्रसाद जी की आवाज आई:
‘‘अरे सुनती हो !’’
‘‘आइइइई’’ उनकी पत्नी भागती हुई पास आई ।
‘‘वो मेरा कैलकुलेटर इधर पड़ा था न ?’’ तुमने देखा क्या? - रामप्रसाद जी ने पत्नी से पूछा ।
पत्नी ने जबाब दिया - ‘‘नहीं’’ और फिर काम करने चली गई ।
रामप्रसाद जी को बेचैनी हो रखी थी । पता नहीं आज इनको क्या लाटरी खुल गई, नहाना, धोना याद नहीं आया, कैलकुलेटर लगे खोजने । पत्नी की दो टूक बात सुनकर उनको संतोष नहीं हुआ । सोचे शायद वह समझ नहीं पाई होगी ।
पत्नी को फिर आवाज दी ।
‘‘अजी सुनती हो ! ’’ वह जो नोटबंदी के समय तुम्हारे रुपये गिने थे जब बैंक में जमा कराने गया था । वो वाली मशीन कुछ याद आया?
अब तो लगा कि किसी ने पत्नी के जख्मों पर नमक छिड़क दिया हो।
नोटबंदी को देश की कोई पत्नी भी नहीं भूल पायेगी । एक बार रकम हाथ से गई जो आज तक वापस नहीं आई। चार साल होने का आये हैं ।
पत्नी ने ताना कसते हुए कहा- ‘‘चलो आपको मेरे रुपयों की याद तो आई ।’’
मन ही मन सोचते हुए ‘‘शादी के बाद से एक-एक रुपया जोड़ कर बचाया था । इनसे छुपा-छुपा कर । उनको गिन-गिन कर जीवन के कई पल गुजारे थे। खुद से कितनी बार बात की थी । एक बार इनके पास पैसे नहीं थे तो उसी से घर चलाया था ।’’
फिर आगे बोलती है - ‘‘आप मर्दों का क्या, एक बार रकम हाथ लगी, सो गई । अब तो मैं भी भूल ही गई हूँ कि आपको कितने रुपये दिये थे । कालाधन जो था मेरा, आपसे छुपा कर जमा किये थे न, किस मुंह से वापस मांगती ।’’
- अब रामप्रसाद जी को तो काटो तो खून नहीं । बात तो सच है पत्नी के रुपये बैंक में जमा कराने के बाद, सारे रुपये तो खर्च कर दिये थे। नौकरी भी चली गई सो पत्नी के पैसे कैसे वापस करते । फिर भी पत्नी को विश्वास दिलाया कि हम सबके अच्छे दिन जल्द आने वाले हैं । आज ही मोदी जी ने बीस लाख करोड़ रुपये बांटे हैं हमें भी कोई न कोई काम मिलेगा जरूर, तुम्हारा सारा पैसा एक साथ लौटा दूँगा ।
पैसा मिले ना मिले पर रामप्रसाद जी की बातों पर उनकी पत्नी को आज भी विश्वास है कि रामप्रसाद जी झूठ तो नहीं बोलेंगे। बीस लाख करोड की बात सुन कर पत्नी भी दंग रह गई, आश्चर्य भरी आवाज में बोली - ‘‘बीस लाख’’ हाई रे दईया।’’
रामप्रसाद जी ने उसे सुधारा - ‘‘बीस लाख नहीं, अरे पगलिया, बीस लाखवा के बाद करोड़वा भी बाड़े’’
अब तो पत्नी लगी पुराने अखबारों के बीच रामप्रसाद जी का कैलकुलेटर खोजने । मानो उसका सारा रुपया जो नोटबंदी के समय रामप्रसाद जी ने लिया था उसी कैलकुलेटर से निकलने वाला है ।
इस कैलकुलटर में दस अंकों के बाद लिखने की जगह ही नहीं थी । रामप्रसादजी कभी छह अंकों के ऊपर जोड़ ही नहीं लगाये थे। अब आम आदमी तो अपनी औकात की बात ही सोचेगा ना । कैलकुलटर खरीदते वक्त रामप्रसाद जी को क्या पता था कि कभी उनको भी बीस लाख करोड़ रुपये जोड़ने पड़ सकते हैं।
कैलकुलेटर मिला तो उसमें उसकी बैटरी पुरानी हो जाने के चलते डाउन हो गई थी। रामप्रसाद जी जल्दी से पान की दुकान जाकर पिछवाड़े से एक बैटरी खरीद लाए ।
बैटरी लगाते ही कैलकुलेटर में भी नई जान आ गई । कैलकुलेटर बाबा आदम जमाने का था, अब तक दो जगह से टूट भी चुका था, पर ईमानदार इतना कि आज भी हिसाब ईमानदारी से ही करता है, परन्तु आज इस कैलकुलेटर का दिमाग भी किसी बनिये के मुंशी की तरह बेईमान हो गया था।
इस कैलकुलटर में दस अंकों के बाद लिखने की जगह ही नहीं थी । रामप्रसादजी कभी छह अंकों के ऊपर जोड़ ही नहीं लगाये थे। अब आम आदमी तो अपनी औकात की बात ही सोचेगा ना । कैलकुलटर खरीदते वक्त रामप्रसाद जी को क्या पता था कि कभी उनको भी बीस लाख करोड़ रुपये जोड़ने पड़ सकते हैं। आजकल जहाँ देखो हर जगह समाचार पत्रों में जनता को यह बताया जा रहा है कि बीस में कितने शून्य लगने से बीस लाख करोड़ होंगे। जनता शून्य गिने कि बीस यह नहीं समझ पा रही । जिस देश में आज भी करोड़ों मजदूर अपनी दिहाड़ी बीस-बीस रुपयों में बांट कर आपस में बांटते हैं। उसके लिए यह रकम एक पहाड़ है जिसके बोझ से ही दब कर मर जाएगी इनकी गरीबी ।
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