Translate

शनिवार, 2 मई 2020

"लॉकडाउन फेज - 3"- शंभु चौधरी



Kolkata : 3rd May' 2020:
कल रात बारह बजे से लॉकडाउन फेज - 3 की शुरूआत हो जायेगी। 30 जनवरी को भारत में कोरोनावायरस का सबसे पहला मामला तब सामने आया जब चीन के ‘वुहान विश्वविद्यालय‘ से लौटें एक मैडिकल छात्र आसिफ को केरल में कोरोना वायरस के लक्षण पाए गए । तब तक सब कुछ सामान्य सा चल रहा था। इससे पूर्व चीन ने लगभग एक माह तक इस बात को दबाने की भरपूर कोशिशें की, विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारियों की आंखों में भी धूल झोंकने का प्रयास किया ।

 प्रो. झेंगली शी
12 दिसंबर, 2019 को वुहान शहर का ‘जीवित जानवरों के मांस बाजार’ (Wet Bazaar) की वजह से उसके महज कुछ ही दूरी पर पहले पीड़ित मरीज में पाये गये वायरस की जांच में वरिष्ठ वैज्ञानिक प्रो. झेंगली शी और उनकी टीम ने दिसंबर के दूसरे सप्ताह में ही कोरोनावायरस पर ‘‘एंटीबॉडी-निर्भर वृद्धि’’ के लिए आणविक तंत्र का अध्ययन प्रकाशित किया था जिसे चीन के हुक्मरानों ने दबा दिया । ज्यों-ज्यों इस बीमारी के मरीजों की संख्या में धीरे-धीरे स्वतः वृद्धि होने लगी, अस्पतालों में मरीजों की संख्या बढ़ने शुरू हो गए तब एक चीनी चिकित्सक डॉ. ली वेनलियानग ने चेतावनी देते हुए कहा कि ‘‘क्या सार्स फिर से आ रहा है?’’ अर्थात उस डाक्टर और उनकी टीम ने यह भांप लिया था कि यह किसी नए खतरे का संकेत है। जंगली आग की तरह सार्स कोरोनावायरस-2 के आने की खबर तेजी से फैलने लगी । चीनी सरकार ने चिकित्सक डॉ. ली वेनलियानग को भी धमका दिया कि वे इस बात की सूचना किसी भी मीडिया या सोशल साइट पर न दें साथ ही वुहान की स्थानीय पुलिस ने उनसे लिखवा भी लिया कि वे आगे से ऐसा नहीं करेगें।


विस्सल ब्लोअर डॉ.ली वेनलियानग 
31 दिसम्बर, 2020: मीडिया को, अस्पतालों व अस्पतालों के कर्मचारियों-डॉक्टरों को, आम जनता को, प्रशासन के अधिकारियों को चीन के हुक्मरानों ने हर प्रकार से साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग कर इस आपातकाल से सामना न कर बस इसे महज़ एक मामूली वायरस की संज्ञा देते हुए रफादफा करने के लिए दबाव बनाने का प्रयास करने लगा। परिणाम देखते-देखते यह आग चीन के अन्य शहरों में भी फैलने लगी। 2002 की महामारी से चीन ने तब भी कोई सबक नहीं सीखा और 2019 में भी चीन ने वही किया जो उसने सार्स की महामारी के समय किया था । वुहान शहर की वुहान सिटी स्वास्थ्य समिति ने सर्वप्रथम 31 दिसम्बर को सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार कर एक विज्ञप्ति जारी की जिसमें कहा गया कि ‘‘कुछ चिकित्सा संस्थानों ने पाया कि निमोनिया के कई मामले दक्षिण चीन सीफूड सिटी से संबंधित थे। रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद, नगर स्वास्थ्य और स्वास्थ्य आयोग ने तुरंत शहर के चिकित्सा और स्वास्थ्य संस्थानों में साउथ चाइना सीफूड सिटी से संबंधित एक मामले की खोज और पूर्वव्यापी जांच शुरू की। सत्ताईस मामले पाए गए हैं , जिनमें से 7 गंभीर स्थिति में हैं, और शेष मामले स्थिर और नियंत्रणीय हैं।’’


20 जनवरी 2020: के आते-आते यह वायरस चीन के दस शहरों में पांव पसार चुका था। 19 जनवरी 2020 को चीन की आधिकारिक रिर्पोट में 218 मामलों की पुष्टि कर दी गई। साथ ही यह हिदायत भी जारी की गई (क) कच्चा या अपक्व मांस ना खांयें। (ख) जिस व्यक्ति को जरा भी बुखार या वह अस्वस्थ है उससे दूरी बनायें। (ग) चीन में सभी आने वाले लोगों की टेम्परचर मीटर से जांच जरूरी है। एवं (घ) वुहान में जो व्यक्ति अस्वस्थ हो उसे दो सप्ताह के लिए क्वारंटाइन होने को कहा गया। पहली मौत की पुष्टि 9 जनवरी 2020 को वुहान में हुई थी ।

30 जनवरी 2020: चीन के वुहान शहर के सभी स्वास्थ्य अधिकारियों व स्थानीय जनता को प्रशासन की तरफ से साफ हिदायतें दी गई कि वे इस बीमारी के संदर्भ में किसी भी प्रकार की सूचना का आदान-प्रदान सोशल मीडिया के माध्यम से न करें अन्यथा उनके ऊपर कठोर कार्यवाही की जायेगी। इस संदर्भ में कई लोगों पर मामला भी दर्ज कर दिया गया । इस महामारी के प्रकाश में आने के ठीक एक माह पश्चात ‘‘विश्व स्वास्थ्य संगठन’’ ने 30 जनवरी को "विश्व स्वास्थ्य आपातकाल अन्तरराष्ट्रीय संस्थान"  "Public health emergency of international concern" (PHEIC)  को नामित किया, जो लगभग शांति से बैठा रहा । यह समिति इस बीमारी को महामारी कहने से हिचकती रही । इसका मानना था कि ‘‘महामारी हल्के या लापरवाही से इस्तेमाल करने के लिए एक शब्द नहीं है। यह एक ऐसा शब्द है, जिसका दुरुपयोग होने पर, अनुचित भय, या अनुचित स्वीकृति हो सकती है जिससे अनावश्यक रूप से विवाद पैदा होने की संभावना बनती है।’’ तब तक इस महामारी ने चीन व उसके आस-पास के कई देशों को अपने गिरफ्त में में ले चुका था। 

Chinese-doctor-Li-Wenliang_selfi-before-his-death
विस्सल ब्लोअर डॉ.ली वेनलियानग 


7’ फरवरी 2020: चीनी चिकित्सक डॉ.ली वेनलियानग (whistleblower) जिसने  सर्वप्रथम विश्व को चेतावनी दी थी कि ‘‘क्या सार्स फिर से आ रहा है?’’ कोरानावायरस की इस महामारी से लड़ते-लड़ते शहीद हो गए ।







11 फरवरी 2020: को डब्ल्यूएचओ (WHO) ने काफी सोच समझ कर अन्ततः इस वायरस को नोवल कोरोना वायरस सार्स -2 नया नाम COVID-19  देते हुए कहा कि ‘‘यह प्रकोप एक महामारी है और हम इस प्रकोप का आकलन कर रहें हैं। ’’  आज बार-बार अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस महामारी के दुनिया भर में फैलने के लिए इसी संस्थान को दोषी ठहरा रहा है।

24 फरवरी 2020:  इसी बीच अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पिछले 24-25 फरवरी को भारत ‘नमस्ते ट्रंप’ की यात्रा पर आये थे और उनके साथ आयी थी उनकी विशाल टीम दो दिवसीय यात्रा पर । इस यात्रा के दौरान ट्रंप ने आगरा का ताज महल, नयी दिल्ली और अहमदाबाद की यात्रा की थी । अहमदाबाद के विशाल क्रिकेट स्टेडियम को राष्ट्रपति ट्रंप के स्वागत में 700 करोड़ रुपये की लागत बनाया और सजाया गया था। आपको याद होगा ट्रंप के स्वागत के समय इस स्टेडियम के रास्ते में आने वाले गरीबों की बस्ती  को चीन की दीवार बनाकर इसी मोदी की भाजपा सरकार ने छुपा दी थी, ताकि  मोदी जी के मित्र ट्रंप को उनकी भनक तक न लगे कि भारत में 80 प्रतिशत लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवन-बसर करते हैं लोग जिसे आज भी दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं है ।

ठीक इससे कुछ पहले की एक घटना भी आपको याद दिलाना चाहूँगा, जब सन 1978 में स्व. मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्रित्व कार्यकाल में तात्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर भी अपनी पत्नी के साथ दो दिवसीय भारत यात्रा आये थे तब उन्हें हरियाणा के दौलतपुर गाँव (नया नाम जिम्मी कार्टर के नाम के ऊपर ‘कार्टरपुरी’) ले जाया गया था, ना कि किसी विशाल स्टेडियम में । उनका व उनकी पत्नी का भारतीय वेशभूषा में स्वागत किया गया था । गांव के लोगों में रम गये थे राष्ट्रपति, तमाम सुरक्षा को दरकिनार करते हुए गांव वालों के साथ खूब नाचे । (देखें ऊपर चित्र को)

वहीं ठीक इसके विपरीत आज के लोकप्रिय प्रधानमंत्री जी गांव के दृश्य को छुपाने में करोड़ों रुपये पानी की तरह बहा दिये । प्रतिक्रिया करने वालों को देशद्रोही करार दिया गया।  वही अहमदाबाद आज कोरोना की महामारी से पूरा कांप चुका है । मोदी की भाजपा सरकार ने इन तथ्यों को छुपाने की लाख कोशिशें की । इसके लिए पूरे भारत में एक विशेष समूदाय के खिलाफ जहर उगला गया । पूरे देश का ध्यान बांट दिया गया, नीचे से कोरोना की आग मुम्बई, दिल्ली और अहमदाबाद में तेजी से फैलने लगी। दिल्ली सहित महाराष्ट्र के मुंबई शहर और गुजरात के अहमदाबाद में लगातार कोरोना के बढ़ते मामले किसी बड़े खतरे को संकेत देने लगे। अतिश्योक्ति न हो तो ‘नमस्ते ट्रंप की यात्रा’ की इस महामारी के बीच भारत के लिए श्राप साबित हो चुकी थी ।

इसके बाद तो भारत में कारेाना की महामारी धीरे-धीरे पूरे देश में अपना पांव पसारने लगी। दिल्ली, कोलकाता, क्या मुंबई हर तरफ से खबरें आने लगी । अंततः 19 मार्च को प्रधानमंत्री जी ने देश के नाम एक संदेश प्रसारित करते हुए देश की जनता से इस महामारी से निपटने के लिए 22 मार्च रविवार को एक दिन का जनता कर्फ्यू  का पालन करने की अपील की साथ ही शाम को पांच बजे अपने-अपने घरों की बालकोनी व छतों पर खड़े हो कर थाली, घंटी या कुछ भी बजा कर कोरोना के जूझ रहे कोरोना मरीजों की चिकित्सा-रत डॉक्टरों व अन्य युद्धाओं के हौसला अफजाई करने का आग्रह किया, जिसका देशभर में स्वागत किया गया । इसके दो दिन बाद प्रधानमंत्री जी पुनः जनता से सीधे संवाद करते हुए बिना किसी ठोस योजना को मुर्तरूप दिये ठीक वही गलती दौराह दी जो उन्होंने नोटबंदी के समय की थी । लाखों गरीब लोगों को एक साथ सड़कों पर ला खड़ा किया । 25 मार्च बुधवार से आगामी 21 दिनों की पूरे देश में लाॅकबंदी की घोषणा ने पूरे देश को सदमें में डाल दिया था । यानी मोदी जी को इसके परिणामों का आभास  हो चुका था यहां पर यदि योजनाबद्ध इसी लाॅकडाउन को इंजाम दिया जा सकता था । जिससे एक घटना से आज जो इतनी बड़ी तबाही देश में हुई है शायद देश को इस तबाही को हम बचा लेते । अचानक हुए लाॅकबंदी के चलते देश के लाखों उद्योग, कल-कारखाने अचानक से ठप हो गए । करोड़ों मजदूर बेकार हो गए । देश की अर्थव्यवस्था का आलम तो यह है कि रिजर्ब बैंक आफ इंडिया को दो बार बीच में आना पड़ा ।

अभी 21 दिन की पूरे भी नहीं हुए, भारत के प्रधानमंत्री ने पुनः जनता से अपील की और कहा कि- पांच अप्रैल को रात नो बजे अपने-अपने घरों की बत्तियां बुझा कर नो मिनट के लिए दीये, या टार्च जला कर योद्धाओं को नमन करें। यह सब एक तरफ चलता रहा तो दूसरी तरफ लाखों घरों के दीये बुझते गये । रोजना कमाने-खाने वालों के लिए हमदर्दी जताने वाले प्रधानमंत्री बस घड़ियाली आंसू बहाते दिखे । उनके द्वारा प्रायोजित मीडिया चैनलों ने मजदूरों की भूखमरी को कोरोना की महामारी से जोड़ दिया । सरकार से सवाल पूछने की जगह मजदूरों के धर्म पर सवाल खड़े कर दिये। उनकी माली हालात पर कोई चर्चा नहीं हुई। कैसे उनका जीवन यापन होगा इस पर कोई बहस तक नहीं की गई बस हर तरफ एक ही सवाल उठाया गया कि यदि ये लोग इस प्रकार जमा होंगे तो इस महामारी से कैसे लड़ा जा सकेगा? प्रश्न उठाने वाले चैनलों से यह कोई पूछ ले कि यदि आपका दो दिन का राशन-पानी बंद कर दिया जाता है तो आप सारा जहां सर पर उठा लेते हैं । आज तो इन मजदूरों के जीने-मरने का सवाल उठ खड़ा हुआ है । सिर्फ प्रधानमंत्री जी के घड़ियाली आंसू से मजदूरों व उनके बच्चों को भोजन नहीं मिल सकता। जमीनी हकीकत से रुबरु कराने की हिम्मत किसी समाचार चैनलों की नहीं दिखी। किसी प्रकार लॉकडाउन का पहला चरण समाप्ति की दिशा में आगे बढ़ने लगा। मजदूरों को लगा कि अब उनको रहत दे दी जाएगी। 


दूसरा फेज :
परन्तु पुनः 15 अप्रैल से लॉकडाउन का दूसरा फेज शुरू कर दिया गया। कुछ राज्य सरकारें मजदूरों के हितों पर ध्यान दे रही थी, पर वह हित उनके लिए बस इतना संतोष भर था कि वे मर तो नहीं रहे थे पर जी भी नहीं पा रहे थे । हर पल मौत उनके आस-पास मंडरा रही थी। बिहार की भाजपा के समर्थन से चल रही नीतीश कुमार की सरकार की तो बात ही कुछ निराली थी, इसके पास तो इतना पैसा भी नहीं कि इन मजदूरों को वापस बुला ले।  सैकड़ों मजदूर अपने परिवार, बच्चों को कंधों पर लिए, हजारों मील की पैदल यात्रा पर ही गांव की तरफ कूच कर दिये, कईयों ने रास्ते में ही अपने प्राण गंवा दिये । किसी सरकार के पास इन मौतों का कोई आंकड़ा खोजने से भी नहीं मिलेगा। प्रवासी मजदूरों की समस्या कोरोना से भी बड़ी हो चुकी थी । एक तरफ छात्र व छात्राओं में भय का वातावरण फैल चुका था । सब जल्दी से जल्दी अपने - अपने घर पंहुचना  चाहते थे। इनको लगने लगा कि यह लॉकडाउन लंबा चलेगा। पढ़ाई ठप हो चुकी थी । सभी शिक्षण संस्थानों को पहले ही बंद किया जा चुका था। खाना बनाने वाले भी आना बंद कर चुके थे। होस्टल में खाने की सामाग्रियां भी समाप्ति के कगार पर आ चुकी थी । कुछ शहरों में ऑनलाइन खरीदारी की सेवा वह भी एक लंबी अंतराल में उपलब्ध तो थी, पर यह सुविधा सब लोगों तक नहीं पंहुच पा रही थी । दिल्ली के पिज्जा डिलेभरी की घटना व हिन्दू धर्म प्रायोजित आई.टी सेल के तथाकथित धर्म प्रचारक देशभर में विष उगलने में लगे हुए थे। झूठी और मनगढंत वीडियों बना-बनाकर अफवाहों का बाजार गर्म करने में जी जान से जूटे थे ।

पालघर में दो साधुओं की हत्या 
इनको ऐसा लग रहा था कि मानो यही लड़ाई का अंतिम मौका है। हर तरफ इन प्रचारकों के मुंह से आग के गोले बरस रहे थे। पालघर में हिन्दुओं द्वारा ही फैलाये अफवाह के शिकार दो साधुओं की हिन्दू ग्रामिणों के द्वारा हत्या को सांप्रदायिक रंग दने से लेकर,  तब्लीगी समाज के चंद लोगों के नाम पर पूरे मुस्लिम समाज को अपराधी ठहराये जाने का कोई भी मौका हाथ से जाने नहीं देना चाहते थे।

एक तरफ देश की पूरी व्यवस्था, सेना, डॉक्टर’स, चिकित्सा-रत कर्मचारी-गण, प्रशासन, पुलिस, सफाई कर्मचारी, सब्जी विक्रेता, छोटे-छोटे किराना कारोबारी, व्यापारी वर्ग देश को पूरी व्यवस्था को संचारित करने में दिन-रात एक किये हुए थे। तो दूसरी तरफ अस्पतालों में मरीजों की लगातार बढ़ती लंबी कतार दिन-प्रतिदिन कम होने का नाम ही नहीं ले रही थी, मरने वालों की संख्या अपने सांतवे आसमान पर थी । मैडिकल  टीम लगातार 24 घंटा कार्य करने क बाद भी कोई राहत या आराम के लिए एक शब्द नहीं बोल रहा था। केन्द्र सरकार के कर्मचारीगण विमानों से देश विदेशों से मेडिकल समानों का लगातार आयात करने में व राज्यों में पंहुचाने में व्यस्त थे, सफाई कर्मचारी लगातार अपनी सेवा दे रहा था । सब्जी वाले बाजारों में पसरे सन्नाटा के कारण घर-घर सब्जी ले कर घूमने लगे, व्यापारी लगातार मुल्यों को नियंत्रित करते हुए समानों की आपूर्ति में लगे हुए थे । देश की 90 प्रतिशत जनता अपने-अपने घरों में कैद हो चुकी थी । विमान सेवा, रेल सेवा, बस सेवा, टैक्सी सेवा सब बंद हो चुकी थी । ऐसे में बस एक ही लोग सजग थे । अफवाहबाजों का समूह जो लगातार वाट्सअप, फेसबुक, ट्विटर पर किसी विशेष वर्ग को एक दूसरे के खिलाफ युद्ध चला रखे थे। कुछ हिन्दू थे, तो कुछ मुसलमान । कुछ लोग मुसलमानों को भड़काने में लगे थे, कुछ लोग हिन्दुओं को भड़काने में लगे थे। कुछ मुसलमान मस्जिदों में नमाज न अदा करने के लिए उकसाये जा रहे थे तो कुछ हिन्दू, मुसलमानों के द्वारा कोरोना फैलाये जाने की अफवाह फैलाने में लगे थे।

लॉकडाउन का दूसरा चरण इन्हीं अफवाहबाजों की भैंट चढ़ गया । मजदूर इनके लिए बस महज एक तमाशा बन कर रह गया। जगह -जगह से उनके मरने की खबरें आने लगी, लेकिन कोरोना की खबरों में सबकी आवाज दब के रह गई । मानो एक तरफ कोरोना की सुनामी आई हुई हो तो दूसरी तरफ मजदूरों की चीखें चित्कार-चित्कार के त्राहीमाम कर रही थी । बचाने वाले नेताओं की बात तो किसी के कान में सुनाई दी तो बस योगीजी व केजरीवाल सरकार की बात लिखी जा सकती है। इसके अलाव तो सब के सब तिनके से घोड़े को घास खिलाने में लगे थे। 

Fake News Clarification By UP Police
Fake News Clarification by UP Police
तीसरा फेज : इस बीच लॉकडाउन का दूसरा फेज भी समाप्त होने का आया । 4 मई से लॉकडाउन का तीसरा फेज शुरू हो जायेगा जो आगामी 17 मई तक रहेगा । आज इस लेख को लिखे जाने तक पूरे विश्व में 34 लाख लोग अबतक कोरोनावारस से प्रभावित हो चुके हैं। वहीं मरने वालों की संख्या 2 लाख चालिस हजार को पार कर चुकी है। जबकि भारत में कल तक 37 हजार कोरोना से संक्रमित लोगों की अब तक पहचान की जा चुकी है । अनुमान है कि यह संख्या लॉकडाउन के तीसरे चरण में तीन गुणी हो सकती है। क्योंकि प्रथम चरण की समाप्ति में इसकी संख्या यानी की 14 अप्रैल को लगभग 12 हजार थी जो आज यानी कि 17 दिनों में 37 हजार को पार कर चुकी है । 22 मार्च से 2 मई के बीच हमने अब तक सिर्फ लाल-पीला-हरा करने में या थाली पीटने से लेकर दीया जलाने में या अफवाहों में ही बिता दिये ।  अभी भी सरकारी सह सभी प्राइवेट अस्पतालों में चिकित्सा के हेतु बेसिक समानों की भी आपूर्ति नहीं कर पाये हैं। रोजाना अस्पतालों से खबरें आ रही है कि अमूक डाक्टर को कोरोना हो गया । अमूक अस्पताल के नर्सों को कोरोना हो गया। यदि भारत को कोरोना से लड़ना है तो कुछ काम सर्वप्रथम करना होगें ।
1. अस्पतालों को जो जिस भी हालात में हो उनकी व उनके स्टाफ की पूरी सुरक्षा प्रदान करना अन्यथा इसके खतरनाक परिणाम हो सकते है।
2. कार्यस्थल पर ही स्कील्ड मजदूरों के रहने व खाने की व्यवस्था तत्काल प्रभाव से करने का आदेश सभी कंपनियों को देना।
3. अफवाहबाजों की नकेल कसना जिसमें टीवी चैनल को भी नहीं बख्सा जाना चाहिए।
4. अफवाहबाजों, पत्थरबाजों व मोब लंचिंग करने वालों को सात साल की या सख्त से सख्त सजा का प्रावधान जैसा कि उच्चतम न्यायालय ने पिछले साल ही मोब लंचिंग के लिए कानून बनाने को सरकार से कहा था। तत्काल करना चाहिए।

कल से लॉकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो जायेगा। इस बार पहली बार सरकार ने तीसरे लॉकडाउन की सूचना सरकारी विज्ञप्ति के माध्यम से दी है जिसमें विभिन्न प्रकार की होने वाली समस्या पर भी ध्यान दिया गया है। भारत सरकार को इस बात कर आभास हो चुका है कि यह लॉकडाउन एक लंबी प्रक्रिया है। इससे पूरी अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी । मजदूरों का पलायन को अधिक समय तक रोका नहीं जा सकता । दैनिक कारोबार के ना होने से रोजाना सरकार को बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ रही है।  आय के सारे स्त्रोत का रास्ता बंद कर सरकार को नहीं चलाया जा सकता । ना ही मजदूरों के बिना कल-कारखानों को पुनः जीवित किया जा सकता । कुछ राज्य सरकारें अच्छा कार्य कर रही है तो कुछ राज्य सरकारें अभी भी बाढ़ के पानी का गला तक आने का इंतजार कर रही है । केन्द्र अकेला पूरे भारत की महामारी से बिना जनता व राज्य सरकार के सहयोग से नहीं लड़ सकता। चंद राजनीतिक स्वार्थ में लिप्त लोग राज्य की गैर भाजपाई सरकारों को अस्थिर करने में लगे हैं तो कुछ केन्द्र के निर्देशों का पालन करने में हिचकिचाहट करने में लगे हैं । कोरोना की महामारी में मौत के आंकड़ों के छुपा लेने से, पत्थरबाजों को या मुसलमानों को बचा लेने से समस्या समाप्त नहीं हो जायेगी बल्कि वैसी सरकारें जो इनको बचाने में जुटी है, वे उनके तो दुश्मन है ही, क्यों कि इससे उनके बीच महामारी का फैलाव तेजी से हो जाएगा साथ ही देश की करोड़ों जनता के साथ भी नाइंसाफी होगी, क्योंकि वे लोग पिछले 40 दिनों से अपने-अपने घरों में कैद हैं । अंत में, मैं इस लेख में लिखी सभी बातें बिना किसी भेदभाव के लिखा हूँ । मेरा उद्देष्य सिर्फ इतना ही है कि इतिहास में सच को पढ़ा जा सके।


मंदिरों को काठ क्यों सूंघ गया: 


 तिरुपति बालाजी
जिस मंदिर ने जिंदगी भर इन मजदूरों को पेट पाला, देश के करोडों भक्तों को मालामाल किया आज कोरोनावायरस की इस महामारी के चलते इसकी नियत में भी खोट दिखाई देने लगी। सूचना मिली की  तिरुपती मंदिर ट्रस्ट ने 1300 लोगों को जो मंदिर के लिए और उनके प्रसाद की दुकान चलाने के लिए दिन-रात  भंडारा चलाते थे और  चौबिसों घंटों नोटों की बंडल गिना करते थे। अचानक सब के सब को हटा दिया गये । प्रधानमंत्री जी के उस अपील की भी कोई कद्र नहीं कि जिसमें प्रधानमंत्री ने आंसू बहाते हुए देशवासियों से अपील की थी कि आप अपने कर्मचारियों का ध्यान रखेंगें और किसी भी मजदूर को लॉकडाउन के चलते ना तो हटाया जाएगा ना ही उसकी सैलेरी काटी जाए । देश के मोदी भक्त जो बात-बात में लोगों को ट्रोल किया करते  हैं आज मंदिर की इस धार्मिक और पूण्य  कार्य में कुछ तो जरूर सहयोग करेंगे।

एक बात ओर आपसे करनी है । आज तक देश की कोई बड़ी मंदिर जहां रोजाना के लाखों का चढ़ाआ आता है अभी तक कोई भी मंदिर का ट्रस्ट सामने नहीं आया कि वह भारत के इस संकट काल में अपना सब कुछ देने को तैयार है। भारत सरकार कोरोना की महामारी से लड़ने में किसी भी प्रकार की कमी न करें । परन्तु अफसोस है कि अभी तक मेरी जानकारी के अनुसार, स्वामी नारायण मंदिर सभी जगह से मिलकर 1.88 करोड़ रुपया, सांईबाबा संस्थान ट्रस्ट 51 करोड़ रुपया महाराष्ट्र सरकार को, बाबा रामदेव प्रधानमंत्री कोश में 25 करोड़ रुपया, श्री माता मानसी देवी, पंचकुला के द्वारा 10 करोड़ रुपये हरियाणा की सरकार को, जबकि पद्मनाभस्वामी मंदिर, तिरुवनंतपुरम भारत ही नहीं बल्कि विश्व के सबसे अमीर मंदिरों में से एक है। कुछ लोग यहां की संपत्ति का अनुमान लगाकर बताते हैं कि यहां एक खरब डॉलर के मूल्य की संपत्ति है। वेंकटेश्वर मंदिर, तिरूपति नवीनतम अनुमान के अनुसार तिरुमला मंदिर में स्वर्ण भंडार और 52 टन सोने के गहने हैं और प्रत्येक वर्ष यह तीर्थयात्रियों से हुंडी/दान बाॅक्स में प्राप्त प्रति वर्ष तीन हजार किलो सोने से राष्ट्रीयकृत बैंकों के साथ गोल्ड रिजर्व जमा के रूप में परिवर्तित हो जाता है।  शिर्डी साईबाबा का मंदिर, इनका सिर्फ सिंहासन 94 किलोग्राम सोने का बना है। यह मंदिर भारत के अमीर मंदिरों की लिस्ट में तीसरे स्थान पर है। महज 51 करोड़ राज्य सरकार को दान देने की घोषणा की हे। वहीं वैष्णोदेवी मंदिर, जम्मू कश्मीर मंदिर में करीब 500 करोड़ की वार्षिक आय है। सिद्धि विनायक, मुंबई 100 करोड़ से अधिक की वार्षिक आय। पुरी का जगन्नाथ मंदिर, जिसकी आय सालान 50 करोड़ रुपये आंकी जाती है। आज इन मंदिरों के मठाधीशों पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा हो जाता है कि यदि देश के लगभग सभी बड़े-छोटे व्यापारी घराने इस संकट के समय देश के साथ खड़े हैं इन मंदिरों को काठ क्यों सूंघ गया दान लेने में सबसे आगे दिखने वाले ये मंदिर आज दान देने में सबसे पीछे की पंक्ति में क्यों खड़े नजर आते हैं? रोजान धर्म के नाम पर जमा करने वाले इन धार्मिक पंडों से कोई सवाल तो करे कि इस धन का आखिर कब इस्तेमाल होगा? जयहिन्द !
देखें:  The Lallantop Fact check






0 विचार मंच:

हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा

एक टिप्पणी भेजें