लेखक- शंभु चौधरी
आज भारत सरकार की विफलता का ताजा उदाहरण सामने आया है। देश की उच्चतम न्यायालय को भारत सरकार की कार्य प्रणाली पर से विश्वास ही उठ गया। जो काम सरकार को करना चाहिए था, आज देश की अदालतों को करना पड़ रहा है। देश में लगातार हो रही मौतों व आक्सीजन की सुचारू व्यवस्था के संचालन हेतु उच्चतम न्यायालय ने आज 12 सदस्यों की एक टीम गठित कर दी, जो भारत सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता था। अब इसका सारा नियंत्रण यह टीम करेगी। सूचना एएनआई द्वारा प्राप्त ।
जिस कालाधन को विदेशों के बैंकों से भारत लाने की बात थी, वह तो आज भी पांच सितारा बैंकों की तिजोरी में सुरक्षित है।
नोटबंदी
नोटबंदी को लेकर देश को यह बताया गया था कि बस अब नकली नोट, आतंकवाद, नक्सलवाद को समाप्त करने में तो मदद मिलेगी, साथ ही बड़ी संख्या में नोटों के अदला-बदली में देश को लाखों अरब रुपयों का फायदा भी होगा। नोटबंदी को लोगों ने साकारात्मक लिया। हजारों लोगों को लाईन में खड़ा होना पड़ा। कई गरीब परिवार डर कर सदमें से मर गए। पर ना तो इससे देश में आतंकवाद ठहरा, ना ही नक्सलियों पर लगाम लगाया जा सका। कलाधन और नकली नोटों का व्यापार जस का तस बना हुआ है। कालाधन का करोबार जिसमें मुख्यतः शेयर बाजार की बड़ी भूमिका होती है। उसके सूचकांक आकाश पर हैं।
अर्थात देश का पूरा करोबार शेयर बाजार के दलालों ने हड़प लिया। मजदूरी करने वाले छोटे-छोटे व्यापारी नोटबंदी, जीएसटी, लॉकडाउन, अब करोना के कारण परेशान हैं, जबकि इस महामारी के बीच जब देश में मौत का तांडव नाच हो रहा हो, शेयर बाजार खुशी से झूम रहा है।
अर्थात देश की अर्थव्यवस्था को पिछले सात सालों में छोटे-छोटे व्यापारियों से छीन कर चंद पूंजीवादी व्यवस्था को सोंप दिया गया है।
कलाधन पर तो लगाम आज भी नहीं लगी। बैंकों का ब्याज आधा कर उन लुटेरों को जो अरबों रुपए लूट कर विदेश भाग रहें हैं उनके नूकसान की भरपाई अप्रत्यक्ष रूप से देश की जनता से किया जा रहा है।
लॉकडाउन
देश ने देखा है कि भारत के वही प्रधानमंत्री ने किस प्रकार बिना किसी पूर्व योजना के अचानक से जिस प्रकार नोटबंदी की घोषणा की थी, ठीक उसी प्रकार देश को पूर्ण लॉकडाउन की तरफ ना सिर्फ तीन महीना धकेल दिया, साथ ही भारत सरकार की अधिकृत रोजाना बुलेटिन में हिन्दू-मुस्लिम भी काफी किया गया, जिसे रोकने के लिए अंत में आर.एस.एस को सामने आना पड़ा था। लाखों मजदूर रातों-रात सडकों पर आ गए। भारतीय सेना उनकी मददगार ना बन फूल बरसाती हुई उनके जख्मों को गहरा कर रही थी। हजारों लोग विभिन्न हादसों में मारे गये, आजतक भारत का प्रधानमंत्री इस कृत्य पर ना सिर्फ चुप है। अपनी गलतियों से कोई सबक नहीं ली।
देश जब करोना के संकट से उबरने लगा था तो इस मुर्खता ने फिर चुनाव आयोग का दुरुपयोग कर चुनाव में ना सिर्फ बड़ी-बड़ी रैलियां की, सभाओं का आयोजन किया, अपनी सुविधानुसार चुनावों की तारीखें तय की। विभिन्न प्रांतों के संक्रमित लोगों को गाड़ी में भर-भर कर बिहार-बंगाल लूटने के लिए भेजा गया। पैसों, पावर, विभिन्न एजेंसियों, चुनाव आयोग, राज्यपाल, अर्धसैनिक बलों, गोदी मीडिया व राजनीतिक गुण्डों की टीम मिलकर बिहार-बंगाल में भाजपा की सरकार बनाने में जुट गई। बिहार तो किसी प्रकार बचा लिए परन्तु बंगाल की जनता को मुर्ख बनाने में मोदी की टीम असफल हो गई।
वैक्सीन
अब फिर वही गलती जो भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने नोटबंदी, पूर्ण लॉकडाउन के समय की थी, वैक्सीन को लेकर वही गलती को दोहरा रहें हैं। कहावत है, मुर्ख की गलती से लाखों की जान को खतरा में पड़ सकता है।
आज फिर वही हो रहा है। देश में चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है। अलग-अलग उच्च न्यायालय लगातार कड़ी टिप्पणियां कर रही है । कोई इसे नरसंहार से कम नहीं आंक रहा , तो कोई चुनाव आयोग को इस नरसंहार के लिए अपराधी मान रही है। बिहार की निर्लज्ज सरकार को तो सेना तक बुला देने की चेतावनी देनी पड़ी तो वहीं केंद्र सरकार पर अदालत की अवमानना का मामला तक करना पड़ा।
अब मोदी की सरकार सिस्टम को दोष दे रहें, जो 70 साल पहले नेहरु ने बनाया था। अब शायद लोगों की कब्र पर बन रहे नये विशाल प्रधानमंत्री निवास से कोई नया सिस्टम बनकर सामने आयेगा।
चुनाव के मध्य युवाओं को लुभाने के लिए अचानक से मोदीजी ने 18+ को वैक्सीन लगाने की घोषणा तो कर दी , साथ ही वैक्सीन के दाम को लेकर देश को असमंजस में डाल दिया। जो वैक्सीन केंद्र को 150/- में मिलेगा, राज्य, प्राइवेट को 400/- 600/- क्रमशः, अब कम कर 300/-, 500/-(कोवीशिल्ड) वहीं दूसरी वैक्सीन का दाम 600/-1200/- , इसे आपदा में अवसर ही तो कहा जायेगा।
एक तरफ लोग को आक्सीजन की कमी से दम घुटने से दम तौड़ रहें हैं, तो दूसरी तरफ सरकार, दवा निर्माताओं के कमाने की सोच रही है।
आज देश में वैक्सीन की जरूरत है, विदेशी वैक्सीन की भीख भारत सरकार मांग रही है। वहीं भारत का प्रधानमंत्री को वैक्सीन दुनिया में मुफ्त में बांटते भी हमने देख लिया।
जो भी हो, आलोचक, आलोचनात्मक लेख सिर्फ़ सरकार की आंखें खोलने लिखता रहेगा। चाहे किसी की भी सरकार क्यों न हो। अच्छे काम के लिए अच्छी आलोचना होती है तो गलत निर्णय की आलोचना कड़ी, कड़वी लगेगी ही।
अब देश में वैक्सीन की कमी चारों तरफ हो गई। निर्माता भाग कर अपनी जान बचा रहा है। दवा, हवा, अब वैक्सीन की किल्लत फिर हमें मोदी की असफलता को उजागर कर रहा है। सच यह है कि भले ही इसे कितनी भी राजनीति की समझ हो, है तो गुड़-गोबर।
जयहिंद।
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