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बुधवार, 12 मई 2021

विनाशकारी कोविड-2:

 लेखक-शंभु चौधरी

जब पिछले साल देश में चाइनीज कोविड का कहर अपने चरम पर था तो इसके नियंत्रण में भारत के विकास पुरुष थाली बजाने के मानसिक उपज को वैज्ञानिक आधार बता,  देश की वाट्सएप युनिवर्सिटी के प्रोफेसर दनादन वाट्सएप, ट्विटर पर ट्वीट करने वाले दो टकिया समर्थक और गोदी मीडिया देश को ऐसे समझा रहे थे कि यदि यह थाली न बजती तो देश में अनर्थ हो जाता और वहीं सेनाओं की तीनों जमात लाखों गरीब के जख्मों पर फूलों की बरसात, ढोल तबला बजा कर या आतिशबाजी से अपनी बहादुरी के ताल ठोक रही थी। 

मोदी समर्थकों को छोड़कर आप मेरी इस बात को कतई नहीं स्वीकार करेगें कि मोदी की मूर्खता पूर्ण नोटबंदी की तरह ही बिना सोच-विचारे, विद्वानों की सलाह लिए, लॉकडाउन के अप्रत्याशित निर्णय के चलते देश के लाखों मजदूरों को रातों-रात मोदी ने उनको सड़कों पर ला खड़ा कर दिया।

सैकडों मजदूर विभिन्न हादसों के शिकार हो गए या मारे गए, छोटे-छोटे बच्चों के निवाले छिन्न लिए।

रास्ते पर पुलिस के लोगों को उन गरीब मजदूरों को मदद करने की बात तो दूर, राज्य सरकारों ने उन्हें लूटने, पीटने रास्ता रोकने  में लगा दी । हजारों मजदूर ट्रेन की लाईनों के सहारे छुप-छुप कर गांव भाग रहा थे, कोई  जरूरी कार्य के लिए भाड़े की गाड़ी से गांव के रास्ते, परिणाम कुछ लोग ट्रेन के नीचे कट गए, तो कुछ को डकैत समझ गांव के हिन्दुओं ने मिलकर स्थानीय पुलिस के सामने ही पीट-पीटकर मार डाला। यह सब भारत सरकार के वाट्सएप यूनिवर्सिटी के हिन्दू - मुस्लिम करने वाले सूचना-प्रसारण विभाग का कमाल था।

सब दृश्य आजतक आंखों के सामने दिख रहें हैं। 

एक तरफ मजदूरों का मानो घर ही उजड़ गया, पर भारत के प्रधानमंत्रीऔर इनकी टीम ठस से मस नहीं की। गृहमंत्री का तो कोई आता-पता ही नहीं था।  

आप एक बात गौर किजिए- भारत के वर्तमान गृहमंत्री श्री अमित शाह या तो हिन्दू-मुस्लिम एजेंडा जैसे एन.आर.सी या सीएए, दंगा कराने के समय या फिर बंगाल के चुनाव में ही दिखाई दिये, बाकीे समय वे किस गुफा में चले जातें हैंं, किसी को कुछ पता नहीं। पूरा मौन धारण कर लेतें हैं या फिर किस राज्य की राजनीति पार्टियों के सदस्यों के घर छापा डलवाना है। किसे तौड़ना या फैक समाचारों को कैसे  फैलाना है या सांप्रदायिक माहौल का सृजन, इन सब कामों में भारत के गृहमंत्री जी को महारथ हासिल है।

चानी कोविड कुछ कम हुई तो मोदी जी, गृहमंत्री जी फिर दिखाई देने लगे। पिछले 2020 के लॉकडाउन के समय, जब मजदूर सड़कों पर मर रहा था , तब देश का प्रधानमंत्री संगीत की धुन सुनकर अपने पांव थरका रहे थे। यह हमने देखा है।

वहीं सत्ता के धुरंधर, चापलूसी में गिरगिट को भी मात देने वाले उत्तर प्रदेश, बिहार के मुख्यमंत्री योगी और नीतीश कुमार, शुतुरमुर्ग की तरह बालू में मुंह छुपाते फिर रहे थे। इन लोगों ने वेशर्मी की हद तब पार  कर दी जब विभिन्न प्रान्तों के बच्चे अपने घरों से दूर हॉस्टल'स में रहकर पढाई कर रहे थे। मोदी के लॉकडाउन से स्कूल तो बंद हो ही गए। खाना देने वाले पहले तो किसी प्रकार एक माह खाना देते रहे, फिर उन लोगों ने भी हाथ खड़े कर दिये। 

बच्चों का आपात मेसेज से पूरा भारत कांप गया, पर इन हरामियों का दिल नहीं कांपा। बिहार के मुख्यमंत्री का अधिकारिक बयान आया कि बिहार से बाहर जो बच्चे पढ़ने गए हैंं सब सपन्न परिवार के हैं उसके लिये सरकार कोई व्यवस्था नहीं करेगी।  मानो इसने मजदूरों के आने-जाने की सारी व्यवस्था कर दी हो?

भगवान का शुक्र था कि संसद अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला जी को रेलमंत्री को, मुख्यमंत्री से आग्रह करना पड़ा, तब जाकर रात को राहत की खबरें आने लगी, पर इन सबक के  बाद भी का प्रधानमंत्री मोर से खेल रहे थे और गृहमंत्री हिन्दू-मुस्लिम करने में व्यस्त थे।

जैसे कोविड का प्रथम चरण कुछ हद तक नियंत्रण में आया नहीं था कि मोदी सरकार चुनाव आयोग का इस्तेमाल कर देशभर में नंगा नाच करने लगी। गृहमंत्री पैसे की ताकत से ना सिर्फ बड़ी-बड़ी रैलियां करने लगे, विभिन्न राज्यों से अपने अंधभक्तों को बंगाल में भरकर सांप्रदायिक भावनाओं को झूठी और मनगढंत खबरों को बनाकर, बंग्लादेश की या अन्य मारपीट की नकली वीडियो बनाकर बंगाल में, धन,बल, अर्धसैनिक बलों और चुनाव आयोग के सहारे पूरे बंगाल में तनाव का माहौल पैदा कर दिया था। बिहार का चुनाव से लेकर वर्तमान में हुए पांच राज्यों के चुनाव और उत्तर प्रदेश में पंचायतों के चुनावों में मोदी ने, योगीजी ने, गृहमंत्री ने ना सिर्फ पूरी ताकत झौंक डाली, देश को पुनः मौत के मुंह में धकेल डाला। 

यदि मद्रास हाईकोर्ट की टिप्पणी का ही सिर्फ उल्लेख करें तो भारत के प्रधानमंत्री, गृहमंत्री सहित चुनाव आयोग के ऊपर देश को इस संकट में डालने के लिए इन लोगों पर नरसंहार करने जैसे जघन्यतम अपराध का मुकदमा चलना चाहिए था।

आज देश के चारों तरफ मौत का तांडव नृत्य देखा जा सकता है। क्या अस्पताल हो या गांव सब तरफ दम घुटने से लोगों की लाशें पड़ी सड़ रही है। उत्तर प्रदेश, बिहार से रोजाना दर्दनाक दृश्य, समाचारों से रूहें कांप उठी है।

एक-एक गांव से रोजाना 5-10लोगों की मरने के समाचार, हिन्दुओं की लाशों को जमीन में दफनाया भी जाने लगा, लकड़ी के अभाव से कई जगहों पर नदियों में लाशों को बहाया जा रहा है। वहीं अस्पतालों की बात करे तो लूट बस लूट चल रहा है। दोनों हाथों से लूट का व्यापार हो गया है। सरकारी है तो दलालों की लूट, प्राइवेट है तो मालिकों की लूट। 

रोजाना हर तरफ त्राहिमाम .. त्राहिमाम.. बचाओ.. बचाओ.. के मेसेजों से सोशल मीडिया भर जाता है। कुछ लोग अपनी क्षमता के अनुसार उनकी मदद कर रहें हैं को भी भाजपा के वफादार सिपाही उनके (मदद करने वालों पर) झूठे आरोप गढ़ कर उन्हें फंसाने के मामले भी सामने आने लगे तो देश की सर्वोच्च अदालत को आदेश देना पड़ा कि आपात स्थिति में मदद की गुहार को सार्वजनिक रूप से मांगना या मदद करने पर उन्हें परेशान ना किया जाए। इसके बावजूद योगी आदित्यनाथ की सरकार खुले आम ना सिर्फ़ पत्रकारों पर गरीब जनता को भी धमाका कर , उन पर एफआईआर कर, राज्य की छवि बचाने में लगे हैं। ऐसी छवि के फोटोज भी लेना अपराध मान लिया गया है योगी जी पर प्रकृतिक आपदा पर आप नियंत्रण ना करने का ऊपाय कर लोगों की लाशों को कब तक छुपा  पाओगे? 

बिहार-यूपी की नदियों में लाशों की बाढ़ आ गई है। हर गांव की दहलीज पर मौत मुंहबांये खड़ी है। खेतों में लाशों के बीज भी लोग बोने लगे अब । दूसरी तरफ देश की भारत सरकार आक्सीजन, दवा, वैक्सीन को लेकर देश की जनता को बांट दिया है। हर राज्य दूसरे राज्य का दुश्मन हो गया है।  कोई आक्सीजन को रोक रहा तो कोई वैक्सीन पहले पाना चाहता है।  मुझे अभी तक वैक्सीन की नीति ही नहीं समझ में आ रही। बचपन से लेकर आजतक कभी वैक्सीन को लेकर इतनी समझ नहीं थी कि भारत सरकार की वैक्सीन और राज्यों की वैक्सीन अलग होती है। और इंसान भी अलग।। .




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