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गुरुवार, 13 मई 2021

व्यंग्य: गाड़ी बुला रही है।

 गाड़ी बुला रही है। 1974 दोस्त फिल्म का यह गाना जिसे किशोर कुमार ने गाया। बच्चों से लेकर बूढों तक खूब पसंद आया भी।  इसके शीर्षक से लगता है बच्चों को खुश करने वाला गाना है पर आप इस भ्रम को ना पालें। यह दो जोड़ी के इश्क का इजहार है। आज देश का पूरा दृश्य मौत के मनोरंजन में व्यस्त है। गनिमत है अभी भी हम जिन्दा हैं इस गाने को सुनने के लिए। 


जनसंघियों का चरित्र देखिये इस चित्र में।

रामप्रसाद जी ना जाने इस धुन को अचानक से क्यों गुणगाने लगे,  यह बात उनकी पत्नी बखूबी जानती थी, समझ जाती इस बुढ़ोव के दिमाग में जरूर किसी को हलाल करने की योजना पक रही हुए। 

जब भी रामप्रसाद जी  खुशनुमा मूड में होते बस समझ लो कि कोई गया काम से। वैक्सीनेशन की असफलता और आपूर्ति की कमी से चौतरफा बौखलाई मोदी की सरकार के एक मंत्री ने तो कल यहाँ तक कह दिया कि वैक्सीन नहीं मिले क्या हम फांसी लगा लें? अरे बाप रे इतना बड़ा पाप !,  बेचारे पत्रकार तो चुप से कानाफूसी करते-करते घिसक लिए। दूसरी तरफ देश के सभी अस्पतालों में सुबह चार बजे से लंबी-लंबी कतरें, नोटबंदी की याद दिलाने लगी।  लोग अपनी बारी का इंतजार करते-करते थक गए, पर रेलमंत्री की गाड़ी हवा से बात कर रही थी। अस्पतालों में एक वीडियो दिखाया जाने लगा जिसमें मधुर संगीत के बीच एक रेल गाड़ी पटरियों पर आक्सीजन के पांच-छह आक्सीजन से भरे ट्रकों को लाद कर सरपट दौड़े जा रही थी। उधर अस्पतालों में बैड दनादन खाली हो रहे थे। पीछे से लाशों को उठाया जा रहा था, आगे से नये लोगों को उसी बैड पर सुलाया जा रहा था। 

गांवों में अस्पताल ही नहीं, रेल गाड़ी की बात तो छोड़, ट्रकों के जाने का रास्ता ही नहीं तो मोदी ने यह रास्ता निकाल ही दिया, घर-घर, बैंक खाता खुलवा दिया, बेचारे गरीब लोग सोचने लगे कि हमारी भी इज्ज़त हो गई। बैंक में हमारा भी खाता है। अब बस विदेशों से कालाधन आते ही हमारे खातों में जमा हो जाएगा। पता चला पांच साल से खाता यूं ही पड़ा रहा और बैंक वालों ने उसे नन् आपरेटिप एकाउंट में डाल दिया।  उसी प्रकार घर-घर गैस का हाल है। अब तो जब से गाँव में गैस पंहुची है, लोगों को लकड़ी से खाना बनाने की आदत ही नहीं रही, तो इस महामारी में लाशों के ढेरों को जमीन में ही गाड़ दे रहें हैं। सरकारी अधिकारियों को लगा कि जमीन में इतनी लाशों को एक साथ रोजाना ठिकाने लगायेंगे तो पकड़े जायेंगे, तो उन लोगों को कोई रास्ता नहीं दिखा, हिन्दू मान्यताओं के अनुसार उनका अंतिम क्रियाक्रम पवित्र गंगा में बहाकर करने लगे। 

भला इसमें बुरा भी क्या है। जमीन में तो लाशों को मुसलमान दफनाते हैं। गंगा में अस्थीकलश बहाने से मृत आत्मा को शांति मिलती है। अब सरकार के पास इतना समय कहाँ जो पहले तो लाशों को जलाये, फिर उसके अवशेष फूलों को जमा करे, और फिर गंगा में उनको विसर्जन करे। 

अरे भाई जब गंगा में ही बहाना है तो ऐसे शुभकाम में देरी कैसी? गनीमत है यह काम यूपी-बिहार में हुआ, आज बंगाल में हुआ होता तो अब तक भाजपा के हजारों लोगों के मौत के आंकड़े वाट्सएप युनिवर्सिटी में साम्प्रदायिकता फैलाने में भागवा पार्टी और राज्यपाल व गृहमंत्री के काम आती। खैर यह नहीं हो सका। अब सबको राजनीति नहीं करनी चाहिए। मौत तो मौत होती है। 

सही बात है। रातोंरात देश के हर कोनों में ट्रेनों से आक्सीजन तो नहीं पंहुचाई जा सकती। रेलमंत्री के प्रयासों की जितनी भी सराहना की जाय कम है। आक्सीजन से लदी रेल गाडियों की वीडियोग्राफी करके गोदी मीडिया और वाट्सएप युनिवर्सिटी के माध्यम से आक्सीजन घर-घर पंहुचा दी। दिमाग है।।

भगवान ने यह ढाई (2.5) दिमाग दो तो गुजराती के दी,  बाकी आधी बची जो चम्मचों में बांट दी। वित्त मंत्री टैक्स लेने से दवाओं के दाम कम होने का फॉर्मूला बता रही हैं तो स्वास्थ्य मंत्री आक्सीजन की उपलब्धता बता रहें हैं और तनाव मुक्त होने के लिए डार्क चॉकलेट खाने की सलाह मुफ्त बांट रहें हैं। वहीं रेलमंत्री जी घर-घर मोबाइल से आक्सीजन पंहुचा दिये। प्रधानमंत्री जी बिना वैक्सीन के वैक्सीन उत्सव मना रहें हैं।

वहीं जब वैक्सीन की पहली डोज तो छोड़िये जनाब, दूसरी डोज का भी अता-पता खोजने से अखबारों में ग्लोबल टेन्डरों विज्ञापन ही अभी मिलेंगे। अस्पतालों के बाहार लोगों की लंबी कतार को कम करने के लिए सरकार ने नया फॉर्मूला कल रात ही विकसित कर लिया। अब वैक्सीन पहले एक माह के अंतराल को बढ़ाकर दो माह किया था, अब दो को तीन माह कर दिया । 

आप अब घर जाकर कम से कम एक महिना सो जाओ। आपको कुछ नहीं होगा। वशर्ते कि इस गाने की धून को गायें। व्यंग्यकार - शंभु चौधरी।

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