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बुधवार, 15 दिसंबर 2010

आपां तो लड़की वाला ठहरा - शम्भु चौधरी


Shambhu Choudhary
     यह बात सही है कि मारवाड़ी समाज के एक वर्ग ने काफी धन अर्जित किया, संग्रहित किया, संचित भी किया, इसका उपयोग किया तो दुरुपयोग भी। सामाजिक कार्यों मेँ जी जान से खर्च किया तो शादी-ब्याहों में इसका आडम्बर करने से भी नहीं चुका। धार्मिक कार्यों या आयोजनों मेँ धन को समर्पित किया तो खुद को पूजवाने भी लगे। समाज सेवा की तो, सेवा को बदनाम कर समाज सेवक कहलाने की एक मुहिम भी चली। कोई खुद को चाँदी में तुलवाने को सही ठहराता है, तो कोई भागवत कथा के नाम पर लाखों का खर्च को। एक दूसरे को शिक्षा देने में किसी से कोई कम नहीं। एक लाखों का विज्ञापन छपवाकर समाज को शिक्षा दे रहा है, तो दूसरा इस तर्क से कि धन उनका है वे उसको कैसे भी लुटाये। वाह भाई! वाह! कमाल का यह समाज। इस समाज का कोई सानी नहीं। कौन किसकी परवाह करता है। सभी अपने मन के मालिक हैं भला हो भी क्यों नहीं धन जो कमा लिया है बेशुमार दौलत का मालिक जो बन गया है यह समाज। मानो लक्ष्मी से लक्ष्मी की हत्या का अधिकार मिल गया हो इस समाज को। मारवाड़ी समाज की एक सबसे बड़ीं ख़ासियत यह भी है कि इस समाज को किसी भी प्रान्त के साहित्य-संस्कृति-भाषा-कला या उनके रहन-सहन, खान-पान (यहाँ तक की राजस्थान से भी) आदि से कोई लगाव नहीं सिर्फ और सिर्फ अपनी जीभिया स्वाद और पैसे का अहंकार इनको नीमतल्ला घाट तक पीछा नहीं छोड़ता।


     परन्तु इस नालायकी के लिये सारा समाज न तो दोषी है ना ही हमें समझना ही चाहिये। समाज का समृद्ध परिवार आज भी धन के इस तरह के दुरुपयोग से कोशों दूर है, यह जो भी गंदगी और धन के नंगे प्रदर्शन मे लगे लोग हैं वे या तो नाजायज तरीके से अर्जित धन को खर्च कर अपनी मानसिक विकलांगता को समाज के सामने परोस रहें हैं या फिर गांव का धन है जिसे वे खुले हाथ लूटा रहें हैं। संपन्न वर्ग और समृद्ध परिवार कभी भी अपनी दरिद्रता का प्रदर्शन नहीं करेंगे, इस तरह धन की बर्बादी को जो लोग उचित ठहराते हैं वे न सिर्फ दरिद्र ही हैं ऐसे लोग विकलांग भी हैं। मानो संपन्नता की आड़ में खुद के साथ-साथ समाज की दरिद्रता का प्रदर्शन करता हो, जिससे समाज का हर वर्ग न सिर्फ दुखी है, लाचार भी हो चुका है। कुछ लोग तो आडम्बर को समाज की जरूरत मानते हैं। कहते हैं नहीं तो समाज उसे दिवालिया समझेगा, अब इस दिवालियापन का क्या इलाज?


     अपने अर्जित धन को खुद के बच्चों के ब्याह-शादियों में खर्च करने का समाज को पूरा अधिकार है, करना भी चाहिये, इसके लिये गली मत बनाई.. शान से खर्च कीजिए पर साथ-साथ कुछ नेक उदाहरण भी देते जाईये जिससे समाज को लगे कि आप सच में धनवान हो। धन से ही नहीं मन से भी धनवान हो। झूठी दलीलों की धरातल पर खुद के दिवालियेपन को समाज पर थोपकर, कोई लड़के वाले का नाम लेता है तो कोई लड़की वाले का। " भाई कै करां आपां तो लड़की वाला ठहरा या भाई लड़की वाला ने कोई दवाब कोनी देवां अब वे अपनी मर्जी से खर्च करे तो आंपा कै कर सकां हाँ!" ये दलीलें खुद की नपुंशकता को छुपाने वाली बात है।


     हमेशा से मैं इस बात का समर्थक रहा हूँ कि उत्सव के अवसर को उत्साह के साथ मनाये इसका यह अर्थ नहीं कि फ़िज़ूलखर्ची करें। जरूरत के अनुसार सजावट करें व परिवार-मित्रों के साथ उत्साह के साथ उत्सव मनायें भीड़ एकठी न करें। इन दिनों ब्याह-शादियों में लोग आडम्बर तो करते ही हैं साथ-साथ इस आडम्बर को दिखाने के लिये वेबजह हजारों लोगों को जमा कर लेते हैं। पता नहीं खाने के नाम पर लोग जमा भी कैसे हो जाते हैं- कहते हैं भाई "चेहरो तो दिखाणो ही पड़सी" जैसे किसी मातम में जाना जरूरी हो। पिछले सालों में इसका प्रचलन तेजी से हुआ है। शहरों में एक-एक आदमी ३-४ ब्याह के कार्ड हाथ में लिये शादीबाडी़ खोजते नजर आ जातें हैं। गाँव में आज भी ऐसी स्थिति नहीं हुई है। गाँवों में शादी-ब्याह के नियम-कायदे लोग मानते हैं। इनमें आज भी समाज का भय बना रहता है। परन्तु शहरों में खासकर महानगरों में कोई किसी की नहीं सुनने को तैयार।


     इसी प्रकार भागवत भी बंचवाईये, इसके लिये जरूरी धन की व्यवस्था भी करे परन्तु जो भागवत आप क्रूज जहाज़ में सुनने जा रहें हैं वो भागवत कथा को बदनाम ही करता है, जो महंत इस तरह धन के लालच में भागवत कथा को बेचने की दुकान खोल लिये हैं वे हिन्दू धर्म का विनाश करने में लगे हैं, मेरा उनसे आग्रह रहेगा कि धर्म को कभी भी किसी भी रूप में कैद करने वाले ऐसे तत्वों को पनाह न देवें। मारवाड़ी समाज यदि इसके लिये गुणाहगार है तो उसे सम्मानित न होने देवें और अपनी विद्या को धर्म के प्रति समर्पित करे न कि धन के प्रति।


नववर्ष आपका मंगलमय हो, इसी शुभकामनाओं के साथ।

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

व्यंग्य- टूकुर-टूकुर - शम्भु चौधरी

हिन्दी साहित्य सभा की एक साहित्यिक गोष्ठि चल रही थी, विचार हो रहा था कि हिन्दी को कैसे मजबूत किया जाय। मांग हुई कि भारत सरकार अपने सभी मंत्रालय में हिन्दी के जानकार को जरूर से रखे खासकर ऐसे विभाग जो अहिन्दी राज्यों में संचालित होते हैं, देखा गया कि इससे १० हजार हिन्दी भाषी कि नियुक्ति हो जायेगी। सदस्यों ने राय दी कि हमें राज्य सरकारों एवम् गैर सरकारी संस्थानों में भी हिन्दी के लिये पद सुरक्षित कराया जाना चाहिये। सबकी एक राय हुई कि इस संदर्भ मे एक प्रस्ताव बना कर सभी राज्य सरकारों व केन्द्रिय सरकार को भेजा जाय। सभी सदस्य मन ही मन काफी संतुष्ट नजर आ रहे थे। सभा जब समाप्त हो गई तो एक न व्यंग्य किया "भाई! नौकरी तो हमें हिन्दी के नाम पर मिलेगी तब हमारी क्या योग्यता रही?" दूसरे न जबाब दिया -"हिन्दी!" हम हिन्दी के वाहक बन कर अपने नाम के आगे अंग्रेजी चिन्ह लगाकर "Dr." अपनी नौकरी पक्की करा लेंगे। बाकी के ७० करोड़ लोग हमें ताकते रहेंगे- टूकुर-टूकुर

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

कन्यादान -शम्भु चौधरी

एक साइकिल, एक रेडियो,
कुछ कपडे़, थोडे़ गहने,
बारातियो की खातीर-दारी-
दामाद की चेन, सास की साडी़,
समधी की तामीरदारी
मेहमानों की आवभगत,
पंडितों की दान-दक्षिणा
ऐसा लगता था मानो
एक माँ-बाप के लिये
खून देने के बराबर था,
बेटी का ब्याह करना।
माँ-बाप का धर्म जो ठहरा
कन्यादान करना।
-शम्भु चौधरी, कोलकाता-७००१०६, मोब: ९८३१०८२७३७

चूँडि़यों की खनक -शम्भु चौधरी

संसद में चूडि़याँ पहने नेताओं,
चूँडि़यों की खनक तो सुनो,
जो सड़कों पे बिखरी-टूटी पडी़,
मांग रही थी भीख-
सुहाग की रक्षा
और
खुद की सुरक्षा।
-शम्भु चौधरी, कोलकाता-७००१०६, मोब: ९८३१०८२७३७

बुधवार, 8 दिसंबर 2010

संयुक्त संसदीय जाँच समिति (JPC)

पिछले दिनों राम मनोहर लोहिया जी से नरकलोक के एक पत्रकार ने प्रश्न किया कि गुरुदेव ये विपक्षवाले बार-बार संयुक्त संसदीय जाँच समिति (JPC) की माँग क्यों कर रहे हैं? उनका जबाब ये था- सब "चोर-चोर मौसेरे भाई" हैं। दरअसल विपक्ष इस बात की जाँच करना चाहती है कि उनके हिस्से में जो रकम उन्हें मिलेगी वो सही है कि नहीं।

रविवार, 31 अक्टूबर 2010

संसद में लोहियाजी बोलतें हैं-२

१०० रुपये चुराने वाले को देश के कानून में सी.आर.पी.सी. की धारा लगा दी जाती है, परन्तु देश को लुटने वाले सांसदों के ऊपर इस धारा का प्रयोग नहीं किया जाता कहा जाता। धीरे से एक बोलता है जे.पी.सी.बैठा दो। क्यों भाई! एक चोर को बचाने के लिये दूसरे चोर को बैठा दिया जाय क्या?

भारतीय भाषा संग्राहलय


HINDI


क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व श ष स ह ळ
क्ष त्र ज्ञ अ आ इ ई उ ऊ ए ऐ
१ २ ३ ४ ५ ६ ७ ८ ९ १०
ॐ ओ औ ऑ ऋ
क का कि की कु कू के कै को कौ कं कः


Gujarati


ક ખ ગ ઘ ઙ
ચ છ જ ઝ ઞ
ટ ઠ ડ ઢ ણ
ત થ દ ધ ન
પ ફ બ ભ મ
ય ર લ વ શ ષ સ હ ળ
ક્ષ ત્ર જ્ઞ અ આ ઇ ઈ ઉ ઊ એ ઐ
૧ ૨ ૩ ૪ ૫ ૬ ૭ ૮ ૯ ૧૦
ૐ ઓ ઔ ઑ ઋ
ક કા કિ કી કુ કૂ કે કૈ કો કૌ કં કઃ


Bengali


ক খ গ ঘ ঙ
চ ছ জ ঝ ঞ
ট ঠ ড ঢ ণ
ত থ দ ধ ন
প ফ ব ভ ম
য র ল ব শ ষ স হ ল
ক্ষ ত্র জ্ঞ অ আ ই ঈ উ ঊ এ ঐ
১ ২ ৩ ৪ ৫ ৬ ৭ ৮ ৯ ১০
ও ঔ ও ঋ
ক কা কি কী কু কূ কে কৈ কো কৌ কং কঃ


Gurumukhi (Punjabi)


ਕ ਖ ਗ ਘ ਙ
ਚ ਛ ਜ ਝ ਞ
ਟ ਠ ਡ ਢ ਣ
ਤ ਥ ਦ ਧ ਨ
ਪ ਫ ਬ ਭ ਮ
ਯ ਰ ਲ ਵ ਸ਼ ਸ਼ ਸ ਹ ਲ਼
ਕ੍ਸ਼ ਤ੍ਰ ਜ੍ਞ ਅ ਆ ਇ ਈ ਉ ਊ ਏ ਐ
੧ ੨ ੩ ੪ ੫ ੬ ੭ ੮ ੯ ੧੦
ਓ ਔ ਔ ਰਿ
ਕ ਕਾ ਕਿ ਕੀ ਕੁ ਕੂ ਕੇ ਕੈ ਕੋ ਕੌ ਕਂ ਕ


Kannada


ಕ ಖ ಗ ಘ ಙ
ಚ ಛ ಜ ಝ ಞ
ಟ ಠ ಡ ಢ ಣ
ತ ಥ ದ ಧ ನ
ಪ ಫ ಬ ಭ ಮ
ಯ ರ ಲ ವ ಶ ಷ ಸ ಹ ಳ
ಕ್ಷ ತ್ರ ಜ್ಞ ಅ ಆ ಇ ಈ ಉ ಊ ಏ ಐ
೧ ೨ ೩ ೪ ೫ ೬ ೭ ೮ ೯ ೧೦
ಓ ಔ ಓ ಋ
ಕ ಕಾ ಕಿ ಕೀ ಕು ಕೂ ಕೇ ಕೈ ಕೋ ಕೌ ಕಂ ಕಃ


Malayalam


ക ഖ ഗ ഘ ങ
ച ഛ ജ ഝ ഞ
ട ഠ ഡ ഢ ണ
ത ഥ ദ ധ ന
പ ഫ ബ ഭ മ
യ ര ല വ ശ ഷ സ ഹ ള
ക്ഷ ത്ര ജ്ഞ അ ആ ഇ ഈ ഉ ഊ ഏ ഐ
൧ ൨ ൩ ൪ ൫ ൬ ൭ ൮ ൯ ൧൦
ഓ ഔ ഓ ഋ
ക കാ കി കീ കു കൂ കേ കൈ കോ കൌ കം കഃ


Tamil


க க க க ங
ச ச ஜ ஜ ஞ
ட ட ட ட ண
த த த த ந
ப ப ப ப ம
ய ர ல வ ஸ ஷ ஸ ஹ ள
க்ஷ த்ர ஜ்ஞ அ ஆ இ ஈ உ ஊ ஏ ஐ
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10
ஓ ஔ ஆ ௫
க கா கி கீ கு கூ கே கை கோ கௌ கஂ கஃ


Telgu


క ఖ గ ఘ ఙ
చ ఛ జ ఝ ఞ
ట ఠ డ ఢ ణ
త థ ద ధ న
ప ఫ బ భ మ
య ర ల వ శ ష స హ ళ
క్ష త్ర జ్ఞ అ ఆ ఇ ఈ ఉ ఊ ఏ ఐ
౧ ౨ ౩ ౪ ౫ ౬ ౭ ౮ ౯ ౧౦
ఓ ఔ ఓ ఋ
క కా కి కీ కు కూ కే కై కో కౌ కం కః

शनिवार, 23 अक्टूबर 2010

दीपावली की शुभकामनाएँ - शम्भु चौधरी

नक्सलवाद पर लिखी मेरी एक कविता से आज आपको दीपावली की शुभकामनाएँ देना चाहता हूँ।

एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,
मैं सोचा यह क्या कहता है? हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है।


सर्वप्रथम हमें आतंकवाद को व्याखित करना होगा, खुद की जमीं पर रहकर अपने हक की लड़ाई लड़ना आतंकवाद नहीं हो सकता चाहे वह कश्मीर की समस्या ही क्यों न हो, लेकिन को कुछ ईश्लामिक धार्मिक संगठनों ने धर्म को आधार मानते हुए सारी दुनिया में आतांकवाद फैला दिया, पाक प्रायोजित तालिबानियों द्वारा धर्म को जिहाद बताया उनलोगों ने न सिर्फ़ कश्मीर समस्या को उलझाया। भारत, पाकिस्तान और बंग्लादेश सहित विश्व के अनेक देशों के भीतर आतंकवाद को देखने का एक अलग नजरिया प्रदान कर दिया। जिसक परिणाम यह हुआ कि आज विश्व में हर तरफ यह प्रश्न उठता है कि आखिर एशिया महाद्वीप में ही आतंकवाद क्यों पैदा हो रहा, सारे विश्व के अपराधियों का सुरक्षा केन्द्र बनता जा रहा है यह महाद्वीप। संभवतः भारत विश्व में एक मात्र देश होगा जो लगातार आज़ादी के बाद से इस समस्या से झूझता आ रहा है। ९/११ की घटना यदि अमेरीका की जगह भारत में हुई होती तो शायद अमेरिका, तालिबानियों का सफ़ाया कभी नहीं करती़। कारण स्पष्ट है अमेरिका को किसी बात का दर्द तभी होता है जबतक वह खुद इस दर्द को न सह ले।
इसी प्रकार भारत में नक्सलवाद का काफी तेजी से विकास हुआ खासकर आदिवासी इलाकों में जहाँ हम अभी तक विकास, शिक्षा, चिकित्सा जैसी मूलभूत ज़रूरतों को भी नहीं पहुँचा पाये। हमने उनके घर (वन, वनिस्पत, खनिज, पर्वत, जंगल आदि) को सरकारी समझा और उनको उस जगह से वेदखलकर उन्हें जानवर का जीवन जीने को मजबूर करते रहे। जब इन लोगों को कुछ लोगों ने वगावत का पाठ पढ़ाया तो ये देश के लिये गले की फांस बन गई। आपको सबसे पहले यह समझना होगा कि आखिर समस्या क्या है, सिर्फ हथियार उठा लेने से आतंकवाद हो जाता तो भारत स्वतंत्रता आन्दोलन के हजारों शहीद को भी हमें आतंकवाद कहना होगा। इसमें कोई शक नहीं नक्सलवाद को कुछ लोगों ने इसे सरकारी ताक़तों को नुकशना पहुँचाने के नाम से बेकसूर जनता को भी काफी हानी पहुँचाई जिसका लाभ लेकर सरकारी ताक़तों ने सेना को इस मैदान पर उतार दिया है। जो किसी भी दृष्टिकोण से न तो उन्हें सही ठहराया जा सकता है ना ही इसे। हम अपनी दीपावली के दीये उन आदिवासी के साथ जलाना पसंद करेंगे जिन्हें सरकार नक्सलवादी समझती है। माना कि सरकार पर देश की सुरक्षा का भार है। परन्तु एक को सुरक्षा देने के नाम पर दूसरे का घर ही उजाड़ दिया जाय यह सुरक्षा नहीं हो सकती। आप सभी को दीपावली की शुभकामनाएँ।

शुक्रवार, 15 अक्टूबर 2010

लोहिया संसद में बोल रहें हैं- शम्भु चौधरी


Shambhu Choudhary
इस बार देश में अजीबो-गरीब एक घटना घटी। भ्रष्टाचार व तैयारी में हो रही विलम्बता के चलते विश्व भर की मीडिया से घिरी कॉमनवेल्थ खेल आयोजक समिति को अचानक से राष्ट्र के गौरव की याद सताने लगी। कॉमनवेल्थ खेल के विदेशी सदस्यों से भारत के गौरव की भीख माँगे जाने लगी, कि कम से कम वे लोग भारत के गौरव का ध्यान रखें, जबाब में मिला भारतवासियों को एक तमाचा। जरा इन भ्रष्ट नेताओं से कोई पूछे कि जब ये संसद या विधान सभाओं के भीतर लत्तम-जूता करते हैं तब देश का गौरव किधर जाता है? जब ये देश को लूटने में लगे रहते हैं तब इनका स्वाभिमान को क्या हो जाता है? जब ये विदेशों में नन्गे होकर चुपचाप घर आते हैं तब इनका आत्मसम्मान को डंक क्यों नहीं मारता? जब ये लोग खेल को व्यवसाय बनाकर खेल की नकली नीलामी करते हैं और अपराधियों को बचाने के लिए बयानबाज़ी करते हैं तब इनके स्वाभिमान को क्या हो जाता है?

शनिवार, 28 अगस्त 2010

परिंदा -शम्भु चौधरी

Shambhu Choudhary
(नक्सलवाद पर लिखी एक कविता)
एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

मैं सोचा यह क्या कहता है?
हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है़।

एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

खेत को काटा, जंगल काटा
वन को नोचा, पहाड़*1 तोड़ा
घर को तहस-नहस कर छोड़ा
पर न माना, फिर चहकाया...
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

समझाया....
तुम अनपढ़ और गंवार हो।
लोकतंत्र की गंगा#2 बहती,
गंदे, नाले, पोखर सब सहती
गंगा#3 को 'गंगा'#4 करने का
२ खोखा#5 मिलता हर साल।

एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

मैं सोचा यह क्या कहता है?
हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है़।

समझ न पाया,
#7शेर को भेजा, भेंड़ को भेजा,
भालू, बन्दर, हाथी भेजा,
शिकारी भेजा, जाल बिछाया,
पकड़ कर लाया, फिर धमकाया
नहीं समझने पर मरवाया
फिर भी समझ न पाया।
खेत, पहाड़, जंगल को लुटा,
फिर भी लुट न पाया।

मैं सोचा यह क्या कहता है?
हँसता है या रोता है।
मुझको गाली देता है या अपना दुःख यह कहता है़।
एक परिंदा घर पर आया, फर्राया-चहकाया..
मैं आजाद.., मैं आजाद.., मैं आजाद..,

(रचना दिनांक २९ अगस्त २०१० को सुबह लिखी है।)
कवि का पता: शम्भु चौधरी, एफ.डी.-४५३/२, साल्टलेक सिटी, कोलकाता-७००१०६

*1. दर-असल में आदिवासी पर्वत शब्द की जगह पहाड़ का प्रयोग ज्यादा करतें हैं।
#2. गंगा शब्द संसद का प्रर्यावाची है।
#3. यहाँ गंगा शब्द का अर्थ "गंगा" से है।
#4. यहाँ गंगा शब्द का अर्थ शुद्ध करने से है।
#5. एक सांसद को हर साल २ करोड़ रुपये हराम के विकास के नाम से सरकार से मिलते हैं, जिस रकम को ९०% सांसद हड़प जाते है।
#6. पार्टी के पालतु कुत्ते बन कर संसद मेँ बन्द रहना पड़ता है।
#7. ऑपरेशन हन्ट- नक्सलवाद कि खिलाफ चलरहा जिसमें सैनिक जनवरों के तरह ऑपरेशन करते हैं।

मंगलवार, 11 मई 2010

आचार्य महाप्रज्ञ का निधन अपूरणीय क्षति


9 मई 2010 ... बीदासर : श्वेताम्बर तेरापंथ के दसवें संत आचार्य महाप्रज्ञ का रविवार को निर्वाण हो गया। महाप्रज्ञ दोपहर करीब 2.50 बजे देवलोकगमन कर गए। वे 89 वर्ष के थे। अणुव्रत आंदोलन में अहम भूमिका निभाने वाले महाप्रज्ञ जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय के अध्यक्ष थे। महाप्रज्ञ के निर्वाण से तेरापंथ समाज में शोक की लहर है। महाप्रज्ञ का जन्म 17 जून 1920 में झुंझनुं जिले के छोटे से गांव तमकोर में हुआ। महाप्रज्ञ को अपने परिवार में नथमल के नाम से जाना जाता था। 1931 में मात्र दस वर्ष की आयु में उन्होंने सन्यास ले लिया था। अहिंसा व विश्वशांति के अग्रदूत आचार्य महाप्रज्ञ का स्वर्गवास जैन समाज के लिए ही नहीं बल्कि पूरे देश व दुनिया के लिए एक अपूरणीय क्षति है। धर्म, अध्यात्म, शांति व अमन के प्रचार-प्रसार में उनके योगदान को शब्दों में बयां करना कठिन है। उनके निधन का समाचार मिलने के बाद से ही जैन समुदाय में शोक लहर दौड़ गई। डॉ.एपीजे अब्दुल कलाम ने चुरू जिले के सरदार शहर पहुंचकर आचार्य महाप्रज्ञ को श्रद्धांजलि दी । पिछले दिनों मेरे मित्र श्री प्रकाश चंडालिया ने उनसे मिलकर एक साक्षात्कार लिया था। जिसे हम यहाँ पाठकों के लिये जारी कर रहें हैं। हम देश की इस अपूरणीय क्षत्ति को पुरा तो नहीं कर सकते, हाँ! श्रद्धांजलि स्वरूप हम उनके विचारों से प्रेरणा ग्रहण कर सकतें हैं।- संपादक



साक्षात्कार आचार्य महाप्रज्ञ से

- प्रकाश चंडालिया -


अपने चिन्तन और विचारों से ऐसे ही करोड़ों लोगों को प्रभावित करने वाले श्री महात्मा यूं तो तेरापंथ धर्म संघ के आचार्य हैं, लेकिन अपने चिन्तन के माध्यम से उन्होंने यह स्थापित कर दिया है कि वह केवल तेरापंथ संघ के आचार्य ही नहीं, भारत के महान दार्शनिकों में उनका नाम सुमार है। उम्र के आठ दशक पार करने के बाद भी अहिंसा की महान यात्रा लेकर पूरे भारत भ्रमण पर निकले आचार्य श्री ने महाप्रदीय देश के कई प्रान्तों का सफर कर लिया है। राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, उत्तरप्रदेश, पंजाब, हरियाणा जैसे प्रान्तों में उन्होंने अहिंसा यात्रा का परचम लहराया है और अब तक 7.5 हजार किलोमीटर से अधिक की यात्रा संपन्न कर चुके हैं। आचार्य महाप्रज्ञ की इस यात्रा में 100 करोड़ की आबादी वाले इस देश में
एक प्रतिशत ही कहें तो एक करोड़ से ज्यादा लोग इनके संपर्क में आए हैं। आचार्य श्री का प्रभाव अहिंसा यात्रा का कितना है यह इसी से समझा जा सकता है कि भारत के पूर्व राष्ट्रपति डा. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आठ बार गुरुदेव का दर्शन करने आ चुके हैं।
उनसे किए गये प्रश्नोत्तर:-
प्रश्न: गुरुवर, आप अहिंसा यात्रा पर निकले हुए हैं और अब तक आपने 7.5 हजार किलोमीटर की यात्रा कर ली है। अहिंसा यात्रा का चिंतन आपके दिमाग में कैसे आया और जो आपकी आंखों में एक सपना था अहिंसा यात्रा का उसे साकार करने में आप कहां तक बढ़ पाए।
उत्तर: भगवान महावीर के 26वें जन्मदिन को भारत सरकार ने अहिंसा वर्ष घोषित किया था। काफी समय बीत गया-कुछ भी नहीं हो रहा था, तब एक चिन्तन आया कि अहिंसा वर्ष की घोषणा सरकारी घोषणा तो है ही किन्तु हमारा भी कर्तव्य है कि कुछ करना चाहिए। एक निमित बना और अहिंसा यात्रा की भावना, कल्पना सामने आई। फिर उस पर चिन्तन किया, उद्देश्य बनाया कि जनता में अहिंसा की चेतना जागृत हो। सुजानगढ़ से सफर शुरू हुआ और पांच वर्ष पूरे हो गए, छठा वर्ष अभी चल रहा है। व्यापक जन संपर्क रहा और हमने केवल बात में ही हिंसा-अहिंसा की बात में ध्यान नहीं दिया वह तो चल ही रहा था, किन्तु अहिंसा के कारणों पर विचार किया, चिन्तन किया, अनुसंधान किया तो सामने जो कारण आये तो मान लिया एक साधन है कि अहिंसा ज्यादा हो।
प्रश्न: देश में बढ़ती हिंसा का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर: जातिवाद और सम्प्रदायवाद हिंसा का कारण बन रहा है। अनैतिकता भी हिंसा का कारण है। आदमी में आवेश इतना बढ़ रहा है कि आज सहन करने की शक्ति कम हो गई है। साथ-साथ में गरीबी तो है ही, किन्तु रोटी का अभाव भी हिंसा का बड़ा कारण बन रहा है। भूखा आदमी हिंसा में बह जाता है। इन सब कारणों को सामने रख कर हमने काम शुरू किया कि हमारा एक लक्ष्य रहे स्वस्थ व्यक्ति, स्वस्थ समाज और स्वस्थ अर्थ व्यवस्था, इन तीनों के समन्वयन के बिना अहिंसा की बात आगे नहीं बढ़ सकती। इन सब के चिंतन के साथ हमने यात्रा शुरू की और संयोग की बात है कि सबसे पहले राजस्थान से गुजरात में हिंसा के वातावरण में ही हमें प्रवेश करना पड़ा।
प्रश्न: आप अंहिसा के विभिन्न प्रयोग करते रहे हैं। क्या यह संभव है कि हम अंहिसा का पूर्ण दौर देख सकेंगे क्या सभी धर्मों के एकीकरण की कल्पना की जा सकती है?
उत्तर: पूर्ण अहिंसा कभी संभव नहीं है। सभी धर्मों के एकीकरण की कल्पना करनी नहीं चाहिए। संभव भी नहीं है। हमें तो इतना ही करना चाहिए कि धार्मिक लोगों में सामंजस्य रहे, समन्वय की भावना रहे और धर्म के नाम पर लड़ाई झगड़ा न हो। इतना हो जाए तब इससे आगे जाना भी नहीं है। संभव भी नहीं है। पूर्ण अहिंसा की कल्पना ही डींग है। क्यों कि मनुष्यों के मस्तिष्क समान नहीं होते हैं। मस्तिष्क की रचनाएं भिन्न चिन्तन-मनन करती है। राष्ट्रीयता भी भिन्न-भिन्न होती है। इतना ही कर सकते हैं कि कोई भी राष्ट्र दूसरे राष्ट्र पर अपना बाजार और व्यावसायिक प्राधित्व स्थापित न करें इतना हो तो कार्य अच्छा है।
प्रश्न: आंतकवाद की मूल जड़ क्या है?
उत्तर: आतंकवाद की मूल वजह राजनीति और वे करततें हैं जो कुछ कारणों से कुछ लोगों के द्वारा होती हैं। आतंकवाद है, भिन्न वाद है, इसके पीछे अनेक कारण हैं-राजनीतिक कारण भी हैं, और कुछ राष्ट्रों पर अपना अधिकार व प्रभुत्व जमाने की भावना भी है। इन कारणों में एक मूल कारण ये लगता है कि भूखे आदमी को
धनी आदमी जहां लगाना चाहें लगा सकते हैं। अतंकवाद में यही हो रहा है।
प्रश्न: धर्म के नाम पर जेहाद क्या आतंकवाद का ही एक हिस्सा है?
उत्तर: आतंकवाद एक जाल है। कोई भी अतंकवादी अपने पुत्र को आतंकवादी नहीं बनाता। जेहाद और आतंकवाद अलग-अलग और एक दूसरे के विपरीत बिन्दु हैं।
प्रश्न: भारत में हिंसा रुकने का नाम ही नहीं लेती। आरोप है कि पड़ोसी देश भारत में आतंकवाद को शह दे रहा है।
उत्तर: पहले ही कहा है कि राजनीति आतंकवाद का मुख्य कारक है।
प्रश्न: विभिन्न धर्मों के अनेक साधु-संत काफी वैभवशाली जीवन यापन करते हैं।
उत्तर: यह एक संवेदनशील विषय है, जिसके बारे में अधूरी बात कहना नहीं चाहता और पूर्ण बात कह नहीं सकता।
प्रश्न: संथारा को गलत संदर्भ में परिभाषित किया जाता है।
उत्तर: यह भ्रांति है। आत्महत्या आवेश में की जाती है जबकि संथारा साधना या समाधिकरण का एक प्रयोग है। अधूरे ज्ञान के कारण लोग संथारा को आत्महत्या परिभाषित कर देते हैं।
प्रश्न: युनेस्को के शान्ति विश्वाविद्यालय के पदाधिकारी एवं संयुक्तराष्ट्र संघ के शान्ति मिशन के लोग आपसे मिलते रहे हैं। इस संबंध में अब तक क्या काम हुआ है?
उत्तर: चर्चाएं होती हैं। हिंसा के दमन के लिए वे लोग सामंजस्य स्थापित करना चाहते हैं, प्रयास जारी है।
प्रश्न: पूर्व राष्ट्रपति ए.पी.जे. अब्दुल कलाम के साथ आप पुस्तक लिख रहे हैं। कैसी होगी यह पुस्तक क्या विज्ञान और अध्यात्म में सामंजस्य संभव है?
उत्तर: पूर्व राष्ट्रपति के साथ पुस्तक से संबंधित चर्चाएं होती रही हैं। पुस्तक कैसी होगी इसका आंकलन तो पाठक ही करेंगे। विज्ञान और अध्यात्म का योग समाज व राष्ट्र को बेहतर स्थिति में ला सकता है।
प्रश्न: राष्ट्रकवि दिनकर ने आपकी तुलना स्वामी विवेकानन्द से की है जबकि कुछ लोग आप में गाँधी की छवि देखते हैं।
उत्तर: आचार्य तुलसी ने एक बार कहा था कि महाप्रज्ञ को महाप्रज्ञ ही रहने दो। मैं भी यही सोचता हूँ।
प्रश्न: आप अपने लक्ष्य में कितने सफल हुए हैं?
उत्तर: पहले पहल तो लक्ष्य नहीं जानता था, कितना बढ़ पाया उसको मापना कठिन है। हिमखण्ड का सिरा दिखाई देता है, सम्पूर्ण हिमखण्ड तो सागर में ही समाहित है।
प्रश्न: तेरापंथ का भविष्य.........?
उत्तर: आचार्य तुलसी के शब्दों में शुभ ही शुभ है।

गुरुवार, 1 अप्रैल 2010

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रविवार, 7 मार्च 2010

समीक्षा: शमोइल एहमद की इक्कीस श्रेठ कहानियां


शमोइल एहमद की कहानियां पढ़ने का ‘ दुर्भाग्य’ मेरे ऊपर न जाने कैसे सवार हो गया। डायमंड प्रकाशन से प्रकाशित उनकी २७ कहानियों का संकलन मेरे हाथ में आ गया और मैं एक के बाद एक कहानी इस आस में झेलती गयी कि शायद अब अगली कोई कहानी अच्छी निकल आए, पर वहाँ तो सारी कहानिया औरत से शुरू होकर बिस्तर पर खत्म होती रही। मैंने व्यर्थ ही अपनी आँखें फोड़ी, घटिया कहानी पढ़कर। मुझे ताज्जुब है कि इस आदमी के ज़हन में औरत, उसके जिस्म और सैक्स के अलावा और कुछ है ही नहीं और वही सब जनाब की कहानियों में भरा पड़ा है। बात ये नहीं कि औरत पर कहानी लिखना निषिद्ध है पर औरत में जिस्म के अलावा गहन सोच विचार और सघन भावनाएं और संवेदनाएं भी होती हैं। अनेक क्षमताएं, विविध गुण और प्रतिभाएं भी कूट कूट के भरी होती हैं। वे तो इन जनाब को शायद कभी दिखी ही नहीं। दिखती भी कैसे जब इनकी रुचि ही सिर्फ जिस्म में है। अंदर तक औरत को कभी खंगाल कर इन्होंने देखा ही नहीं, बस ऊपर से उसकी देह ही टटोलते रहे। इसलिए कहानियां भी सतही बन पड़ी हैं। न कहानी संरचना का उचित रूप आकार है, न मानवीय भावनाएं, संवेदनाएं हैं, न कहीं पात्रों का अन्तर्द्वन्द है और न भाषा दिल और आत्मा को छूती है। कहानी शिल्प से तो शमोइल एहमद अनजान लगते हैं। ऐसी कहानियां तो विकृत मनोवृति के व सीखतड़ लोग लिखा करते हैं।
आजकल हर कोई कलम पकड़ कर पन्ने काले किया करता है जैसे कि ये महाशय कर रहें हैं। जैसे आज का हर दूसरा लड़का और लड़की फिल्म स्टार बनना चाहता है, भले ही सूरत और प्रतिभा के नाम पर राखी सावंत और इमरान हाशमी की तरह हो। ठीक इसी तरह हर इंसान ‘रचनाकार’ बनना चाहता है, भले ही उसमें लेखन प्रतिभा हो या न हो। यदि गलती से वह एक दो प्रतिनिधि पत्रिकाओं में सिर्फ एक या दो बार छप जाए, तो वह अपने को रातोंरात यशस्वी लेखक मानने लगता है। आत्म मुग्धता की स्थिति में जीता है।खैर, लिखने वाले को अपना जजमेंट करने का कोई अधिकार नहीं होता। यह काम तो ‘’साधारण व बुद्धिजीवी’’ दोनों तरह के पाठकों का होता है। मैंने शमोइल एहमद की कहानियां पढकर अपने मित्रों को दी, ये सोच कर कि कहीं मुझे ही खराब लग रहीं हों कहानियां। लेकिन उन सबने भी कहानियों को सामान स्वर से ‘’भूसा ‘’ कहते हुए मेरी प्रतिक्रिया को सही सिद्ध किया। मैं और मेरे समस्त पाठक मित्र शमोइल एहमद की कहानियों को पढकर बेहद - बेहद निराश हुए।
जनाब से गुजारिश है कि या तो वे कहानियां लिखना छोड़ दे या फिर किसी से मार्गदर्शन लें पर यूं लेखन जैसे उद्दात व उत्तम कार्य का अपमान न करें।


रितिका एवं साथी मित्र