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बुधवार, 31 अगस्त 2011

इरोम शर्मिला: मशाल थामें महिलाएं




इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) इसी आग की एक कड़ी है। सबसे पहले अपनी कलम से आपको नमन करता हूँ। जिस प्रकार श्री अण्णाजी का संघर्ष महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव रालेगांव सिद्धि से उठकर देश में जनचेतना की एक मिशाल बन गई। उसी प्रकार एक दिन मणिपुर की महिलाऐं भी देशभर की महिलाओं के अन्दर व्याप्त भय को समाप्त कर राजनीति को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करेगीं मेरा मानना है। मणिपुरी महिलाऐं देश के लिए ‘मीरा पेबिस’ बनकर देश की महिलाओं का पथप्रदर्शक बनेगी। मणिपुर में ‘मीरा पेबिस’ का शाब्दिक अर्थ है महिलाओं के हाथों में मशाल। इसे क्रांति का सूचक माना जाता है।



हम यदि जानवरों पर भी ऐसा व्यवहार करें तो सारी दुनिया में इसके खिलाफ आवाजें उठ जाती है परन्तु भारत के कुछ हिस्सों में गोलियों से सरेआम सेनाबल इंसानों को सड़कों पर भून देती है और सरकार चूँ तक नहीं करती। जी हाँ! आज मणिपुर की इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) की एक अपील श्री अण्णा हजारे के नाम छपी सुबह के समाचार पत्रों में पढ़ने को मिला। हांलाकि इस आंदोलन के बारे में मुझे कोई विशेष जानकारी नहीं थी इसलिए नेट का सहारा लेकर पहले संक्षिप्त जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया। पता चला की हमारे देश की सरकार दरिन्दों के शिकार करने के कानून से इंसानों का भी शिकार करती है जानकर हमें न सिर्फ ग्लानि हो रही है साथ ही मन करता है कि तत्काल हमें इरोम शर्मिला की मांग पर न सिर्फ संसद में बहस करनी चाहिए, इरोमा की रिहाई एवं इसके आंदोलन को पूरे भारत का समर्थन मिलना चाहिए।
इस लेख की पृष्ठभूमि पर जाने से पहले आपको मणिपुर की महिलाओं द्वारा किए जाने वाले सैकड़ों आंदोलनों के इतिहास में मणिपुरी महिलाओं का ही योगदान रहा है। उनके अन्दर से निकलने वाली जनचेतना की आग को मणिपुर साहित्य में काफी सम्मानित स्थान दिया जाता है।
देश में बंगाल के बाद मणिपुर ही देश का एक ऐसा राज्य है जहाँ देश की महिलाएं अपने सामाजिक और राजनैतिक अधिकारों के प्रति काफी न सिर्फ सजग है पुरुषों से एक-दो कदम नहीं काफी आगे मानी जाती रही है। यहाँ की महिलाएं अपने लोकतांत्रिक अधिकारों के प्रति न सिर्फ सजग रहती हैं। अपने अधिकारों को प्राप्त करने क लिए संघर्षरत भी रही है। इरोम शर्मिला (Irom Chanu Sharmila) इसी आग की एक कड़ी है। सबसे पहले अपनी कलम से आपको नमन करता हूँ। जिस प्रकार श्री अण्णाजी का संघर्ष महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव रालेगांव सिद्धि से उठकर देश में जनचेतना की एक मिशाल बन गई। उसी प्रकार एक दिन मणिपुर की महिलाऐं भी देशभर की महिलाओं के अन्दर व्याप्त भय को समाप्त कर राजनीति को आत्मसात करने के लिए प्रेरित करेगीं मेरा मानना है।
मणिपुरी महिलाऐं देश के लिए ‘मीरा पेबिस’बनकर देश की महिलाओं का पथप्रदर्शक बनेगी। मणिपुर में ‘मीरा पेबिस’ का शाब्दिक अर्थ है महिलाओं के हाथों में मशाल। इसे क्रांति का सूचक माना जाता है।
इस देश की शर्मनाक दशा यह है कि हम पोटा जैसे देश की सुरक्षा से जुड़े कानून अथवा आंतकवादिओं को सजा देने के कानून को कमजोर करने की पूरजोड़ वकालत संसद में और संसद के बाहर करते नजर आते हैं। देश की सुरक्षा को कमजोर करने के लिए सांप्रदायिक ताकतों से यह कह कर हाथ मिला लेते हैं कि अल्पसंख्यकों को वेबजह तंग किया जाता है। माना कि कानून का दूरपयोग किया जाता रहा है। अभी हाल ही में उच्च न्यायालय ने भी जमीन अधिग्रहण कानून को लेकर भी कुछ इसी प्रकार की टिप्पणी की है जबकि उच्च न्यायालय खुद इसी कानून के पक्ष में हजारों फैसले सुना चुकी है। परन्तु सरकार की नजर में हर पक्ष को देखने का नजरिया अलग-अलग होने से देश के कुछ भागों में जनता के मन में एक असंतोष की भावना व्याप्त है।


मणिपुर में ५० वर्षों का अघोषित आपातकाल:
Posted By : http://samvadmadhyasta.blogspot.com/


मणिपुर में ११ सितम्बर २००८ को एक गैर लोकतांत्रिक कानून (आर्मड फोर्स स्पेशल पावर एक्ट) आफ़्सपा को लगे हुए ५० साल पूरे हो रहे हैं। आजादी के ११ वर्ष बाद १९५८ में यह कानून कुछ क्षेत्रों में नागा बिद्रोह से निपटने के लिये लगाया गया था। धीरे-धीरे इसका विस्तार होता गया और १९८० में पूरे मणिपुर को अशांत घोषित कर दिया गया। आफ्सपा को आर्मड फोर्स स्पेसल पावर आर्डिनेंस के तौर पर बनाया गया जिसे अंग्रेजों द्वारा १९४२ में भारत छोड़ो आंदोलन से निपटने के लिये भारतीय आंदोलन कारियों के दमन के लिये बनाया गया था। तब से पूरे राज्य में आपातकाल की स्थिति बनी हुई है। यह गैर लोकतांत्रिक कानून राज्य के गवर्नर/या केन्द्र को यह अधिकार देता है कि वे किसी भी क्षेत्र को अशांत घोषित कर सकते हैं। किसी भी आयुक्त अधिकारी या एन.सी.ओ. तक को यह अधिकार देता है कि यदि उसे लगता है कि कोई व्यक्ति कानून व्यवस्था तोड़ सकता है व यदि कोई व्यक्ति हथियार या कोई भी चीज जिसका इश्तेमाल हथियार के रूप में किया जा सकता है के साथ पाया जाय तो शक के आधार पर वह किसी भी व्यक्ति को गोली मार सकता है या इतने बल का प्रयोग कर सकता है जिससे उसकी मौत हो जाय। इस रूप में यदि इसकी व्याख्या करें तो वह किसान भी आता है जो अपने औजार के साथ खेत जा रहा हो।कानून लागू होने के बाद दिनों-दिन अमानवीयता बढ़ती गयी और रोज बरोज सेना के बढ़ते दमन को देख मानवाधिकार संगठन ने आफ्सपा के खिलाफ ८०-८२ में याचिकायें दर्ज की जिसमे जीवन, आजादी, बराबरी, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताको चुनौती दी गयी, परन्तु १५ वर्षों बाद १९९७ में सर्वोच्च न्यायालय ने इसे सही ठहराते हुए कुछ निर्देश दिये उन निर्देशों के तहत आर्मी को बताया गया कि वह क्या करे और क्या न करे, जिसमें यह कहा गया कि गोली चलाने के पहले व्यक्ति को चेतावनी दी जानी चाहिये, और किसी भी कार्यवाही के समय नागरिक प्रशासन को शामिल किया जाना चाहिये इन बातों का सैन्य बल द्वारा कडा़इ से पालन किया जाय। परन्तु उसके बाद भी किसी निर्देश का पालन नहीं होता अलबत्ता डी.जी.पी. का यह बयान आया कि निर्देशों की भावना का पालन होता है इसके शब्दों का नहीं। इस रूप में स्पष्ट तौर पर समझा जा सकता है कि आर्मी किस तरह के भावना का पालन करती होगी।सेना को यह भी निर्देश दिया गया था कि कि किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के बाद वह जल्द से जल्द व्यक्ति को नजदीकी पुलिस थाने को सौंप दे और आर्मी को पूछताछ का कोई अधिकार नही बनता इसके बावजूद आर्मी थर्ड डिग्री का इश्तेमाल कर अभियुक्तों से पूछ-ताछ करती है और अक्सर पूछ ताछ के बाद गोली मार देती है। इस रूप में सेना वहाँ नागरिक प्रसासन की मदद करने के बजाय एक स्वतंत्र इकाई के रूप में कार्य कर रही है। इस कानून को लागू होने के बाद से अब तक मणिपुर के अनगिनत लोग मारे जा चुके हैं और गायब हैं। लोगों को यह नहीं पता कि किस दिन उनके घर में आर्मी आयेगी और उनके किसी भी सदस्य को उठा ले जायेगी। दुनिया के सबसे बडे़ लोकतंत्र में ऎसी अमानवीय स्थिति बनी हुई है जहाँ पूरी तरह से सेना का शासन चल रहा है। परन्तु भारत के अधिकांश हिस्सों के लोगों को इन स्थितियों की भनक तक नहीं है। और कुछ मुद्दॊं को छोड़ कर भारतीय मीडिया ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया है। ११ जुलाई २००४ को इम्फाल के पूर्व जिला बामोन की एक ३२ वर्षीय महिला थंगजम मनोरमा को असम राइफल्स द्वारा रात को उनके घर से उठा लिया गया और तमाम तरह की यातनाओं के बाद उनकी लाश को घर से ५-६ कि.मी. की दूर स्थित राजमार्ग पर फ़ेक दिया गया था, जिसको लेकर मणिपुर में एक बढा़ विरोध प्रदर्स्गन हुआ था और महिलाओं ने निरवस्त्र होकर यह नारा दिया था कि "इडियन आर्मी रेप अस" जिसे राष्ट्रीय मीडिया ने पहली बार गम्भीरता से लिया था पर उसके बाद रोज दिनों दिन घटनायें घटती जा रही हैं पर राष्ट्रीय मीडिया में उसकी खबरें कहीं नहीं दिखती। २००२ में जब भारत के प्रधानमंत्री १५ अगस्त देश के लोकतंत्र को और मजबूत बनाने की बात करते हुए तिरंगा फ़हरा रहे थे। उसी समय मणिपुर का एक छात्र नेता पेबम चितरंजन बिसनपुर चौराहे पर खुद को यह कहते हुए जला लिया कि इस अप्रजातांत्रिक कानून में में मरने के बजाय मै मशाल की तरह जलकर मरना पंसंद करूंगा। राज्य में हर वर्ष इसी तरह से सैकड़ों लोग आर्मी की गोलियों से मारे जा रहें हैं तिस पर गृह मंत्री मणिपुर में जाकर यह बयान देते हैं कि मरनें वालों की संख्या इतनी नहीं है कि इस पर परेशान हुआ जाय। क्या किसी लोकतंत्र में मनोरमा जैसी एक भी महिला का आर्मी द्वारा बलात्कार, और महिलाओं का निरवस्त्र प्रदर्शन उन्हें कम लगता है? देश के स्वतंत्रता दिवस पर किसी व्यक्ति का देश के किसी कानून से क्षुब्ध होकर मरना कम है। जबकि वास्तविक स्थितियाँ इतनी ही नहीं है राज्य मानवाधिकार की रिपोर्ट के मुताबिक ३०-५० मानवाधिकार हनन की घटनाएं सामने आती है या दर्ज होती हैं। परन्तु इतनी घटनाएं दर्ज होने के बावजूद भी राष्ट्रीय मानवाधिकार ने इस राज्य को अनदेखा करने का प्रयास किया है और अभी तक कोई भी बैठक इस राज्य में नहीं की। राज्य मानवाधिकार को एक सीमित धन ही उपलब्ध कराया जाता है।जबकि वहीं दूसरी तरफ सेना के खर्चे में हर वर्ष बढो़त्तरी की जा रही है। इस अमानवीय कानून को लेकर अब तक न जाने कितने विरोध प्रदर्सन हो चुके हैं, मणिपुर के लोग कितनी बार सड़कों पर उतर चुके हैं। इरोम शर्मीला द्वारा २००४ से लगातार भूख हड़ताल जारी है। पर सरकार ने अभी तक चन्द जाँच कमेटियाँ बनाने के सिवा कोई ठोस कदम नहीं उठाया है। मनोरमा मामले को लेकर गठित की गयी सी. उपेन्द्र आयोग की १०२ पृष्ठ की रिपोर्ट २२ दिसम्बर २००४ को आयी पर अभी तक उसको गुप्त रखा गया है उसका प्रकाशन तक नही किया गया। यद्यपि आफ्सपा को इंफाल के ७ मुनिस्पल क्षेत्रों यानि ३२ वर्ग कि.मी. से हटाया गया है परन्तु हत्या का शिलसिला यहाँ भी कम नहीं हुआ है आर्मी यहाँ से लोगों को पकड़ती है और उस क्षेत्र से बाहर ले जाकर उनको गोली मारती है। इन स्थितियों के बीच वहाँ के स्कूलों की स्थिति ये है कि ३६५ दिन में औसतन १०० दिन या उससे कम भी चल पाते हैं कारण वश वहाँ के छात्रों का लगातार पलायन जारी है और २०,००० से अधिक छात्र राज्य से बाहर जाकर पढ़ रहे हैं। स्कूली बच्चों ने राज्य सरकार द्वारा दी जाने वाली किताबों को राज्यपाल को वापस कर दिया है। इन स्थितियों के बीच सरकार को चाहिये कि वह कोइ उचित कदम उठाये और गैर लोकतांत्रिक कानून को वापस ले।


लेख जारी है.....थोड़ा इंतजार करें।

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