एक साइकिल, एक रेडियो,
कुछ कपडे़, थोडे़ गहने,
बारातियो की खातीर-दारी-
दामाद की चेन, सास की साडी़,
समधी की तामीरदारी
मेहमानों की आवभगत,
पंडितों की दान-दक्षिणा
ऐसा लगता था मानो
एक माँ-बाप के लिये
खून देने के बराबर था,
बेटी का ब्याह करना।
माँ-बाप का धर्म जो ठहरा
कन्यादान करना।
-शम्भु चौधरी, कोलकाता-७००१०६, मोब: ९८३१०८२७३७
गुरुवार, 9 दिसंबर 2010
कन्यादान -शम्भु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:08 pm
Labels: शम्भु चौधरी
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1 विचार मंच:
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bilkul sahi kaha aapne .dahej ke karan beti janm hi abhishap ban gaya hai mata pita ke liye .mere blog vikhyat par aapka hardik swagat hai .