कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-7
आज हम कुछ नये विषय पर जाने का प्रयास करेगें। क्या आपके मन में कभी कोई ऐसी बात नहीं उठती की लोग आपको भी जाने-पहचाने या आपकी ख्याति सर्वत्र फैले। हम कई बार किसी मंच पर पुरस्कार भी लेने जाते हैं या किसी व्यक्ति ने हमें अपमानित भी किया होगा। इस दोनों प्रक्रिया के घटते वक्त हमारे मस्तिष्क पर जो संकेत उभरते हैं। इसका विश्लेषण करने का प्रयास करेगें कि किस प्रकार ये बातें हमारे जीवन में हमारे व्यक्तित्व को प्रभावित करती है।
हम क्या चाहते हैं:
- कोई आये और हमें अपमानित करके चला जाये।
- कोई आये सिर्फ अपनी बात करे और चला जाये।
- मंच पर खुद को स्थापित करें और मन में खुश हो जायें।
- मंच पर दूसरे को स्थापित देख कर मन में खुद को भी स्थापित होने की तमन्ना जगे।
- हम कहीं जायें तो सामने वाले पक्ष को अपने से नीचा समझने का प्रयास करें।
- हम कहीं जायें तो उस स्थान पर कुछ गंदगी करके मन में संतोष प्राप्त करें।
- हम यह तो माने की मेरी खुद की कृर्ति चारों तरफ फैले पर किसी दूसरे पक्ष की कृर्ति फ़ैलती हो तो मन ही मन हीन भावना को जन्म देना शुरू कर दें।
इसमें से कौन सी बात हमें अच्छी नहीं लगती। बस यह मान लें कि जो बात हमें अच्छी नहीं लगती वह किसी दूसरे को भी अच्छी नहीं लगती होगी और जो बातें हमें अच्छी लगती है वही बातें दूसरे को भी अच्छी लगती है। जिस दिन से आप इस प्रक्रिया को अपनाना शुरू कर देते हैं उसी वक्त से चारों दिशाओं में आपका यश फैलने लगगा, जिसप्रकार:
"बदबू को लोग नाक बन्द कर के लोग सुंघते हैं और खुशबू को नाक खोलाकर। देखना हमको है कि हमारे व्यवहार से किस प्रकार की खुशबू निकलती है।"
कैसे होता है व्यक्तित्व विकास-8 जारी.....
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- शम्भु चौधरी, कोलकाता. फोन. 0-9831082737
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