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शुक्रवार, 31 अक्टूबर 2008

छट पूजा / छठ पूजा


दोस्तो, कुछ बातें छट पूजा के समानों की यह मुझे लाना है सो हो सकता है छट करने वालो की मै कुछ मदद कर दूं इसलिए यह लिस्ट यहां दे रहा हूँ।
गेहूं , महीन अरवाचावल, मोटा अरवाचावल, चीनी, कुसिया मटर, देशी घी, सौंप, बदामगुल्ली, मखाना, किसमीस, छुहारा, गरीगोला, रिफाइन / डाल़डा या शुद्ध घी, मैदा, सक्कर, सिंदूर, इलायची, अरता, बद्दी, सुपारी , टोकरी, गमछा, चादर, ढकनी, सूप, सेब, केला, केतारी, संतोला, नारियल, पान, पानी फल, आदी, हल्दी गाछ, मूली, बरबट्टी, अलवा, सुथनी, नेंबू, टाभनेंबू, अगरबत्ती, दीपक, हल्दीगुंडी, यह तो शुरुवात है, धीरे-धीरे यह लिस्ट लंबी होती जाती है।

- कन्हैया रस्तोगी
छट पूजा के ऊपर आपने कुछ भी लिखा हो तो हमें भेजने की कृपा करें।

गुरुवार, 30 अक्टूबर 2008

हिन्दी का कोई साफ्टवेयर खरीदने की ज़रूरत नहीं


पिछले माह महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी ने सर्वभाषा सम्मेलन आयोजित किया था। उसमें एक सत्र इंटरनेट और हिन्दी पर भी था। वहाँ यह बात सामने आई कि अभी लोगों को यह पता नहीं है कि कंप्यूटर में हिन्दी इनबिल्ट है। यानी अब आपको अलग से हिन्दी का कोई साफ्टवेयर खरीदने की ज़रूरत नहीं है। पता नहीं कंप्यूटर कंपनियों की यह अज्ञानता है या बदमाशी कि वे इसके बारे में लोगों को बताते नहीं। (यह बात इसलिए भी प्रचारित नहीं की जाती है कि कहीं हिन्दी वाले लोग कंप्यूटर का प्रयोग करने में अंग्रेजी वालों को पीछे न छोड़ दें ।) आम आदमी को कौन कहे सरकारी कार्यालयों में अभी भी आकृति, एपीएस, और अक्षर नवीन जैसे साफ्टवेयर खरीदने में पैसा बर्बाद किया जा रहा है जब कि इनका उपयोग आप ईमेल भेजने में नहीं कर सकते।


इस संबंध में श्री रंजीत इस्सर, सचिव, भारत सरकार (राजभाषा ) द्वारा 14 सितम्बर को सरकारी विभागों के लिए एक दिशा निर्देश जारी किया किया है। इसमें बताया गया है कि विंडो 2000 , XP और उसके बाद के सभी कम्प्यूटर्स में हिन्दी का यूनिकोड फोण्ट 'मंगल' इनबिल्ट है। इसलिए अब अलग से हिन्दी का कोई साफ़्ट्वेयर या प्रोग्राम खरीदने की ज़रूरत नही हैं। मंगल फोण्ट को कंट्रोल पैनेल में जाकर ऐक्टिवेट किया जा सकता है। ऐक्टीवेट होने के बाद आसानी से इसमें ऐंग्लो रोमन तरीके से ऑफिस वर्ड में हिन्दी में टाइप किया जा सकता है तथा उसे ईमेल भी किया जा सकता है।किसी दूसरे फाण्ट में टाइप मैटर कॊ भारत सरकार द्वारा नेट पर उपलब्ध कराए गए निःशुल्क साफ़्टवेयर 'परिवर्तन' के ज़रिए मंगल में कन्वर्ट भी किया जा सकता है। मंगल फोण्ट में टाइप कोई भी फाइल किसी भी XP कम्प्यूटर में आसानी से खुल जाएगी। इस फोण्ट के ज़रिए कोई भी फाइल ईमेल के साथ अटैच की जा सकती है।


बाज़ार में सीडेक कं. की 'सुविधा' नामक सीडी उपलब्ध है। इसे लोड करते ही आपको टाइपराइटर का कीबोर्ड मिल जाएगा। अगर आपका कम्प्यूटर XP नहीं है,यानी विंडो 98 वगैरा है तो उसमें यूनिकोड मंगल डालने के लिए भारत सरकार ने 'हिन्दी साफ़्ट्वेयर' नाम की एक सीडी निकाली है जिस पर सोनिया गाँधी और मनमोहन सिंह की तस्वीर है। इसे डाउनलोड किया जा सकता है या राजभाषा विभाग से मुफ्त में प्राप्त किया जा सकता है । आपका ब्राउज़र इस छवि के प्रदर्शन का समर्थन नहीं भी कर सकता।


बाक़ी जानकारी यहाँ से लीजिए- rajbhasha.gov.in, डाउनलोड के लिए इसे देखें-http://ildc.gov.in/hindi/downloadhindi.htm, यहाँ 'परिवर्तन' साफ़्ट्वेयर के साथ ही इंस्क्रिप्ट, रैमिंगटन और फोनेटिक कीबोर्ड भी लोड कर सकते हैं। आवश्यकतनुसार राजभाषा विभाग (तकनीकी कक्ष) दिल्ली से फोन 011-2461 9860 से संपर्क कर जानकारी हासिल की जा सकती है । ईमेल techcell-ol@nic.in This e-mail address is being protected from spam bots, you need JavaScript enabled to view it से नि:शुल्क साफ़्ट्वेयर प्राप्त करने संबंधी जानकारी ली जा सकती है।


तो अब देर किस बात की, अब हम सभी को यूनिकोड समर्थित सुविधा का प्रयोग शुरू कर देना चाहिए ताकि पूरी दुनिया के हिन्दी कामकाज में एकरूपता लाई जा सके।


14 सितम्बर को हिन्दी मीडिया.इन पर मेरा लेख प्रकाशित हुआ था-'' कंप्यूटर पर हिन्दी और हिन्दी में ईमेल। '' पहले ही दिन इसे पढ़ने वालों की संख्या 32759 थी। अब आप समझ सकते हैं कि कंप्यूटर पर हिन्दी प्रेमियों की संख्या कितनी तेज़ी से बढ़ रही है । उपरोक्त लेख में मैंने आपको इंटरनेट द्वारा कंप्यूटर पर हिन्दी लिखने और उसे ईमेल email के तीन तरीके बताए थे -


http://kaulonline.com/uninagari/
http://www.google.com/transliterate/indic/ और Baraha.com


इसमें Baraha.com को सबसे ज़्यादा पसंद किया गया क्योंकि इसके ज़रिए आप सीधे कम्पोज़ मेल में टाईप कर सकते हैं, कॉपी-पेस्ट नहीं करना पड़ता । दूसरे इसमें संयुक्त अक्षरों को लिखना बहुत आसान है । अगर आपको बारहा डॉट काम लोड करने में या हिन्दी लिखने में कोई असुविधा है तो आप tarakash.com के संजय बेंगाणी या hindyugm.com के शैलेश भारतवासी से संपर्क कर सकते हैं । इस मामले में यह दोनों प्रवीण होने के साथ साथ बहुत सहयोगी हैं और हिन्दी प्रेमियों को हर तरह से मदद करने को तत्पर रहते हैं।


कम्प्यूटर पर हिन्दी लिखना आसान है
अगर आपको ऑफ लाइन काम करना पसंद है तो geocities.com/hanu_man_jiलोड कर लें |बहुत अच्छी साइट है | इसे कम्पोज़ मेल में कॉपी-पेस्ट करके ईमेल भी कर सकते हैं |


(1)www.geocities.com/hanu_man_ji को sarch करें तो Jai Hanuman पेज खुलेगा ।
Chalo ab kaam ki baat टाइटल मे Win9x(Win95,Win98,WinME) and for NT4,Win2000,WinXP दिखेगा | अगर आपका कंप्यूटर XP है तो WinXP पर क्लिक करें और इस तख्ती को डाउनलोड करे ।
(2) फ़िर डेस्कटाप पर सेव करें ।
(3) डेस्कटोप के आइकॉन को डबल क्लिक करें फिर उसे agree करें ।
(4) फिर wizard पर क्लिक करें ( wizard आपको ऊपर दिखेगा)
(5) फिर उसे agree करे ।
(6) फिर डेस्कटाप पर तख्ती का icon (हरे रंग का त ) दिखेगा |
(7) इसे डबल क्लिक करें तो अपने आप word pad खुलेगा |
(8) इसमे कोई भी मैटर टाईप करके फाइल मे जाकर सेव करें |
(9) word pad में किसी भी मैटर को टाईप करके compose mail मे pest करके Email कर सकते हैं या फाइल अटैच करके भेज सकते हैं |


देवमणि पाण्डेय, मुम्बई


Devmani Pandey (Poet)
A-2, Hyderabad Estate
Nepean Sea Road, Malabar Hill
Mumbai - 400 036
M : 98210-82126 / R : 022 - 2363-2727
E-mail:devmanipandey@gmail.com

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2008

मैं कौन सा दीप जलाऊं?


-पवन निशांत-




मैं कौन सा दीप जलाऊ? अब से ठीक घंटे बाद दीपावली के दीप घर-घर, गली-चौराहे जलने शुरू होंगे, मगर मैं दुविधा में हूं कि मैं कौन सा दीप जलाऊं? जलते हुए दीप अपने हिस्से का अंधियारा दूर करेंगे, पर क्या मेरे जलाए दीप मेरे हिस्से का अंधियारा दूर कर सकेंगे। मैं कौन सा दीप जलाऊं?-उस नौजवान की आत्मा की शांति के लिए कोई दीप जलाऊं, जिसके कोमल मन में राजनीति के अंधियारे ने ऐसा हिस्टारिया दिया कि वह अपना आपा खो बैठा और उस आदमी से बात करने के लिए बेकाबू हो गया, जो उसके लिए जिम्मेदार था। जो दो दिन पहले ही मुंबई पहुंचा था अपना कैरियर बनाने। कहीं ऐसा तो नहीं हुआ उसके साथ कि मुंबई की चकाचौंध में वह अपने अस्तित्व को बिसरा चुका हो और बार-बार वही सवाल उसके दिमाग में कौंधने लगा हो, जो वहां से पिटकर लौटे दूसरे भाइयों के मन में कौंध रहा है।

क्या मैं उस आदमी के नाम पर भी दीप जला सकता हूं, जो वास्तव में अपने अस्तित्व और अपने भविष्य के अंधियारे को दूर करने के लिए मराठियों के बहाने पूरे देश में अंधियारा पैदा करना चाहता है। लोहे को लोहे से काटने की कहावत पर चलकर जो अंधियारे से अंधियारे को हराना चाहता है। या में बाजार के उस महानायक के नाम का दीप जलाऊं, जो गंगा-जमुनी भावनाओं के उद्वेग पर सवार होकर महानायक बना और हिंदी बोलने की शर्म में हिंदी की छाती पर खड़ी होकर माफी मांग गया। महानायक भी मुंबई में अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है, तो मैं उसके अस्तित्व की अक्षुण्ता की कामना में एक और दीप जलाऊं?

मुंबई शहर पर एक परिवार के दो महत्वाकांक्षी लोगों में से किसी एक की हुकूमत कायम रहने की जद्दोजहद से बुझ रहे दीपों में से मैं किसका दीप जलाऊं? या बेबड़ा मारकर सो गए उन लोगों के लिए दीप जलाऊं, जो अपने महानायक की तलाश में उनके झंडे के साथ अपने अस्तित्व के भ्रम को पाले हुए हैं और अभी भी सो रहे हैं। जो सो रहे हैं और सोते-सोते भयभीत हैं कि उनकी जमीन पर यूपी-बिहार के भइये क्यों इतने जाग्रत रहते हैं।
उस महानायक के नाम का दीप जलाऊं, जो गंगा-जमुनी भावनाओं के उद्वेग पर सवार होकर महानायक बना और हिंदी बोलने की शर्म में हिंदी की छाती पर खड़ी होकर माफी मांग गया। महानायक भी मुंबई में अपने अस्तित्व पर संकट देख रहा है, तो मैं उसके अस्तित्व की अक्षुण्ता की कामना में एक और दीप जलाऊं?

मैं बाटला हाउस की अतृप्त आत्माओं की शांति को एक दीप अवश्य जलाता, मगर अब मैं एक साध्वी के बहाने उस राजनीति का अंधियारा दूर करने के लिए कोई दीप क्यों न जलाऊं, जो मात्र अपने ओजस्वी भाषण की वजह से आज की राजनीति का साफ्ट टारगेट बन गयी, जिसके बहाने से मुस्लिम आतंकवाद बनाम हिंदू आतंकवाद की नई थ्यौरी गढ़ने की प्यास जाने कब से विकल कर रही थी।
आय के मामले में मंदी और व्यय के मामले में मंहगाई वाले इन दिनों में आखिर कोई कितने दीप जला सकता है और सावन हरे न भादों सूखे वाले मंहगे साक्षी भाव में मैं आखिर कितने दीप जला पाऊंगा। घी-तेल या मोम, चीनी, मिट्टी या चांदी के दीपों में से कौन सा दीपक पटना से लेकर मुंबई और बाटला से लेकर नंदीग्राम तक के अंधेरे को दूर कर सकेगा, कोई पहचान कर बता दे,मैं वही दीप जला लूंगा।


पवन निशांत का परिचय
जन्म-11 अगस्त 1968, रिपोर्टर दैनिक जागरण, रुचि-कविता, व्यंग्य, ज्योतिष और पत्रकारिता
पता: 69-38, महिला बाजार,
सुभाष नगर, मथुरा, (उ.प्र.) पिन-281001
E-mail: pawannishant@yahoo.com

सोमवार, 27 अक्टूबर 2008

अबकी दिवाली हम मनाएब कैसे?

उजड़ि गेल घर बाढ़ में
डूबि गेल पूँजी व्यापार में
ना बा कहूँ रहे के ठिकाना
ना बा कुछु खाय के ठिकाना
दिया से अपन घर के सजाएब कैसे
जुआड़ी सैंया के हम मनाएब कैसे
अबकी दिवाली हम मनाएब कैसे
अबकी दिवाली हम मनाएब कैसे
ना बा घर ना बा दुआर
ओ भगवान तोहार मूर्ति हम बिठाएब कैसे
तोहार आरती हम उतारब कैसे
हो अबकी दिवाली हम मनाएब कैसे
अबकी दिवाली हम मनाएब कैसे


रचयिता - महेश कुमार वर्मा

रविवार, 26 अक्टूबर 2008

दीपान्विता -रामनिरंजन गोयनका

हे दीपान्विता
कर दो तुम गहन अमावस्या का तिमिर विच्छिन्न
कर दो हमारा अन्तर्मन आलोकित
हे दीपमालिके
तुम हो राष्ट्रमाता की दिव्य आरती
हमारी सभ्यता संस्कृति की निर्मल धारा
कामाख्या भुवनेश्वरी नारायणी पार्वती
दुर्गा काली लक्ष्मी सरस्वती विश्वभारती
तुम केवल दीपोत्सव नहीं
तुम हो एक मानसिक स्थिति
एक दिशा और अनुभूति की चमक
समर्पण का भाव और जीवन की परिभाषा
कोटि कोटि भारतवासियों के प्राणों की अभिलाषा
दीवार और द्वारों पर सज्जित दीपमाला
हमारे अन्तःकरण में प्रज्जवलित
ज्ञानदीप की एक विस्तारित श्रृंखला हो
दीपावली है वस्तुतः हमारे भावना दीप की
सत्य शाश्वत आन्तरिक अभिव्यक्ति
जो हमारी चक्षुसीमा के पार तक को
आलोकित और प्रकाशित करती है
और हमें सुपथ की ओर प्रेरित करती है।
दीपावली पर हम करते हैं
परंपरागत कागज और कलम की पूजा
किन्तु संपदा की स्याही और श्रम की कलम से
साधना की माटी पर हस्ताक्षर करना ही होगा
व्यश्टि से ऊपर उठकर समष्टि के लिये पूजा
दीपावली की ज्ञान ज्योति
मानव जीवन का श्रेष्ठतम पक्ष मुखरित करे।


क्या आप भी अपनी कविता दीपावली पर पोस्ट करना चाहते हैं? हाँ! तो देर किस बात की अभी तुरन्त हमें मेल कर दें।
हमारा मेल पता:

शनिवार, 25 अक्टूबर 2008

सुशील प्रकरण : वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन


Written by B4M Reporter
Friday, 24 October 2008 01:30



एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के इशारे पर वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को फर्जी मुकदमें में फंसाने और पुलिस द्वारा परेशान किए जाने के खिलाफ वेब मीडिया से जुड़े लोगों ने दिल्ली में एक आपात बैठक की। इस बैठक में हिंदी के कई वेब संपादक-संचालक, वेब पत्रकार, ब्लाग माडरेटर और सोशल-पोलिटिकिल एक्टीविस्ट मौजूद थे। अध्यक्षता मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने की। संचालन विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने किया। बैठक के अंत में सर्वसम्मति से तीन सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया। पहले प्रस्ताव में एचटी मीडिया के कुछ लोगों और पुलिस की मिलीभगत से वरिष्ठ पत्रकार सुशील को इरादतन परेशान करने के खिलाफ आंदोलन के लिए वेब पत्रकार संघर्ष समिति का गठन किया गया।

इस समिति का संयोजक मशहूर पत्रकार आलोक तोमर को बनाया गया। समिति के सदस्यों में बिच्छू डाट काम के संपादक अवधेश बजाज, प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेंदु दाधीच, गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा, तीसरा स्वाधीनता आंदोलन के राष्ट्रीय संगठक गोपाल राय, विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी, लखनऊ के वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार, मीडिया खबर डाट काम के संपादक पुष्कर पुष्प, भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह शामिल हैं। यह समिति एचटी मीडिया और पुलिस के सांठगांठ से सुशील कुमार सिंह को परेशान किए जाने के खिलाफ संघर्ष करेगी। समिति ने संघर्ष के लिए हर तरह का विकल्प खुला रखा है।

दूसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा। तीसरे प्रस्ताव में कहा गया है कि सभी पत्रकार संगठनों से इस मामले में हस्तक्षेप करने के लिए संपर्क किया जाएगा और एचटी मीडिया में शीर्ष पदों पर बैठे कुछ मठाधीशों के खिलाफ सीधी कार्यवाही की जाएगी।


बैठक में प्रभासाक्षी डाट काम के समूह संपादक बालेन्दु दाधीच का मानना था कि मीडिया संस्थानों में डेडलाइन के दबाव में संपादकीय गलतियां होना एक आम बात है। उन्हें प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाए जाने की जरूरत नहीं है। बीबीसी, सीएनएन और ब्लूमबर्ग जैसे संस्थानों में भी हाल ही में बड़ी गलतियां हुई हैं। यदि किसी ब्लॉग या वेबसाइट पर उन्हें उजागर किया जाता है तो उसे स्पोर्ट्समैन स्पिरिट के साथ लिया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि यदि संबंधित वेब मीडिया संस्थान के पास अपनी खबर को प्रकाशित करने का पुख्ता आधार है और समाचार के प्रकाशन के पीछे कोई दुराग्रह नहीं है तो इसमें पुलिस के हस्तक्षेप की कोई गुंजाइश नहीं है। उन्होंने संबंधित प्रकाशन संस्थान से इस मामले को तूल न देने और अभिव्यक्ति के अधिकार का सम्मान करने की अपील की।
प्रस्ताव में कहा गया है कि वेब पत्रकार सुशील कुमार सिंह को परेशान करने के खिलाफ संघर्ष समिति का प्रतिनिधिमंडल अपनी बात ज्ञापन के जरिए एचटी मीडिया समूह चेयरपर्सन शोभना भरतिया तक पहुंचाएगा। शोभना भरतिया के यहां से अगर न्याय नहीं मिलता है तो दूसरे चरण में प्रतिनिधिमंडल गृहमंत्री शिवराज पाटिल और उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री मायावती से मिलकर पूरे प्रकरण से अवगत कराते हुए वरिष्ठ पत्रकार को फंसाने की साजिश का भंडाफोड़ करेगा।


भड़ास4मीडिया डाट काम के संपादक यशवंत सिंह ने कहा कि अब समय आ गया है जब वेब माध्यमों से जुड़े लोग अपना एक संगठन बनाएं। तभी इस तरह के अलोकतांत्रिक हमलों का मुकाबला किया जा सकता है। यह किसी सुशील कुमार का मामला नहीं बल्कि यह मीडिया की आजादी पर मीडिया मठाधीशों द्वारा किए गए हमले का मामला है। ये हमले भविष्य में और बढ़ेंगे।

विस्फोट डाट काम के संपादक संजय तिवारी ने कहा- ''पहली बार वेब मीडिया प्रिंट और इलेक्ट्रानिक दोनों मीडिया माध्यमों पर आलोचक की भूमिका में काम कर रहा है। इसके दूरगामी और सार्थक परिणाम निकलेंगे। इस आलोचना को स्वीकार करने की बजाय वेब माध्यमों पर इस तरह से हमला बोलना मीडिया समूहों की कुत्सित मानसिकता को उजागर करता है। उनका यह दावा भी झूठ हो जाता है कि वे अपनी आलोचना सुनने के लिए तैयार हैं।''

लखनऊ से फोन पर वरिष्ठ पत्रकार अंबरीश कुमार ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कई पत्रकार पुलिस के निशाने पर आ चुके हैं। लखीमपुर में पत्रकार समीउद्दीन नीलू के खिलाफ तत्कालीन एसपी ने न सिर्फ फर्जी मामला दर्ज कराया बल्कि वन्य जीव संरक्षण अधिनियम के तहत उसे गिरफ्तार भी करवा दिया। इस मुद्दे को लेकर मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश पुलिस को आड़े हाथों लिया था। इसके अलावा मुजफ्फरनगर में वरिष्ठ पत्रकार मेहरूद्दीन खान भी साजिश के चलते जेल भेज दिए गए थे। यह मामला जब संसद में उठा तो शासन-प्रशासन की नींद खुली। वेबसाइट के गपशप जैसे कालम को लेकर अब सुशील कुमार सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराना दुर्भाग्यपूर्ण है। यह बात अलग है कि पूरे मामले में किसी का भी कहीं जिक्र नहीं किया गया है।

बिच्छू डाट के संपादक अवधेश बजाज ने भोपाल से और गुजरात ग्लोबल डाट काम के संपादक योगेश शर्मा ने अहमदाबाद से फोन पर मीटिंग में लिए गए फैसलों पर सहमति जताई। इन दोनों वरिष्ठ पत्रकारों ने सुशील कुमार सिंह को फंसाने की साजिश की निंदा की और इस साजिश को रचने वालों को बेनकाब करने की मांग की।

बैठक के अंत में मशहूर पत्रकार और डेटलाइन इंडिया के संपादक आलोक तोमर ने अपने अध्यक्षीय संबोधन में कहा कि सुशील कुमार सिंह को परेशान करके वेब माध्यमों से जुड़े पत्रकारों को आतंकित करने की साजिश सफल नहीं होने दी जाएगी। इस लड़ाई को अंत तक लड़ा जाएगा। जो लोग साजिशें कर रहे हैं, उनके चेहरे पर पड़े नकाब को हटाने का काम और तेज किया जाएगा क्योंकि उन्हें ये लगता है कि वे पुलिस और सत्ता के सहारे सच कहने वाले पत्रकारों को धमका लेंगे तो उनकी बड़ी भूल है। हर दौर में सच कहने वाले परेशान किए जाते रहे हैं और आज दुर्भाग्य से सच कहने वालों का गला मीडिया से जुड़े लोग ही दबोच रहे हैं। ये वो लोग हैं जो मीडिया में रहते हुए बजाय पत्रकारीय नैतिकता को मानने के, पत्रकारिता के नाम पर कई तरह के धंधे कर रहे हैं। ऐसे धंधेबाजों को अपनी हकीकत का खुलासा होने का डर सता रहा है। पर उन्हें यह नहीं पता कि वे कलम को रोकने की जितनी भी कोशिशें करेंगे, कलम में स्याही उतनी ही ज्यादा बढ़ती जाएगी। सुशील कुमार प्रकरण के बहाने वेब माध्यमों के पत्रकारों में एकजुटता के लिए आई चेतना को सकारात्मक बताते हुए आलोक तोमर ने इस मुहिम को आगे बढ़ाने पर जोर दिया।

बैठक में हिंदी ब्लागों के कई संचालक और मीडिया में कार्यरत पत्रकार साथी मौजूद थे।


- साभार-भड़ास

क्या लाये पापा इस बार

दीवाली तो आ गई पापा, क्या लाये इस बार

बच्चा बोला देखकर, सुबह सुबह अखबार

सुबह सुबह अखबार, कि पापा कपड़े नए दिला दो

मम्मी को एक साड़ी औ बहना को शूट सिला दो

और अपने लिए तो पापा, जो जी में आए लेना

पर घर का कोना कोना, रोशन दीपो से करना

पापा ने सुन बात , कहा बेटे , क्या बतलाएं

डूब गई पूंजी शेयर में, कैसे दीप जलाएं

बेटा बोला, बुरा न मानो, तो एक बात बताएं

पैसे के लालच में पड़कर, क्यूँ पीछे पछ्ताएं

दादाजी भी तो कहते थे लालच बुरी बला है

शेयर नहीं सगा किसी का, इसने तुम्हे छला है

कोई बात नही पापाजी, यह लो शीतल पेय

बीती ताहि बिसरी देय, आगे कि सुधि लेय

चिराग-चमन चंडालिया

रविवार, 19 अक्टूबर 2008

असम: हिंदी पर बंदिश लगाने वाले आज सीख रहे हैं हिंदी

गुवाहाटी से विनोद रिंगानिया




राजनीतिक नारेबाजी को छोड़ दें तो व्यावहारिक धरातल पर भारतीय उपमहादेश में हिंदी का उपयोगिता से कोई भी इनकार नहीं कर सकता। वे चरमपंथी अलगाववादी भी नहीं जो हिंदी विरोध को अपने राजनीतिक कार्यक्रम का हिस्सा मानते हैं। असम के अलगाववादी संगठन उल्फा के बारे में भी यह बात सच है।
प्रबाल नेओग उल्फा के वरिष्ठ नेताओं में से हैं। 17 सालों तक चरमपंथियों की एक पूरी बटालियन के संचालन का भार इन पर हुआ करता था। पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बने अपने मुख्य सेनाध्यक्ष परेश बरुवा के निर्देश पर प्रबाल नेओग ने असम में कई हिंदीभाषियों के सामूहिक कत्लेआम को संचालित किया था। लेकिन वही नेओग आज इस बात को स्वीकार करने से नहीं हिचकते कि वे जल्दी से जल्दी अच्छी हिंदी सीख लेना चाहते हैं।

प्रबाल के हिंदी प्रेम के पीछे है हिंदी का उपयोगिता। उनका कहना है कि भारत सरकार के अधिकारियों और राजनीतिक नेतृत्व के साथ हिंदी के बिना बातचीत की आप कल्पना ही नहीं कर सकते।
पुलिस के हत्थे चढ़ चुके प्रबाल को हाल ही में कारावास से रिहा किया गया था। वे उल्फा के उस गुट का नेतृत्व कर रहे हैं जो अब भारत सरकार के साथ बातचीत के द्वारा समस्या को हल कर लेने का हिमायती है। ये लोग चाहते हैं कि उनका शीर्ष नेतृत्व सरकार के साथ बातचीत के लिए बैठे। हालांकि अब तक परेश बरुवा तथा उल्फा के अध्यक्ष अरविंद राजखोवा की ओर से कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं आई है।
प्रबाल नेओग उल्फा के वरिष्ठ नेताओं में से हैं। 17 सालों तक चरमपंथियों की एक पूरी बटालियन के संचालन का भार इन पर हुआ करता था। पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए सिरदर्द बने अपने मुख्य सेनाध्यक्ष परेश बरुवा के निर्देश पर प्रबाल नेओग ने असम में कई हिंदीभाषियों के सामूहिक कत्लेआम को संचालित किया था।

प्रबाल का कहना है कि वे हिंदी अच्छी तरह समझ लेते हैं लेकिन बोल पाने में थोड़ी दिक्कत होती है।
हिंदीभाषियों के कत्लेआम के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सभी मुझ पर उंगली उठाते हैं लेकिन जो भी किया गया वह हाईकमान के निर्देश पर ही किया गया था। उनका कहना है कि वे कभी भी प्रत्यक्ष रूप से किसी भी हत्याकांड से नहीं जुड़े रहे।
चरमपंथी नेओग स्वीकार करते हैं कि हत्या उल्फा की गोली से हो या सेना की गोली से, लेकिन जान किसी निर्दोष की ही जाती है।
बातचीत की प्रक्रिया शुरू करने के क्रम में प्रबाल तथा उसके साथियों का सेना तथा सुरक्षा बलों के अधिकारियों से साबका पड़ा। अमूमन राज्य के बाहर से आने वाले इन अधिकारियों के साथ विचार-विनिमय के लिए दो ही विकल्प हैं। हिंदी या अंग्रेजी। इसीलिए प्रबाल नेओग ने अपने साथियों को यह हिदायत दी है कि अभ्यास के लिए रोजाना आपस में हिंदी में बातचीत की जाए। भाषा सीखने का आखिर यह अनुभवसिद्ध तरीका तो है ही।
प्रबाल का कहना है कि राष्ट्रीय मीडिया वाले अपनी सारी बातें हिंदी या अंग्रेजी में ही पूछते हैं।
ऐसे में यदि उनके सवालों का जवाब असमिया में दिया जाए तो राज्य के बाहर वाले उसका मतलब नहीं समझ पाएंगे। इन्हीं कारणों से 'हमारे लिए धाराप्रवाह हिंदी और अंग्रेजी बोल पाना जरूरी हो गया है'।
प्रबाल का कहना है कि वे हिंदी अच्छी तरह समझ लेते हैं लेकिन बोल पाने में थोड़ी दिक्कत होती है।
हिंदीभाषियों के कत्लेआम के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि सभी मुझ पर उंगली उठाते हैं लेकिन जो भी किया गया वह हाईकमान के निर्देश पर ही किया गया था। उनका कहना है कि वे कभी भी प्रत्यक्ष रूप से किसी भी हत्याकांड से नहीं जुड़े रहे।
चरमपंथी नेओग स्वीकार करते हैं कि हत्या उल्फा की गोली से हो या सेना की गोली से, लेकिन जान किसी निर्दोष की ही जाती है।


उल्फा के असमिया मुखपत्र स्वाधीनता तथा अंग्रेजी मुखपत्र फ्रीडम में अक्सर 'हिंदी विस्तारवाद' शब्दों का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इन दो शब्दों के इस्तेमाल के द्वारा उल्फा असम में हिंदी की बढ़ती उपयोगिता का विरोध करता रहा है। किसी समय उल्फा ने असम में हिंदी फिल्मों के प्रदर्शन पर भी बंदिश लगाई थी। उन दिनों सिनेमाघर मालिकों को हिंदी फिल्में दिखाने के लिए पुलिस सुरक्षा पर निर्भर रहना पड़ता था।
उल्फा के अलावा असम के पड़ोसी मणिपुर राज्य के चरमपंथी भी हिंदी का प्रबल विरोध करते रहे हैं। असम में चरमपंथियों के हिंदी विरोधी फतवे नाकामयाब हो गए, लेकिन मणिपुर की राजधानी इंफाल में आपको किसी भी सिनेमाघर में हिंदी फिल्में आज भी देखने को नहीं मिलेगी। यही नहीं केबल आपरेटर भी चरमपंथियों के डर से हिंदी चैनलों से परहेज करते हैं।
नगालैंड के अलगाववादी संगठनों द्वारा हिंदी का विरोध किए जाने की बात सामने नहीं आई। एनएससीएन (आईएम गुट) के चरमपंथी सरकार के साथ बातचीत के दौरान इस बात की दुहाई भी दे चुके हैं कि उन्होंने कभी भी भारत की राष्ट्रभाषा का विरोध नहीं किया।
पूवोत्तर के नगालैंड, मणिपुर और मिजोरम में संपर्क भाषा के रूप में हालांकि अंग्रेजी का अच्छा-खासा इस्तेमाल होता है। लेकिन अरुणाचल प्रदेश में हिंदी को ही संपर्क भाषा का स्थान प्राप्त है। इसी तरह मेघालय में भी भले ही पढ़े-लिखे लोग संपर्क भाषा के रूप में अंग्रेजी का इस्तेमाल करते हों लेकिन औपचारिक शिक्षा से वंचित आम लोगों के लिए अपने कबीले से बाहर के लोगों से बातचीत करने का एकमात्र साधन हिंदी ही है।
पूर्वोत्तर भारत के पहाड़ी प्रदेशों में बोलचाल की हिंदी का अपना ही अलग रूप है जो कई बार मनमोहक छवियां पेश करता है। जैसे, बस यात्रा करते समय अचानक आपके कानों में ये शब्द पड़ सकते हैं - 'गाड़ी रोको हम यहां गिरेगा'।

शनिवार, 18 अक्टूबर 2008

राजनाथ ने कहा कि -


राजनाथ ने कहा कि - ' आतंकवाद से लड़ने के लिये राष्ट्रीय सहमति की जरूरत"
अरे भाई! राजनाथजी जब राष्ट्रीय सहमति से ही आंतकवाद पनप रहा हो तो भला सोच कर बोला करें" आपके गुरू आज-कल आंतकवाद पर चुप है, आप हैं कि बोले ही जा रहे हैं, जरा चुप भी रहा करें। देख नहीं रहे हर तरफ देश में किस तरह धर्मनिपेक्षता के वफ़ादार फल-फूल रहें हैं। मानवाधिकार तक इस मामले में सजग है। आप अनावश्यक बोले ही जा रहें । वैसे ही आपकी ज़बान लड़खड़ाती है। आपकी पार्टी में सभी चाहते हैं कि आप कम से कम बोलें। मेरी सलाह मानें आप अगले चुनाव तक विदेश घुमने चलें जायें।


जगो-जगो देश की जनता
भरो हुंकार देश की जनता,
करो बगावत देश की जनता
उठो-उठो देश की जनता।
जहाँ मांगने आते वोट
मारो इनके सर पर डण्डा,
खुद को चुनो,
खुद को भेजो,
निर्धन-निर्जन किसान को भेजो
महिलाओं या नव-जवान को भेजो,
करो बगावत देश की जनता
उठो-उठो देश की जनता।
      - शम्भु चौधरी


क्या आप कवि मंच में हिस्सा लेना चाहते हैं? तो देर किस बात की उठाई अपनी कलम लिख डालिये अपने विचार और हमें भेज दें इस पते पर:
Shambhu Choudhary
Fd-453/2, Salt Lake City,
Kolkata - 700106
ehindisahitya@gmail.com

शुक्रवार, 17 अक्टूबर 2008

नई रचनाओं का स्वागत

प्रिय दोस्तों,
कवि मंच पर आपकी नई रचनाओं का स्वागत है।
http://kavimanch.blogspot.com/
ई-हिन्दी साहित्य सभा

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2008

कथा-व्यथा: अक्टूबर 2008 का अंक प्रकाशित

प्रिय दोस्तों,
कथा-व्यथा: अक्टूबर 2008 माह का अंक प्रकाशित कर दिया गया है।
नीचे दिये गये लिंक पर देखें।
कथा-व्यथा: अक्टूबर 2008
संपादक
katya-vyatha

मंगलवार, 7 अक्टूबर 2008

कवि मंच का श्रीगणेश


प्रिय दोस्तों !
कथा-व्यथा का अगला अंक जल्द ही हम आपको भेजने वाले हैं, कुछ पाठकों का सुझाव था कि कथा-व्यथा के साथ 'कवि मंच' भी चलाया जाय। हमने आप सबकी सलाह को ध्यान में रखते हुए कवि मंच का श्रीगणेश कर दिया है। इसमें आप अपनी कविता सीधे ही पोस्ट कर सकते हैं या हमें मेल द्वारा भी भेज सकतें हैं। जिनको यूनिकोड टंकन नहीं आता हो, वे अपनी कविता हमें डाक द्वारा भी भेज सकते हैं। कवि मंच में अपनी कविता भेजने के लिये कोई शर्त नहीं है। अपनी कविता सीधे पोस्ट करने के लिये हमसे संपर्क करें।
kathavyatha@gmail.com


आपका ही
शम्भु चौधरी
http://kavimanch.blogspot.com/
संचालक

हमारा डाक पता:
शम्भु चौधरी
कथा-व्यथा / कवि मंच
एफ.डी. - 453/2 ,साल्ट लेक सिटी,
कोलकाता - 700106
0-9831082737

समीक्षाः ‘‘अभिव्यक्तियों के बहाने‘‘


‘‘अभिव्यक्तियों के बहाने‘‘ कृष्ण कुमार यादव का प्रथम निबंध संग्रह है। भारतीय डाक सेवा के अधिकारी रूप में पदस्थ श्री यादव अपनी व्यस्तताओं के बीच भी सामाजिक-साहित्यिक सरोकारों से कटे नहीं हैं बल्कि उन्हें आत्मसात् करते हुए पन्नों पर उभारने में भी माहिर हैं। सुकरात ने ऐसे लोगों के लिए ही लिखा था कि-‘‘सर्वगुणसम्पन्न और सच्चे अर्थों में शिक्षित वही लोग माने जायेंगे जो सफलता मिलने पर बिगड़ते नहीं, जो अपनी असलियत से मुँह नहीं मोड़ते; साथ ही बुद्धिमान और धीर-गम्भीर व्यक्ति की तरह दृढ़ता से जमीन पर पैर जमाये रखते हैं।‘‘ साहित्य में उसी दृष्टि को संपन्न माना जाता है, जो अपने समय की सभी प्रवृत्तियों को अपने साहित्य में स्थान दे और उनके साथ समुचित न्याय करे। कृष्ण कुमार चूँकि अभी युवा हैं, अतः उनकी सोच में नवीनता एवं ताजगी है।

समालोच्य निबंध संग्रह में कुल 10 लेख/निबंध प्रस्तुत किये गये हैं। भारतीय जीवन, समाज, साहित्य और राजनीति के अंतर्सूयों से आबद्ध इन लेखों में तेजी से बदलते समय और समाज की धड़कन को महसूस किया जा सकता है। संग्रह का प्रथम लेख ‘‘बदलते दौर में साहित्य की भूमिका‘‘ समकालीन परिवेश में साहित्य और इसमें आए बदलाव को बखूबी रेखांकित करता है। नारी-विमर्श, दलित-विमर्श, बाल-विमर्श जैसे तमाम तत्वों को सहेजते इस लेख की पंक्तियाँ गौरतलब हैं- ‘‘रचनाकार को संवेदना के उच्च स्तर को जीवंत रखते हुए समकालीन समाज के विभिन्न अंतर्विरोधों को अपने आप से जोड़कर देखना चाहिए एवं अपने सत्य व समाज के सत्य को मानवीय संवेदना की गहराई से भी जोड़ने का प्रयास करना चाहिये।’’ इसी प्रकार ‘‘बाल-साहित्य: दशा और दिशा‘‘ में लेखक ने बच्चों की मनोवैज्ञानिक समस्याओं और उनकी मनोभावनाओं को भी बाल साहित्य में उभारने पर जोर दिया है।

आज लोकतंत्र मात्र एक शासन-प्रणाली नहीं वरन् वैचारिक स्वतंत्रता का पर्याय बन गया है। कृष्ण कुमार यादव की नजर इस पर भी गई है। ‘‘लोकतंत्र के आयाम‘‘ लेख में भारतीय लोकतंत्र के गतिशील यथार्थ की सच्ची तस्वीर देखी जा सकती है। किसी विशेष राजनीतिक विचारधारा से प्रभावित हुए बिना भारतीय समाज के पूरे ताने-बाने को समझने की वैज्ञानिक दृष्टि इस लेख को महत्वपूर्ण बना देती है। सत्य-असत्य, सभ्यता के आरम्भ से ही धर्म एवं दर्शन के केद्र-बिंदु बने हुये हैं। महात्मा गाँधी, जिन्हें सत्य का सबसे बड़ा व्यवहारवादी उपासक माना जाता है ने सत्य को ईश्वर का पर्यायवाची कहा। भारत सरकार के राजकीय चिन्ह अशोक-चक्र के नीचे लिखा ‘सत्यमेव जयते’ शासन एवं प्रशासन की शुचिता का प्रतीक है। यह हर भारतीय को अहसास दिलाता है कि सत्य हमारे लिये एक तथ्य नहीं वरन् हमारी संस्कृति का सार है। इस भावना को सहेजता लेख ‘‘सत्यमेव जयते‘‘ बड़ा प्रभावी लेख है। एक अन्य लेख में लेखक ने प्रयाग के महात्मय का वर्णन करते हुए इलाहाबाद के राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक योगदान को रेखांकित किया है। इसमें इतिहास और स्मृति एक दूसरे के साथ-साथ चलते हुए नजर आते हैं।

सृष्टि का चक्र चलाने वाली, एक उन्नत समाज बनाने वाली, शक्ति, ममता, साहस, शौर्य, ज्ञान, दया का पुंज है नारी। एक तरफ वह यशोदा है, तो दूसरी तरफ चण्डी भी। आज महिलायें समुद्र की गहराई और आसमान की ऊँचाई नाप रही हैं। ‘‘रूढ़ियों की जकड़बन्द तोड़ती नारियाँ‘‘ ऐसी नारियों का जिक्र करती है जो फेमिनिस्ट के रूप में किन्हीं नारी आन्दोलनों से नहीं जुड़ी हैं। कर्मकाण्डों में पुरूषों को पीछे छोड़कर पुरोहिती करने वाली, माता-पिता के अंतिम संस्कार से लेकर तर्पण और पितरों के श्राद्ध तक करने वाले ऐसे तमाम कार्य जिसे महिलाओं के लिए सर्वथा निषिद्ध माना जाता रहा है, आज महिलायें खुद कर रही हैं। आजादी के दौर में भी कुछ महापुरूषों ने इन रूढ़िगत मान्यताओं के विरूद्ध आवाज उठाई थी पर अब महिलायें सिर्फ आवाज ही नहीं उठा रही हैं वरन् इन रूढ़िगत मान्यताओं को पीछे ढकेलकर नये मानदण्ड भी स्थापित कर रही हैं। इसी क्रम में ‘‘लिंग समता: एक विश्लेषण‘‘ नामक लेख पुरूष व महिलाओं के बीच जैविक विभेद को स्वीकार करते हुए सामंजस्य स्थापित करने और तद्नुसार सभ्यता के विकास हेतु कार्य करने की बात करता है।

कोई भी लेखक या साहित्यकार अपने समय की घटनाओं और उथल-पुथल के माहौल से प्रेरित होकर साहित्य की रचना करता है। कृष्ण कुमार भारतीय संस्कृति, उसके जीवन मूल्यों और माटी की गंध को रोम-रोम में महसूस करते हैं। आज हमारी लोक-संस्कृति व विरासत पर चैतरफा दबाव है और बाजारवाद के कारण वह संकट में है। ऐसे में लेखक भारतीय संस्कृति और उसकी विरासत का पहरूआ बनकर सामने आता है। अपने लेख ‘‘शाश्वत है भारतीय संस्कृति और इसकी विरासत‘‘ में कृष्ण कुमार जब लिखते हैं- ‘‘वस्तुतः हम भारतीय अपनी परम्परा, संस्कृति, ज्ञान और यहाँ तक कि महान विभूतियों को तब तक खास तवज्जो नहीं देते जब तक विदेशों में उसे न स्वीकार किया जाये। यही कारण है कि आज यूरोपीय राष्ट्रों और अमेरिका में योग, आयुर्वेद, शाकाहार, प्राकृतिक चिकित्सा, यूनानी, होम्योपैथी और सिद्धा जैसे उपचार लोकप्रियता पा रहे हैं जबकि हम उन्हें बिसरा चुके हैं‘‘, तो उनसे असहमति जताना बड़ा कठिन हो जाता है। ‘वसुधैव कुटुम्बकम‘ का पाठ पढ़ाने वाली भारतीय संस्कृति सामाजिक-साम्प्रदायिक सद्भाव की हिमायती रही हैं। आज जातिवाद, सम्प्रदायवाद की आड़ में जब इस पर हमले हो रहे हैं तो युवा लेखक की लेखनी इससे अछूती नहीं रहती। बचपन से ही एक दूसरे के धर्मग्रंथों और धर्मस्थानों के प्रति आदर का भाव पैदा करके अगली पीढ़ियों को इस विसंगति से दूर रखने की सलाह देने वाले लेख ‘‘साम्प्रदायिकता बनाम सामाजिक सद्भाव‘‘ में समाहित उदाहरण इसे समसामयिक बनाते हैं।

आज की नई पीढ़ी महात्मा गाँधी को एक सन्त के रूप में नहीं बल्कि व्यवहारिक आदर्शवादी के रूप में प्रस्तुत कर रही है। महात्मा गाँधी पर प्रस्तुत लेख ‘‘समग्र विश्वधारा में व्याप्त हैं महात्मा गाँधी‘‘ उनके जीवन-प्रसंगों पर रोचक रूप में प्रकाश डालते हुए समकालीन परिवेश में उनके विचारों की प्रासंगिकता को पुनः सिद्ध करता है। वस्तुतः गाँधी जी दुनिया के एकमात्र लोकप्रिय व्यक्ति थे जिन्होंने सार्वजनिक रूप से स्वयं को लेकर अभिनव प्रयोग किए और आज भी सार्वजनिक जीवन में नैतिकता, आर्थिक मुद्दों पर उनकी नैतिक सोच व धर्म-सम्प्रदाय पर उनके विचार प्रासंगिक हैं।

साहित्य रचना केवल एक कला ही नहीं है बल्कि उसके सामाजिक दायित्व का दायरा भी काफी बड़ा होता है। यही कारण है कि साहित्य हमारे जाने-पहचाने संसार के समानांतर एक दूसरे संसार की रचना करता है और हमारे समय में हस्तक्षेप भी करता है। ऐसे में व्यक्ति, समाज, साहित्य और राजनीति के अन्तर्सम्बधों की संश्लिष्टता को पहचान कर उसे मौजूदा दौर के परिपे्रक्ष्य में जाँचना-परखना कोई मामूली चुनौती नहीं। कृष्ण कुमार यादव मूकदृष्टा बनकर चीजों को देखने की बजाय भाषा की स्वाभाविक सहजता के साथ इन चुनौतियों का सामना करते हैं, जिसका प्रतिरूप उनका यह प्रथम निबंध-संग्रह है। कृष्ण कुमार यादव की यह पुस्तक पढ़कर जीवंतता एवं ताजगी का अहसास होता है।



पुस्तक: अभिव्यक्तियों के बहाने (निबन्ध संग्रह)/ लेखकः कृष्ण कुमार यादव/ मूल्य: 150/- प्रकाशक: शैवाल प्रकाशन, दाऊदपुर, गोरखपुर
समीक्षक: गोवर्धन यादव, 103. कावेरी नगर, छिंदवाड़ा (म0प्र0)-480001

सोमवार, 6 अक्टूबर 2008

समीक्षा: ज्योति प्रभा - शम्भु चौधरी


ज्योतिप्रसाद अगरवाला का जन्म 17 जून सन् 1903 को डिब्रूगढ़ अंचल के तामुलबारी चाय बगीचे (असम) में हुआ। उन्होंने हाईस्कूल की शिक्षा डिब्रूगढ़ तथा तेजपुर में प्राप्त की। सन् 1921 में वे तेजपुर सरकारी उच्च विद्यालय से 'प्रवेशिका निर्वाचन' परीक्षा में उत्तीर्ण होकर कलकत्ता में चित्तरंजन दास द्वारा स्थापित राष्ट्रीय विद्यापीठ से द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण हुए। वह समय था महात्मा गांधी द्वारा संचालित असहयोग का। ज्योतिप्रसाद ने उच्च शिक्षा से मुँह मोड़कर असहयोग आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लेने लगे। आन्दोलन धीमा होने पर कलकत्ता के नेशनल कॉलेज में अध्ययन कर कुछ दिन अपने ताऊ चन्द्रकुमार अगरवाला द्वारा स्थापित 'न्यू प्रेस' के संचालन में सहयोग दिया। सन् 1926 में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिये वे इंग्लैण्ड चले गये। वहाँ एडिनबरा विश्वविद्यालय में कुछ दिनों तक अध्ययन करने के बाद जर्मनी में सात माह तक चलचित्र तकनीक संबंधी प्रशिक्षण लिया। 1930 में स्वदेश वापसी के पश्चात आजादी की लड़ाई में सक्रिय रूप से भागीदारी । 1932 में 15 महीनों का सश्रम कारावास और 500 रुपये का जुर्माने की सजा। 14 वर्ष की आयु में 'शोणित कुँवरी नाटक' की रचना। अन्तिम समय तक नाटक, कविता, जीवनी, शिशु-काव्य और साहित्य की अन्य विधाओं में कार्य। रचना एवं स्वर संयोजन में अभिनवता से भरे असंख्य गीतों के माध्यम से असमीया संगीत को नवरूप प्रदान । 1934 में भोलागुरि चाय बगीचे में अस्थायी 'चित्रवन स्टूडियो' स्थापित कर, सर्वप्रथम असमीया चलचित्र 'जयमती' का निर्माण। 1935 में जयमती का प्रदर्शन। 1936-37 में विष्णुप्रसाद राभा के साथ नाटक जयमती और शोणित कुँवरी के ग्रामोफोन रेकॉर्ड निर्माण। 1937 में तेजपुर में 'जोनाकी' चलचित्र-गृह का निर्माण। 1939 में द्वितीय असमीया चलचित्र 'इन्द्रमालती का निर्माण। 1940 में तेजपुर में संगीत विद्यालय की स्थापना। असम में एक दिन की सरकारी छुट्टी इनके जन्म दिन पर मनायी जाती है। अनके करीब 367 गीत (सभी मूल असमीया भाषा में) प्रकाश में आये। उन्होंने कुछेक गीतों के लिए स्वयं स्वरलिपि तैयार की थी। जसकी अपनी कुछ विशेषताएँ हैं। इसी कारण असम के संगीत प्रेमियों ने इस संगीत को 'ज्योति संगीत' की संज्ञा दी। जिस प्रकार ' रवीन्द्र संगीत' में भाव, भाषा, स्वर और कल्पना का समन्वय हुआ है उसी प्रकार ज्योतिप्रसाद के गीतों में भी समन्वय के दर्शन होते हैं। ज्योतिप्रसाद ने असमीया संगीत के मूल रूप को अक्षुण्ण रखते हुए, पाश्चात्य संगीत का समावेश कर, एक पथ-प्रदर्शक के रूप में असमीया साहित्य को स्मृद्ध तो किया ही असमीया समाज में नई चेतना का संचार भी किया।


आप प्रकृतितः कवि थे। उनके गद्य में भी उनके कवित्व की सुषमा और सौरभ व्याप्त है। संख्या की दृष्टि से उनकी कविताएँ कम हैं - उनकी 50 सम्पूर्ण कविताएँ एवं 12 शिशु-कविताएँ प्रकाशित ( सभी असमीया भाषा में) हुई हैं। किन्तु काव्य, भाव एवं शिल्प की दृष्टि से वे अनुपम हैं। इसी कारण असमीया काव्य साहित्य में उन्हें शीर्ष स्थान प्राप्त है। कवि के रूप में ज्योतिप्रसाद में कुछ विशेष गुण हैं। उनकी कविता में असमीया जातीयता के भाव की प्रधानता होने पर भी भारतीय तथा विश्वजनीन भाव के साथ कहीं विरोध नहीं झलकता। जातीयता के प्रति निष्ठा रकह्ते हुए, उससे दृढ़तापूर्वक जुड़े रहते हुए भी वे संकीर्ण जातीयता से ऊपर अठने में सक्षम हैं।
ज्योतिप्रसाद को असम में लोग 'रूपकुँवर' के नाम से जानते -पहचानते हैं। यह शब्द उनके नाम का एक अभिन्न अंग बन गया है। ज्योतिप्रसाद को 'रूपकुँवर' की उपाधि किस प्रकार मिली, इस विषय में कई विचार और भ्रान्तियाँ हैं। इस सम्बन्ध में असम के सुप्रसिद्ध कवि आनन्दचन्द्र बरुवा ने कहा है, " अखबार में काम करते समय ज्योतिप्रसाद के 'चित्रवन' में दो दिन रहकर आया और 'रूपकुँवर ज्योतिप्रसाद' नाम से एक लेख प्रकाशित करवाया । मेरे द्वारा कल्पित यह उपाधी लोकप्रिय होकर अजर-अमर हो गयी, इसका मुझे संतोष है। आपके द्वारा रचित कुछ रचनाओं का हिन्दी अनुवाद असम के देवीप्रसाद बागड़ोदिया जी ने की है। इनखी एक पुस्तक 'ज्योति प्रभा' का प्रथम संस्करण जनवरी 1995 एवं दूसरा संस्करण 2003 में प्रकाशित हुआ है। 650 पृष्ठ की यह पुस्तक का मूल्य 250/- + डाकखर्च अतिरिक्त रखा गया है।
पुस्तक प्राप्ति स्थान:
ई- हिन्दी साहिय सभा या आप सीधे श्री देवी प्रसाद बागड़ोदिया, बागड़ोदिया निवास, ज्योतिनगर, डिब्रूगढ़ - 786005, फोन नम्बर: 09435032796 से भी प्राप्त कर सकतें हैं।
Mail To E-Hindi Sahitya Shaba

ज्योतिप्रसाद की कुछ रचनाएँ नीचे दे रहे हैं।
सभी गीत असमीया मूल से हिन्दी में अनुवाद श्री देवी प्रसाद बागड़ोदिया के द्वारा :-



1. रुपहले पानी में सोने की नाव


रूपहले पानी में सोने की नाव
खोल दे रे
खोल दे, खोल दे, खोल दे रे।
तितली के पंखों से उड़ते हैं पाल
फूल के पत्तों की छाजन
वह नील आकाश की किस सीमा में
बाजे असीम की बंसी
वहाँ निद्रा तिमिर भेदकर
जागे अरूण की हँसी
उसी ओर, उसी ओर
खोल दे, खोल दे, खोल दे रे।
जीवन तट का हरियाला खेत
खिले फूल की ज्योति अपार
मरणाकुल फेनिल उफान
पीछे छोड़ जाये
विहर की वेदना में आनन्द झलके
मिलन में विहर का लेख
जीवन मरण जीत चमके
प्रणय का ध्रुवतारा
चमक कर बुलाये रे
प्रकाश की ओर, प्रकाश की ओर
ज्योति के देश की ओर।


2. लुइत* तट का अग्निसुर


लुइत तट का अग्निसुर
तुम्हें लिख दिया अपने रक्त से
लुइत तट का अग्निसुर।
तुम्हें रच दिया
 व्यथा वेदना से
  कर दिया तुम्हें
   अपने हृ्दय की
    अग्निशिखा से
लुइत तट का अग्निसुर।
    छा जाओगे तुम
     लुइत के दोनों पार
चमकना तुम सागर के उस पार
भारत के घर-घर में
परिचय बनाना भावी पृथ्वी में
     नये प्राण में
     नये गान में
विकरित कर
ज्योति स्फुलिंग
जाना दूर अति दूर
लुइत तट का अग्निसुर।
* लुइत : (लोहित) ब्रह्मपुत्र नदी का लोक-प्रचलित नाम।


3. स्वाधीनता के लिये तड़पते प्राण


स्वाधिनता के लिये तड़पते प्राण
    देश का दुःख देख कलपे हिया
भिक्षा की झोली ले निकला है
    विमुख न करना हमें माँ।
त्याग दी हमने विषय वासना
अग्नि लुइत में प्राणों का कर संधान
गृहस्थ घर की लक्ष्मी बहू
    अन्न की मुट्ठी करो दान।
देश का दुःख देख लुइत सिसक रही
    रोक न पाये कोई अश्रुजल
अहिंसा युद्ध में रण की रणभेरी
  बजे बार बार
   जाये तत्काल
    विमुख न करना हमें माँ।



4. कौन गढ़ना चाहता है सोने का देश


कौन गढ़ना चाहता है सोने का देश
माँ असमी को पहनाना चाहता
प्रकाशित सुन्दर वेश
कौन गढ़ना चाहता है सोने का देश
मेरे इस देश के खेतों में सोना
अपने आप उपजे
स्वर्न प्रभात की सुनहरी हँसी
मेरे आँगन में खेले
संध्या लुइत का वक्ष चमका
स्वर्णिम रंग भरे
सुनहले मूँगो के पट से
युवती सुन्दर सजे
रुपहली रेत पर स्वर्णिम धूल
झलमल रूप धरे
स्वर्ण केतकी की, स्वर्ण रेणु झरे
शिल्पी दल का स्वर्णिम स्वप्न
 हरित वन विचरे।
  स्वर्णिम देश की
महापुरुष की
शंकर माधव* की
 स्वर्ण मूल्या संस्कृति
  देती प्रकाश
   इस पृथ्वी को
    स्वर्णिम जीवन की
महा मनीषा
महा प्रतिभा जन जीवन की
स्वर्णीम सपनों की
इसी देश में स्वर्णिम भविष्य की
  स्वर्ण ज्योति जले
इसी देश में शिल्पी मन के
  महा स्वप्न की
इस पृथ्वी के स्वर्ण यथार्थ की, स्वर्णिम पहचान
  स्वर्ण चित्र में ढले।
बोधन कर विश्व शिल्पी मन
इसी देश में जनजीवन में
स्वर्णिम मन की स्वर्णिम पंखुड़ी
  स्वर्ण हँसी सी खिले।

* शंकर माधव: महापुरुष शंकरदेव


5. मनुष्य जन्म लेकर कौन


मनुष्य जीवन लेकर कौन
पशु का खेल खेलो?
देव किरीट पहन भाल पर
राक्षस रूप धरो
आसुरी नृत्य करो
स्वर्ग की छवि पृथ्वी पर चाहकर
नर्क की ओर डग भरो
अपनी आँख आप फोड़कर
गहरे गर्त गिरो।
ज्ञानी को तू मूर्ख बताये
हँसे आप ही आप ही रोये
खुद को मार रहा खुद ही
गली गली घूमो पगलाये।

गुरुवार, 2 अक्टूबर 2008

नहीं चाहिए दागी नेता, मुन्नाभाई लाओ





नेताजी ने खद्दर पहना, और लगा ली टोपी
भाषण देने बुला रहा था, उनका चमचा गोपी
उनका चमचा गोपी, कि हाथ में लाठी भी इक ले ली
कमर में बांधी गोलघड़ी, औ साथ चली एक चेली
भाषण खूब जमा नेता का, बोले बापू का है देश
सबक सिखा देंगे हम सबको, दे दो थोड़ी कैश
दे दो थोड़ी कैश कि नगद बिन काम न होगा
मर्डर, डकैती केस में हमने जेल में काफी भोगा
अब हम वचन दे रहे साधो, बापू के रस्ते जाएंगेे
नहीं करेंगे हिंसा, अब सच्चा पथ अपनाएंगे
तभी भीड़ से उठकर आगे, आया एक भोला बच्चा
बोला तुम तो दो नंबरी हो, देश खा गए कच्चा
नहीं भरोसा तुम पर हमको, तुम नहीं गांधी वादी
भीतर से हो बुलेट प्रूफ और ऊपर पहने खादी
तुम जैसे कमबख्तों से ही हो रहा देश नीलाम
जाओ जेल में पीसो चक्की, तुम हो नमक हराम
किया भरोसा तुम जैसों पे, जनता भोली भाली
कैसे सुखे सुखे थे कल, आज चेहरे पे लाली
नारायण इन गद्दारों से अब तो हमें बचाओ
नहीं चाहिए दागी नेता, मुन्नाभाई लाओ
नहीं चाहिए दागी नेता, मुन्नाभाई लाओ

Written & sent by
Sonu-Monu Dugar (18 years)
Bhubaneshwar
Selected by
Chirag-Chaman Chandalia
Kolkata