हिन्दी पत्रकारिता का विदेशों में उन्नयन यह एक उल्लेखनीय तथ्य है कि जिस प्रकार से भारत में हिन्दी-पत्रकारिता विभिन्न चरणों में विकसित हुई है, ठीक उसी प्रकार से विदेशों में भी प्रवासी भारतियों के द्वारा उसके विकास की दिशा में महत्वपूर्ण कार्य हुआ है। विश्व के ऐसे अनेक देश हैं जहाँ शताब्दियों पूर्व भारतीय जाकर बस गये थे और उनके वंशज आज भी वहाँ निवास करते हैं, यद्यपि पीढ़ियों से रहते हुए उन्होंने न केवल वहाँ की वेशभूषा, रीति-रिवाज और आचार-विचार के साथ ही बोल-चाल की भाषा को भी अपना लिया है, परन्तु उनमें बहुत से ऐसे भी है जो अपने धर्म, संस्कार और भाषा से भावात्मक रूप में जुड़े हुए हैं। उन्हीं के द्वारा समय-समय पर हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन आरम्भ किया गया था, जो अनेक रूपों में आज भी हो रहा है।
इनके मूल में हिन्दी पत्रकारिता के प्रति निष्ठा की भावना ही है। हालांकि व्यावहारिक रूप से लोकप्रिय बनाने के उद्देश्य से उसमें हिन्दी के साथ ही स्थानीय भाषाओं का अंश भी प्रकाशित किया जाता है और वे द्विभाषी अथवा त्रिभाषी आदि रूपों में प्रकाशित हो रहे हैं।
ऐतिहासिक दृष्टि से विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का जन्म सन् 1883 में हुआ था। इसी वर्ष लंदन से ‘हिन्दोस्थान’ नामक त्रैमासिक पत्र का प्रकाशन प्रारम्भ हुआ था। किसी भी विदेश से प्रकाशित होनेवाले सर्वप्रथम हिन्दी पत्र के रूप में इसकी मान्यता है। इसके संस्थापक राजा रामपाल सिंह थे। यह त्रिभाषी रूप में प्रकाशित होता था और इसमें हिन्दी के साथ ही उर्दू तथा अंग्रेजी के अंश भी रहते थे। दो वर्ष तक वहाँ से प्रकाशित होते रहने के पश्चात् सन् 1885 में यह राजा रामपाल सिंह द्वारा ही कालाकांकर (अवध) से प्रकाशित होना प्रारम्भ हुआ। पंडित मदन मोहन मालवीय इसके प्रधान सम्पादक थे। यहाँ से यह साप्ताहिक रूप में प्रकाशित होता था। सन् 1887 में यह दैनिक के रूप में प्रकाशित होने लगा। अमृतलाल चक्रवर्ती, शशि भूषण चटर्जी, प्रताप नारायण मिश्र, बाल मुकुन्द गुप्त, गोपाल राम गहमरी, लाल बहादुर, गुलाबचन्द चैबे, शीतल प्रसाद उपाध्याय, राम प्रसाद सिंह तथा शिवनारायण सिंह इसके सम्पादक रहे थे। हिन्दी पत्रकारिता के विकास में इसका ऐतिहासिक महत्व है।
कालांतर में इंगलैण्ड की राजधानी लंदन से ही कतिपय अन्य हिन्दी पत्र भी प्रकाशित हुए। इसमें शांता सोनी द्वारा सम्पादित ‘नवीन’ शीर्षक पत्र भी उल्लेखित किया जा सकता है। यह साप्ताहिक रूप में प्रकाशित होता था। इसी प्रकार एस.एन. गौरीसरिया के सम्पादकत्व में ‘सन्मार्ग’ शीर्षक से भी एक पत्र लंदन से प्रकाशित हुआ था। पी.जे. पेंडर्स ने भी एक पत्र यहीं से प्रकाशित किया था, इसका शीर्षक ‘केसरी’ था। इसी प्रकार सुकुमार मजूमदार के सम्पादकत्व में ‘प्रवासी’ शीर्षक से प्रकाशित एक पत्र भी उल्लेखनीय है।
लंदन से जो पत्र-पत्रिकाएं हिन्दी में प्रकाशित हुई, उनमें जगदीश कौशल द्वारा सम्पादित ‘अमरदीप’ का नाम भी उल्लेखनीय है। यह एक साप्ताहिक पत्र था। इसी प्रकार लंदन में भारत से प्रकाशित ‘आज’ के प्रतिनिधि धर्मेन्द्र गौतम ने भी ‘प्रवासिनी’ शीर्षक से एक पत्र का सम्पादन आरम्भ किया था जो त्रैमासिक प्रकाशित होता था।
‘सोवियत संघ’ शीर्षक से एक पत्र मास्को से प्रकाशित होता है। इसके प्रधान सम्पादक निकोलोई गिबाचोव तथा चित्रकार अलेक्सांद्र जितो मिस्कीं हैं। इसका प्रकाशन सन् 1972 में आरम्भ हुआ था।
जापान से प्रकाशित हिन्दी पत्रों में ‘सर्वोदय’ का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इसका सम्पादन त्रोश्यो तनाका द्वारा किया जाता है। जापान से ही एक अन्य हिन्दी पत्रिका ‘ज्वालामुखी’ शीर्षक से भी प्रकाशित होती है। इसकी विशेषता यह है कि यह जापानी नागरिकों द्वारा ही संपादित की जाती है और इसमें उन्हीं के द्वारा हिन्दी में लिखे लेख प्रकाशित होते हैं।
फ्रांस से भी हिन्दी पत्रकारिता के क्षेत्र में कतिपय उल्लेखनीय प्रयत्न परिलक्षित होते हैं। फ्रांस की राजधानी पेरिस से ‘यूनेस्को कूरियर’ नामक पत्र का प्रकाशन उल्लेखनीय है।
मारीशस से भी हिन्दी में अनेक पत्र-पत्रिकाएं समय-समय पर प्रकाशित हुई। इसमें ‘हिन्दुस्तानी’, ‘जनता’, ‘आर्योदय’, ‘कांग्रेस’, ‘हिन्दू धर्म’, ‘दर्पण’, ‘इण्डियन टाइम्स’, ‘अनुराग’, ‘महाशिवरात्रि’ एवं ‘आभा’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण से मारीशस से प्रकाशित होने वाला हिन्दी का सर्वप्रथम पत्र ‘हिन्दुस्तानी’ थां इसका प्रकाशन सन् 1909 है। इसके प्रथम सम्पादक मणिलाल थे।
मारिशस से प्रकाशित अन्य हिन्दी पत्रिकाओं में आत्माराम विश्वनाथ द्वारा संपादित ‘जागृति’ भी उल्लेखनीय है। काशीराम किष्टो ने भी मारीशस से प्रकाशित एक हिन्दी पत्र ‘आर्यवीर’ का सम्पादन किया था। इसी क्रय में लक्ष्मण दत्त द्वारा संपादित ‘आर्यवीर’ ‘जागृति’ शीर्षक पत्र भी महत्व रखते हैं। यह भी ज्ञातव्य है कि ‘ओरियंट गजट’ नामक पत्र मारीशस से प्रकाशित हुआ। इसका प्रकाशन आरम्भ 1930 से हुआ। ‘जागृति’ नाम से एक पत्र का प्रकाशन सन् 1940 में हुआ। इसके सम्पादक आत्माराम थे। इसका पूर्व नाम ‘आर्य पत्रिका’ था। ‘मारीशस इण्डियन टाइम्स’ शीर्षक से एक साप्ताहिक पत्र पोर्ट लुई से प्रकाशित हुआ। यह बहुभाषी पत्र था, जिसमें हिन्दी के अतिरिक्त अन्य भाषाओं के अंश भी रहते थे। सोमदत्त बरबौरी ने पोर्ट लुई से सन् 1968 में त्रैमासिक ‘अनुराग’ का सम्पादन करके हिन्दी पत्रकारिता का उन्नयन किया ।
सूरीनाम देश में भी हिन्दी पत्रकारिता के विकास के संकेत मिलते हैं। यहाँ से अनेक पत्र हिन्दी में दैनिक, साप्ताहिक और मासिक रूप में प्रकाशित हुए। ये पत्र जहाँ इस देश में हिन्दी पत्रकारिता के अस्तित्व के द्योतक हैं वहाँ दूसरी ओर प्रवासी भारतीयों की हिन्दी के प्रति रुचि को भी दर्शाते हैं। इनमें दैनिक ‘कोहिनूर’ अखबार, साप्ताहिक ‘प्रकाश’ और ‘शांतिदूत’ तथा मासिक ‘ज्योति’ विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
‘अमृतसिंधु नामक’ एक मासिक पत्र नेटाल (दक्षिण अफ्रीका) से प्रकाशित हुआ। इसके सम्पादक भवानी दयाल थे। इसका प्रकाशन आरम्भ 1990 से हुआ था। इसी क्रम में दक्षिण अफ्रीका के डरबन नामक शहर से ‘धर्मवीर’ नामक पत्र का प्रकाशन सन् 1916 में आरम्भ हुआ था। यह एक साप्ताहिक पत्र था। इसका सम्पादक रल्लाराम गांधीलामल भल्ला ने अमर धर्मवीर पंडित लेखराम की स्मृति में आरम्भ किया था। यह पत्र हिन्दी में प्रकाशित होता था। रल्लाराम गांधीलामल भल्ला उर्दू भाषा में मूल सामग्री प्रस्तुत करते थे तथा उनके सहायक मेहर चन्द भल्ला उसका अनुवाद हिन्दी में करके उसे छपने को देते थे। सन् 1917 में इसका सम्पादन स्वामी भवानी दयाल सन्यासी ने किया। 1919 तक इस दायित्व को सफलतापूर्वक निर्वाह करने के पश्चात् कुछ लेख अंग्रेजी में भी प्रकाशित होते थे।
‘हिन्दी’नामक मासिक पत्रिका मई सन् 1922 में डरबन (दक्षिण अफ्रिका) से प्रकाशित हुई थी। इसका सम्पादन स्वामी भवानी दयाल सन्यासी करते थे। यह अपने समय का प्रवासी भारतीयों का लोकप्रिय पत्र था। इस प्रकार ‘आर्य संदेश’ शीर्षक से एक पाक्षिक ट्रिनिडाड (दक्षिण) से प्रकाशित हुआ था। इसके सम्पादक एल. शिव प्रसाद थे। इसका प्रकाशन आरम्भ सन् 1950 में हुआ था। एक अन्य पत्र ‘आर्यमिक्र’ शीर्षक से भी दक्षिण अफ्रीका से प्रकाशित हुआ था। यह आर्य प्रतिनिधि सभा का मुख पत्र था।
सन् 1904 में अफ्रीका के डरबन नामक स्थान से ‘इण्डियन ओपिनयन’ नामक पत्र प्रकाशित हुआ था। इसका सम्पादन मदन जीत द्वारा आरम्भ किया गया। कुछ समय पश्चात् यह गांधीजी के संरक्षण में फिनिक्स से भी प्रकाशित हुआ था। इस पत्र ने राष्ट्रीय आंदोलन के प्रसार में एक महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया था। उस पत्र से जो अन्य पत्रकार जुड़े हुए थे उनमें मदनजीत, मनसुख लाल व भवानी दयाल प्रमुख थे। इसका प्रकाशन आरम्भ 1904 में तथा प्रकाशन स्थगित 1914 में हुआ। इस पत्र की एक प्रति का मूल्य 12 शिलिंग था। यह द्विभाषी पत्र था।
बर्मा से भी समय-समय पर हिन्दी की अनेक पत्र-पत्रिकाएं प्रकाशित होती रही है। इनमें ‘प्राची प्रकाश’ ‘जागृति’ तथा ‘ब्रह्म भूमि’ विशेष रूप से उल्लेखनीय है। यहाँ यह ज्ञातव्य है कि ‘प्राची प्रकाश’ दैनिक पत्र रंगून से प्रकाशित होता है। यह बर्मा से हिन्दी मंे प्रकाशित होेने वाला दैनिक पत्र है।
अविभाजित भारत में ढाका (संप्रति बंगलादेश) से भी हिन्दी की अनेक महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाएँ 19वीं और बीसवीं षताब्दियों में प्रकाशित हुई हैं। इनमें प्राचीनतम ‘बिहार बन्धु’ हैं। यह पत्रिका मासिक रूप में प्रकाशित होती थी। इसका प्रकाशन वर्ष सन् 1871 है। इसी क्रम में 1880 में एक अन्य मासिक पत्रिका ‘धर्म नीति तत्व’ शीर्षक से भी प्रकाशित हुई थी। इसका प्रकाशन वर्ष भी 1880 है। इसके आठ वर्ष पश्चात् अर्थात 1888 में ‘विद्या धर्म दिपिका’ नामक पत्रिका ढाका से ही प्रकाशित हुई थी। सन् 1889 में ढाका से ही एक अन्य हिन्दी पाक्षिक पत्रिका भी प्रकाशित हुई थी। इसका शीर्षक ‘द्वित्र’ था। इसी प्रकार 1904 में ‘नारद’ शीर्षक से भी एक पत्र का प्रकाशन ढाका से आरम्भ हुआ था। सन् 1905 में ‘नागरी हितैषी’ पत्रिका का प्रकाशन भी ज्ञातव्य है। सन् 1911 में ‘तत्व दर्शन’ शीर्षक पत्र का उल्लेख भी आवश्यक है। इस प्रकार 1939 में ‘मेल-मिलाप’ शीर्षक से एक मासिक पत्रिका भी ढाका से ही प्रकाशित हुई थी।
हिन्दी पत्रकारिता में नेपाल से प्रकाशित पत्रों का भी उल्लेखनीय स्थान है। नेपाल की राजधानी काठमाण्डू से ‘नेपाल’ शीर्षक से एक हिन्दी पत्र प्रकाशित होता है। ज्ञातव्य है कि यह पत्र दैनिक रूप में प्रकाशित होने वाला एक विशिष्ट पत्र है। आठमाण्डू से ही प्रकाशित जो अन्य पत्र उल्लेखनीय है उनमें ‘हीमोवत संस्कृत’ पत्र भी है। इसी प्रकार ‘हिमालय’ शीर्षक से भी एक पत्र बीरगंज से प्रकाशित हुआ था। इसी क्रम में ‘नव नेपाल’ शीर्षक से एक साप्ताहिक पत्र काठमाण्डू (नेपाल) से प्रकाशित हुआ। इसके सम्पादक मणिराज उपाध्यक्ष थे। इसका प्रकाशन 1955 से आरम्भ हुआ था।
स्वतंत्रतापूर्व के भारत एवं तत्पश्चात् पाकिस्तान के अन्तर्गत चले गये लाहौर से भी बहुसंख्यक पत्र-पत्रिकाएँ प्रकाशित हुई हैं। इनमें ‘भारतीय’, ‘विश्वबन्धु’, ‘आर्यबन्धु’, ‘आर्यजगत’, ‘शान्ति’, ‘सुधाकर’, ‘क्षत्रिय पत्रिका’, ‘मित्र विलास’, ‘बूटी दर्पण’ व ‘आकाशवाणी’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनके अतिरिक्त ‘आर्य प्रभा’ शीर्षक मासिक पत्रिका का प्रकाशन भी सन् 1914 में लाहौर से आरम्भ हुआ था। इसके आदि सम्पादक संत राम तथा सहायक सम्पादक महानन्द थे। सन् 1918 से यह पत्रिका साप्ताहिक रूप से प्रकाशित हुई थी। सन् 1914 में ही लाहौर से ‘उषा’ नामक पत्रिका भी प्रकाशित हुई थी। इसके सम्पादक भी संतराम थे। जमानत न देने की असमर्थता के कारण यह पत्र दो वर्ष बाद बन्द हो गया। इसी क्रम में ‘हिन्दी मिलाप’ नामक पत्र का प्रकाशन 11 सितम्बर 1927 को खुशहाल चन्द सुखचन्द (महात्मा आनन्द स्वामी) ने लाहौर से किया था। इसका सम्पादन सुदर्शन तथा बद्रीनाथ बर्मा करते थे। बाद में इसके प्रधान सम्पादक रणबीर तथा सम्पादक यश बने। हरिकृष्ण ‘प्रेमी’, रूपनाथ मलिक और संतराम भी इसके सम्पादकीय विभाग से जुड़े रहे थे। भारत विभाजन काल में इसके सम्पादक आत्म स्वरूप शर्मा थे जिन्होंने 15 अगस्त 1947 को अपना बलिदान कर दिया। सन् 23 सितम्बर 1949 से यश के सम्पादकत्व में यह जालंधर से पुनः प्रकाशित हुआ। इसका उर्दू संस्करण रणवीर के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुआ तथा एक अन्य संस्करण युद्धवीर के सम्पादकत्व में हैदराबाद से प्रकाशित होता है। इसका एक अन्य संस्करण लंदन से भी प्रकाशित होता है।
हिन्दी पत्रकारिता के विकास में विदेशों मे जो कार्य हुआ है उसको दृष्टि में रखते हुए फिजी से प्राकशित हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं का महत्व अस्वीकार नहीं किया जा सकता है। यहाँ से बहुसंख्यक पत्रों का प्रकाशन हुआ है जो सामाजिक, धार्मिक और राजनैतिक विषयों के साथ-साथ कृषि विज्ञान आदि से भी सम्बन्धित रहे है। ‘अखिल फिजी कृषक संघ’ शीर्षक से एक ऐसे ही पत्र का प्रकाशन दीनबन्धु के सम्पादकत्व में फिजी से हुआ था। इसी प्रकार ‘किसान’ शीर्षक से भी एक पत्रिका का प्रकाशन बी.बी. लक्ष्मण के द्वारा किया गया था। कृषि विषयक एक अन्य पत्रिका नन्द किशोर के सम्पादकत्व में ‘किसान मित्र’ शीर्षक से भी प्रकाशित हुई थी।
फिजी द्वीप समूह से जो अन्य पत्र-पत्रिकाएँ समय-समय पर प्रकाशित होती रही है, उनमें कमला प्रसाद मिश्र द्वारा ‘जय फिजी’ विवेकानन्द शर्मा द्वारा सम्पादित ‘सनातन संदेश’ तथा ‘फिजी संदेश’ जय नारायण शर्मा द्वारा सम्पादित ‘शांति दूत’ राघवनन्द शर्मा द्वारा ‘जागृति’, चन्द्रदेव सिंह द्वारा सम्पादित ‘फिजी समाचार’ आदि प्रमुख है। इसी क्रम में ‘फिजी सरकार’ तथा ‘पुस्तकालय’ आदि पत्रिकाएँ भी उल्लेखनीय हैं।
फिजी द्वीप समूह से ही प्रकाशित जिन अन्य बहुसंख्यक पत्र-पत्रिकाओं का उल्लेख करना यहाँ आवश्यक है, उनमें ‘इण्डियन टाइम्स’ शीर्षक मासिक पत्रिका भी प्रमुख है। यह रामसिंह के सम्पादकत्व में प्रकाशित हुई थी। यह एक द्विभाषी पत्रिका थी, जिसमें हिन्दी के साथ अंग्रेजी का अंश भी रहता था।
‘इण्डियन सेटेलर्स’ नाम से एक मासिक पत्रिका का प्रकाशन सन् 1917 में हुआ था। इसके संपादक डा.मणिलाल तथा बाबू रामसिंह थे। 13 वर्ष तक प्रकाशित होने के पश्चात् सन् 1930 में यह पत्रिका बन्द हो गयी। यह सुवा से प्रकाशित होती थी। लिथो में मुद्रित यह बहुभाषी पत्रिका थी जिसमें हिन्दी का अंश भी रहता था।
सन् 1923 में ‘फिजी समाचार’ का प्रकाशन आरम्भ हुआ था। यह पत्र बाबू राम सिंह के सम्पादकत्व में प्रकाशित होता था। यह एक साप्ताहिक पत्र था। इसका सम्पादन राम खिलावन शर्मा ने भी किया था। इसकी एक प्रति का षुल्क 3 पेनी और वार्षिक षुल्क 10 शिलिंग था। इसका प्रकाशन सन् 1975 में स्थापित हो गया था। यह इण्डियन पब्लिसिंग कम्पनी माक्र्स स्ट्रीट सुवा (फिजी) से प्रकाशित होता था। यह एक द्विभाषी पत्र था जिसमें हिन्दी के साथ ही अंग्रेजी का अंश भी रहता था। गुरुदयाल शर्मा ने सन् 1928 में ‘वृद्धि’, 1930 में ‘पैसेफिक’ तथा सन् 1932-33 में ‘वृद्धि वाणी’ का सम्पादन एवं प्रकाशन करके फिजी में हिन्दी पत्रकारिता का प्रसार किया। सन् 1935 में सुवा से प्रकाशित‘शान्ति दूत’की स्थापना का श्रेय भी उन्हें प्राप्त है।
फिजी द्वीप समूह से ही ‘तारा’ नामक एक मासिक पत्रिका सन् 1941 में प्रकाशित हुई थी। इसका सम्पादन ज्ञानी दास करते थे। इस पत्रिका की एक प्रति का षुल्क 3 शिलिंग और वार्षिक 12 शिलिंग था। यह कुछ समय तक पाक्षिक रूप में ही प्रकाशित हुई थी। इसका त्रैमासिक संस्करण भी प्रकाशित होता था। इसका प्रकशन कार्यालय नसीनू (सुवा) में था। इसी प्रकार सिगातों का (फिजी) से राघवानन्द ने सन् 1976 से ‘जागृति’ शीर्षक का प्रकाशन करके हिन्दी पत्रकारिता के विकास में योगदान दिया। फिजी हिन्दी पत्रकार संघ के उप प्रधान के रूप में भी उनका क्रिया कलाप उल्लेखनीय है। इसी संदर्भ में यह ज्ञातव्य है कि ‘फिजी’ संदेश शीर्षक से एक पत्रिका का प्रकाशन और सम्पादन बी.एल. मानिस के द्वारा किया गया था।
शनिवार, 13 सितंबर 2008
हिन्दी दिवस विशेष: विदेशों में हिन्दी पत्र-पत्रिकाएँ
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 10:03 pm
Labels: हिन्दी दिवस
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4 विचार मंच:
हिन्दी लिखने के लिये नीचे दिये बॉक्स का प्रयोग करें - ई-हिन्दी साहित्य सभा
हिंदी दिवस पर बेहद उल्लेखनीय जानकारी दी है आपने। भविष्य में भी हिंदी को समृद्ध बनाने में अपना योगदान देते रहेंगे, ऐसी अपे&ा है।
हिंदी के समस्त पुजारियों, शुभचिंतकों को हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
हिंदी दिवस पर मैंने एक पोस्ट
http://medianarad.blogspot.com/
पर डाली है। आपकी प्रतिक्रिया का इंतजार रहेगा।
बहुत उम्दा जानकारीपूर्ण आलेख.
हिन्दी दिवस की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
हिंदी दिवस पर प्रकाशित आलेख उल्लेखनीय है .सफल प्रयास के लिए धन्यवाद .हिंदी की प्रतिष्ठा अब युवाओ के हाथो में है ,जिसे समय के साथ विकसित करते जाना है .
डा.प्रणव देवेन्द्र श्रोत्रिय
विभागाध्यक्ष हिन्दी
चोइथराम कालेज आफ प्रोफेशनल स्टडीज इंदौर भारत पिन 452002
पृाची पृकाश दैनिक पतृ के मालिक का नाम पं़ अंनतराम मिञ है उनके पुतृ पं़ सुमंतृ पृसाद मिञ के पुतृ सतीश कुमार मिञ जो वाराणसी में रहते है। विनायका कोलुआ में रहते है। जिनका मोबाईल न.: 9415694877 पिन:न.: 221010 जो रंगून से पृकासशीत होता था। रंगून का पता और पृाची पृकाश दैनिक पतृ का एक पतृ मिल सकता है। मैं आपका बहुत ही रिणी रहूगॉ धंयवाद घर का पता साई निकेतन N 16/65 12-E दृतिय तल