....शंभु चौधरी, कोलकाता ।
पत्नी ने फिर एक ताना कसा - ‘‘ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप का नाम तो सुने होंगे ? उनकी सारी हेकड़ी इस कोरोना ने निकाल के उसके हाथ में थमा दी ‘‘लो गिनो लाशों को बैठे-बैठे’’ । तुमको तो मसल के बिना नमक-तेल लगाये कच्चा निगल जायेगा यह चीनी कोरोना ।
21, April'2020, कोलकाता (भारत):
एक कहावत है- ”लॉकडाउन के लड्डू जो खाये पछताये, जो ना खाये वो भी पछताये“ रामप्रसाद जी लॉकडाउन में पिछले एक माह से घर में ही खुद की पत्नी के द्वारा क्वारंटाइन हो रखे हैं । अब तो पत्नी ने अखबार लेना बंद कर दिया, पता नहीं कोरोना किस रास्ते से घर में प्रवेश कर जाए, परन्तु जब राशन-पानी की बात आती तो सबसे पहले पत्नी फेरीवाले को बाहर आवाज देती सुनाई देती ।
एऐ भाई - ‘‘ परवल है?, नींबू है?
सब्जी वाला - हाँ! परवल चालीस रुपये किलो, नींबू दस के तीन । वह जबाब देता ।
कभी ऑनलाइन राशन नहीं मंगाया पर इस लॉकडाउन ने मुझे ऑनलाइन राशन भी खरीदना सीखा दिया था ।
दिनभर कभी मोबाइल में, कभी टीवी पर समाचार देखता रहता, सारा दिन बस कुछ लिखने में, कुछ पढ़ने में गुजर जाता ।
लॉकडाउन के चलते पिछले कई दिनों से काम पर मासी भी नहीं आ रही है सो घर के सारे काम में भी सहयोग करना पड़ता ही ।
झाडू-पौंछा, बर्तन सफाई, अब तो रोटी बेलना भी सीखा दिया था पत्नी ने ।
शादी के 35 साल गुजर गये, जितना रौब मैंने इन 35 सालों में नहीं दिखाया था इन एक माह के लॉकडाउन में पत्नी ने दिखा दिया । जो-जो काम कभी सोचा नहीं था सब सीखा दिया ।
आप मेरी इस विवशता का कृपया मजाक में ना लें यह हकीकत है जो बयाने दिले सुना रहा हूँ । अब कल की ही बात लें । मैं सोचा की नाश्ते में कुछ बना लिया जाय, सो पत्नी को पूछा - ‘‘कुछ लड्डू तल लें ?’’
मेरा सवाल के शब्दों की विवषता देखिये वह हँसने लगी । बड़े साहित्यकार बनते हो ! इतना भी बोलना नहीं आता लड्डू तले नहीं, बनाये जाते हैं। उसने पलट के जबाब दिया ।
तब मुझे ख्याल आया कि आज तक तो लड्डू खाये ही खाये थे, अब घर में बैठा-बैठा कर भी क्या सकता था? मन ही मन आत्मग्लानि से भर चुका था । आज तक पत्रकारिता में घूल ही फांकी थी ? तभी मुझे पाठ्यक्रम की याद आ गई कि जिस क्षेत्र में पत्रकारिता करनी हो उस क्षेत्र की भाषा, तकनीकी शब्दों का अर्थ, उसके प्रयोग की जानकारी जरूरी है । ऐसा न हो कि बाँग्ला में एक वाक्य है - ‘जोल खाबे ?’ अब इसको यह लिख दिया जाए कि पानी खाने को पूछा । तो हिन्दी के पाठक हमें मारने दौड़ेंगे ठीक वही हालात मेरी आज मेरे ही घर में हो रही थी।
इस कोरोना ने मुझे इस कदर लाचार बना दिया था कि अपना डर भी नहीं दिखा पा रहा था ।
एक दिन धौंस दिखाते हुए बोल ही दिया कि - ‘‘ तुम आजकल कुछ ज्यादा ही बोल रही हो ।’’ मैं काम पर चला जाऊँगा ।
उसने भी पलट के जबाब दे दिया वह रास्ता खुला है । किसी ने रास्ता बंद नहीं किया । हाँ ! सुनो घर में मत आना जब तक लॉकडाउन है । दो माह का राशन घर में है उसके बाद की, बाद में सोचेगें ।
मेरी तो बोलती ही मानो बंद ।
सारा धौंस एक सेकेण्ड में कपूर की तरह उड़ गया । चुप-चाप पलंग पर लेट गया और हाथ में मोबाइल लेकर अपना ध्यान दूसरी तरफ करने लगा ।
अरे यह क्या भारत में तो कल कोरोना के बारह हजार मामले थे आज पंद्रह हजार हो गए ? भीतर ही भीतर मरने वालों की संख्या की तरफ ध्यान देता हूँ । रूह कंपकपाने लगी । गला सुखने लगा । पानी का ग्लास हाथ में लिया और एक घुंट पानी पी कर आँखे बंद कर ली । तभी-
पत्नी ने फिर एक ताना कसा - ‘‘ अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ट ट्रंप का नाम तो सुने होंगे ? उनकी सारी हेकड़ी इस कोरोना ने निकाल के उसके हाथ में थमा दी ‘‘लो गिनो लाशों को बैठे-बैठे’’ ।
फिर कुछ रूक कर- "तुमको तो मसल के बिना नमक-तेल लगाये कच्चा निगल जायेगा यह चीनी कोरोना ।"
वैसे भी सुनी हूँ कि चीनी लोग खाने के बड़े शौकीन होते हैं । सांप, छछूंदर, चमगादड़, कुत्ते, बिलार, चूहा यहाँ तक की तेलचटा, केकड़ा सब हजम कर जाते हैं। तुम तो इसे देखकर ही डर जाते हो । इस कोरोना से बचना है तो चुप से घर में पड़े रहो । मेरी बात मानो तो अच्छा ना मानो तो भी अच्छा । हमें तो लाश भी नहीं देगी सरकार देखने । बाहर जाना है तो फोटो फ्रेम बनवाते जाओ ।
अब तक मेरे दिमाग ठिकाने पर आ चुके थे । सारी इंद्रियाँ चुस्त-दुरुस्त हो गई थी। लॉकडाउन के लड्डू कितने महँगे है समझ में आ चुका था। भाई ! मेरी सलाह मान लो आज ‘‘पत्नी देवो भव’’ का मंत्र ही हमारी रक्षा का एक मात्र सूत्र है । बस । आगे कुछ भी मत सोचो ।