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शनिवार, 11 मई 2019

राफेल: खतरा ही खतरा

राफेल: खतरा ही खतरा
माननीय अदालत को यह तो साफ हो गया कि वे आसानी से  मुक्त नहीं हो सकती । बंद लिफाफे में सुनवाई कर वह बुरी तरह फंस चुकी है जो अदालत के इतिहास में लिखा जा चुका है कि बिना प्रतिपक्ष को सुने बंद लिफाफे में भी वह भी देश की सर्वोच्च अदालत में कोई फैसला हुआ था जो ना सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के दृष्टि से असंवैधानिक ही नही गलत भी था।  
गत् 10 मई' 2019 को देश की सर्वोच्च अदालत में राफेल मामले की पुनः सुनवाई हुई सर्वोच्च अदालत बंद लिफाफे की राजनीति में इस कदर फंस चुकी है कि अब उससे निकलना ठीक उसी प्रकार है जैसे गले की हड्डी ना खाये बनती है ना निकाले बनती है।  माननीय अदालत को यह तो साफ हो गया कि वे आसानी से  मुक्त नहीं हो सकती । बंद लिफाफे में सुनवाई कर वह बुरी तरह फंस चुकी है जो अदालत के इतिहास में लिखा जा चुका है कि बिना प्रतिपक्ष को सुने बंद लिफाफे में भी वह भी देश की सर्वोच्च अदालत में कोई फैसला हुआ था जो ना सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के दृष्टि से असंवैधानिक ही नही गलत भी था। अब इसकी सुनावाई के दो पहलु है पहला सरकार खुद को निर्दोष मानती है । दूसरा सरकार ही अब उसी अदालत को ब्लैकमेल करेगी और कल की अदालत में ऐसा ही हुआ जहाँ सरकारी वकील ने सीधे-सीधे तीन जजों की बेंच की धमकी ही दे डाली कि उनके दायरे में ही नहीं कि व देश की सुरक्षा के मामले में कोई सुनवाई कर सकें। तब सवाल उठता है कि जब सरकार को इसी अदालत से क्लिनचीट की जरूरत ही क्या थी? जब इस अदालत के दायरे में ही नहीं कि वह इस सौदे की जांच कर सके।

आपने ओसामा बिन लादेन या सद्दाम हुसैन का नाम सुना तो सुना होगा। नहीं सुना है तो आज इसके बारे में सुन लें यह वे ताकतवर लोगा थे जिनका सभी अपराध इस्लाम के नाम पर होता था। उनके ऊपर कोई भी हमला होता तो वे एक ही बात कहते कि ‘‘इस्लाम को खतरा है’’ या ‘‘इस्लाम पर हमला हो गया’’ यही बात जबसे मोदी सरकार सत्ता में आई है तबसे किसी न किसी बहाने से मोदी जी, अमित शाह, योगीजी व इनके तमात छुट भईया नेतागण, मोदी भक्त और गोदी मीडिया को दिनभर यही बात करते दिखाई देती है ‘‘हिन्दू खतरे में है’’  ‘‘हिन्दू धर्म असुरक्षित है’’ या फिर देश की सुरक्षा खतरे में है।  अब कल की ही बात ले लें, भारत के अटार्नी जनरल (महान्यायवादी) के.के. वेणुगोपाल को भी लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में आ जायेगी। उच्चतम अदालत में यही गुहार लगाते हैं कि ‘‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है। दुनिया की कोई अन्य अदालत इस तरह के तर्कों पर रक्षा सौदे की जांच नहीं करेगी’’ अटार्नी जनरल ने उच्चतम अदालत को चेतावनी देते हुए कहा कि यह एक रक्षा सौदा है मसलन देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है, तकनीकी मामला है जिसे आसानी से समीक्षा करने  नहीं दिया जायेगा। कहने का अभिप्रायः यह था कि मोदी की सरकार के पास खतरा ही खतरा है जिसकी सुरक्षा में वे दिन-रात विदेशों के चक्कर लगाकर करते रहते हैं। कभी छुपकर पाकिस्तान जाते हैं तो कभी पाकिस्तानियों से पाठानकोठ हमले की जांच करवा के देश की रक्षा करते है। 
खैर राफेल पर पुनः आतें हैं -
अदालत में जिन बातों पर दलीलों दी गई उनमें प्रशांत भूषण ने कहा कि - 
  1. यह निर्णय (14 दिसंबर का निर्णय) सरकार द्वारा आपूर्ति किए गए गलत और अधूरे तथ्यों पर आधारित है।
  2.  समझौते दस्तावेज से ‘‘मानक भ्रष्टाचार विरोधी खंड’’ को क्यों हटाया गया? क्या किसी अपराधी क्रिया को अंजाम दिया जाना था?
  3.  सरकार ने निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है।
  4.  बेंचमार्क की कीमत 5 बिलियन यूरो तय की गई थी, लेकिन अंतिम सौदे में बेंचमार्क के ऊपर कीमत 55.6% बढ़ गई।
  5.  INT के सदस्यों की आपत्तियों के बावजूद (Sovereign guarantee clause)  संप्रभु गारंटी खंड को हटा दिया गया था।
  6.  INT के असंतोष तीन सदस्यों के निर्णय को अदालत से छुपाया गया।
  7. सरकारी हलफनामे में, सरकार ने स्वीकार किया कि ‘‘पीएमओ द्वारा निगरानी’’ की जा रही थी। क्या इसे ‘‘समानांतर वार्ता’’ नहीं माना जा सकता?।
  8. इस डील के बाद अंबानी की कंपनी को फ्रांस सरकार की तरफ से ‘कर’  में भारी छूट भी दी गई। जो किसी शक के दायरे में खड़ा करता है। 
जबकि अरुण शौरी ने कहा कि माननीय अदालत का पुर्व निर्णय सरकार द्वारा दिये गये झूठ पर आधारित था, इसलिए इसकी समीक्षा जरूरी है। अदालत ने सभी पक्षों की दलीलों पर सुनवाई करते हुए अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है पर इतना तो जरूर है कि अब माननीय उच्चतम अदालत के सामने 'हिन्दू समाचार' में छपे वे नये दस्तावेज हैं जिसे भारत सरकार ने अपने पास छुपा रखा था और एक प्रकार से स्वीकार भी कर लिया है कि ये सभी दस्तावेज जो ‘हिन्दू’ में छपे हैं, सरकारी फाइल की प्रतिकॉपी है। जिसे पीएमओ की निगरानी शब्द से जोड़ दिया गया है। तो यह सवाल उठता है कि सरकार ने क्या पहले संसद और अदालत से झूठ बोला था? कि प्रधानमंत्री जी का इसमें कोई दखल नहीं है, क्या रक्षा मंत्री का संसद में दिया गया बयान झूठ पर आधारित था जैसा कि नये शपथपत्र में सरकार ने स्वीकार किया है कि ‘‘पीएमओ द्वारा निगरानी’’ की जा रही थी। अब यह निगरानी भारत के अटार्नी जनरल वेणुगोपाल को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा हुआ है। भला हो भी क्यों नहीं ?
मोदी सरकार के आने के बाद हर बात को देश की सुरक्षा से जोड़ा जा रहा है। मुफ्ती की सरकार बनाने से लेकर सेना की हत्या करवाने तक, चुनाव में  ‘जवाहरलाल नेहरू’ से लेकर ‘राजीव गांधी’ तक, ‘राम‘ से लेकर ‘जय श्रीराम’ तक, ‘अली’ से लेकर ‘बली’ तक ‘बंदे मातरम्’ से लेकर ‘‘भारत माता की जय’’ तक सब जगह खतरा ही खतरा हो गया। राष्ट्रीय सुरक्षा ही राष्ट्रीय सुरक्षा है। सब जगह मोदी सेना ‘‘भारत की सुरक्षा’’ में लगी है । मानो हर तरफ भारत की सुरक्षा को खतरा ही खतरा पैदा हो गया इन पांच सालों में। जब इतना खतरा एक साथ पैदा हो गया तो मोदी सरकार कर क्या रही थी ?
जयहिन्द ।
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं।  - शंभु चौधरी

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