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शुक्रवार, 3 मई 2019

मुद्दा विहीन चुनाव-2019

निहारिका, एम.ए (मास कॉमनिकेशन)


सब बस एक-दूसरों पर व्यक्तिगत हमला करने से भी नहीं चूक रहें हैं। नेताओं और उम्मीदवारों की भाषा-शैली निम्न स्तर की होती जा रही है । उनके भाषण का स्तर हास्यप्रद हो राह है। यानी एक सटीक वाक्य में कहा जाए तो इस बार का लोकसभा चुनाव 2019 एक  ‘‘मुद्दा विहिन’’ चुनाव  के रूप में जनमत में देखा जा रहा है। एक प्रकार से इसे अनौपचारिक रूप से जनता के विश्वास के साथ धोखा है।
निहारिका
'चुनाव' लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था का सबसे महत्वपूर्ण अंग है।  यह प्रक्रिया लोकतंत्र को अतिमजबूत तब बनाती हैं जब चुनाव स्वतंत्र और निष्पक्षता पूर्वक संपन्न की जाती है। भारत विश्व का सबसे बड़ा सशक्त लोकतंत्र है, तब यहाँ आम चुनावों को सम्पन्न कराना भी  बहुत ही कठिन व चुनौतीपूर्ण कार्य तो  है, किंतु यह यहां एक माहपर्व के रूप में या  लोकतंत्र के सबसे बड़े त्योहार के रूप में इसे मनाया जाता है। इसलिए इस  चुनावी महापर्व को सफल बनाना एवं  शांति व सौहार्द्धपूर्वक पूर्ण करना सबकी जबाबदेही है। इसके लिये चुनाव आचार संहिता का सख़्ती से पालन करना भीअतिआवश्यक होता है। जिससे चुनाव आयोग, मतदाताओं को आकर्षित, प्रभावित और लुभाने वाले अनुचित प्रयासों से बचा सके। ऐसे में सरकारों व राजनीति दलों को यह तय करना होता है कि वे ऐसे कोई भी अनाचार को रोकें, जिससे आचार संहिता का उल्लंघन न हो और चुनावी  माहौल न बिगड़े।

वर्तमान में17वीं लोकसभा का चुनाव के अबतक चार चरणों के मतदान पूरे किये जा चुके हैं एवं तीन चरणों का मतदान होना अभी बाकी है। किंतु इस लोकसभा चुनाव में एक खास बात देखी जा रही है इस बार महत्वपूर्ण मुद्दों से नमस्कार कर लिया गया है। यानी कि मंहगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, गरीबी, नई फसल योंजनाएं, रोजगार, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, किसान एवं कृषि  आदि जैसे मुद्दों को नजरअंदाज करके सभी  राजनीतिक दलों  के नेतागण एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज, अपशब्द, व्यक्तिगत एवं जातिगत हमला आदि करने में लगे हुए हैं।कोई किसी को मुर्ख कहता है कोई किसी को चोर  किसी को बच्चा कहता है, कोई स्वयं को चौकीदार कह रहा है, कोई किसी खास को तो यह भी कह रहा है कि उसकी पूरी जाति ही चोर व भगौड़ा ह। इसमें  से कोई  कोई भी अपने पूर्व कार्यों को ब्यौरा व रिपोर्ट कार्ड नहीं दिखाता और  न तो आने वाले चुनावी परिणाम के फलस्वरूप उनकी सत्ता आने पर आम जनता के लिए कोई ठोस कदम एवं दूर दृष्टि ही दिखाता है।
सब बस एक-दूसरों पर व्यक्तिगत हमला करने से भी नहीं चूक रहें हैं। नेताओं और उम्मीदवारों की भाषा-शैली निम्न स्तर की होती जा रही है । उनके भाषण का स्तर हास्यप्रद हो राह है। यानी एक सटीक वाक्य में कहा जाए तो इस बार का लोकसभा चुनाव 2019 एक  ‘‘मुद्दा विहिन’’ चुनाव  के रूप में जनमत में देखा जा रहा है।
एक प्रकार से इसे अनौपचारिक रूप से जनता के विश्वास के साथ धोखा है। पिछले चुनाव की बात करें तो  कम से कम या हल्के-फुल्के वादे जैसे काले धन की वापसी, नदियों की स्वच्छता, किसानों को राहत, गरीबों को लाभ देने जैसे फरेबी भाषण व वादे भी सुनने को मिलते थे किन्तु इस सत्रहवें लोकसभा चुनाव में तो इसका भी आभाव दिख रहा है। कहीं-न-कहिं आज के इन हालातों की वजह तथा जिम्मेवार आम जनता व जनमत स्वयं भी है।
वर्तमान में नेताओं, मंत्रियों एवं देश के शीर्ष पदों पर आसीन लोगों व कुछ राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के द्वारा प्रयोग की जानेवाली निम्न स्तर की भाषा शैली, अपशब्द, एवं अभद्र वाक्यों को प्रयोग निकट भविष्य में सवेदनशील एवं चिंताजनक है। इससे विश्वस्तर पर देश की छवि धूमिल होती है। इस विषय पर गहन चिंतन करना आवश्यक है।
निहारिका, एम.ए (मास कॉमनिकेशन)
यह लेख, लेखक के निजी विचार हैं।

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