अब इस बात को गौर करें कि ‘‘जयश्री राम’’ या ‘‘भारत माता की जय’’ का नारा हो या आजादी के समय स्वाधिनता का प्रतीक ‘‘वंदे मातरम्‘‘ नारे के स्वरूप को इस प्रकार प्रस्तुत किये जाने लगे कि इसे बोलने का अर्थ ही बदल गया। अब इन नारों में राजनीति बू आने लगी।आइये अब हम कुछ इतिहास के पन्ने समेट लेते हैं। पाकिस्तान में मोहम्मद अली जिन्ना के नेतृत्व में सन् 1947 में जिन्ना ने नई सत्ता की शुरूआत की थी, वही 16वीं लोकसभा के गठन के बाद ही मोदी ने भी नई सत्ता की शुरूआत की। आप सोचेगें कि इन दोनों के बीच क्या सामन्यता है। आप पहले इनकी भाषा को पढ़ लें, फिर आगे बात करेगें।पाकिस्तान आजाद होते ही अली जिन्ना ने अपने इस भाषण में पाकिस्तान के सभी नागरिकों का आभार व्यक्त करते हुए कहा था -
‘‘पाकिस्तान हमेशा उनका एहसानमंद रहेगा जिन्होंने पाकिस्तान बनाने में अपनी बड़ी कुर्बानियां दी हैं। हमें यह मौका भी दिया कि हम दुनिया को यह बता सकें कि किस तरह से अलग-अलग इलाकों को मिलाकर बने एक राष्ट्र में एकता रह सकती है और रंग और नस्ल के भेदभाव से परे होकर सबकी भलाई के लिए काम किया जा सकता है। उन्होंने पाकिस्तान की तरफ से अपने पड़ोसी देशों और दुनिया भर को शांति का संदेश दिया। जिन्ना ने कहा कि पाकिस्तान की कोई आक्रामक महत्वाकांक्षा नहीं है और यह देश संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति बाध्य है, पाकिस्तान दुनिया में शांति और समृद्धि के लिए काम करेगा।’’
वहीं 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही मोदी जी का संसद में दिये गये पहले भाषण का एक अंश जो इस प्रकार है - ‘‘यह भारत के भाग्य के लिए एक शुभ संकेत है। राष्ट्रपति जी ने अपने अभिभाषण में चुनाव, मतदाता, परिणाम की सराहना की है। मैं भी देशवासियों का अभिनंदन करता हूँ, उनका आभार व्यक्त करता हूँ कि कई वर्षों के बाद देश ने स्थिर शासन के लिए, विकास के लिए, सुशासन के लिए, मत दे कर पांच साल के लिए विकास की यात्रा को सुनिश्चित किया है। भारत के मतदाताओं की ये चिंता, उनका यह चिंतन और उन्होंने हमें जो जिम्मेवारी दी है, उसको हमें परिपूर्ण करना है। लेकिन हमें एक बात सोचनी होगी कि दुनिया के अंदर भारत एक बड़ा लोकतांत्रिक देश है, इस रूप में तो कभी-कभार हमारा उल्लेख होता है। लेकिन क्या समय की माँग नहीं है कि विश्व के सामने हम कितनी बड़ी लोकतांत्रिक शक्ति हैं, हमारी लोकतांत्रिक परंपराएं कितनी ऊँची हैं, हमारे सामान्य से सामान्य, अनपढ़ से अनपढ़ व्यक्ति की रगों में भी लोकतंत्र के प्रति श्रद्धा कितनी अपार है। अपनी सारी आशा और आकांक्षाओं को लोकतांत्रिक परंपराओं के माध्यम से परिपूर्ण करने के लिए वह कितना जागृत है। क्या कभी दुनिया में, हमारी इस ताकत को सही रूप में प्रस्तुत किया गया है? इस चुनाव के बाद हम सबका एक सामूहिक दायित्व बनता है कि विश्व को डंके की चोट पर हम यह समझाएं। विश्व को हम प्रभावित करें। ’’ इन्होंने भी अपने शपथ ग्रहण समारोह में सार्क देशों के राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर दुनिया को शांति व भाईचारे का संदेश दिया।पिछले 70 सालों में भारत और पाकिस्तान के परिणाम हमारे सामने है। भारत न सिर्फ आर्थिक रूप से मजबूत हुआ, शिक्षा से लेकर विज्ञान तक, कल-कारखानों से लेकर व्यापार तक, कृषि से लेकर सुरक्षा तक सभी जगह भारत मजबूत होता चला गया। पंजाब में पृथकतावादी खालिस्तान आंदोलन से लेकर असम में उल्फा उग्रवादियों का सफाया यहां कि जनता ने खुद कर दिया। भारतीय हिस्से के कश्मीर में वे तमाम जन सुविधाएं उपलब्ध है जो भारत के अन्य राज्यों में में उपलब्ध है।वहीं पाकिस्तान के मदरसों में मानव बम के कारखाने फलने-फूलने लगे। पाकिस्तान ने वही प्रयास भारत में भी भारतीय मुसलमानों को बहका कर करने का लगातार प्रयास किया गया जिसमें उसको कभी कामयाबी नहीं मिली। यही कारण है कि पाकिस्तान के मुसलमानों की सोच में और भारत के मुसलमानों की सोच में आकाश-पाताल का अंतर है। धर्म के नाम पर जो देश भारत से अलग होकर पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान बना। दुनिया भर को शांति का संदेश देने वाले मोहम्मद अली जिन्ना का सपना सन् 1971 में तब चकनाचूर हो गया जब पाकिस्तान भाषा के नाम पर दो हिस्सों में बँट गया। धर्म ने जिसे भारत से अलग किया वही धर्म एक समय लाखों बंगाली मुसलमानों के जान का दुश्मन बन चुका था। बड़ी संख्या में मुस्लिम महिलायें अपने बच्चों के साथ भाग-भाग के भारत में शरण लेने लगी थी। शब्दों में ना लिखे जाने वाले काम पाकिस्तानी सेनाओं ने उनके साथ किया। यही हाल आज बलूचिस्तान का है। धर्म ना तो दो भाषा को बांध कर रख सका ना ही विकास कर सका । पाकिस्तान किस प्रकार अंदर ही अंदर खोखला बनता चला गया इस बात का भी अंदाजा उसे देखकर सहज लगाया जा सकता है।वहीं भारत धर्मनिरपेक्षता के मार्ग का चयन किया। जहां हमें काफी सफलता मिली, परन्तु साथ ही धर्मनिरपेक्षता की आढ़ में मुसलमानों की तुष्टिकरण की राजनीति, सत्ता में आने के लिए किया जाने लगा। विश्वनाथ प्रताप सिंह के बाद जामा मस्जिद की राजनीति ने इसे और बल दिया। मुसलमानों की तुष्टिकरण से स्वाभाविक रूप् से हिन्दुओं में असंतोष फैलता चला गया। 2013 में मुजफ्फरनगर की घटना इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। सेकुलरवाद की राजनीति करने वाले आजाम खान और सांप्रदायिकता की राजनीति करने वाले हुकुम सिंह, संगीत सोम, सबके मुह में जहर भरा था, हर कोई धर्म की लहलहाती फसल को काटने में लगा था। जिसका परिणाम हमने 2014 में देखा कि किस प्रकार सेक्युलरवादी दलों का सफाया हिन्दी भाषी प्रान्तों से हो गया।2014 में जो लोग, मुसलमानों के खिलाफ थे वे ही 2019 आते-आते मानवबम बनाते चले गये। मोदी सरकार भी स्नेह-स्नेह इस आग को अपने नेताओं के माध्यम से घी डलवाते रहे। 2019 लोकसभा के चुनाव में भोपाल से लेकर बंगाल तक हमने इसे देखा और सुना है कि किस प्रकार मोदी समूह की एक महिला एक तरफ महात्मा गांधी के कातिल को महिमामंडित कर रही थी तो दूसरी तरफ हिन्दुस्तान के महान समाज सुधारक ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, जिन्होंने विधवा-पुनर्विवाह कानून पारित करवाया, बाल विवाह का विरोध किया, बांग्ला लिपि के वर्णमाला पर काम किया, बँगला पढ़ाने के लिए सैकड़ों विद्यालय स्थापित किए तथा रात्रि पाठशालाओं की भी व्यवस्था की। संस्कृत भाषा के प्रचार-प्रसार के लिए प्रयास किया की प्रतिमा को एक झटके में खंडित कर दिया।यह दो घटना सामान्य नहीं मानी जा सकती। यह आरएसएस विचारकों की सोच व्यक्त करती है। संवैधानिक संस्थाओं की बात छोड़ दें तो कहीं गाय के नाम पर, कहीं ‘‘जयश्री राम’’ के नाम पर, कहीं हिन्दुओं के अल्पसंख्यक हो जाने के नाम पर हिन्दू वोटों का पोलोराइजेशन (ध्रुवीकरण) किया गया। एक नये प्रकार का राष्ट्रवाद जिसमें हिन्दुओं में भी डर / खौफ पैदा कर दिया गया। भला हो भी क्यों नहीं? यदि मुसलमानों के वोटों का पोलोराइजेशन सेक्युलरवादी दलों के द्वारा किया जा सकता है तो सांप्रदायिक ताकतों ने हिन्दू वोटों का पोलोराइजेशन करके क्या गुणाह कर दिया?कांग्रेस ने पिछले 50 सालों से मुसलमानों की तुष्टिकरण की राजनीति की, ‘धर्मनिरपेक्षता’ शब्द धीरे-धीरे मुसलमानों की तुष्टिकरण का पर्यायवाची बन गया। वहीं अब ‘राष्ट्रवाद’ हिन्दू तुष्टिकरण का पर्यायवाची बनता जा रहा है।अब इस बात को गौर करें कि ‘‘जयश्री राम’’ या ‘‘भारत माता की जय’’ का नारा हो या आजादी के समय स्वाधिनता का प्रतीक ‘‘वंदे मातरम्‘‘ नारे के स्वरूप को इस प्रकार प्रस्तुत किये जाने लगे कि इसे बोलने का अर्थ ही बदल गया। अब इन नारों में राजनीति बू आने लगी। हिन्दू तुष्टिकरण के रूप में इन नारों का प्रयोग खुल कर होने लगा ।यदि हम महात्मा गांधी के हत्यारे पर इतना गर्व कर सकतें है इन्दिरा गांधी या राजिव गांधी के हत्यारे पर गर्व करने से हम किसी को कैसे मना कर सकतें हैं। गांधी की फिलोस्फी को मानने वाले दल के लोग ही उसके हत्यारे को महिमामंडित करने वाले लोगों को राजनीति पनाह देता हो, जनता उसको चुन कर संसद में भेजती हो तो भविष्य का आप खुद ही अंदाज लगा सकते हैं कि आने वाले दिनों में भारत में कैसी राजनीति पनपने वाली है ।
महाराष्ट्र में दो राजनीतिक दल है वे भी हिन्दुओं की राजनीति करते हैं परन्तु उनके राजनीति में मराठा हिन्दू है। युपी या बिहार के हिन्दू नहीं है। इसी प्रकार आंध्रा में एक राजनीति दल मुसलमानों की राजनीति करता है परन्तु उसकी भाषा में पूरा हिंदुस्तान के मुसलमानों को एकत्र करने की बात हो रही है। अब देश की एक बड़ी राजनीति पार्टी की जगह मैं उसे मोदी पार्टी बोलकर लिखूं तो ज्यादा उपयुक्त शब्द होगा उसके नेता अमित शाह व योगी आदित्यनाथ खुलकर हिन्दुओं की राजनीति करने लगे। इस बार के चुनाव में तो जमकर इस विचारधारा का प्रयोग किया गया। निश्चित रूप से यह एक ऐसा औजार बन चुका है जो धर्मनिरपेक्ष ताकतों की काट बन चुका है।इसबार 2019 के लोकसभा के चुनाव में विपक्ष ने कहीं भी इस बात पर संगठित होने का प्रयास नहीं किया कि वे धर्मनिरपेक्ष ताकत है और सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बहार रखना होगा। इस बार चुनाव में धर्मनिपेक्षता नहीं बल्की इनके संगठित होने का एक ही एजेंडा था ‘‘मोदी को सत्ता से कैसे बहार रखा जाए’’ यानि पिछले पांच सालों में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें जो महज एक मात्र मुसलमानों की सुरक्षा व उसके तुष्टिकरण को ही धर्मनिरपेक्ष समझती थी और जामा मस्जिद से इनकी राजनीति शुरू होती और वहीं जाकर समाप्त हो जाती थी में काफी बदलाव आया है। अब धर्मनिरपे़क्ष राजनीतिक दलों को यह बताना पड़ रहा है कि वे भी हिन्दू हैं।अबतक मैंने दोनों पक्षों की बात जस की तस रख दी। अब आपके मन में यह प्रश्न रह गया होगा कि इस लेख में मैंने जिन्ना को क्यों घसीटा? सवाल वाजिब है। पाकिस्तान ने मानव को मानव बम में तब्दील किया आज विश्व में मुसलमानों की एक लंबी फौज तैयार हो गई जो दुनियाभर में आतंक का साम्राज्य बसा लेना चाहता है। विश्वभर में इसके खातमें को लेकर तरह-तरह की योजनाएं बनाई जा रही है। क्या भारत भी इसी रास्ते पर निकल पड़ा है ? ‘‘सबका साथ-सबका विकास-सबका विश्वास’’ के फ्रेम का दायरा सुनने में जितना बड़ा लगता है। वास्तव में ऐसा है नहीं। यदि मोदी जी सच में भारत को यह संदेश देना चाहते हैं तो उनको सर्वप्रथम अपनी बात पर आना होगा कि ‘‘मैं अपने मन से माफ नहीं कर पाऊंगा’’ उस महिला को संसद पद से इस्तीफ़ा दिला के देश को यह संदेश दे कि वे ऐसे तत्वों को संसद में जाने से रोक देगें। यदि ऐसा नहीं होता है तो भारत को भी जिन्ना की राह पर चलने से मोदी रोक नहीं पायेगें।लेखक स्वतंत्र व पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। - शंभु चौधरी
शनिवार, 25 मई 2019
जिन्ना की राह पर भारत
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:08 am 0 विचार मंच
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गुरुवार, 23 मई 2019
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती -
हमारा लक्ष्य है जनता के हित में कार्य हो। हमारी पूंजी महज पांच रुपये की कलम है । ना तो हम मोदी जी के जैसे खान-पान कर सकते हैं ना ही कपड़े पहनने की कल्पना भी कर सकते हैं, ना ही राहुल गांधी की तरह हमें विरासत में राजगद्दी मिल सकती है। हम जनता के बीच से निकलते हैं और उनके बीच ही समा जाना पसंद करते हैं।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 7:31 am 0 विचार मंच
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बुधवार, 22 मई 2019
चुनाव आयोग: दाल में काला
किसी भी विषय के शोध में उसकी समस्या का निदान ही शोधकर्ता के लिये प्रमुख माना जाता है। कहा जाता है कि समस्या को ठीक से समझ लेना ही उसका आधा हल माना जाता है। कई बार समस्याओं को हम खुद की नाकामियों को छुपाने के लिए भयानक बना देते हैं या फिर समस्या को समझते-बुझते हुए भी कुछ ऐसी हरकतें करते हैं कि समस्या को सुलझाने की जगह और विकराल बना देते हैं। आज के चुनाव आयोग के अपरिपक्व के इस निर्णय के कारण ही कल का दिन पूरे देश के लिए तनावपूर्ण होनेवाला है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 8:06 am 0 विचार मंच
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मंगलवार, 21 मई 2019
चुनाव आयोग की नियत पर खोट?
चुनाव आयोग भी रूल 49MA के तहत यह स्वीकार करती है कि ईवीएम में खराबी हो सकती है और मतदाता ने अपना मत जिस राजनीति पार्टी को दिया है उसे ना जाकर किसी ओर राजनीति दल को जाने पर क्या करना होगा इसकी व्यवस्था की है। परन्तु जिन-जिन जगहों से ऐसी शिकायतें आई उसे दबाने का काम आयोग की भूमिका पर फिर एक नया प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:53 am 0 विचार मंच
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व्यंग्य - गरम-गरम चाय - शंभु चौधरी
हाँ ! तो मैं सोच रहा था कि कोई "स्टार्टअप इंडिया " के अंतर्गत नया करोबार कर लिया जाए। पत्रकारिता करते-करते हम इतने कमजोर हो जाएंगे यह पहली बार एहसास हुआ। दिमाग जिस तेजी से सड़कों पर समाचार चुनने में, लिखने में काम कर रहा था वह रोजगार खोलने के नाम पर पूरा रूह ही कांपा दिया। दिमाग के परचे-परचे उखड़-उखड़ कर हाथ में आने लगे।
तभी चाय वाले ने मेरे हाथ में गरम-गरम चाय का ‘भांड’ पकड़ा दिया । चाय पीते-पीते फिर हम मीडिया की बातें करने लगे । कुछ 23 मई से पहले ही मोदीजी को शपथ दिला रहे थे कुछ उनकी सरकार छीनने में लगे थे। मैं भी वहां से उठा और समाचार चुनने के लिए सड़कों की धूल छांकने लगा। - शंभु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 3:44 am 0 विचार मंच
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रविवार, 19 मई 2019
‘‘एक्जिट पोल’’ - अपना-अपना तुका
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 12:13 pm 0 विचार मंच
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बुधवार, 15 मई 2019
17वीं लोकसभा - एजेंडा सेटिंग
"2014 में दिये नारों में जनता से सीधे संवाद नजर आता था जैसे मंहगाई, अच्छे दिन और घर-घर मोदी ये सभी नारों में एक मनोवैज्ञानिक तथ्य ‘जनता से संवाद’ काम कर रहा था। जबकि 2019 के चुनाव में इनके नारे से ‘जनता से संवाद’ गायब है और इनके समर्थक चाहकर भी मोदी लहर नहीं बना पा रहे थे जैसा पिछले लोकसभा चुनाव में हुआ था। राम मंदिर, जय श्री राम, हिन्दू-मुस्लिम, सर्जिकल स्ट्राइक, बालाकोट एयर स्ट्राइक, एनआरसी का मुद्दा जहां जो काम लगे वहां वही लगा दिया गया। भाजपा के तमाम नेताओं को समझ में नहीं आ रहा था कि 'किस' जनता को क्या कहना है और क्या नहीं कहना है। किसी भी जगह मोदीजी जनता से सीधा संवाद जो पिछले लोकसभा में कर रहे थे नहीं कर पा रहे थे। उसकी जगह मोदी जी भूगोल के साथ-साथ विज्ञान को भी बदलने लगे"
लेखक स्वतंत्र पत्रकार और विधिज्ञाता हैं। - शंभु चौधरी
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:22 pm 0 विचार मंच
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शनिवार, 11 मई 2019
न्यू मीडिया: भारत में लोकतंत्र की नई किरण
न्यू मीडिया: भारत में लोकतंत्र की नई किरण
न्यू मीडिया का यह प्रयोग कम लागत में कोई भी शुरू कर सकता है बस उसके अंदर कार्य करने का ज़ज़्बा होना चाहिये जो सत्य के साथ अपने विचारों को आज भी बिना की किसी ख़ौफ़ और डर के रख सके। भारत में लोकतंत्र की नई किरण देखने में भले ही आज छोटी लगती हो पर जब चारों तरफ बाढ़ आ जाती है तो लोग खुद को बचाने के लिये अपने साथ एक दीया साथ रख लेते हैं जो रात के अंधेरे में ही उनके जिंदा रहने का सबूत दुनिया को बता देती है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 10:08 am 1 विचार मंच
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राफेल: खतरा ही खतरा
माननीय अदालत को यह तो साफ हो गया कि वे आसानी से मुक्त नहीं हो सकती । बंद लिफाफे में सुनवाई कर वह बुरी तरह फंस चुकी है जो अदालत के इतिहास में लिखा जा चुका है कि बिना प्रतिपक्ष को सुने बंद लिफाफे में भी वह भी देश की सर्वोच्च अदालत में कोई फैसला हुआ था जो ना सिर्फ न्यायिक प्रक्रिया के दृष्टि से असंवैधानिक ही नही गलत भी था।
खैर राफेल पर पुनः आतें हैं -
- यह निर्णय (14 दिसंबर का निर्णय) सरकार द्वारा आपूर्ति किए गए गलत और अधूरे तथ्यों पर आधारित है।
- समझौते दस्तावेज से ‘‘मानक भ्रष्टाचार विरोधी खंड’’ को क्यों हटाया गया? क्या किसी अपराधी क्रिया को अंजाम दिया जाना था?
- सरकार ने निर्णय लेने की प्रक्रिया के बारे में कोर्ट को पूरी जानकारी नहीं दी है।
- बेंचमार्क की कीमत 5 बिलियन यूरो तय की गई थी, लेकिन अंतिम सौदे में बेंचमार्क के ऊपर कीमत 55.6% बढ़ गई।
- INT के सदस्यों की आपत्तियों के बावजूद (Sovereign guarantee clause) संप्रभु गारंटी खंड को हटा दिया गया था।
- INT के असंतोष तीन सदस्यों के निर्णय को अदालत से छुपाया गया।
- सरकारी हलफनामे में, सरकार ने स्वीकार किया कि ‘‘पीएमओ द्वारा निगरानी’’ की जा रही थी। क्या इसे ‘‘समानांतर वार्ता’’ नहीं माना जा सकता?।
- इस डील के बाद अंबानी की कंपनी को फ्रांस सरकार की तरफ से ‘कर’ में भारी छूट भी दी गई। जो किसी शक के दायरे में खड़ा करता है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 3:15 am 0 विचार मंच
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बुधवार, 8 मई 2019
मांछे तेल तिके मांस भाजा होबे
बंगाल में एक कहावत है - ‘‘मांछे तेल तिके मांस भाजा होबे’’ कहने का अभिप्राय है कि पत्रकारों को उसकी कमज़ोरी से मारा जाए। जो पत्रकार पैसे से बिक जायेगा उसे पैसे से खरीद लिया जाता है, जो नहीं बिके उसे धमकाया या उसके मालिकों को डराया जाता है। विज्ञापन का प्रलोभन या उसे हटा देने की धमकी से मीडिया हाउस ना सिर्फ परेशान हो चुकी है लाचार भी है।
पिछली कांग्रेस की सरकार में एक बात थी कि इनके नेता बार-बार एक ही बात की धमकी देते थे कि ‘‘वे चुन कर आयें हैं ’’ उनका यही अहंकार कांग्रेस पार्टी को ले डूबा। आज वही कांग्रेस पार्टी चुनावी समर में हाथ-पांव मार रही है खुद को बचाने की जद्दोजहद में लगी है। जो एक समय इस अहंकार में दंभ भरते थे वे आज हासिये पर खड़ें हैं। आज वहीं हाल भाजपा के नेताओं का हो चला है। बात-बात में गाली देना, धमकाना, गौरी लंकेश का उदाहरण देना व मानहानि का मुकदमा कर देना इनके दैनिक दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। इनको पता है कि एक बार मानहानि का मुकदमा फाइल हो जाने के बाद पूरा मामला ठंडे बस्ते में कम से कम पांच साल तो चला ही जायेगा। किसी बात को साबित करने की एक लंबी प्रक्रिया है इतने में तो कमजोर पत्रकार खुद ही मर जायेगा और अंत में झक मार कर खुद घुटने टेक देगा। बंगाल में एक कहावत है - ‘‘मांछे तेल तिके मांस भाजा होबे’’ कहने का अभिप्राय है कि पत्रकारों को उसकी कमज़ोरी से मारा जाए। जो पत्रकार पैसे से बिक जायेगा उसे पैसे से खरीद लिया जाता है, जो नहीं बिके उसे धमकाया या उसके मालिकों को डराया जाता है। विज्ञापन का प्रलोभन या उसे हटा देने की धमकी से मीडिया हाउस ना सिर्फ परेशान हो चुकी है लाचार भी है। भाजपा (मोदी भाजपा) जब किसी पत्रकार को जबाब नहीं दे सकती तो उस पत्रकार को अपने समर्थकों से ना सिर्फ अपमानित करावाती है उसके घर-परिवार के सदस्यों पर भी भद्दे व अपमानित करने वाले शब्दों से प्रहार करती है। और इसे मीडिया जगत के उस वर्ग की मौन स्वीकृति प्राप्त है । जो इन दिनों खुद को गोदी मीडिया कहलाने में फूलों नहीं समा रहे। यह सिलसिला लगातार जारी है। परन्तु इन सब के बीच एक अच्छी बात लेह से सामने आई -
लेह प्रेस क्लब (Press Club Leh ) की घटना: जहां भाजपा के एक नेता के द्वारा पत्रकारों को नगद बांटते दिखाया गया है। जब इसका विरोध किया गया तो प्रेस क्लब को धमकी दी गई कि उसके विरूद्ध मानहानि का मुकदमा किया जायेगा। इसके पूर्व एक दिवालिया संस्थान के मालिक के द्वारा पांच हजार करोड़ का मामला एक पत्रकार पर पहले ही किया जा चुका है। इसी प्रकार के कई मुक़द्दमे की सूची तैयार हो सकती है जो पिछले पांच सालों में सामने आये हैं। अभी राफेल के दस्तावेज़ पर ‘हिन्दू’ समाचार में छपने पर ‘‘समाचार पत्रों पर आपराधिक मुकदमा करने तक की धमकी दी गई थी’’ ख़ुदा न खास्ता कोई कमजोर पत्रकार होता तो मोदी भाजपा अभी तक उस पत्रकार को सूली पर चढ़ा डालती। इनका एक ही लक्ष्य है किसी भी प्रकार से देश की उस व्यवस्था पर प्रहार करना है जो सोचता हो, जो अच्छे-बुरे में अंतर करता हो और सबसे बड़ी बात वह देश के संविधान में विश्वास रखता हो। ना तो वह पत्रकार कभी कांग्रेस का गुलाम था ना आज किसी मोदी भाजपा का ग़ुलाम बनने को तैयार है। जो लोग इस बात का भ्रम फैला रहें है कि इनके पांच सालों के कार्यकाल में ही देश की सुरक्षा हुई जो इससे पहले कभी नहीं हुई थी यह पांच सालों का सबसे बड़ा ‘झूठ’ है कि इनका ‘सच’ स्वतः इनके ही झूठ से दबकर मर रहा है । इससे बड़े आश्चर्य की बात और क्या हो सकती है जो व्यक्ति देश की सुरक्षा को वीडियो गेम समझता हो, देश के किसानों की आत्महत्या व सेना की शहादत को एक ही समस्या समझता हो वह देश का प्रधानमंत्री बना रोजना लाखों की नई-नई सूट पहनकर विदेशों के चक्कर लगा रहा है।
यह बात सही है कि पत्रकारों का एक छोटा सा वर्ग ‘गोदी मीडिया’ बन चुका है परन्तु इससे देश के ईमान को नहीं ख़रीदा जा सकता ना ही गोदी मीडिया का अपना कोई नहीं वजूद है, गिरगिट की तरह ही गोदी मीडिया वक्त बदलते ही अपना रंग बदल लेता है। भारत ने मुगलों का शासन देखा उस दौर में हजारों चारण पैदा लिये जो राजा के गुणगान में कशीदे पढ़ा करते थे पर राणा प्रताप एक ही पैदा हुआ जिसे आज भी देख रहें हैं, अंग्रेजों के शासनकाल में हजारों चापलूसों को उनकी गुलामी करते देखा गया, आज जो लोग राष्ट्रवाद की बात कर रहें हैं उन्होंने आज़ादी की लड़ाई में कभी ‘‘बंदे मातरम्’’ नहीं गाया, तिरंगे झंडे को लेकर कल तक जो खुद को अपमानित समझते थे, आरएसएस की शाखा में आज भी बंदे मातरम्’’ सुनाई नहीं देता जिसे (बंदे मातरम्’) सत्ता में आने के लिए अपना हथियार बना के देश के लोगों को मुर्ख बनाने चले हैं। आज का यह गाना ‘‘एक चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग’’ यदि रावण के काल में लिखा व गाया, गया होता तो तब का रावण इस गाने को लिखने, सुनने वाले, फिल्मानेवाले, चित्रकार, कलाकार, सबको फाँसी पर लटका दिया होता। गणिमत है की भारत का संविधान इनके आड़े हाथों बीच में रोड़ा अटकाये खड़ा है नहीं तो अब तक सच लिखने व बोलने के जुर्म में कई पत्रकारों को फाँसी के फंदे पर लटका दिया गया होता ।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 7:33 am 0 विचार मंच
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शुक्रवार, 3 मई 2019
मुद्दा विहीन चुनाव-2019
सब बस एक-दूसरों पर व्यक्तिगत हमला करने से भी नहीं चूक रहें हैं। नेताओं और उम्मीदवारों की भाषा-शैली निम्न स्तर की होती जा रही है । उनके भाषण का स्तर हास्यप्रद हो राह है। यानी एक सटीक वाक्य में कहा जाए तो इस बार का लोकसभा चुनाव 2019 एक ‘‘मुद्दा विहिन’’ चुनाव के रूप में जनमत में देखा जा रहा है। एक प्रकार से इसे अनौपचारिक रूप से जनता के विश्वास के साथ धोखा है।
निहारिका |
वर्तमान में17वीं लोकसभा का चुनाव के अबतक चार चरणों के मतदान पूरे किये जा चुके हैं एवं तीन चरणों का मतदान होना अभी बाकी है। किंतु इस लोकसभा चुनाव में एक खास बात देखी जा रही है इस बार महत्वपूर्ण मुद्दों से नमस्कार कर लिया गया है। यानी कि मंहगाई, बेरोज़गारी, शिक्षा, गरीबी, नई फसल योंजनाएं, रोजगार, स्वच्छता, पर्यावरण संरक्षण, किसान एवं कृषि आदि जैसे मुद्दों को नजरअंदाज करके सभी राजनीतिक दलों के नेतागण एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप, गाली-गलौज, अपशब्द, व्यक्तिगत एवं जातिगत हमला आदि करने में लगे हुए हैं।कोई किसी को मुर्ख कहता है कोई किसी को चोर किसी को बच्चा कहता है, कोई स्वयं को चौकीदार कह रहा है, कोई किसी खास को तो यह भी कह रहा है कि उसकी पूरी जाति ही चोर व भगौड़ा ह। इसमें से कोई कोई भी अपने पूर्व कार्यों को ब्यौरा व रिपोर्ट कार्ड नहीं दिखाता और न तो आने वाले चुनावी परिणाम के फलस्वरूप उनकी सत्ता आने पर आम जनता के लिए कोई ठोस कदम एवं दूर दृष्टि ही दिखाता है।
सब बस एक-दूसरों पर व्यक्तिगत हमला करने से भी नहीं चूक रहें हैं। नेताओं और उम्मीदवारों की भाषा-शैली निम्न स्तर की होती जा रही है । उनके भाषण का स्तर हास्यप्रद हो राह है। यानी एक सटीक वाक्य में कहा जाए तो इस बार का लोकसभा चुनाव 2019 एक ‘‘मुद्दा विहिन’’ चुनाव के रूप में जनमत में देखा जा रहा है।
एक प्रकार से इसे अनौपचारिक रूप से जनता के विश्वास के साथ धोखा है। पिछले चुनाव की बात करें तो कम से कम या हल्के-फुल्के वादे जैसे काले धन की वापसी, नदियों की स्वच्छता, किसानों को राहत, गरीबों को लाभ देने जैसे फरेबी भाषण व वादे भी सुनने को मिलते थे किन्तु इस सत्रहवें लोकसभा चुनाव में तो इसका भी आभाव दिख रहा है। कहीं-न-कहिं आज के इन हालातों की वजह तथा जिम्मेवार आम जनता व जनमत स्वयं भी है।
वर्तमान में नेताओं, मंत्रियों एवं देश के शीर्ष पदों पर आसीन लोगों व कुछ राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों के द्वारा प्रयोग की जानेवाली निम्न स्तर की भाषा शैली, अपशब्द, एवं अभद्र वाक्यों को प्रयोग निकट भविष्य में सवेदनशील एवं चिंताजनक है। इससे विश्वस्तर पर देश की छवि धूमिल होती है। इस विषय पर गहन चिंतन करना आवश्यक है।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 7:47 pm 0 विचार मंच
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गुरुवार, 2 मई 2019
बिकाऊ पत्रकारिता
मीडिया हाउस भी यही चाहता है कि जनता उसके दिखाये मार्गों का ही अनुसरण करें, साथ ही ये आपस में भी एक दूसरों को नीचा दिखाने व दिल्ली में किसकी सरकार सत्ता पर काबिज होगी इसकी हौड़ में लगें हैं । क्या ‘जी-न्यूज’ सत्ता में आयेगा कि ‘आजतक’ ? क्या ‘रजत शर्मा’ की सरकार बनेगी कि ‘अर्नब गोस्वामी’ की? इसीप्रकार प्रिंट मीडिया में भी दैनिक जागरण, दैनिक भास्कर, हिन्दुस्तान, प्रभात खबर इस दौड़ में सबसे आगे की पंक्ति में दिखाई दे रहें हैं। एक’आध को छोड़कर किसी ने भी अपनी ज़िम्मेदारी का सही से निर्वाहन नहीं किया है । सबके सब बिकाऊ पत्रकारिता का हिस्सा बन चुके हैं।
प्रकाशक: Shambhu Choudhary Shambhu Choudhary द्वारा 9:01 pm 0 विचार मंच
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